चौदह सितारे हज़रत इमाम अबुल हसन हज़रत इमाम अली नक़ी(अ.स) पार्ट- 10

शाहे रोम को हज़रत इमाम अली नक़ी (अ.स.) का जवाब

अल्लामा मौहम्मद बाक़र नजफ़ी लिखते है कि बादशाहे रोम ने ख़लीफ़ाए वक़्त को लिखा कि मैंने इन्जील में पढ़ा है कि जो शख़्स इस सूरे की तिलावत करे जिसमें यह सात लफ़्ज़ न हों 1. से 2. जीम 3. ख़े 4. ज़े 5. शीन 6. ज़ो 7. फ़े। वह जन्नत में जाएगा। इसे देखने के बाद मैंने तौरैत ज़बूर का अच्छी तरह मुतालेआ किया लेकिन इस कि़स्म का कोई सूरा इसमें नहीं मिला। आप ज़रा अपने उलमा से तहक़ीक़ कर के लिखये कि शायद यह बात आपके क़ुरान मजीद में हो। बादशाहे वक़्त ने बहुत से उलमा जमा किये और उनके सामने यह चीज़ पेश की सबने बहुत देर तक ग़ौर किया लेकिन कोई इस नतीजे पर न पहुंच सका कि तसल्ली बख़्श जवाब दे सके। जब ख़लीफ़ा ए वक़्त तमाम उलमा से मायूस हो गया तो इमाम अली नक़ी (अ.स.) की तरफ़ तवज्जा की। जब आप दरबार में तशरीफ़ लाए और आपके सामने मसला लाया गया तो आपने बिला ताख़ीर कहा , वह सूरा ए हम्द है। अब जो गौ़र किया गया तो बिल्कुल ठीक पाया गया। बादशाहे इस्लाम ख़लीफ़ा ए वक़्त ने अर्ज़ कि , यब्ना रसूल अल्लाह स. क्या अच्छा होता अगर आप इसकी वजह भी बताऐं कि यह हरूफ़ इस सूरा में क्यंों नहीं लाए गये। आपने फ़रमाया यह सूरा रहमत व बरकत का है इसमें यह हुरूफ़ इस लिए नहीं लाए गए कि से सबूर हलाकत तबाही , बरबादी की तरफ़ , जीम से जेहीम जहन्नम की तरफ़ ख़े ख़ैबत यानी ख़ुसरान की तरफ़ ज़े से ज़क़ूम यानी थोहड़ की तरफ़ शीन से शक़ावत की तरफ़ ज़ो ज़ुलमत की तरफ़ फ़े फ़ुरक़त की तरफ़ तबादरे ज़ेहनी होता है और यह तमाम चीज़ें रहमत व बरकत के मुनाफ़ी हैं। ख़लीफ़ा ए वक़्त ने आपका तफ़्सीली बयान शाहे रोम को भेज दिया। बादशाहे रोम ने ज्यांही उसे पढ़ा मसरूर हो गया और उसी वक़्त इस्लाम लाया और ता हयात मुसलमान रह।

(दमतुस साकेबा जिल्द 3 सफ़ा 140 ब हवाला शरा शाफ़या अबू फ़रास)


मुतावक्किल के कहने से इब्ने सकीत व इब्ने अकसम का इमाम अली नक़ी (अ.स.) से सवाल

उलमा का बयान है कि एक दिन मुतावक्किल अपने दरबार में बैठा हुआ था दीगर कामों से फ़राग़त के बाद इब्ने सकीत की तरफ़ मुतावज्जा हो कर बोला अबुल हसन से ज़रा सख्त सख्त सवाल करो , इब्ने सक़ीन ने क़ाबलीयत भर सवाल किए। इमाम (अ.स.) ने तमाम सवालात के मुफ़स्सल और मुकम्मल जवाब दिए। यह देख कर यहिया इब्ने अक़सम क़ाज़ी सलतनत ने कहा ऐ इब्ने सकीत तुम नहो शेर , लुग़द के आलिम हो , तुम्हें मनाज़रे से क्या दिलचस्पी , ठहरो मैं सवाल करता हूं। यह कह कर उसने एक सवाल नामा निकाला जो पहले से लिख कर अपने हमराह रखे हुए था और हज़रत को दे दिया। हज़रत ने इसका इसी वक़्त जवाब लिखना शुरू कर दिया कि क़ाज़ी शहर को मुतावक्किल से कहना पड़ा कि इन जवाबात को पोशीदा रखा जाए वरना शीयां की हौसला अफ़ज़ाई होगी। इन सवालात में एक सवाल यह भी था कि क़ुरान मजीद में सबता अलबहर और मानफ़दत कलमात अल्लाह जो हैं इसमें किन सात दरियाओं की तरफ़ इशारा है और कलमात अल्लाह से क्या मुराद है। आपने इसके जवाब में तहरीर फ़रमाया कि सात दरिया यह हैं 1 ऐन अलकिबरीयत 2 ऐन अलमैन 3 ऐन अलबरहूत 4 ऐन अलबतरया 5 ऐन अलसैदान 6 ऐन अल फ़रीक़ 7 ऐन अल याहुरान यह कलमात से हम मौहम्मद स. व आले मौहम्मद (अ.स.) मुराद हैं जिनके फ़ज़एल का एहसा न मुम्किन है।

(मनाक़िब जिल्द 5 सफ़ा 117 )


क़ज़ा व क़दर के मुताअल्लिक़ इमाम अली नक़ी (अ.स.) की रहबरी व रहनुमाई

क़ज़ा व क़दर के बारे में तक़रीबन तमाम फि़रक़े जादए ऐतिदाल से हटे हुए हैं इसकी वज़ाहत में कोई जब्र का क़ाएल नज़र नहीं आता है कोई मुतलक़न तफ़वीज़ पर ईमान रखता हुआ दिखाई देता है। हमारे इमाम अली नक़ी (अ.स.) अपने आबाओ अजदाद की तरह क़ज़ाओ क़दर की वज़ाहत इन लफ़्ज़ों में फ़रमाई हैः न इन्सान बिल्कुल मजबूर है न बिल्कुल आज़ाद है बल्कि दोनो हालातों के दरमियान है।

(दमतुस् साकेबा जिल्द 3 सफ़ा 134 )

मैं हज़रत का मतलब यह समझता हूं कि इन्सान असबाब व आमाल में बिल्कुल आज़ाद है और नतीजे की बरामदगी में ख़ुदा का मोहताज है।

उलमाए इमामिया की जि़म्मेदारीयों के मुतालिक़ हज़रत इमाम अली नक़ी (अ.स.) का इरशाद है

हज़रत इमाम अली नक़ी (अ.स.) ने इरशाद फ़रमाया है कि हमारे उलमा ग़ैबते क़ाएम आले मौहम्मद स. के ज़माने में मुहाफि़ज़े दीन और रहबरे इल्म व यक़ीन होंगे। इनकी मिसाल शियों के लिये बिल्कुल वैसी ही होगी जैसी कश्ती के लिए न ख़ुदा की होती है। वह हमारे ज़ईफ़ों को तसल्ली देंगे। वह अफ़जल उन नास और क़ाएदे मिल्लत होंगे।

(दमतुस् साकेबा जिल्द 2 सफ़ा 137 )

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