अर-रहीकुल मख़्तूम  पार्ट 64 उहुद की लड़ाई पार्ट-1


उहुद की लड़ाई

बदले की लड़ाई के लिए कुरैश की तैयारियां

मक्का वालों को बद्र की लड़ाई में जो पसपाई और अपने बड़ों के क़त्ल का जो दुख सहन करना पड़ा था, उसकी वजह से वह मुसलमानों के ख़िलाफ़ राम और गुस्से से खौल रह थे, यहां तक कि उन्होंने अपने मरने वालों पर आह-वाह करने से भी रोक दिया था और क़ैदियों के फ़िदए की अदाएगी में भी जल्दबाज़ी दिखाने से मना कर दिया था, ताकि मुसलमान उनके रंज और ग़म की ज़्यादती का अन्दाज़ा न कर सकें।

फिर उन्होंने बद्र की लड़ाई के बाद सर्वसम्मति से यह फ़ैसला किया कि मुसलमानों से भरपूर लड़ाई लड़कर अपना कलेजा ठंडा करें और अपने भड़के गुस्से को तस्कीन दें और इसके साथ ही इस क़िस्म की लड़ाई की तैयारी भी शुरू कर दी। इस मामले में कुरैश के सरदारों में से इक्रिमा बिन अबू जहल, सफ़वान बिन उमैया, अबू सुफ़ियान बिन हर्ब और अब्दुल्लाह बिन रबीआ ज़्यादा जोश में और सबसे आगे-आगे थे।

इन लोगों ने इस सिलसिले में पहला काम यह किया कि अबू सुफ़ियान का वह क़ाफ़िला जो बद्र की लड़ाई की वजह बना था और जिसे अबू सुफ़ियान बचा कर निकाल ले जाने में कामियाब हो गया था, उसका सारा माल जंगी खर्चों के लिए रोक लिया और जिन लोगों का माल था, उनसे कहा कि—

‘ऐ कुरैश के लोगो ! तुम्हें मुहम्मद ने कड़ा झटका दिया है और तुम्हारे चुने हुए सरदारों को क़त्ल कर डाला है, इसलिए उनसे लंड़ने के लिए इस माल के ज़रिए मदद करो, मुम्किन है कि हम बदला चुका लें।’

कुरैश के लोगों ने उसे मंज़ूर कर लिया। चुनांचे यह सारा माल जिसका योग एक हज़ार ऊंट और पचास हज़ार दीनार था, लड़ाई की तैयारी के लिए बेच डाला गया। इसी के बारे में अल्लाह ने यह आयत उतारी है-

‘जिन लोगों ने कुफ़ किया, वे अपने माल अल्लाह के रास्ते से रोकने के लिए खर्च करेंगे, तो ये खर्च तो करेंगे, लेकिन फिर यह उनके लिए हैरानी की वजह होगा, फिर मग्लूब किए जाएंगे।’ (8:36)

फिर उन्होंने स्वयं सेवा के रूप में जंगी खिदमत का दरवाज़ा खोल दिया कि जो अहाबीश किनाना और तिहामा के लोग लड़ाई में शरीक होना चाहें, वे कुरैश के झंडे तले जमा हो जाएं। उन्होंने इस उद्देश्य के लिए लोभ-लालच दिलाने की
-सी शक्लें भी अपनाई, यहां तक कि अबू उज्ज्ञा नामी कवि, जो बद्र की बहुतलड़ाई में क़ैद हुआ था, और जिससे अल्लाह के रसूल ने यह वचन लेकर कि वह अब आपके खिलाफ कभी नहीं उठेगा, एहसान के तौर पर बिला फ़िदया छोड़ दिया था, उसे सफ़वान बिन उमैया ने उभारा कि वह क़बीलों को मुसलमानों के खिलाफ़ उभारने का काम करे और उससे यह वचन लिया कि अगर वह लड़ाई से बचकर ज़िंदा व सलामत वापस आ गया, तो उसे मालामाल कर देगा, वरना उसकी लड़कियों को पाले-पोसेगा ।

चुनांचे अबू उज्जा ने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को दिए वचन को पीठ पीछे डालकर भावनाओं को उभारने वाली कविताओं द्वारा क़बीलों को भड़काना शुरू कर दिया। इसी तरह कुरैश के एक और कवि मुसाफ़े बिन अब्दे मुनाफ़ जुमही को इस मुहिम के लिए तैयार किया।

इधर अबू सुफ़ियान ने ग़ज़वा सवीक़ से नाकाम व नामुराद, बल्कि रसद के सामान की एक बहुत बड़ी मात्रा से हाथ धोकर वापस आने के बाद मुसलमानों के खिलाफ़ लोगों को उभारने और भड़काने में कुछ ज़्यादा ही सरगर्मीीं दिखाई।

फिर आखिर में सरीया ज़ैद बिन हारिसा की घटना से कुरैश को जिस संगीन और आर्थिक रूप से कमर तोड़ घाटे से दोचार होना पड़ा और उन्हें जितना ज़्यादा दुख और ग़म पहुंचा, उसने आग पर तेल का काम किया और इसके बाद मुसलमानों से एक निर्णायक लड़ाई लड़ने के लिए कुरैश की तैयारी की रफ़्तार में बड़ी तेज़ी आ गई।

कुरैश की फ़ौज, लड़ाई का सामान और कमान

चुनांचे साल पूरा होते-होते क़ुरैश की तैयारी पूरी हो गई। उनके अपने लोगों के अलावा उनके साथी और मित्र क़बीलों को मिलाकर कुल तीन हज़ार की फ़ौज तैयार हुई।

कुरैशी सरदारों की राय हुई कि अपने साथ औरतें भी ले चलें, ताकि उनकी इज़्ज़त व आबरू को बचाए रखने का एहसास कुछ ज़्यादा ही वीरता के साथ लड़ने की वजह बने। इसलिए इस फ़ौज में कुछ औरतें भी शामिल हुईं, जिनकी तायदाद पन्द्रह थी । सवारी के लिए और माल ढोने के लिए तीन हज़ार ऊंट थे और फ़ौज के लिए दो सौ घोड़े ।1

1. जादुल मआद, 2/92, यही मशहूर है, लेकिन फ़हुल बारी 7/346 में घोड़ों की तायदाद एक सौ बताई गई है।

इन घोड़ों को ताज़ादम रखने के लिए इन्हें पूरे रास्ते वाजू में ले जाया गया यानी इन पर सवारी नहीं की गई। सुरक्षा-शस्त्रों में सात सौ कवच थे

अबू सुफ़ियान को पूरी फ़ौज का सेनापति मुक़र्रर कर दिया गया। फ़ौज की कमान खालिद बिन वलीद को दी गई और इक्रिमा बिन अबू जहल को उनका सहयोगी बनाया गया। झंडा तैशुदा क़ायदे के मुताबिक़ क़बीला बनी अब्दुद्दार के हाथ में दिया गया।

मक्के की फ़ौज चल पड़ी

इस भरपूर तैयारी के बाद मक्के की फ़ौज ने इस हालत में मदीने का रुख किया कि मुसलमानों के खिलाफ़ ग़म व गुस्सा और बदले की भावना उनके दिलों में शोला बनकर भड़क रही थी। इससे अन्दाज़ा हो रहा था कि आने वाली लड़ाई में कितनी खूरेज़ी और तेज़ी पैदा होने वाली है।

मदीना में सूचना

हज़रत अब्बास रज़ि० कुरैश की इन सारी चलत-फिरत, सरगर्मियों और जंगी तैयारियों का बड़ी मुस्तैदी और गहराई से अध्ययन कर रहे थे। चुनांचे जैसे ही फ़ौज हरकत में आई, हज़रत अब्बास रज़ि० ने एक ख़त के ज़रिए उसका पूरा विवरण नबी सल्ल० की खिदमत में भेज दिया। यह

हज़रत अब्बास रज़ि० का दूत सन्देश पहुंचाने में बड़ा फुर्तीला साबित हुआ । उसने मक्का से मदीना तक कोई पांच सौ किलोमीटर की दूरी सिर्फ़ तीन दिन में तै करके उनका पत्र नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के हवाले किया। उस वक़्त आप मस्जिदे क़बा में तशरीफ़ रखते थे ।

यह पत्र हज़रत उबई बिन काब रज़ियल्लाहु अन्हु ने नबी सल्ल० को पढ़कर सुनाया। आपने उन्हें राज़दारी बरतने की ताकीद की और झट मदीना तशरीफ़ लाकर अंसार और मुहाजिरों के सरदारों से सलाह व मश्विरा किया।

आपातकालीन स्थिति के मुक़ाबले की तैयारी

इसके बाद मदीना में आम लामबन्दी की स्थिति पैदा हो गई। लोग किसी भी स्थिति से निपटने के लिए हर वक़्त हथियार बन्द रहने लगे, यहां तक कि नमाज़ में भी हथियार अलग नहीं किया जाता था ।

उधर अंसार की एक छोटी-सी टुकड़ी, जिसमें साद बिन मुआज़, उसैद बिन’ हुज़ैर और साद बिन उबादा रज़ियल्लाहु अन्हुम थे, अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की निगरानी पर तैनात हो गई। ये लोग हथियार पहनकर सारी रात अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के दरवाज़े पर गुज़ार देते थे।

कुछ और टुकड़ियां इस खतरे को देखते हुए कि ग़फ़लत में अचानक कोई हमला न हो जाए, मदीने में दाखिले के अलग-अलग रास्तों पर तैनात हो गई।

कुछ दूसरी टुकड़ियों ने दुश्मन की गतिविधियों का पता लगाने के लिए जासूसी का काम शुरू कर दिया। ये टुकड़ियां उन रास्तों पर गश्त करती रहती थीं, जिनसे गुज़रकर मदीने पर छापा मारा जा सकता था।