चौदह सितारे पार्ट 35

आपकी अलालत

हम उपर बा हवाला अल्लामा शहर सतानी व अल्लामा मोईन काशफ़ी लिख कर आए हैं कि हज़रत उमर ने सैय्यदातुन निसां हज़रत फातेमा पर दरवाज़ा गिराया था और शिकने मुबारक पर ज़र्ब लगाई थी जिसकी वजह से इस्तेक़ाते हमल हुआ था। और इसी सबब से आप बीमार हुईं और आख़िर में मर गईं। अब आपकी ख़िदमत में डिप्टी नज़ीर अहमद की तहरीर का एकतेबास पेश करते हैं। वह लिखते हैं, जो आदमी रसूल (स.व.व.अ.) के मरने से सब से ज़्यादा प्रभावित हुआ ह फातेमा थीं। मां पहले ही मर चुकी थीं अब मां और बाप दोनो की जगह पैग़म्बर साहब ही थे और बाप भी कैसे दीन और दुनियां के बादशाह । ऐसे बाप का साया सर से उठना इस पर हज़रत अली (अ.स) का खिलाफ़त से महरूम रहना तरके पदरी फिदक का दावा करना और मुक़दमा हार जाना, इन्हीं दुखों में आप का इन्तेक़ाल हो गया। रोया ऐ सादक़ा फ़सल 14, आप इस क़द्र रोईं की अहले मोहल्ला एतेराज़ करने लगे, आखिर में हज़रत अली ने रोने के लिये मदीने से बाहर बैतुल हुज़्न बनवाया था।

(अनवारूल हुसैनिया सफ़ा 24 प्रकाशित बम्बई)

हालात से प्रभावित हो कर हज़रत सैय्यदा ने अपने वालिद बुजुर्गवार का जो रसिया कहा है उसका एक शेर यह है कि:-
सुब्बत अलैया मसाबुन लव अन्नहार

सुब्बत अलल अयामे सिरना लेया लिया

तरजुमाः- अब्बा जान आपके बाद मुझ पर ऐसी मुसीबतें पड़ीं कि अगर वह दिनों पर पड़तीं तो मिस्ल रात के तारीक हो जाते।

( नुरूल अबसार पृष्ठ 46, व मदारिज जिल्द 2 पृष्ठ 524)

आपकी वसीयत

फातेमा ज़हरा (स.अ) ने अस्मा बिन्ते उमैस से फ़रमाया कि ऐ असमा मुझे मुसलमानों की औरतों की मैयित के ले जाने का तरीक़ा पसन्द नही है । यह तख़्ते पर लिटा कर कपड़ा डाल कर ले जाते हैं। अस्मा ने कहा, मैं हबशा में बहुत अच्छा ताबूत देख आईं हूं, फ़रमाया इसकी नक़ल बना दो। अली (अ.स) को बुलाया और वसीअत की। आपने कहा, मुझे खुद नहलाना, कफ़न पहनाना, मेरा जनाज़ा रात मे उठाना, जिन लोगों ने मुझे सताया है उनको मेरे जनाज़े में न शरीक होने देना । मेरे बाद शादी करना तो एक रात मेरे बच्चों के पास और एक रात अपनी बीवी के
पास गुज़ारना ।

शमशुल उलमा मिस्टर नज़ीर अहमद देहलवी लिखते हैं कि, फातेमा ने अबू बक्र वग़ैरा से बात करना छोड़ दी। मरते वक़्त वसीअत की कि मुझे रात के वक़्त दफ़न करना और यह लोग मेरे जनाज़े पर न आने पाएँ उम्मेहातुल उम्मत पृष्ठ 99, अल्लामा अब्दुरबर लिखते हैं कि फातेमा की वसीयत थी कि आयशा भी जनाज़े पर न आऐं।

(इस्तेआब जिल्द 2, सफ़ा 772,)

जनाबे सैय्यदा की हज़राते शेख़ैन से नाराज़गी के लिये मज़ीद मुलाहजा हों। तेस्पर अलक़ारी तरजुमा बुख़ारी जिल्द 12 पृष्ठ 18 -21 व पे 17 पृष्ठ 21, मुश्किलुल आसार तहावी जिल्द 1 पृष्ठ 48, तरजुमा सही मुस्लिम जिल्द 5 पृष्ठ 25, रौज़तुल अहबाब जिल्द 1 पृष्ठ 434, अज़ाला अलख़फ़ा जिल्द 2 पृष्ठ 57, बराहीने क़ाते तरजुमा सवाऐके मोहर्रेका पृष्ठ 21, अशअतुल मात जिल्द 3 पृष्ठ 480 अल ज़हरा- उमर अबू नसर उर्दू तरजुमा पृष्ठ 89 – जमा उल फ़वाएद जिल्द 2 पृष्ठ 18 प्रकाशित मेरठ।

आपकी वफ़ात हसरते आयात

दुनिया ए इस्लाम के क़दीम मुवर्रेख़ीन इब्ने क़तीबा का बयान है कि हज़रत फातेमा हज़रते सरवरे कायनात ( स.व.व.अ.) की वफ़ात के बाद सिर्फ़ 75 दिन जिन्दा रह कर मर गईं। अल इमामत वल सियासत जिल्द 1 पृष्ठ 14, अल्लामा

बहाई का जामऐ अब्बासी पृष्ठ 79 में बयान है कि 100 दिन बाद इन्तेक़ाल हुआ। आपकी तारीख़े वफ़ात सोमवार दिन 3 जमादील सानी 11 हिजरी है।

(अनवाररूल हुसैनिया जिल्द 3 पृष्ठ 29 प्रकाशित नजफ़ ) आपकी वफ़ात से सम्बन्धित हज़रत इब्ने अब्बास सहाबी रसूल का बयान है कि जब फातेमा ज़हरा के इन्तेक़ाल का समय आया तो न मासूमा को बुख़ार आया, और न दर्दे सर हुआ बल्कि इमामे हसन (अ.स) और इमामे हुसैन (अ.स) के हाथ पकड़े और दोनों को लेकर क़ब्रे रसूल (स.व.व.अ.) पर गईं और क़ब्र और मिम्बर के बीच दो रकअत नमाज़ पढ़ी। फिर दोनों को अपने सीने से लगाया और फ़रमाया ऐ मेरे बच्चों ! तुम दोनों एक घंटा अपने बाबा के पास बैठो, अमीरूल मोमिनीन इस वक़्त मस्जिद में नमाज़ पढ़ रहे थे, फिर वहां से घर आईं और आं हज़रत की चादर उठाई ग़ुस्ल कर के हज़रत का बचा हुआ कफ़न, या कपड़े पहने, बाद अज़ान जोजा हज़रते जाफ़रे तैयार असमा को अवाज़ दी, असमा ने अजर की बीबी हाजिर होती हूं। जनाबे फातेमा ने फ़रमाया, असमा तुम मुझसे अलग न होना, मैं एक घंटा इस हुजरे में लेटना चाहती हूं। जब एक घंटा गुज़र जाए और मैं बाहर न निकलूं तो मुझको तीन अवाज़े देना, अगर मैं जवाब दूं तो अन्दर चली आना, वरना समझ लेना कि मैं रसूले ख़ुदा (स.व.व.अ.) से मुलहिक़ हो चुकी हूं। बाद अज़ां रसूले ख़ुदा (स.व.व.अ.) की जगह पर खड़ी हुईं और दो रकअत नमाज़ पढ़ी फिर लेट गईं और अपना मुँह चादर से ढांप लिया। बाज़ उलमा का कहना है कि
सैय्यदा ने सजदे मे ही वफ़ात पाई। अल ग़रज़ जब एक घंटा गुज़र गया तो असमा ने जनाबे सैय्यदा को अवाज़ दी। ऐ हसन (अ.स) और हुसैन (अ.स) की मां ! ऐ रसूले खुदा (स.व.व.अ.) की बेटी ! मगर कुछ जवाब न मिला। तब असमा उस हुजरे में दाखिल हुईं, क्या देखती हैं कि वह मासूमा मर चुकी हैं, असमा ने अपना गरेबान फाड़ लिया और घर से बाहर निकल पड़ीं। हसन (अ.स) और हुसैन (अ.स) आ पहुंचे। पूछा असमा हमारी अम्मा कहां हैं? अर्ज़ की हुजरे में हैं। शहज़ादे हुजरे मे पहुंचे तो देखा कि मादरे गिरामी मर चुकी हैं। शहज़ादे रोते पीटते मस्जिद पहुंचे। हज़रत अली (अ.स) को ख़बर दी, आप सदमे से बेहाल हो गये। फिर वहां से बहाले परेशान घर पहुंचे देखा कि असमा सरहाने बैठी रो रही हैं। आपने चेहरा ए अनवर खोला। सरहाने एक पर्चा मिला, जिसमें शहादतैन के बाद वसीयत पर अमल का हवाला था और ताक़ीद थी कि मुझे अपने हाथों से गुस्ल देना, हनूत करना, कफ़न पहनाना, रात के वक़्त दफ़न करना और दुश्मनों को मेरे दफ़न की ख़बर न देना इसमें यह भी लिखा था कि मैं तुम्हें ख़ुदा के हवाले करती हूं और अपनी इन तमाम औलादों सादात को सलाम करती हूं जो क़यामत तक पैदा होगी।

जब रात हुई तो हज़रत अली (अ.स) ने गुस्ल दिया, कफ़न पहनाया, नमाज़ पढ़ी, बेनाबर रवायत मशहूरा जन्नतुल बक़ी मे ले जा कर दफ़न कर दिया।

(ज़ाद अल क़बा तरजुमा मुवद्दतुल कुर्बा अली हमदानी शाफेई पृष्ठ 125 ता पृष्ठ 129 प्रकाशित लाहौर)
एक रवायत में है कि आपको मिम्बर और क़ब्रे रसूल (स.व.व.अ.) के बीच में दफ़न किया गया।

(अनवारूल हुसैनिया जिल्द 3 पृष्ठ 39)

” मक़ातिल किताब में है कि ग़ुस्ल के वक़्त हज़रत अली (अ.स) पुश्त व बाज़ु ए फातेमा (स.अ) पर उमर के दुर्रे का निशान देखा था और चीख़ मार कर रोए थे । सही बुख़ारी और मुस्लिम मे है कि हज़रत अली (अ.स) ने फातेमा (स.अ) को रात के वक़्त दफ़न कर दिया । “वलम यूज़न बेहा अबा बक्र व सल्ली अलैहा अबू कर वग़ैरा को शिरकते जनाज़ा की इजाज़त नहीं दी और दफ़न की भी ख़बर नहीं दी और नमाज़ ख़ुद पढ़ी। अल्लामा ऐनी शरह बुख़री लिखते हैं कि यह सब कुछ हज़रत अली (अ.स) ने जनाबे फातेमा (स.अ) की वसीअत के अनुसार किया था। सही बुख़ारी हिस्सा अल जिहाद में है कि हज़रत फातेमा ( स.अ) हज़रत अबू बकर वग़ैरा से नाराज़ हो गईं और उनसे नाता तोड़ लिया और मरते दम तक बेज़ार रही। इमाम इब्ने कतीका का बयान है कि ख़ुलफ़ा को फातेमा की नाराज़गी की जानकारी थी, वह कोशिश करते रहे कि राज़ी हो जायें एक दफ़ा माफ़ी मांगने भी गये। “फासताज़ना अली फ़लम ताज़न ” और इज़ने हुज़ूरी चाहा, आपने मिलने से इन्कार कर दिया और इनके सलाम तक का जवाब न दिया और फ़रमाया ताजिन्दगी तुम पर बद्दुआ करूगी और बाबा जान से तुम्हारी शिकायत करूगी।

(अल इमामत वस सियासत जिल्द 1 पृष्ठ 14 प्रकाशित मिस्र)




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