
॥ मुआविया बनाम अहलेबैत ॥
सुलह तो होती ही तब है जब कोई झगड़ा हुआ हो!
इमाम हसन और #मुआविया की सुलह से यह बात तो वाज़ेह है कि इब्ने #हिन्दा ने रसूलअल्लाह की औलाद से झगड़ा किया था!
तो #अल्लाह के हुक्म ए मवद्दत ए आले रसूल के बावजूद आले रसूल से #मवद्दत के बजाये झगड़ा करने वाला #मोमिन क्योंकर हुआ?
और हुज़ूर के फरमान के मुताबिक़ “जिसने #अहलेबैत का हक़ ना जाना वो #मुनाफ़िक़ है या हरामज़ादा या हैज़ी (पलीद) बच्चा!
अब #ओझड़ीखोर मुल्ला अपने मामू के लिए इन तीनों में से जो अच्छा लगे उस दर्जे का टाइटल चुन सकते हैं!
और जहाँ तक #सुलह का सवाल है तो ग़ुलाम को हक़ नहीं है कि अपने आक़ा से झगड़ा करे, और बिलफर्ज़ अगर कोई इख़्तेलाफ हो भी जाये तो #ग़ुलाम पर वाजिब है कि अपने आक़ा ओ सरदार की इताअ़त की तरफ़ लौटे ना कि सुलह करे!
लेकिन मुआविया ने शर्तों के एवज़ सुलह करके साबित कर दिया कि मुआविया ने #इताअ़त की तरफ़ लौटने के बजाये अपने आक़ा से अपनी बातें मनवाने के लिए आक़ा की शर्तों पर #अहद तक कर लिया लेकिन मुतीअ़ न हुआ, उसपर भी जसारत यह कि जिन शर्तो को पूरा करने का अहद ओ वादा किया उनको भी पूरा ना किया।
कायनात में किसी ग़ुलाम की #बग़ावत और जफाकारी की इससे बुरी मिसाल नहीं मिलेगी।
लेकिन फिर भी टुकड़गधे #मुल्ला उस बाग़ी सरकश और ज़ालिम ग़ुलाम को उसकी हर एक नाफरमानी, बग़ावत ओ सरकशी पर एक अदद #अज्र बांटते फिरते हैं।
हक़ीक़त तो यह है कि मुआविया के क़सीदे पढ़ने वाले यह #मरवानी मुल्ला भी मुआविया की तरह ही अहलेबैत के नाफरमान सरकश और बाग़ी ग़ुलाम हैं जिन्होंने आज भी मुआविया की #सुन्नत पर अमल करते हुए #क़ुरआन और अहलेबैत के ख़िलाफ़ बाग़ी अलम बुलंद कर रखा है।
अल्लाह की #लाअनत हो क़ुरआन और अहलेबैत से बग़ावत करने वाले बदबख्तों पर!
हक़ ओ #हिदायत का बस एक उसूल!
#किताबुल्लाह और आले रसूल!!
اللھم صل وسلم و بارک علٰی سیدنا محمد و علٰی آل سیدنا محمد
✍️ सैय्यद मुहम्मद अल्वी अल-हुसैनी

