
10 हिजरी के अहम वाक़ेयात
यमन में तबलीग़ी सरगरमियां 10 हिजरी में आं हज़रत ( स.व.व.अ.) ने ख़ालिद बिन वलीद को तबलीग़ दीन के ख़्याल से यमन भेजा। यह वहां जा कर छः 6 महीने तक इधर उधर फिरते रहे और कोई काम न कर सके। यानी उनकी तबलीग़ से कोई भी मुसलमान न हो सका तो हज़रत अली (अ.स.) को भेजा गया। आपने ज़ोरो इल्म सलीक़ाए तबलीग़ी की वजह से सारे क़बीलाए हमदान को मुसलमान कर लिया। उसके बाद अहले यमन मुसलसल दाखले इस्लाम होने लगे। जब आं हज़रत (स.व.व.अ.) को यह शानदार कामयाबी मालूम हुई तो आपने सजदा शुक्र अदा किया और क़बीलाए हमदान के लिये दुआ की और फ़रमाया ख़ुदा क़बीला हमदान पर सलामती नाज़िल करे । (तारीखे तबरी जिल्द 3 पृष्ठ 159)
यमन में हज़रत अली (अ.स.) की शानदार कामयाबी पर मुख़ालिफ़ों की हासेदाना रविश
मुर्रेख़ीन का बयान है कि यमन में ख़ालिद बिन वलीद बिलकुल कामयाब नहीं हुए फिर जब हज़रत अली (अ.स.) को शानदार कामयाबी नसीब हुई तो बाज़ लोगों हज़रत अली (अ.स.) पर माले ग़नीमत के सिलसिले में ऐतेराज किया।
किताब खिलाफ़त व इमामत के पृष्ठ 79 लाहौर की छपी, में है जब जनाबे अमीर तबलीग़ अहले यमन के लिये मामूर किये गये थे और आपके खिलाफ़ कुछ लोगों की शिकायत सुन कर आं हज़रत ( स.व.व.अ.) ने फ़रमाया था कि मुझ से अली (अ.स.) की बुराई न करो। फ़ाफ़हा मिनी राआना मिन्हो व हुव्वद लैकुम बाअदी (अली मुझसे है और मैं अली से हूँ और वह मेरे बाद तुम्हारा हाकिम है। ) बाद अहादीस में अल्फ़ाज़ वहू वलेकुम बाअदी के नहीं पाये जाते और बाज़ में वहू मौला कुल मोमिन व मोमेनात पाये जाते हैं। शिकायत यह थी के जनाबे अमीर ने ख़ुम्स में से एक लौंड़ी चुन ली थी। बुख़ारी की रवायत से मालूम होता है कि यह शिकायत सुन कर रसूल अल्लाह ( स.व.व.अ.) ने फ़रमाया था फ़ा अन लहा फ़िल ख़ुम्स अक्सर मिन ज़ालेका अली का हिस्सा ख़ुम्स में इससे भी ज़्यादा है। यह हदीस भी अहले तसन्नुन की तमाम मोतबर किताबों में पाई जाती है और इससे जो मंज़िलत जनाबे अमीर (अ.स.) की जाहिर होती है वह भी किसी से छुपी नहीं है।
यमन का निज़ामे हुकूमत
इसी 10 हिजरी में बाजान हाकिमे यमन ने इन्तेक़ाल किया। उसकी वफ़ात के बाद यमन को विभिन्न भागों में, विभिन्न हाकिमों के सिपुर्द किया गया। 1. सनआ का गर्वनर बाज़ान के बेटे को । 2. हमदान का गर्वनर आमिर इब्ने शहरे हमदानी को। 3. मअरब का हाकिम अबू मूसा अशअरी को । 4. जनद का अफ़सर लाअली इब्ने उमैया को । 5. मुल्को अशरा में ताहिर इब्ने अबी हाला को। 6. नजरान में उमर इब्ने ख़रम को। 7. नजरान, जुम्आ, ज़ुबैद के दरमियान, सईद इब्ने आस को। 8. सकासक व सुकून में अक्काशा इब्ने सौर को मुक़र्रर कर दिया गया।
हुज्जतुल विदा
हज़रत रसूले करीम ( स.व.व.अ.) 25 ज़िकाद 10 हिजरी को हज्जे आखिर के ईरादे से रवाना हो कर 4 ज़िलहिज को मक्का मोअज़्ज़मा पहुँचें। आपके साथ आपकी तमाम बीबीयां और हज़रत सैय्यदा सलाम उल्लाहे अलैहा थीं। रवानगी के वक़्त हज़ारों सहाबा साथ रवाना हुए और बहुत से मक्का ही में जा मिले। इस तरह आपके असहाब की तादाद एक लाख चौबीस हज़ार हो गई। हज़रत अली (अ.स.) यमन से मक्का पहुँचे । हुज़ूर (स.अ.व.व.) ने फ़रमाया कि तुम कुर्बानी और नासिके हज में मेरे शरीक हो। इस हज के मौके पर लोगों ने अपनी आँखों से आं हज़रत (स.अ.व.व.) को मनासिके हज अदा करते हुए देखा और मारेकते अलारा ख़ुतबे सुने। जिनमें बाज़ बातें यह थी
1. जाहिलीयत के ज़माने के दस्तूर कुचल डालने के काबिल हैं।
2. अरबी को अजमी और अजमी को अरबी पर कोई फ़ज़ीलत नहीं ।
3. मुसलमान एक दूसरे के भाई हैं।
4. गुलामों का ख़्याल ज़रूरी है।
5. जाहिलयत के तमाम ख़ून माफ़ कर दिये गये । 6. जाहिलयत के तमाम वाजिबुल अदा बातिल कर दिये गये। ग़रज़ कि हज से फ़रागत के बाद आप मदीने के इरादे से 14 ज़िलहिज को रवाना हुए। एक लाख चैबीस हज़ार असहाब आपके हमराह थे। हज़फ़ा के क़रीब मुक़ामे ग़दीर पर पहुँचते ही आयए बल्लिग़ का नुज़ूल हुआ आपने पालान शुतर का मिम्बर बनाया और बिलाल (र.) को हुक्म दिया कि हय्या अला ख़ैरिल अमल कह कर आवाज़ दें। मजमा सिमट कर नुक्ताए एतिदाल पर आ गया। आपने एक फ़सीह व बलीग़ ख़ुतबा फ़रमाया जिसमें हम्दो सना के बाद अपनी फ़ज़ीलत का इक़रार लिया और फ़रमाया कि मैं तुम में दो गिदां क़द्र चीजें छोड़ जाता हुँ एक क़ुरआन और दूसरे अहले बैत। इसके बाद अली (अ.स.) को अपने नज़दीक बुला कर दोनों हाथों से उठाया और इतना बुलन्द किया कि सफ़ेदी ज़ेरे बग़ल ज़ाहिर हो गई। फिर फ़रमाया मन कुन्तो मौला फ़ा हाज़ा अलीउन मौला जिसका मैं मौला हूँ उसका यह अली भी मौला है। ख़ुदाया अली जिधर मुड़े हक़ को उसी तरफ़ मोड़ देना। फिर अली (अ.स.) के सर पर सियाह अमामा बाधां, लोगों ने मुबारक बादियां देनी शुरू कीं। सब आपकी जां नशीनी से ख़ुश हुए। हज़रत उमर ने भी नुमाया अल्फ़ाज़ में मुबारक बाद दी। जिब्राईल ने भी बाज़बाने क़ुरआन अकमाले दीं और एतिमामे नेमत का मुजदा सुनाया। सीरतुल हलबिया में है कि यह जां नशीनी 18 ज़िलहिज को वाक़े हुई। नूरूल अबसार पृष्ठ 78 में है कि एक शख़्स हारिस बिन नोमान फ़हरी ने हज़रत के अमल ग़दीरे खुम पर एतिराज़ किया तो उसी वक़्त आसमान से उस पर एक पत्थर गिरा और वह मर गया।
वाज़े हो कि इस वाक़ेए ग़दीर को इमामुल मुहसीन हाफ़िज़ इब्ने अब्दहु एक सौ सहाबा से इस हदीसे ग़दीर की रवायत की है। इमामे जज़री व शाफ़ेई ने इन्हीं सहाबियों से इमाम अहमद बिन हम्बल ने तीस सहाबियों और तबरी ने पछतर सहाबियों से रवाएत की है अलावा इसके तमाम अक़ाबिर इस्लाम मसलन ज़हबी सनाई और अली अल क़ारी वग़ैरा से मशहूर और मुतावातिर मानते हैं। महज़ मिनहाजुल उसूल, सिद्दीक़ हसन पृष्ठ 13 तफ़सीर साअलबी फ़तेहुल बयान सिद्दीक़ हसन जिल्द 1 पृष्ठ 48

