
आपका नसब नामा
आपका पदरी नसब नामा यह है। मोहम्मद बिन हसन बिन अली बिन मोहम्मद बिन अली इब्ने मूसा इब्ने जाफ़र बिन मोहम्मद बिन अली बिन हुसैन बिन अली व फ़ात्मा बिन्ते रसूल अल्लाह (स अ व व ) यानी आप फ़रज़न्दे रसूल (स अ व व ) , दिल बन्दे अली (अ.स.) और नूरे नज़र बुतूल (स अ व व ) हैं। इमाम अहमद बिन हम्बल का कहना है कि इस सिलसिलाए नसब के असमा को अगर किसी मजनून पर दम कर दिया जाए तो उसे यक़ीनन शिफ़ा हासिल होगी।(मसनद इमाम रज़ा पृष्ठ 7 ) आपका सिलसिलाए नसब मां की तरफ़ से हज़रत शमऊन बिन हमून अल सफ़आ वसी हज़रत ईसा तक पहुँचता है।
अल्लामा मजलिसी और अल्लामा तबरी लिखते हैं कि आपकी वालेदा जनाब नरजिस ख़ातून थीं। जिनका नाम मलीका भी था। नरजिस ख़ातून यशूआ की बेटी थीं जो राम के बादशाह क़ैसर के फ़रज़न्द थे सिनका सिलसिलाए नसब वसीए हज़रते ईसा (अ.स.) जनाब शमऊन तक पहुँचता है। 13 साल की उम्र मे क़ैसरे रोम ने चाहा था कि नरजिस का अक़्द अपने भतीजे से कर दे लेकिन बाज़ क़ुदरती कु़दरती हालात की वजह से वह इस मक़सद में कामयाब न हो सका। बिल आखि़र एक ऐसा वक़्त आ गया कि आलमे अरवाह में हज़रते ईसा (अ.स.) , जनाबे शमऊन हज़रते मोहम्मद मुस्तफ़ा (स अ व व ) जनाबे अमीरल मोमेनीन (अ.स.) और जनाबे फ़ात्मा (स अ व व ) बमक़ाम क़सरे क़ैसर जमा हुए। जनाबे सय्यदा(स. अ.) ने नरजिस ख़ातून को इस्लाम की तलक़ीन की और आं हज़रत (स अ व व ) बतवस्सुत हज़रत ईसा (अ.स.) जनाबे शमऊन से इमाम हसन असकरी (अ.स.) के लिये नरजिस ख़ातून की ख़्वास्गारी की , निस्बत की तकमील के बाद हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स अ व व ) ने एक नूरी मिम्बर पर बैठ कर अक़्द पढ़ा और कमाले मसर्रत के साथ यह महफ़िले निशात बरख़्वास्त हो गई। जिसकी इत्तेला जनाबे नरजिस को ख़्वाब के तौर पर हुई। बिल आखि़र वह वक़्त आया कि जनाबे नरजिस ख़ातून हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) की खि़दमत में आ पहुँची और आपके बतने मुबारक से नूरे ख़ुदा का ज़हूर हुआ।(किताब जिलाउल उयून पृष्ठ 298 व ग़ाएतुल मक़सूद पृष्ठ 175 )
आपका इस्मे गिरामी
आपका नामे नामी व इस्मे गिरामी मोहम्मद और मशहूर लक़ब मेहदी है। उलेमा का कहना है कि आपका नाम ज़बान पर जारी करने की मुमानिअत है।
अल्लामा मजलिसी इसकी ताईद करते हुए फ़रमाते हैं कि हिकमत आन मख़्फ़ी अस्त इसकी वजह पोशीदा और ग़ैर मालूम है।(जिलाउल उयून)
उलेमा का बयान है कि आपका यह नाम खुद हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स अ व व ) ने रखा था। मुलाहेज़ा हो रोज़ातुल अहबाब व नियाबुल मोअद्दता।
मुवर्रिख़े आज़म मिस्टर जा़किर हुसैन तारीखे़ इस्लाम जिल्द 1 पृष्ठ 31 में लिखते हैं कि आं हज़रत (स अ व व ) ने फ़रमाया कि मेरे बाद बारह 12 ख़लीफ़ा क़ुरैश से होंगे। आपने फ़रमाया कि आखि़री ज़माने में जब दुनिया ज़ुल्मो जौर से भर जायेगी , तो मेरी औलाद में से मेहदी का ज़हूर होगा जो ज़ुल्मो जौर को दूर कर के दुनिया को अदलो इन्साफ़ से भर देगा। शिर्क व कुफ़्र को दुनिया से नाबूद कर देगा। नाम मोहम्मद और लक़ब मेहदी होगा। हज़रत ईसा (अ.स.) आसमान से उतर कर उसकी नुसरत करेंगे और उसके पीछे नमाज़ पढ़ेंगे और दज्जाल को क़त्ल करेंगे।
आपकी कुन्नियत
इस पर उलमाए फ़रीक़ैन का इत्तेफ़ाक़ है कि आपकी कुन्नियत अबुल का़सिम और अबू अब्दुल्लाह थी और इस पर भी उलेमा मुत्तफ़िक़ हैं कि अबुल क़ासिम कुन्नियत ख़ुद सरवरे कायनात की तजवीज़ करदा है। हुलाहेजा़ हां(जामेए सग़ीर पृष्ठ 104, तज़किराए ख़वास अल उम्मता , पृष्ठ 204, रौज़तुल शोहदा पृष्ठ 439, सवाऐक़े मोहर्रेक़ा पृष्ठ 134, शवाहेदुन नबूवत पृष्ठ 312, कशफ़ुल ग़म्मा पृष्ठ 130, जिलाउल उयून पृष्ठ 298 )
यह मुसल्लेमात से है कि आं हज़रत (स अ व व ) ने इरशाद फ़रमाया है कि मेहदी का नाम मेरा नाम और उनकी कुन्नियत मेरी कुन्नियत होगी। लेकिन इस रवायत में बाज़ अहले इस्लाम ने यह इज़ाफ़ा किया है कि आं हज़रत (स अ व व ) ने यह भी फ़रमाया है कि मेहदी के बाप का नाम मेरे वालिदे मोहतरम का नाम होगा। मगर हमारे रावियों ने इसकी रवायत नहीं की और ख़ुद तिरमिज़ी शरीफ़ में भी इस्मे अबीहा इस्मे अबी नहीं है। ताहम बक़ौल साहेबुल मनाक़िब अल्लामा कन्जी शाफ़ेई यह कहा जा सकता है कि रवायत में लफ़्ज़ अबीहा से मुराद अबू अब्दुल्लाह अल हुसैन हैं यानी इससे इस अम्र की तरफ़ इशारा है कि इमाम मेहदी (अ.स.) हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) की औलाद से हैं।

