मिश्कत ए हक़्क़ानिया जीवनी वारिस पाक-23

इश्क से सम्बन्धित वचन

अनुराग तथा इश्क के बारे में जो कथन वारिस पाक के हैं। इससे प्रत्यक्ष हो जाता है कि प्रेम व ईश्क में स्थिर पद होना हर व्यक्ति के बस की बात नहीं है जैसा कि आप व्यक्त करते हैं :

‘आशिकी एक मलामत है। मानव दीन-दुनियां से गुजर जाता है और वियोग में मर जाता है। उसी विरह में तो मजा है वरना फिर कुछ नहीं। माशूक का तरसाना, छुपना तथा सख्ती करना ही तो उसकी कृपा और दया है। इसके सिवा कुछ नहीं। अध्यात्म या ब्रह्म ज्ञान (मारफत) कमाने से नहीं मिलती सिर्फ वहबी अर्थात ईश्वर की देन है। वह खुदा अपनी मारफत (अपने तक पहुँच) जिसको चाहे प्रदान करे किसी का ठीका नहीं है।’

स्वयं सरकार वारिस पाक इसकी व्याख्या करते हैं। आशिक कौन है ? होने को हजारों इश्क का दम भरते हैं किन्तु वास्तव में आशिक कहलाने का जो भागी है। उसमें क्या विशेषताऐं होनी जरूरी हैं? आप इस सम्बन्ध में स्वयं कहते हैं जिसने जान को कुर्बान न किया वह आशिक नहीं। लैला के हजारों और यूसुफ के लाखों चाहने वाले थे पर यह मजनू और जुलेखा का ही भाग्य था। अतः जो जिसके भाग्य का होता है वही पाता है। एक अन्य अवसर पर आप ने कहा था कि ज्ञान और चीज़ है इश्क और चीज़। जहाँ इश्क का साम्राज्य होता है वहाँ ज्ञान और बुद्धि का प्रवेश नहीं होता है । इश्क में मनुष्य को क्या मिलता है और इसमें किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इस विषय पर हुजूर पाक संक्षिप्त शब्दों में ब्यान करते हैं ‘इश्क में त्याग ही त्याग हैं, तर्क दुनिया (संसार का त्याग है). तर्क उकबा (आखिरत का त्याग), तर्क मौला (ईश्वर का त्याग), त्याग ही त्याग है और अपना आप वियोग है।’

हुजूर पाक के एक कथन से यह समस्या भी साफ हो जाती है कि आशिक और माशूक में कोई भेद नहीं रहता है। वास्तव में अपने से वियोग है जिससे आशिक को काम पड़ता है। आपका कथन है ‘इश्क की मंजिल में अस्तित्व ही विशेषता हो जाती है।’ आप प्रारम्भिक इश्क के सम्बन्ध में कहते हैं ‘ख्याल में में माशूक की सूरत जमा लेना चाहिए जो सूरत जम गयी वही मृत्यु के बाद भी स्थिर रहती है और उसी के साथ उसका अन्त भी होता है।’ सरकार वारिस पाक का एक दूसरा कथन है ‘आशिक जिस ख्याल में मरता है वही ख्याल उसका स्वर्ग-नर्क और हस्र (प्रलय) के पश्चात उसके साथ है। आशिक, इश्क के खिंचाव की अधिकता में स्वयं वही हो जाता है। जिसके भीतर इश्क व मुहब्बत नहीं वह इसको नहीं समझ सकता और न इस पथ पर चल सकता है। ईश्वर के इश्क की विशेष दशाएं अथवा अवस्थाएं हैं। प्रत्येक व्यक्ति का कार्य नहीं है कि वह उसका भार वहन कर सके।’ तथापि इश्क की गति की सरकार वारिस पाक संक्षिप्त रूप से व्यक्त करते हैं।

इश्क और अनुराग की उल्टी चाल है। जिसको अपनाता, प्यार करता है उसी को जलाता है। जिसको प्यार नहीं करता उसकी बागडोर ढीली कर देता है। प्रेम ज्ञान सीखने से नहीं आता जो पुस्तकों से प्राप्त हो सके। यह एक ईश्वर प्रदत्त वस्तु है जिसको बाँटने वाले ईश्वर ने जिसे चाहा व्याकुल हृदय प्रदान कर दिया उसी का भाग है। यह भी कहा जुबानी पढ़ना लिखना और है, दिल से मुहब्बत करना और

है। जुबानी पढ़ने लिखने से कुछ नहीं होता प्रेम विचित्र वस्तु है। ईश्वर प्रेमियों की मर्यादा यह होती है कि वह किसी को अन्य नहीं समझते। उनको प्रत्येक वस्तु में ईश्वर का प्रकाश ही दिखाई देता है। आपका कहना है मजहबे इश्क में कुफ्र ही इस्लाम है (अधर्म ही धर्म है) इसी से मिलता जुलता हुजूर वारिस पाक का दूसरा कथन भी है ‘अनुराग में धर्म-अधर्म (कुफ्र इस्लाम) से कोई सम्बन्ध नहीं। इसमें शरीयत का कुछ दखल नहीं।’ सूफी संतो के कुछ शब्द वाह्य ज्ञानियों को भोंडा सा जान पड़ते हैं किन्तु ऐसी वास्तविकता नहीं है। उनकी भाषा शैली अलग होती है। वाह्यदर्शी लोग जाहिरी अर्थ लगाकर अपना आदेश लागू कर देते हैं और कहने वालों को काफिर और बेदीन, अधर्मी ठहरा देते हैं। यह अवस्था भी आशिकों के निकट इश्क के विपरीत नहीं माना जाता यही वह स्थान है जहां हरि इच्छा में आनन्दित रहने का पथ मिलता है और पूरा होता है। हुजूर वारिस पाक कहते हैं, जो कुर आशिक माशूक के लिए कहे वह उचित और ठीक है तथा जो सत्कार करे जैसी मर्यादा बनाए सो उचित है। जो माशूक आशिक के सम्बन्ध में कहे उसी को सहर्ष मानने का स्थान हैं आशिक को चारा नहीं।’

उक्त विषय से सम्बन्धित हुजूर पाक की दूसरी वाणी इस भांति है:

आशिक अपने माशूक की जो बड़ाई करे वह सब ठीक है, उसे पाप नहीं लगता न उस पर कोई धर पकड़ है। लैला रा बचस्मे मजनू वायददीद (लैला को मजनू की नजर से देखना चाहिए)। बस अन्य कोई वह नेत्र नहीं पा सकता। हज़रत मूसा अलै० ने उस चरवाहे को अपनी शरीयत के अनुसार रोका था सो ईश्वर को पसन्द नहीं हुआ। उस चरवाहे का धर्म विरोधी कार्य करना ही भाया क्योंकि चरवाहे की बात हृदय से निकली थी।’

निम्नलिखित वाणी हुजूर वारिस पाक की आशिकी की दशा के सम्बन्ध में है। ‘लाईलाहा (भगवान के सिवा कुछ नहीं है) मुख से कहना कुछ और है तथा जर्ब लगाना कुछ और चीज़ है। किसी वस्तु का ख्याल बिना देखे और आशिक होना असम्भव है और देख के आशिक होना सम्भव है।’ जब कोई किसी का आशिक होता है तो उसकी कोई साँस माशूक की याद से खाली नहीं जाती। आशिक की सांस बिना प्रयत्न जप तथा तपस्या है। आशिक बेखबर नहीं समझा जा सकता। आशिक की यही नमाज़ और बन्दगी है। यही रोज़ा व्रत है। आशिक इसी अवस्था में यार का सौन्दर्य देखता है। अत: इसी से कहा गया है कि अनदेखे किसी का ध्यान और रूप का स्मरण असम्भव है। देख के आशिक होना सम्भव है।

‘जिसने यहां नहीं देखा वह अन्धा है। प्रेम रोग इश्क में आशायें और इच्छायें नष्ट हो जाती हैं। कोई बात किसी स्वार्थ पर निर्भर नहीं होती आपने यह भी कहा है कि आशिक का दीन दुनियां दोनों खराब हो जाता है।’

हुजूर वारिस पाक के उक्त वचनों के अतिरिक्त कुछ अन्य कथनोपकथन हैं जिसको सरकार ने समयानुसार कहा है और जो प्रेम पथिकों के पथ प्रदर्शक हैं और ईश्वर के चाहने वालों के लिए इश्क के रहस्य खोलते हैं जो निम्न हैं: १. ‘इश्क ईश प्रदत्त है जो उपार्जन से अर्जित नहीं होता।

(इश्क ईश्वरीय देन है। प्रयत्न और श्रम से नहीं मिलता)।

२. इश्क में इन्तिजाम नहीं।

३. ‘आशिक का शिष्य बेईमान नहीं मरता’।

४. आशिक वह है जिसकी एक साँस भी याद मतलूब से खाली न जाए।

(जो प्रत्येक सांस से ईश्वर को याद करे ) ।

५. ‘मोहब्बत में अदब, बेअदबी का फर्क नहीं।”

(प्रेम में शिष्टता और अशिष्टता का कोई भेद नहीं हैं)।

६. ‘आशिक को खुदा माशूक की सूरत में मिलता है।’

७. ‘मोहब्बत वह चीज़ है जिसको कोई हानि नहीं पहुँचा सकता है ८. ‘मोहब्बत है तो हम हजार कोस पर तुम्हारे साथ हैं।’

९. ‘मोहब्बत में बेअदबी भी ऐन अदब है।’

१०. ‘फकीर कम मशायक ज्यादा होते हैं चूंकि इश्क को मंजिल सख्त दुश्वार

गुजार है इसलिए चाहने वाले इस रास्ते को कम पसन्द करते हैं।’ (प्रेम मार्ग कठिन और कड़ा है अतः कम ही लोग पसन्द करते हैं)। ११. मोहब्बत (प्रेम) ऐन ईमान है।

१२. जो हमसे मोहब्बत करे हमारा है। मंजिल इश्क में खिलाफत नहीं होती। १३. जिसको सब शैतान कहते हैं इस राह में दोस्त बन जाता है, दुश्मनी नहीं कर सकता।

१४. मोहब्बत में इन्तिज़ाम नहीं, जहाँ मोहब्बत नहीं है वहां इन्तिजाम है। १५. ‘आशिक के मुरीद का अंजाम खराब नहीं होता।” १६. ‘ आशिक के ख्याल पर दीन-दुनियां का इन्तिजाम है।” १७. ‘यदि आशिक को जुबान से कोई बात गलत निकल जाए तो उसको भी खुदा सच कर देता है।’आशिक का गोश्त दरिन्दों (हिंसक पशुओं) पर हराम है। उस पर न साँप का ज़हर असर कर सकता है और न शेर खा सकता है। १९. मुहब्बत करो क़सब से कुछ नहीं होता । २०. ‘मुहब्बत है तो सब कुछ है।

१८. मुहब्बत नहीं

तो कुछ नहीं।’ २१.

‘जो कुछ है लगाव है बाकी झगड़ा दिखलाने की चीज़ है। अगर लगाव नहीं तो खाक नहीं, दुनियादारी – दुकानदारी है ” ।

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