चौदह सितारे पार्ट 36

आपका जनाज़ा

गुस्ल व कफ़न के बाद हज़रत अली (अ.स) अपनी औलाद और अपने रिश्तेदारों समेत जनाज़ा लेकर रवाना हुए। बेहारूल अनवार किताब अलफ़तन में है कि रास्ता देखने के लिए एक शमा साथ थी और हज़रत ज़ैनब जो काफ़ी कमसिन थी काले कपड़े पहने हुए थी इस साए में चल रही थीं जो शमा की वजह से ताबूत के नीचे ज़मीन पर पड़ रहा था। मुवद्दतुल कुर्बा पृष्ठ 129 में है कि हज़रत अली (अ.स) जब जन्नतुल बक़ी में पहुंचे तो एक तरफ़ से आवाज़ आई और खुदी खुदाई क दिखाई दे गई | हज़रत अली (अ.स) ने उसी क़ब्र में हज़रत फातेमा (स.अ) की लाशे मुताहर दफ़न की और इस तरह ज़मीन बराबर कर दी कि निशाने क़ब्र मालूम न हो सके ।

किताबे मुनतहल आमाल शेख़ अब्बास कुम्मी पृष्ठ 139 में है कि जब जनाबे सैय्यदा की लाश क़ब्र मे उतारी गई तो रसूले ख़ुदा ( स.व.व.अ.) के हाथों की तरह दो हाथ निकले और उन्होने जिसमे मुताहर जनाबे सैय्यदा को सम्भाल लिया। दलाएल उल इमामत में है कि चूंकि क़ब्रे फातेमा (स.अ ) के साथ बे अदबी का शक था इस लिए चालीस क़ब्रें बनाई गईं। मनाक़िब इब्ने शहर आशोब में है कि चालीस क़ब्रें इस लिए बनाई थी कि सही क़ब्र मालूम न हो सके और फातेमा (स.अ) को सताने वाला क़ब्र पर भी नमाज़ न पढ़ सके वरना सैय्यदा को तकलीफ़ होगी। इसके बावजूद लोगों ने क़ब्र खोद कर नमाज़ पढ़ ने की सई की जिसके रद्दे अमल में हज़रत अली (अ.स) नगीं तलवार ले कर पीले कपड़े पहन कर क़ब्र पर जा बैठे। इस वक़्त आप के मुंह से कफ़ निकल रहा था। यह देख कर लोगों की हिम्मते पस्त हो गईं और आगे न बढ़ सके। नासिख़ अल तवारीख़ वग़ैरा वफ़ात के वक़्त जनाबे सैय्यदा ताहेरा ( स.अ ) की उम्र 18 साल की थी। इन्ना लिल्लाहे व इन्ना इलैहे राजेउन

नतीजा

वफ़ाते रसूल (स.व.व.अ.) के बाद जनाबे सैय्यदा के साथ जो कुछ किया गया इस पर शमसुल उलमा डिप्टी नज़ीर अहमद एल.एल. डी. मोतरज्जिम क़ुरआने मजीद ने अपनी किताब “रोया ए सादेक़ा ” में निहायत मुफस्सिल और मुकम्मल तबसिरा फ़रमाया है जिसके आख़री जुमले यह हैं:-

सख़्त अफ़सोस है कि अहले बैते नबवी को पैग़म्बर साहब की वफ़ात के बाद ही ऐसे नामुलाएम इत्तेफ़ाक़ात पेश आए कि इनका वह अदब व लेहाज़ जो होना चाहिये था इसमें ज़ोफ़ आ गया और शुदा शुदा मुनजिर हुआ। इस ना क़ाबिले बरदाश्त वाए करबला की तरफ़ जिसकी नज़ीर तारीख़ में नहीं मिलती। यह ऐसी नालायक़

हरकत मुसलमानों से हुई है कि अगर सच पूछो तो दुनिया व आख़रत में मुंह दिखाने के क़ाबिल न रहे।

चे खुश फ़रमूद शख़्से ईं लतीफ़ा कि कुश्ता शुद हुसैन अन्दर सक़ीफ़ा

हज़रत फातेमा ( स.अ) के जनाज़े मे शिरकत करने वाले

अल्लामा हाफिज़ बिन अली शहर आशोब अल मतूफ़ी 588 हिजरी तहरीर फ़रमाते हैं कि हज़रत फातेमा ज़हरा (स.अ) के जनाज़े में अमीरल मोमिनीन (अ.स), इमामे हसन (अ.स), इमामे हुसैन (अ.स), अक़ील, सलमाने फ़ारसी, अबूज़र, मेक़दाद, अम्मार और बरीदा शरीक थे और उन्ही लोगों ने नमाज़े जनाज़ा पढ़ी एक रवायत में अब्बास, फ़ज़ल, हुज़ैफ़ा और इब्ने मसूद का इज़ाफ़ा है। तबरी में इब्ने जुबैर का भी तज़किरा है।

(उम्दतुल तालिब तरजुमा मनाक़िब जिल्द 2 पृष्ठ 65 प्रकाशित मुल्तान)

हज़रत फातेमा (स.अ) का मदफ़न

जैसा कि उपर गुज़रा, हज़रत फातेमा (स.अ) के जाए दफ़न में अख़्तेलाफ़ है। कोई जन्नतुल बक़ी, कोई मिम्बरे रसूल (स.अ.व.व.) के बीच में कोई क़ब्र और घर के बीच क़ब्र बताता है। मशहूर यही है कि जन्नतुल बक़ी में आप दफ़न हुई हैं

लेकिन अहमद बिन मोहम्मद बिन अबी नसर ने अबुल हसन हज़रत इमाम रज़ा (अ.स) से रवायत की है, वह फ़रमाते हैं कि हज़रत फातेमा (स. अ) अपने घर मे दफ़न हैं। जब बनी उम्मया ने मस्जिद की तौसीफ़ की तो उनकी क़ब्र रौज़ा ए रसूल (स.अ.व.व.) के अन्दर आ गई है।

(तरजुमा मनाक़िब इब्ने शहर आशोब जिल्द 2 पृष्ठ 69)

हज़रत फातेमा ( स.अ) की क़ब्र पर हज़रत अली (अ.स) का मरसिया

अल्लामा इब्ने शहर आशोब लिखते हैं कि हज़रत अली (अ.स) ने वफ़ाते सैय्यदा (स.अ) पर अत्याधिक दुख प्रकट किया और बे पनाह ग़मों अलम का अहसास किया। उन्हानें जो क़ब्र पर मरसिया पढ़ा वह यह है :-

लेकुले इजतेमा मन ख़लीलैन फ़रक़तह

वक़ल लज़ी दूने अल फ़िराक़ क़लील

दो दोस्तों के हर इजतेमा का नतीजा जुदाई है और हर मुसीबत दिलबरों की जुदाई की मुसीबत से कम है।

वअन इफ़तेक़ादी फ़ातम बादे अहमद

वलैला अली अन लायदम् खलील

हज़रत रसूले करीम ( स.व.व.अ.) के तशरीफ़ ले जाने के बाद मेरी रफ़ीक़ा ए हयात फातेमा (स.अ) का दागे फिराक़ दे जाना इस अमर का सबूत है कि कोई दोस्त हमेशा नहीं रहेगा।

अल्लामा शेख़ अब्बास कुम्मी लिखते हैं कि हज़रत सैय्यदा को सुपुर्दे ख़ाक करने के बाद हज़रत अमीरल मोमिनीन (अ.स) क़ब्रे जनाबे सैय्यदा के पास बैठ गये और बे इन्तेहा रोए । पस अब्बासे उमूऐ आं हज़रत ( स.व.व.अ.) दस्तश गिरफ़त व अज़ सरे क़ब्र उरा बे बुर्द

यह देख कर चचा अब्बास बिन अब्दुल मुत्लिब ने उनका हाथ पकड़ कर उन्हें क़ब्र के पास से उठाया और घर ले गये ।

( मुन्तहल आमाल जिल्द 1 पृष्ठ 140 प्रकाशित नजफ़े अशरफ़ )

आपके रोज़े का इन्हेदाम

आलिमों का बयान है कि एक अरसा गुज़रने के बाद आपकी क़ब्रे मुबारक पर रौज़े की तामीर हुई। मैं कहता हूं कि अब से लगभग 43 साल पहले इब्ने सउद व अमीरे सउदी अरबिया ने आपके रौज़े मुबारक को जज़बाए वहाबीयत से मुतासिर होकर तोड़ डाला। शैख़ अल ऐराक़ीन मोहम्मद रज़ा का बयान है कि इब्ने सउद ने मक्का में 9 और मदीना में 19 मुक़द्दस मुक़ामात को मुनहादिम तोड़ कराया था कि जिनमें ख़ाना ए सैय्यदा और बैतुल हुज़्न भी थे। मुलाहेजा हो ।

( अनवारुल हुसैनिया जिल्द 1 पृष्ठ 54 प्रकाशित बम्बई 1346 हिजरी )

Leave a comment