
हज़रत अली (अ.स.) के लिये रजअते शम्स
मुर्रेख़ीन का बयान है कि जब आं हज़रत ( स.व.व.अ.) लश्कर समेत ख़ैबर से वापसी में मक़ामे वादी अल क़रा की तरफ़ जाते हुए मक़ामे सहाबा में पहुँचे और वहां ठहरे हुए थे तो एक दिन आप पर वही के नुज़ूल का सिलसिला ऐसे वक़्त में शुरू हुआ कि सूरज डूबने से पहले ख़त्म न हुआ। हज़रत रसूले करीम (स.व.व.अ.) हज़रत अली (अ.स.) की गोद में सर रखे हुए थे। जब वही का सिलसिला ख़त्म हुआ तो आं हज़रत (स.व.व.अ.) ने हज़रत अली (अ.स.) से पूछा कि ऐ अली तुम ने नमाज़े अस्र भी पढ़ी या नहीं ? अर्ज़ की, मौला ! नमाज़ कैसे पढ़ता, आपका सरे मुबारक ज़ानू पर था और वही का सिलसिला जारी था। यह सुन कर हज़रत रसूले करीम (स.व.व.अ.) ने दुआ के लिये हाथ बलन्द किये और कहा कि बारे इलाहा अली तेरी और तेरे रसूल (स.व.व.अ.) की इताअत में था इसके लिये सूरज को पलटा दे ताकि यह नमाज़े अस्र अदा कर ले चुनान्चे सूरज पलट आया और अली (अ. स.) ने नमाज़े अस्र अदा की। (हबीब असीर, रौज़ातुल सफ़ा, रौजातुल अहबाब, शरहे शफ़ा क़ाज़ी अयाज़, तारीख़े ख़मीस) बाज़ रवायात में है कि रसूले ख़ुदा (स.व.व.अ.) ने अली (अ.स.) से फ़रमाया कि सूरज को हुक्म दो वह पलटे गा चुनान्चे अली (अ. स.) ने हुक्म दिया और सूरज पलट आया। अल्लामा अब्दुल हक़ मोहद्दिस देहलवी लिखते हैं यह हदीस रजअते शम्स सही है सुक़्क़ा रावियों से मरवी है। अल्लामा इक़बाल फ़रमाते हैं।
आं के दर आफ़ाक़, गरद्द बूतुराब ।
बाज़ गर दानद ज़े मग़रिब आफ़ताब ।।
तबलीगी ख़ुतूत
हज़रत को अभी सुलेह हुदयबिया के ज़रिये से सुकून नसीब हुआ ही था कि आपने सात 7 हिजरी में एक मोहर बनवाई जिस पर मोहम्मद रसूल अल्लाह कन्दा कराया। इसके बाद दुनिया के बादशाहों को ख़त लिखे। इन दिनों अरब के इर्द गिर्द चार बड़ी सलतनतें कायम थीं ।
1. हुकूमते ईरान जिसका असर मध्य ऐशिया से ईराक़ तक फैला हुआ था।
2. हुकूमते रोम जिसमें ऐशियाए कोचक, फ़िलिस्तीन, शाम और यूरोप के बाज़ हिस्से शामिल थे।
3. मिस्र।
4. हुकूमते हबश जो मिस्री हुकूमत के जुनूब से ले कर बहरे कुलजुम के मग़रबी साहिल पर हिजाज़ व यमन की तरह क़ायम थी और उसका असर सहराए आज़म अफ़रीक़ा के तमाम इलाक़ों पर था।
हज़रत ने बादशाहे हबश नजाशी, शाहे रोम, क़ैसर हरकुल, गर्वरने मिस्र जरीह इब्ने मीना क़िब्ती उर्फ़ मक़वुक़श बादशाहे इरान ख़ुसरो परवेज़ और गर्वनर यमन बाज़ान, वाली दमिश्क हारिस वग़ैरह के नाम ख़ुतूत रवाना फ़रमाये।
आपके ख़ुतूत का बादशाहों पर अलग अलग असर हुआ । नजाशी ने इस्लाम क़ुबूल कर लिया। शाहे इरान ने आपका ख़त पढ़ कर गुस्से के मारे ख़त के टुकड़े कर दिये और ख़त ले कर आने वाले को निकाल दिया और गर्वनरे यमन को
लिखा कि मदीने के दीवाने आं हज़रत ( स.व.व.अ.) को गिरफ़्तार कर के मेरे पास भेज दे। उसने दो सिपाही मदीने भेजे ताकि हुजूर को गिरफ़्तार करें। हज़रत (स.व.व.अ.) ने फ़रमाया, जाओ तुम क्या गिरफ़्तार करो गे, तुम्हें ख़बर भी है तुम्हारा बादशाह इन्तेक़ाल कर गया। सिपाही जो यमन पहुँचे तो सुना की शा ईरान मर चुका है। आपकी इस ख़बर देने से बहुत से काफ़िर मुसलमान हो गये। क़ैसरे रोम ने आपके ख़त की ताज़िम की। मिस्र के गर्वनर ने आपके क़ासिद की बड़ी आवभगत की और बहुत से तोफ़ो समेत उसे वापस कर दिया। इन तोहफ़ो में मारिया क़िब्तिया ( आं हज़रत की पत्नी) और उनकी बहन शीरीं ( जौजा ए हस्सान बिन साबित) एक दुलदुल नामी घोड़ा हज़रत अली (अ.स.) के लिये, याफूर नामी दराज़ गोश माबूर नामी ख़्वाजा सरा शामिल थे।
हुसूले फ़िदक़
फ़िदक ख़ैबर के इलाके में एक क़रिया (गांव) है। फ़तेह ख़ैबर के बाद आं हज़रत (स.व.व.अ.) ने अली (अ.स.) को फ़ेदक वालों की तरफ़ भेजा और हुक्म दिया कि उन्हें दावते इस्लाम दे कर मुसलमान करें। इन लोगों ने इस बात पर सुलह करनी चाही कि आधी ज़मीन आं हज़रत को दे दें और आधी पर ख़ुद क़ाबिज़ रहें। हज़रत उसे मंज़ूर फ़रमाया लिया। तबरी जिल्द 3 पृष्ठ 95 में है कि चूंकि यह फ़ेदक बग़ैर जंगों जेदाल मिला था इस लिये आं हज़रत ( स.व.व.अ.) की मिलकियत क़रार
पाया। दुर्रे मन्शूर जिल्द 7 पृष्ठ 177 में है कि फ़ेदक के क़ब्ज़े में आते ही हुक्मे ख़ुदा नाज़िल हुआ वात जिल क़ुरबा हक़्क़ा अपने क़राबत दार को हक़ दे दो। शरह मवाक़िफ़ के पृष्ठ 735 में है कि आं हज़रत ( स.व.व.अ.) ने आताहा फ़ेदक तख़लता फ़ातमा ज़ैहरा (स.व.व.अ.) को बतौरे अतिया फ़ेदक़ दे दिया। रौज़तुल पृष्ठ जिल्द 2 पृष्ठ 377, मआरिज अल नबूवता पैरा 4 पृष्ठ 221 में है कि आं हज़रत ( स.व.व.अ.) ने तहरीरी तसदीक़ नामा यानी बज़रिये दस्तावेज़ जायदाद फेदक़ जनाबे सैय्यदा (स.व.व.अ.) के नाम हिबा कर दी । यही कुछ सवाएके मोहर्रेका पृष्ठ 21, 22, वफ़ा अल वफ़ा जिल्द 2 पृष्ठ 63, फ़तावे अज़ीजी पृष्ठ 143, रौज़ातुल पृष्ठ जिल्द 2 पृष्ठ 135 जिल्द 1 पृष्ठ 85 मारिज अल नबूवत मुईन कशफ़ी रूकन 4 पृष्ठ 221, मोअजम अल बलदान में इस ज़मीन को बहुत उपजाऊ बताया गया है और कहा गया है कि यह ज़मीन बहुत से चश्मों से सेराब होती थी। इसमें काफ़ी बागात भी थे। अबू दाऊद के किताब ख़ैराज में इसकी आमदनी 4000, चार हज़ार दीनार (अशरफ़ी) सलाना लिखी है।





