अर-रहीकुल मख़्तूम पार्ट 19

जिब्रील वह्य लाते हैं



‘मैंने हिरा में एक महीना एतकाफ़ किया। जब मेरा एतकाफ़ पूरा हो गया तो मैं उतरा। जब बले वादी में पहुंचा तो मुझे पुकारा गया। मैंने दाएं देखा कुछ


नज़र न आरया, बाएं देखा, कुछ नज़र न आया, आगे देखा कुछ नज़र न आया, पीछे देखा, कुछ नज़र न आया, फिर औँसमान की तरफ़ नज़र उठाई तो एक चीज़ नज़र आई। क्या देखता हूं कि वही फ़रिश्ता, जो मेरे पास हिरा में आया था. आसमान व ज़मीन के बीच एक कुर्सी पर बैठा है। मैं उससे भयभीत होकर ज़मीन की ओर जा झुका। फिर मैंने खदीजा के पास आकर कहा, ‘मुझे चादर ओढ़ा दो। मुझे चादर ओढ़ा दो ।’ मुझे कम्बल उढ़ा दो और मुझ पर ठंडा पानी डाल दो। उन्होंने मुझे चादर ओढ़ा दी और मुझ पर ठंडा पानी डाल दिया। इसके बाद अल्लाह ने ‘या ऐयुहल मुद्दास्सिर कुम फ-अन्जिर व रब्ब-क फ्र-कब्बिर व सिया-ब-क फ़-तह्हिर’ से ‘वर-रुज-ज़ फ़हजुर०’ तक नाज़िल फ़रमाई, यह नमाज़ फ़र्ज़ होने से पहले की बात है। इसके बाद वह्य के आने में गर्मी आ गई। और वह बराबर आने लगी ।1

यही आयतें आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की रिसालत का आरंभ-बिंदु हैं। रिसालत आपकी नबूवत से उतने ही दिन पीछे है, जितने दिन वह्य बन्द रही। इसमें दो क़िस्म की बातों का आपको ज़िम्मेदार बताया गया है, उसके नतीजे भी बतलाए गए हैं।

पहली क़िस्म तब्लीग़ (प्रचार) और डरावे की है जिसका हुक्म ‘कुम फ़-अन्जिर’ (खड़े हो जाओ और डराओ) से दिया गया है, क्योंकि इसका मतलब यह है कि आप उठ जाइए और बता दीजिए कि लोग महान अल्लाह के अलावा दूसरों की पूजा करके और उसकी ज्ञात व सिफ़ात और अफ़आल व हुकूक़ में दूसरों को शरीक ठहरा कर जिस ग़लती व गुमराही में फंसे हुए हैं, अगर उससे बाज़ न आए तो उन पर अल्लाह का अज़ाब आ पड़ेगा ।

दूसरी क़िस्म, जिसकी ज़िम्मेदारी आपको दी गई है, यह है कि आप अपनी ज्ञात पर अल्लाह का हुक्म लागू करें और अपनी हद तक उसकी पाबन्दी करें, ताकि एक तरफ़ आप अल्लाह की मर्जीीं हासिल कर सकें और दूसरी तरफ़ ईमान लाने वालों के लिए बेहतरीन नमूना भी हों। इसका हुक्म बाक़ी आयतों में हैं, चुनांचे ‘व रब्ब-क फ़कब्बिर’ का मतलब यह है कि अल्लाह को बड़ाई के साथ खास करें और इसमें किसी को भी इसका शरीक न ठहराएं। और ‘सिया-ब-क फ़तहिर’ (अपने कपड़े पाक रख) का मक़सूद यह है कि कपड़े और जिस्म पाक रखें, क्योंकि जो अल्लाह के हुज़ूर खड़ा हो और उसकी बड़ाई बयान करे, किसी

सहीह बुखारी किताबुत्तफ्सीर, तफ़्सीर सूरः मुद्दस्सिर बाब 1 और उसके आगे का भी । फत्हुल बारी 8/445-447 और ऐसा ही सहीह मुस्लिम किताबुल ईमान हदीस न० 257

तरह सही नहीं कि वह गन्दा और नापाक हो और जब जिस्म और पहनावे तक की पाकी मतलूब हो तो शिर्क और अख्लाक़ व किरदार की गन्दगी से पाकी कहीं ज़्यादा मतलूब होगी। ‘वर रुज-ज़ फ़हजुर’ का मतलब यह है कि अल्लाह की नाराज़ी और उसके अज़ाब की वजहों से दूर रहो और उसकी शक्ल यही है कि उसकी इताअत ज़रूरी समझो और नाफ़रमानी से बचो और ‘ला तम्नुन तस्तक्सिर’ का मतलब यह है कि किसी एहसान का बदला लोगों से न चाहो, या जैसा एहसान किया है उससे बेहतर बदले की उम्मीद इस दुनिया में न रखो ।

आखिरी आयत में चेतावनी दी गई है कि अपनी क़ौम से अलग दीन अपनाने, उसे अल्लाह वहदहू ला शरी-क लहू की दावत देने और उसके अज़ाब और पकड़ से डराने के नतीजे में क़ौम की तरफ़ से तक्लीफ़ों का सामना करना होगा, इसलिए फ़रमाया गया, ‘व लि रब्बिक फ़स्बिर’ (अपने परवरदिगार के लिए सब्र करना)

फिर इन आयतों की शुरुआत अल्लाह की आवाज़ में एक आसमानी आवाज़ से हो रही है, जिसमें नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को उस महान काम के लिए उठने और नींद की चादर ओढ़ने और बिस्तर की गर्मी से निकलकर जिहाद व कोशिश और मशक़्क़त के मैदान में आने के लिए कहा गया है। ‘या ऐयुहल मुद्दस्सिर, कुम फ़-अन्जिर’ (ऐ चादर ओढ़ने वाले ! उठ और डरा) गोया यह कहा जा रहा है कि जिसे अपने लिए जीना है, वह तो (राहत की ज़िंदगी गुजार सकता है, लेकिन आप जो इस ज़बरदस्त बोझ को उठा रहे हैं, तो आपको नींद से क्या ताल्लुक़ ? आपको राहत से क्या सरोकार ? आपको गर्म बिस्तर से क्या मतलब ? शान्तिमय जीवन से क्या ताल्लुक़ ? सुख-सुविधा वाले साज़ व सामान से क्या वास्ता ? आप उठ जाइए उस बड़े काम के लिए जो आपका इन्तिज़ार कर रहा है, उस भारी बोझ के लिए जो आपकी खातिर तैयार है। उठ जाइए जद्दोजेहद और मशक़्क़त के लिए, थकन और मेहनत के लिए, उठ जाइए कि अब नींद और राहत का वक़्त गुज़र चुका। अब आज से लगातार बेदारी है और लम्बा और मशक़्क़त भरा जिहाद है, उठ जाइए, और इस काम के लिए मुस्तैद और तैयार हो जाइए।

यह बड़ा भारी और रौबदार कलिमा है। उसने नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को पुरसुकून घर, गर्म आग़ोश और नर्म बिस्तर से खींच कर तीखे तूफ़ानों और तेज़ झक्कड़ों के दर्मियान अथाह समुद्र में फेंक दिया और लोगों के ज़मीर (अन्तरात्मा) और ज़िंदगी की हक़ीक़तों की कशाकश के मंजधार में ला खड़ा किया।

फिर अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उठ गए और बीस साल से ज़्यादा मुद्दत तक उठे रहे। सुख-वैभव को त्याग दिया, ज़िंदगी अपने


लिए अपने घरवालों के लिए न रही। आप उठे तो उठे ही रहे। काम अल्लाह की ओर बुलाना था। आपने यह कमरतोड़ भारी बोझ अपने कंधे पर किसी दबाव के बिन उठा लिया। यह बोझ था इस धरती पर बड़ी अमानत का बोझ, सारी मानवता का बोझ, सारे अक़ीदे का बोझ और विभिन्न मैदानों में जिहाद और संघर्ष का बोझ। आपने बीस साल से ज़्यादा दिनों तक लगातार हर मोर्चे पर फैले संघर्ष में जीवन बिताया। इस पूरी मुद्दत में, यानी जब से आपने वह भारी आसमानी आवाज़ सुनी और यह बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी पाई, आपको एक हालत दूसरी हालत से गाफ़िल न कर सकी। अल्लाह आपको हमारी तरफ़ से और सारी मानवता की तरफ़ से बेहतरीन बदला दे।

आगे के पृष्ठ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्म के इसी लम्बे और मशक़्क़त भरे जिहाद का एक छोटा-सा खाका (प्रारूप) है।

वह्य की क़िस्में

अब हम क्रम से तनिक हट कर यानी रिसालत व नुबूवत की मुबारक ज़िंदगी का विवरण शुरू करने से पहले वह्य की क़िस्मों का उल्लेख करना चाहते हैं, क्योंकि यह रिवायत का स्रोत और दावत की कुमक है।

ने अल्लामा इब्ने कय्यिम ने वह्य की नीचे लिखी श्रेणियों का उल्लेख किया है- 1. सच्चा सपना-इसी से नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास वह्य की शुरूआत हुई ।

2. फ़रिश्ता आपको दिखाई दिए बिना आपके दिल में बात डाल देता था, जैसे नबी सल्ल० का इर्शाद है-

‘रूहुल क़ुद्स (जिब्रील) ने मेरे दिल में यह बात फूंकी कि कोई नफ़्स (जीव) मर नहीं सकता, यहां तक कि अपनी रोज़ी पूरी कर ले, पस अल्लाह से डरो और तलब में अच्छाई अपनाओ और रोज़ी में विलम्ब तुम्हें इस बात पर तैयार न करे कि तुम उसे अल्लाह की नाफ़रमानी के ज़रिए खोजो, क्योंकि अल्लाह के पास कुछ है, वह उसके आज्ञापालन के बिना हासिल नहीं किया जा सकता।’ जो

3. फ़रिश्ता नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के लिए आदमी का रूप धारण करके आपको सम्बोधित करता, फिर जो कुछ वह कहता, उसे आप याद कर लेते। ऐसी स्थिति में कभी-कभी सहाबा भी फ़रिश्ते को देखते थे।

4. आपके पास वह्य घंटी के टनटनाने की तरह आती थी। वह्य की यह सबसे भारी शक्ल होती थी। इस शक्ल में फ़रिश्ता आपसे मिलता था और वह्य आती थी तो कड़े जाड़े के ज़माने में भी आपके माथे से पसीना फूट पड़ता था

और आप ऊंटनी पर सवार होते तो वह ज़मीन पर बैठ जाती थी। एक बार इस तरह वह्य आई कि आपकी रान हज़रत ज़ैद बिन साबित रज़ि० की रान पर थी, तो उन पर इतना बड़ा बोझ पड़ा कि मालूम होता था रान कुचल जाएगी।

5. आप फ़रिश्ते को उसकी असली और पैदाइशी शक्ल में देखते थे और इसी हालत में वह अल्लाह की मंशा के मुताबिक़ आपकी ओर वह्य करता था । यह शक्ल आपके साथ दो बार पेश आई थी, जिसका उल्लेख अल्लाह ने सूरः नज्म में किया है।

6. वह वह्य, जो आप पर मेराज की रात में नमाज़ के फ़र्ज़ होने के सिलसिले में अल्लाह ने उस वक़्त फ़रमाई, जब आप आसमानों के ऊपर थे।

7. फ़रिश्ते के माध्यम के बिना अल्लाह की आपसे सीधी बातचीत, जैसे अल्लाह ने मूसा से की थी : वह्य की यह शक्ल मूसा अलैहिस्सलाम के लिए क़ुरआन से क़तई तौर पर साबित है, लेकिन नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के लिए इसका सबूत (कुरआन के बजाए) मेराज की हदीस में है।

कुछ लोगों ने एक आठवीं शक्ल भी मानी है, यानी अल्लाह से आमने-सामने बिना किसी परदे के बात करे, लेकिन यह एक ऐसी शक्ल है जिसके बारे में पहले के लोगों से लेकर आज तक के लोगों में मतभेद चला आया है। 1

1. ज़ादुल मआद 1/18, पहली और आठवीं शक्ल के बयान में मूल लेख का थोड़ा संक्षिप्तीकरण कर दिया गया है।