अर-रहीकुल मख़्तूम  पार्ट 61

ग़ज़वा सवीक़

एक ओर सफ़वान बिन उमैया, यहूदी और मुनाफ़िक़ अपनी-अपनी साज़िशों में लगे हुए थे, तो दूसरी ओर अबू सुफ़ियान भी कोई ऐसी कार्रवाई कर बैठना चाहता था, जिसमें बोझ कम से कम पड़े, लेकिन प्रभाव अधिक पड़े।

वह ऐसी कार्रवाई जल्द से जल्द अंजाम देकर अपनी क़ौम की आबरू की हिफ़ाज़त और अपनी ताक़त का प्रदर्शन करना चाहता था। उसने मन्नत मान रखी थी कि नापाकी की वजह से उसके सर को पानी न छू सकेगा, यहां तक कि मुहम्मद सल्ल० से लड़ाई कर ले।

चुनांचे वह अपनी क़सम पूरी करने के लिए दो सौ सवारों को लेकर रवाना हुआ और क़नात घाटी के सिरे पर स्थित नीब नामी एक पहाड़ी के दामन में पड़ाव डाल दिया। मदीना से उसकी दूरी कोई बारह मील है, लेकिन चूंकि अबू सुफ़ियान को मदीने पर खुल्लम खुल्ला हमले की हिम्मत न हुई, इसलिए उसने एक ऐसी कार्रवाई अंजाम दी जिसे डाका से मिलती-जुलती कार्रवाई कहा जा सकता है।

इसका विस्तृत विवरण यह है कि वह रात के अंधेरे में मदीना के बाहरी

1. ज़ादुल मआद 2/71, 91, इब्ने हिशाम 2/47, 48, 49
हिस्से में दाखिल हुआ और हुइ बिन अख़तब के पास जाकर उसका दरवाज़ा खोलवाया। हुइ ने अंजाम के डर से इंकार कर दिया।

अबू सुफ़ियान पलट कर बनू नज़ीर के एक दूसरे सरदार सलाम बिन मुश्कम के पास पहुंचा जो बनू नज़ीर का खज़ानची भी था। अबू सुफ़ियान ने अन्दर आने की इजाज़त चाही, उसने इजाज़त भी दी और सत्कार भी किया। खाने के अलावा शराब भी पिलाई और लोगों के खुफ़िया हालात की ख़बर भी दे दी।

रात के पिछले पहर अबू सुफ़ियान वहां से निकल कर अपने साथियों में पहुंचा और उनका एक दस्ता भेजकर मदीने के बाहर अरीज़ नाम की एक जगह पर हमला करा दिया। इस टुकड़ी ने वहां खजूर के कुछ पेड़ काटे और जलाए और एक अंसारी और उसके साथी को उनके खेत में पाकर क़त्ल कर दिया और तेज़ी से मक्का वापस भाग निकला।

अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने वारदात की ख़बर मिलते ही तेज़ रफ़्तारी से अबू सुफ़ियान और उसके साथियों का पीछा किया, लेकिन वे इससे भी ज़्यादा तेज़ रफ़्तारी से भागे, चुनांचे वे लोग तो मिले नहीं, लेकिन उन्होंने बोझ हलका करने के लिए सत्तू, तोशे और बहुत-सा साज़ व सामान फेंक दिया था, जो मुसलमानों के हाथ लगा। अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कर्रतुल कदर तक पीछा करके वापसी की राह ली। मुसलमान सत्तू वग़ैरह लाद-फांद कर वापस हुए और इस मुहिम का नाम ग़ज़वा सवीक़ रख दिया यानी सवीक़ की लड़ाई (सवीक़ अरबी में सत्तू को कहते हैं)

यह ग़ज़वा बद्र की लड़ाई के सिर्फ़ दो महीने बाद ज़िलहिज्जा सन् 03 हि० में पेश आया। इस ग़ज़वे के दौरान मदीना का इन्तिज़ाम अबू लुबाबा बिन अब्दुल मुंजिर रज़ियल्लाहु अन्हु को सौंपा गया था 11

5. ग़ज़वा ज़ी अम्र

बद्र और उहुद के बीच की के बीच की मुद्दत में अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के नेतृत्व में यह सबसे बड़ी फ़ौजी मुहिम थी, जो मुहर्रम 03 हि० में पेश आई ।

इसकी वजह यह थी कि मदीना के सूचना-साधनों ने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को यह सूचना दी कि बनू सालबा और यसरिब का बहुत बड़ा जत्था मदीने पर छापा मारने के लिए इकट्ठा हो रहा है।

1. ज़ादुल मआद 2/90-91, इब्ने हिशाम 2/44, 45

यह सूचना मिलते ही अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मुसलमानों को तैयारी का हुक्म दिया और सवार व पैदल पर सम्मिलित साढ़े चार सौ की तायदाद लेकर रवाना हुए और हज़रत उस्मान बिन अफ़्फ़ान रज़ियल्लाहु अन्हु को मदीना में अपना जानशीन मुक़र्रर फ़रमाया।

रास्ते में सहाबा ने बनू सालबा के जब्बार नाम के एक आदमी को गिरफ़्तार करके अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की खिदमत में हाज़िर किया। आपने उसे इस्लाम की दावत दी। उसने इस्लाम कुबूल कर लिया। इसके बाद आपने उसे हज़रत बिलाल रज़ि० के साथ कर दिया और उसने रास्ता जानने की हैसियत से मुसलमानों को दुश्मन की ज़मीन तक का रास्ता बता दिया ।

इधर दुश्मनोंको मदीना की फ़ौज के आने की खबर हुई, तो वे आस-पास की पहाड़ियों में बिखर गए, लेकिन नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने आगे बढ़ते रहना जारी रखा और फ़ौज के साथ उस जगह तक तशरीफ़ ले गए जिसे दुश्मन ने अपने जत्थे के जमा करने के लिए चुना था। यह सच में एक चश्मा था जो ‘ज़ीअम्र’ के नाम से मशहूर था।

आपने वहां बहुओं पर रौब व दबदबा क़ायम करने और उन्हें मुसलमानों की ताक़त का एहसास दिलाने के लिए सफ़र (सन् 03 हि०) का पूरा या लगभग पूरा महीना गुजार दिया और उसके बाद मदीना तशरीफ़ लाए