अर-रहीकुल मख़्तूम पार्ट 26

कुरैश एक बार फिर अबू तालिब के सामने

पिछली धमकी के बावजूद जब कुरैश ने देखा कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अपना काम किए जा रहे हैं तो उनकी समझ में आ गया कि अबू तालिब अल्लाह के रसूल सल्ल० को छोड़ नहीं सकते, बल्कि इस बारे में कुरैश से जुदा होने और उनकी दुश्मनी मोल लेने को तैयार हैं। चुनांचे वे लोग वलीद बिन मुग़ीरह के लड़के उमारा को साथ लेकर अबू तालिब के पास पहुंचे और उनसे यों कहा-

‘ऐ अबू तालिब ! यह कुरैश का सबसे बांका और खूबसूरत नवजवान है। आप इसे ले लें। आप इसे अपना लड़का बना लें, यह आपका होगा और अपने इस भतीजे को हमारे हवाले कर दें, जिसने आपके बाप-दादों का विरोध किया, आपकी क़ौम का एका बिखेर दिया है और उनकी बुद्धि और सोच को मूर्खता नाम दिया है, हम इसे क़त्ल करेंगे। बस यह एक आदमी के बदले एक आदमी का हिसाब है।

अबू तालिब ने कहा, ख़ुदा की क़सम ! कितना बुरा सौदा है, जो लोग मुझसे

इब्ने हिशाम 1/265, 266 2. मुख्तसरुस्सीरतः शेख मुहम्मद बिन अब्दुल वहाब, पृ० 68

कर रहे हो। तुम अपना बेटा देते हो कि मैं उसे खिलाऊं-पिलाऊं, पालूं-पोसूं और मेरा बेटा मुझसे तलब करते हो कि उसे क़त्ल कर दो। ख़ुदा की क़सम ! यह नहीं हो सकता ।

इस पर नौफ़ल बिन अब्द मुनाफ़ का पोता मुतइम बिन अदी बोला, ख़ुदा की क़सम ! ऐ अबू तालिब ! तुमसे तुम्हारी क़ौम ने इंसाफ़ की बात कही है और जो शक्ल तुम्हें नागवार है, उससे बचने की कोशिश की है, लेकिन मैं देखता हूं कि उनकी किसी बात को कुबूल करना ही नहीं चाहते । तुम

जवाब में अबू तालिब ने कहा, खुदा की क़सम ! तुम लोगों ने मुझसे इंसाफ़ की बात नहीं कही है। बल्कि तुम भी मेरा साथ छोड़कर मेरे विरोधियों की मदद पर तुले बैठे हो, तो ठीक है, जो चाहो, करो। 1

जब कुरैश अपनी बात-चीत में असफल हो गए और अबू तालिब को इस बात पर सन्तुष्ट न कर सके कि वह अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को रोकें और अल्लाह की ओर दावत देने से बाज़ रखें, तो उन्होंने एक ऐसा रास्ता अपनाने का फ़ैसला किया, जिस पर चलने से वह अब तक कतराते रहे थे और जिसके अंजाम और नतीजों के डर से उन्होंने दूर रहना ही उचित समझा था और वह रास्ता था अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की ज्ञात पर ज़ुल्म व सितम ढाने का रास्ता ।

अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर ज़ुल्म व सितम

चुनांचे कुरैश ने अन्ततः वे सीमाएं तोड़ दीं जिन्हे दावत शुरू होने के दिनों से अब तक वे महान समझते थे और जिनका सम्मान करते आ रहे थे। वास्तव में कुरैश की अकड़ और अभिमान पर यह बात बड़ी गरां गुज़र रही थी कि वे लम्बे समय तक सब्र करें। चुनांचे वे अब तक हंसी, ठठ्ठे, उपहास और खिल्ली और सच्चाई से नज़रें चुराने या उसे तोड़-मरोड़ कर बिगाड़ने का जो काम करते आ रहे थे, उससे एक क़दम आगे बढ़कर अल्लाह के रसूल सल्ल० की तरफ़ ज़ुल्म व सितम का हाथ भी बढ़ा दिया और यह बिल्कुल स्वाभाविक था कि इस काम में आपका चचा अबू लहब सबसे आगे हो, क्योंकि वह बनू हाशिम एक सरदार था। उसे वह खतरा न था जो औरों को था और वह इस्लाम और मुसलमानों का कट्टर दुश्मन था। नबी सल्ल० के बारे में उसकी रीति पहले दिन ही से, जबकि

इब्ने हिशाम 1/266, 267

QQ aसभा में कुरैश ने इस तरह की बात अभी सोची भी न थी, यही थी। उसने बनू हाशिम की किया, फिर कोहे सफ़ा पर जो हरकत की उसका उल्लेख पिछले पन्नों में आ चुका है । कुछ

आपके नबी बनाए जाने से पहले अबू लहब ने अपने दो बेटों उत्बा और उतैबा का विवाह नबी सल्ल० की दो बेटियों रुक़ैया और उम्मे कुलसूम से किया था, लेकिन नबी बनाए जाने के बाद उसने बड़ी ही सख्ती और कड़ाई से इन दोनों को तलाक़ दिलवा दी।

इसी तरह जब नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के दूसरे सुपुत्र अब्दुल्लाह का देहान्त हुआ तो अबू लहब को इतनी खुशी हुई कि वह दौड़ता हुआ अपने साथियों के पास पहुंचा और उन्हें यह खुशखबरी सुनाई कि मुहम्मद अब्तर (जिसकी नस्ल खत्म हो गई हो) हो गए हैं। 2

हम यह भी उल्लेख कर चुके हैं कि हज के दिनों में अबू लहब नबी सल्ल० को झुठलाने के लिए बाज़ारों और सभाओं में आपके पीछे-पीछे लगा रहता था। तारिक़ बिन अब्दुल्लाह मुहारबी की रिवायत से मालूम होता है कि यह व्यक्ति सिर्फ़ झुठलाने ही पर बस नहीं करता, बल्कि पत्थर भी मारता रहता था, जिससे आपकी एड़ियां खून से सन जाती थीं।

अबू लहब की बीवी उम्मे जमील, जिसका नाम अरवा था, जो हर्ब बिन उमैया की बेटी और अबू सुफ़ियान की बहन थी, वह भी नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की दुश्मनी में अपने शौहर से पीछे न थी, चुनांचे वह नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के रास्ते में और दरवाज़े पर रात को कांटे डाल दिया करती थी, जुबान की गन्दी, बकवास करने वाली और फ़िला पैदा करने वाली भी थी। चुनांचे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के खिलाफ़ बदजुबानी करना, लम्बी-चौड़ी बातें बनाना और झूठी-झूठी बातें जोड़ना, फ़िले की आग भड़काना और भयानक लड़ाई की फ़िज़ा बना देना उसकी रीति-नीति थी। इसीलिए कुरआन ने इसको ‘हम्मालतल ह-तब’ (लकड़ी ढोने वाली) की उपाधि दी है।

जब उसे मालूम हुआ कि उसकी और उसके शौहर की निन्दा में कुरआनी आयतें उतरी हैं, तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को खोजती हुई आई ।

1. इसे तबरी ने क़तादा से रिवायत किया है। इब्ने इस्हाक़ की रिवायत यह भी बताती है कि कुरैश ने भी इस बारे में दौड़-धूप की थी, देखिए इब्ने हिशाम 1/652,

2. यह हज़रत अता से रिवायत की गई है, तफ़्सीर इब्ने कसीर सूरः अल-कौसर 4/595 3. कंजुल उम्माल 12/449

अर-रहीकुल मख़्तूम

आप खाना काबा के पास मस्जिदे हराम में तशरीफ़ रखते थे। हज़रत अबूबक्र सिद्दीक़ रज़ि० भी साथ थे। यह मुट्ठी भर पत्थर लिए हुए थी। सामने खड़ी हुई तो अल्लाह ने उसकी निगाह पकड़ ली और वह अल्लाह के रसूल सल्ल० को न देख सकी, सिर्फ़ हज़रत अबूबक्र रज़ि० को देख रही थी। उसने सामने पहुंचते ही सवाल किया, अबूबक्र ! तुम्हारा साथी कहां है? मुझे मालूम हुआ है कि वह मेरी निन्दा करता है। खुदा की क़सम ! अगर मैं उसे पा गई, तो उसके मुंह पर यह पत्थर दे मारूंगी, देखो, खुदा की क़सम ! मैं भी कवियित्री हूं, फिर उसने यह पद सुनाया-

‘हमने मुज़म्मम’ की अवज्ञा की, उसकी बात नहीं मानी और उसके दीन को घृणा और तिरस्कार के साथ छोड़ दिया।’

इसके बाद वापस चली गई।

अबूबक्र रज़ि० ने कहा, ऐ अल्लाह के रसूल सल्ल० ! क्या उसने आपको देखा नहीं ?

आपने फ़रमाया, नहीं ! उसने मुझे नहीं देखा। अल्लाह ने उसकी निगाह पकड़ ली थी 12

अबूबक्र बज़्ज़ार ने भी इस घटना का उल्लेख किया है और उसमें इतना बढ़ा दिया है कि जब वह अबूबक्र के पास खड़ी हुई थी तो उसने यह भी कहा, ‘अबूबक्र ! तुम्हारे साथी ने हमारी निन्दा की है ?’

अबूबक्र ने कहा, ‘नहीं, इस इमारत के रब की क़सम ! न वह कविता कहते हैं, न उसे ज़ुबान पर लाते हैं।’

उसने कहा, तुम सच कहते हो ।

1. मुश्कि जल कर नबी सल्ल० को मुहम्मद (सल्ल॰) के बजाए ‘मुज़म्मम कहा करते थे। जो मुहम्मद का विलोम है। मुहम्मद, वह व्यक्ति जिसकी प्रशंसा की जाए और मुज़म्मम वह, जिसकी निंदा की जाए। वे चूंकि मुज़म्मम की बुराई करते थे, इसलिए उनकी बुराई नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर लागू न होती। तारीखे बुखारी 1/11, सहीह बुखारी मअल फह 7/162, मुस्नद अहमद 2/244, 340, 369

2. इब्ने हिशाम 1/335-336-

3. यह घटना हाकिम ने मुस्तदरक 2/361. में, इब्ने अबी शैबा ने मुसन्निफ़ 11/498 (हदीस न० 11817) में अबू याला ने मुस्नद 4/246, (हदीस न० 2358) में इस्माई अस्बहानी ने दलाइलुन्नुबूवः पृ० 71 (हदीस न० 54) में और तबरानी और इब्ने अबी हातिम वग़ैरह ने रिवायत किया है। प्रसंग में थोड़ा-सा मतभेद है।

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