ख़ातून जन्नत को अपनी औलाद अज़ीज़ है 

ख़ातून जन्नत को अपनी औलाद अज़ीज़ है 

(1) इमाम इब्ने हज्र मक्की हैतमी (974 हि.) तकीउद्दीन फारसी से रिवायत करते हैं उन्होंने बाज़ अइमा किराम से रिवायत की कि वह सादात किराम की बहुत ताज़ीम किया करते थे। उनसे इसका सबब पूछा गया तो उन्होंने फ़रमायाः

सादाते किराम में एक शख्स था जिसे मुतैर कहा जाता था वह अक्सर लहव व लअब में मसरूफ रहता था जब वह फौत हुआ
तो उस वक्त के आलिमे दीन ने उसका जनाज़ा नहीं पढ़ा तो उन्होंने ख़्वाब में नबी करीम की ज़ियारत की आपके साथ हज़रत सैयदा फ़ातिमा ज़ेहरा थीं। आलिम ने हज़रत फातिमा ज़ेहरा से दरख्वास्त की के मुझ पर नज़रे रहमत फ़रमाऐं तो हज़रत ख़ातून जन्नत उसकी तरफ मुतवज्जह नहीं हुईं, उस पर अताब फ़रमाया और इर्शाद फ़रमाया:

‘क्या हमारा मुकाम मुतैर के लिए किफायत नहीं कर
सकता?”

बेशक कर सकता है। गुनहगार सादात के ज़ख्मों पर आप मर्हम पट्टी नहीं करेंगी तो और कौन करेगा। हर एक को अपनी औलाद प्यारी होती है बेशक आपको भी अपनी आले अज़ीज़ है। • गुनाह से नसब नहीं टूटता। जैसे भी हैं आपके हैं। “जिसका जो होता है रखता है उसी से निस्बत “

( 2 ) हज़रत इमरान बिन हुसैन फ़रमाया: फ़रमाते हैं, नबी अकरम ने

“मैंने अपने रब करीम से दुआ की कि मेरे एहले बैत में से
किसी को आग में दाखिल न फ़रमाए तो उसने मेरी दुआ कुबूल फरमा ली।” (बरकाते आले रसूल)

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