
मेरे बाद ख़्याल रखना, किसका ?
(1) तिबरानी ने हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर से रिवायत की है वह फ़रमाते हैं कि नबी करीम ने जो आखरी बात अपनी ज़बान मुबारक से फ़रमाई वह यह थी मेरे बाद मेरे एहले बैत का ख़्याल रखना। (तिबरानी)
(2) “हज़रत अबू हुरैरा
ने फ़रमायाः तुम में से बेत के लिए बेहतरीन है।” किया है।
बयान करते हैं कि हुजूर नबी अकरम बेहतरीन वह है जो मेरे बाद मेरी एहले इस हदीस को इमाम हाकिम ने बयान
(3) इमामे तिबरानी मरफुअन रिवायत करते हैं कि नबी अकरम ने फ़रमायाः “जिस शख़्स ने हज़रते अब्दुल मुत्तलिब की औलाद पर कोई ऐहसान किया और उसने उसका बदला नहीं लिया, कल क़यामत के दिन जब वह मुझसे मिलेगा तो मैं उसे बदला दूंगा।’
( 4 ) हज़रते शाफ़े महशर ने फ़रमाया “क्यामत के दिन में चार किस्म के लोगों की शफाअत
करूंगा।”
मेरी औलाद की इज़्ज़त करने वाला
उनकी ज़रूरतों को पूरा करने वाला
वह शख्स जो उनके उमूर के लिए कोशिश करे, जब उन्हें इसकी जरूरत पेश आए ।
☆ दिल और ज़बान से उनकी मुहब्बत करने वाला। ( बरकाते आले रसूल, इमाम नब्हानी)
( 5 ) इब्ने नज्जार अपनी तारीख में हज़रते हसन बिन अली से रिवायत करते हैं कि रसूलुल्लाह ने फ़रमायाः
“हर शय की एक बुनियाद होती है और इस्लाम की बुनियाद सहाबा और एहले बैत की मुहब्बत है।” ( बरकात आले रसूल स. 246 )
( 6 ) “अल्लाह तआला की ख़ातिर तीन इज़्ज़तें हैं जिसने उनकी हिफाज़त की, उसने अपने दीन व दुनिया के मामले की हिफ़ाज़त की, जिसने उन्हें जाए किया अल्लाह तआला उसकी किसी चीज़ की हिफ़ाज़त नहीं फ़रमाएगा, सहाबा ने अर्ज़ किया वह क्या हैं? फ़रमाया इस्लाम की इज़्ज़त और मेरे रिश्तेदारों की इज्ज़त । ” ( बरकात आले रसूल स. 246 )
(7) इमामे तिबरानी हज़रते इब्ने अब्बास से रावी हैं कि रसूलुल्लाह ने फ़रमाया: “किसी आदमी के क़दम चलने से आजिज़ नहीं होते (यानी मौत के वक्त ) यहाँ तक कि इससे चार चीज़ों के बारे में पूछा जाता है: ★★तूने अपनी उम्र किस काम में सर्फ की ?अपने जिस्म को किस काम में इस्तेमालकिया? तूने अपना माल कहाँ से हासिल किया और कहाँ खर्च किया ? ★ और हम एहले बैत की मुहब्बत के बारे में पूछा जाता है।
( 8 ) इमामे देलमी हज़रते अली मुरतज़ा से मरवी करते हैं:- “तुम में से पुल सरात पर बहुत ज़्यादा साबित क़दम वह होगा जिसे मेरे एहले बैत और मेरे असहाब से शदीद मुहब्बत होगी। ”
( 9 ) सैयदी मुहम्मद फारसी फ़रमाते हैं कि मैं मदीना तैयबा के बाज़ हुसैनी सादात को नापसंद रखता था क्योंकि बज़ाहिर उनके अफआल सुन्नत के मुखालिफ थे, ख़्वाब में नबी करीम ने मेरा नाम लेकर फ़रमाया ऐ फलाँ ! क्या बात है मैं देखता हूँ कि तुम मेरी औलाद से बुरज़ रखते हो, मैंने अर्ज़ किया खुदा की पनाह! या रसूलुल्लाह ! मैं तो उनके ख़िलाफ़े सुन्नत अफआल को नापसंद रखता हूँ फ़रमायाः क्या यह फ़िकही मसला नहीं है कि नाफरमान औलाद नसब से अलग नहीं होती है? मैंने अर्ज़ किया हाँ या रसूलुल्लाह फ़रमायाः यह न फ़रमान औलाद है, जब मैं बैदार हुआ तो इनमें से जिससे भी मिलता उसकी बेहद ताज़ीम करता। ( बरकाते आले रसूल स. 259 )
( 10 ) ” अपनी औलाद को तीन खुसलतें सिखाओ, अपने नबी की मुहब्बत, आपके एहले बैत की मुहब्बत और कुरआन मजीद
पढ़ना।” ( बरकाते आले रसूल. स. 246 )

