अर-रहीकुल मख़्तूम पार्ट 54



यहूदियों के साथ समझौता

नवी सल्ल० ने हिजरत के बाद जब मुसलमानों के बीच अकीदे सियासत और व्यवस्था की इकाई के जरिए एक नए इस्लामी समाज की बुनियादें मजबूत कर लीं, तो ग़ैर-मुस्लिमों के साथ अपने ताल्लुकात ठीक करने की और तवज्जोह फरमाई।

आपका मक्सूद यह था कि सारी इंसानियत को अम्न व सलामती, सुख-शान्ति मिले और इसके साथ ही मदीना और उसके पास-पड़ोस का इलाका एक संघीय इकाई में संगठित हो जाए। चुनांचे आपने उदारता और विशालहृदयता के एक नियम बनाए, जिनको इस तास्सुव और अतिवाद से भरी दुनिया में कोई सोच भी नहीं सकता था।

जैसा कि हम बता चुके हैं, मदीने के सबसे करीबी पड़ोसी यहूदी थे। ये लोग अगरचे पीठ पीछे मुसलमानों से दुश्मनी रखते थे, लेकिन उन्होंने अब तक किसी मोर्चाबन्दी और झगड़े को जाहिर नहीं किया था, इसलिए अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उनके साथ एक समझौता किया, जिसमें उन्हें दीन व मज़हब और जान व माल की बिल्कुल आजादी दी गई थी और देश निकाला, जायदाद की जब्ती या झगड़े की सियासत की कोई दिशा है नहीं की गई थी।

यह समझौता इसी समझौते की रोशनी में हुआ था, जो खुद मुसलमानों के बीच आपस में तै पाया था, और जिसका उल्लेख पहले ही किया जा चुका है। आगे इस समझौते की अहम धाराएं पेश की जा रही है।

समझौते की धाराएं

1. बनू औफ के यहूदी मुसलमानों के साथ मिलकर एक ही उम्मत होंगे। यहूदी अपने दीन पर अमल करेंगे और मुसलमान अपने दीन पर खुद उनका भी यही हक होगा, और उनके गुलामों और मुताल्लिक़ लोगों का भी और बनू औफ के अलावा दूसरे यहूदियों के भी यही हक़ होंगे।

2. यहूदी अपने खर्चे के ज़िम्मेदार होंगे और मुसलमान अपने खर्चों के। 3. और जो ताक़त इस समझौते के किसी फ़रीक़ से लड़ाई करेगी, सब उसके खिलाफ आपस में सहायता करेंगे।

4. और इस समझौते में शरीक गिरोहों के आपसी ताल्लुक़ एक दूसरे का हित चाहने, भलाई करने और फ़ायदा पहुंचाने की बुनियाद पर होंगे, गुनाह पर नहीं।

5. कोई आदमी अपने मित्र की वजह से अपराधी न ठहराया जाएगा। 6. मज्लूम की मदद की जाएगी।

7. जब तक लड़ाई चलती रहेगी, यहूदी भी मुसलमानों के बीच खर्च सहन करेंगे ।

8. इस समझौते के तमाम शरीक लोगों पर मदीने में हंगामा करना और क़त्ल का खून हराम होगा।

9. इस समझौते के फ़रीक़ों में कोई नई बात या झगड़ा पैदा हो जाए, जिसमें प्रसाद का डर हो, तो इसका फ़ैसला अल्लाह और मुहम्मद रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम फरमाएंगे।

10. कुरैश और उसके मददगारों को पनाह नहीं दी जाएगी।

11. जो कोई यसरिब पर धावा बोल दे, उससे लड़ने के लिए सब आपस में सहयोग करेंगे और हर फ़रीक़ अपने-अपने लोगों की रक्षा करेगा।

12. यह समझौता किसी ज़ालिम या मुजरिम के लिए आड़ न बनेगा।’

इस समझौते के हो जाने से मदीना और उसके पास-पड़ोस में एक संघीय सरकार बन गई, जिसकी राजधानी मदीना थी और जिसके प्रमुख अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम थे और जिसमें लागू कलिमा और ग़ालिब हुक्मरानी मुसलमानों की थी और इस तरह मदीना सच में इस्लाम की राजधानी बन गया ।

सुख-शान्ति के क्षेत्र को और ज़्यादा फैलाव देने के लिए नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने आगे दूसरे क़बीलों से भी हालात के मुताबिक़ इसी तरह के समझौते किए, जिसमें से कुछ का उल्लेख आगे किया जाएगा।

1. देखिए इब्ने हिशाम 1/503-504

सशस्त्र संघर्ष

हिजरत के बाद मुसलमानों के ख़िलाफ़ क़ुरैश की चालें और अब्दुल्लाह बिन उबई से पत्र-व्यवहार

है पिछले पृष्ठों में बताया जा चुका है कि मक्का के काफ़िरों ने मुसलमानों पर कैसे-कैसे जुल्म व सितम के पहाड़ तोड़े थे और जब मुसलमानों ने हिजरत शुरू की तो उनके खिलाफ़ कैसी-कैसी कार्रवाइयां की थीं, जिनकी बुनियाद पर वे हक़दार हो चुके थे कि उनके माल ज़ब्त कर लिए जाएं और उन पर हल्ला बोल दिया जाए। पर अब भी उनकी मूर्खताओं का सिलसिला बन्द न हुआ और वे अपनी चालों के चलने से रुके नहीं, बल्कि यह देखकर जोशे ग़ज़ब और भड़क उठा कि मुसलमान उनकी पकड़ से बच निकले हैं और उन्हें मदीने में एक शान्तिपूर्ण जगह मिल गई हैं। चुनांचे उन्होंने अब्दुल्लाह बिन उबई को, जो अभी तक खुल्लम खुल्ला मुश्कि था, उसकी इस हैसियत की वजह से धमकी भरा एक पत्र लिखा कि वह अंसार का सरदार है, क्योंकि अंसार उसकी सरदारी पर सहमत हो चुके थे और अगर इसी बीच अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का तशरीफ लाना न हुआ होता तो उसको अपना बादशाह भी बना लिए होते।

मुश्किों ने अपने इस पत्र में अब्दुल्लाह बिन उबई और उसके मुश्कि साथियों को खिताब करते हुए दो टोक शब्दों में लिखा-

‘आप लोगों ने हमारे साहब (आदमी) को पनाह दे रखी है, इसलिए हम अल्लाह की क़सम खाकर कहते हैं कि या तो आप लोग उससे लड़ाई कीजिए या उसे निकाल दीजिए या फिर हम अपने पूरे जत्थ के साथ आप लोगों पर धावा बोलकर आपके सारे लड़ने वालों को क़त्ल कर देंगे और आपकी औरतों की आबरू मिट्टी में मिला देंगे।”

इस पत्र के पहुंचते ही अब्दुल्लाह बिन उबई मक्के के अपने उन मुश्कि भाइयों के हुक्म के पूरा करने के लिए उठ खड़ा हुआ, इसलिए कि वह पहले ही से नबी सल्ल० के खिलाफ रंज और कीना लिए बैठा था, क्योंकि उसके मन में यह बात बैठी थी, कि आप ही ने उसकी बादशाही छीनी है।

चुनांचे अब्दुर्रहमान बिन औफ़ कहते हैं कि जब यह पत्र अब्दुल्लाह बिन उबई और उसके बुतपरस्त साथियों को मिला, तो वे अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि

अबू दाऊद, बाब ख़बरुन्नज़ीर,

व सल्लम से लड़ने के लिए जमा हो गए। जब नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को इसकी खबर हुई तो आप उनके पास तशरीफ़ ले गए। और फ़रमाया-

‘कुरैश की धमकी तुम लोगों पर बहुत गहरा असर कर गई है। तुम खुद अपने आपको जितना नुक्सान पहुंचा देना चाहते हो, कुरैश इससे ज़्यादा नुक्सान नहीं पहुंचा सकते थे। तुम अपने बेटों और भाइयों से खुद ही लड़ना चाहते हो ?’

नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की यह बात सुनकर लोग बिखर गए।

उस वक़्त तो अब्दुल्लाह बिन उबई लड़ाई के इरादे से बाज़ आ गया, क्योंकि उसके साथी ढीले पड़ गए थे या उनकी समझ में बात आ गई थी, लेकिन मालूम होता है कि कुरैश के साथ उसके सम्बन्ध छिप-छिपकर क़ायम रहे, क्योंकि मुसलमानों और मुश्रिकों के बीच शरारतों और फ़सादों का कोई मौक़ा वह हाथ से जाने न देना चाहता था। फिर उसने अपने साथ यहूदियों को भी गांठ रखा था, ताकि इस मामले में उनसे भी मदद हासिल करे, लेकिन वह तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की हिक्मत थी जो रह-रहकर शरारत और बिगाड़ की भड़कने वाली आग को बुझा दिया करती थी। 2

मुसलमानों पर मस्जिदे हराम का

दरवाज़ा बन्द किए जाने का एलान

इसके बाद हज़रत साद बिन मुआज रज़ियल्लाहु अन्हु उमरा के लिए मक्का गए और उमैया बिन खल्फ़ के मेहमान हुए। उन्होंने उमैया से कहा-

‘मेरे लिए कोई तंहाई का वक़्त रखो, ज़रा मैं बैतुल्लाह का तवाफ़ कर लूं ।’ उमैया दोपहर के क़रीब उन्हें लेकर निकला, तो अबू जहल से मुलाक़ात हो गई। उसने (उमैया को ख़िताब करके) कहा—

अबू सफ़वान ! तुम्हारे साथ यह कौन है ?’

उमैया ने कहा, यह साद हैं।

अबू जहल ने साद को ख़िताब करके कहा, अच्छा, मैं देख रहा हूं कि तुम बड़े अम्न और इत्मीनान से तवाफ़ कर रहे हो, हालांकि तुम लोगों ने बे-दीनों को पनाह दे रखी है और यह ख्याल रखते हो कि उनकी मदद भी करोगे। सुनो, खुदा की क़सम ! अगर तुम अबू सफ़वान के साथ न होते, तो अपने घर सलामत पलटकर न जा सकते थे 1

1. अबू दाऊद, वही बाब

इस मामले में देखिए सहीह बुखारी 2/655, 656, 916, 924

इस पर हज़रत साद रजि० ने ऊंची आवाज़ से कहा, सुन, ख़ुदा की क़सम ! अगर तूने मुझको इससे रोका, तो मैं तुझे ऐसी चीज़ से रोक दूंगा, जो तुझ पर इससे भी ज़्यादा भारी होगी यानी मदीना वालों के पास से गुज़रने वाला तेरा (कारोबारी) रास्ता।’