पानी की मशक

पानी की मशक

गजवए यरमूक में बहुत से सहाबी शहीद हुए थे। जिस वक़्त शहीद हजरात नीमजा धूप में खून में पड़े लोट रहे थे। हज़रत इब्ने हुजैफा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु पानी की मशक कांधे पर उठाकर जख्मियों को पानी पिलाने के लिये तशरीफ़ ले चले। एक तरफ से आवाज़ आयी अल-अतश, अल-अतश (प्यास) प्यास!) हज़रत इब्ने हुज़ैफा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने यह आवाज सुनी तो दौड़कर वहीं पहुंचे देखा कि एक जख्मी मुसलमान प्यास के मारे नीम (आधी) जान हो रहा है चाहा कि उनके हलक़ में पानी डालें फौरन मुंह अपना जख्मी ने बंद कर लिया और यह कहाः ऐ अल्लाह के बंदे! मुझसे भी ज्यादा एक ज़ख़्मी मुसलमान प्यासा आगे पड़ा है। पहले उसे पानी पिलाओ तब मुझे पानी पिलाओ । इब्ने हुज़ैफा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु दूसरे जख्मी के पास पहुंचे। चाहा कि उन्हें पानी पिलायें उस ख़ुदा के बंदे ने भी पानी पीने से इंकार कर दिया। यह फरमाया कि मुझसे ज़्यादा एक और मुसलमान भाई प्यासा अल-अतश, अल-अतश पुकार रहा है पहले उसे पानी पिलाओ हज़रत हुज़ैफा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु उस तीसरे की ख़िदमत में पहुंचे मगर वहां तक पहुंचने न पाए थे कि वह प्यास से विसाल फ़रमा गये दौड़कर वापस आए तो देखा कि दूसरे प्यासे भी अल्लाह के घर तशरीफ ले गये। यहां से भागे और अव्वल ज़ख़्मी के पास आए तो इतने अरसे में वह प्यासे भी हौज़े कौसर पर पहुंच चुके थे।

(रूहुल – ब्यान जिल्द ४, सफा २८६) सबक : सहाबए किराम रज़ियल्लाहु तआला अन्हुम ने आख़िर दम तक अपने मुसलमान भाईयों की हमदर्दी तर्क न फ़रमाई और हमें इस बात का दर्स दिया कि मुसलमान अपने मुसलमान भाई का हमेशा ख़्याल रखें।

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