ACCOUNT OF THE DEPUTATIONS OF THE ARABS TO THE APOSTLE OF ALLAH, MAY ALLAH BLESS HIM-The Deputation of Ghamid

The Deputation of Ghamid
Volume 1, Parts II.74.78
He (Ibn Sa’d) said: Muhammad Ibn ‘Umar informed us, he said: More
than one scholar related to me; they said:
A deputation of the Ghamid came before the Apostle of Allah, may Allah
bless him, in the month of Ramadan. They were ten persons and they
stayed at Bagial-Gharqad. There they put on fine clothes and went to the Apostle of Allah, may Allah bless him. They greeted him and admitted of their (conversion to) Islam. The Apostle of Allah, may Allah bless him, wrote an epistle for them containing the regulations (Sharái)
of Islam. They came to Ubayyi Ibn Ka’b who taught them the Qur’an.
The Apostle of Allah, may Allah bless him, rewarded them as he used to
reward the members of the deputations.

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मिश्कत ए हक़्क़ानिया जीवनी वारिस पाक- 4

बचपन के कुछ हालात

सरकार वारिस पाक के बचपन का समय बहुत ही शान शौकत से गुजरा है। सभी लोग पुरुष, महिला, युवा, वृद्धा आपका सम्मान करते थे। जो दशा बचपन में आपकी देखी गयी है वह निम्न है-अधिकतर आपकी आँखें लाल रहा करती थीं तथा आँसू से भरी होती थी। जिन्हें लोग देखकर आँख आने का गुमान करते थे किन्तु आँख आने का कोई प्रभाव आपकी पवित्र आँखों में नहीं होता था। दसग्यारह वर्ष की अवस्था तक आपके मुख से लार टपका करती थी जिससे आपका दामन भीगा रहता था। आप इश्क और आशिकी की कथा-कहानी सुनने में बड़ी रूचि रखते थे। बहुधा देखा गया है कि आप दो चार दिन तक घर से लापता हो जाते थे, यहाँ तक कि कोठरी में बन्द कर देने पर भी आप कोठरी से गायब थे। तलाश करने पर आप एक बाग़ में मिले। आप गजलें सुन्दर स्वर में पढ़ लेते थे और पढ़ते-पढ़ते बेहोश हो जाते थे।

मुंशी नादिर हुसेन साहब जो वारसी दरबार के पुराने होने का सम्मान रखते हैं, कहते है कि मौलवी अजीजुद्दीने साहब जो देवा शरीफ के तालुकदार थे ब्यान करते थे कि एक बार हम और मिट्ठन मियां (हुजूर का बचपन का नाम) बाग़ की सैर कर रहे थे। हमने कहा मिट्ठन मियां कोई गजल पढ़िए आप गजल पढ़ते ही चीख़ मारकर गिर पड़े। मुँह से झाग आने लगा। हम ऐसा देख कर बहुत भयभीत हुए और मारे डर के घर भागे। जब दूसरे दिन प्रातः भेट हुई तो हमारी जान में जान आयी।

इसी बाल्यावस्था की बात है:- देवा शरीफ़ में शाह अब्दुल मुनईम महोदय के मजार पर एक फ़कीर बैठे आँखे बन्द किए ध्यान में थे। जब फ़कीर ने अपना ध्यान तोड़ा तो आपने कहा कि शाह साहब क्या कर रहे थे? फ़कीर ने कहा कि मैं अपने गुरूं का ध्यान कर रहा था। आपने कहा जब तुमने अपनी आंखे बन्द कर ली थी तो फिर क्या देखते ? क्या तुमने नहीं सुना है-“मन काना फी हाजेही आमा फ होवा फिल आखिरते आमा (जो यहाँ अन्धा है वह आखिरत में भी अन्धा रहेगा)। यदि खोज सत्य है और शौक परिपूर्ण है तो कण-कण में परमात्मा का दर्शन हो सकता है। बचपन में आपकों तैराकी का बड़ा शौक था और बड़ी उम्र तक आप तालाब में डुबकी लागाकर बहुत देर तक तैरते रहते थे। बचपन में ही आप की जप-तप की बातें लोगों की जबान पर आ गयी थीं। आप अब्दुल मुनईम शाह के मजार पर जाते और सारी रात ख़ुदा के स्मरण और याद में लगे रहते थे। यदि किसी के लिए कुछ कह देते तो वही होता था। इस भांति सभी लोग आपके यश से प्रभावित थे और सभी आपकी इज्जत करते थे। आप खेल-कूद से घृणा करते थे। आपका खेल था रूपयेपैसे घर से लेकर बच्चों में बांटना और कभी-कभी लोकई हलुवाई से एक रुपये का एक बताशा बड़ा सा बनवाकर तोड़-तोड़कर बच्चों को बांटना। आप स्वयं कहा करते थे कि हमारी दादी के पास अशरफियां बहुत थीं, हम उनमें से निकाल लाते थे और एक-एक अशर्फी देखकर लोकई से एक बड़ा सा बताशा बनवाकर बच्चों को बांट देते थे। देखने में यह कथा एक साधारण सी बात है किन्तु यह बहुत सी असाधारण खूबियों से भरी है। प्रथम यह कि हुजूर एक दीन हलुवाई की पर्दे की ओट से पोषण करते थे। बच्चों पर नि:स्वार्थ दया और सहानुभूति का अद्वितीय मिसाल है। बालावस्था से ही आपको धन, सम्पत्ति, माल और असबाब से कोई लगाव नहीं, बल्कि घृणा थी। आप भोले पन से कहते थे कि न्याय की शर्त यही है कि सोने-चांदी के बराबर मिठाई खरीदी जाय। विशेष अवस्था में कहते थे माल और चांदी-सोना फकीरों को नहीं चाहिए। इसकी सत्यता इस प्रकार देखी गई कि दादी साहिबा की मृत्यु के पश्चात् चालिस दिन के भीतर ही आपने अपना सारा धन और सम्पत्ति जो कुछ भी थी, सब दीन-दुखियों को दान कर दिया।

हज़रत उमरू बिन जमूह रज़ियल्लाहुतआला अन्हु

हज़रत उमरू बिन जमूह रज़ियल्लाहुतआला अन्हु

हज़रत उमरू बिन जमूह रज़ियल्लाहु तआला अन्हु पांव से लंगड़े थे। उनके चार बेटे थे। अक्सर हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ख़िदमत में हाजिर होते और लड़ाईयों में भी शिरकत करते थे। गुज्वए उहुद में हज़रत उमरू बिन जमूह रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को भी शौक पैदा हो गया कि मैं भी चलूं। लोगों ने कहा कि तुम मजबूर हो। लंगड़ेपन की वजह से चलना भी दुश्वार है। उन्होंने फरमाया कैसी बुरी बात है कि मेरे बेटे तो जन्नत में जायें और मैं रह जाऊं। बीवी ने भी उभारने के लिये ताने के तौर पर कहा कि मैं तुमको देख रही हूं कि तुम लड़ाई से भागकर आये हो । हज़रत उमरू बिन जमूह रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने यह सुनकर हथियार लिये और काबे

की तरफ मुंह करके दुआ की”ऐ अल्लाह! मुझे अपने अहल की तरफ न लौटाइयो।” इसके बाद हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ख़िदमत में हाज़िर हुए और अपनी ख़्वाहिश और लोगों के मना करने का इज़हार किया। कहा मैं उम्मीद करता हूं कि मैं अपने लंगड़े पैर से जन्नत में चलूं फिरूं । हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि तुम माजूर हो तो न जाने में क्या हर्ज़ है? उन्होंने फिर ख़्वाहिश की तो आपने इजाज़त दे दी। अबू तलहा कहते हैं कि मैंने हज़रत उमरू को लड़ाई में देखा कि अकड़ते हुए जाते थे और कहते थे कि ख़ुदा की कसम! मैं जन्नत का मुशताक़ हूं। उनका एक बेटा भी इनके पीछे दौड़ा हुआ गया। दोनों लड़ते रहे। हत्ता कि दोनों शहीद हो गये। इनकी बीवी अपने खाविन्द और अपने बेटे की लाश को ऊंट पर लादकर दफ़न के लिये मदीना लाने लगीं तो वह ऊंट बैठ गया। बड़ी दिक्कत से उसको मारकर उठाया और मदीना लाने की कोशिश की मगर वह उहुद की तरफ ही मुंह करता था। बीवी ने हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से ज़िक्र किया तो आपने फ़रमाया ऊंट को यही हुक्म है। क्या उमरू चलते हुए कुछ कहकर गये थे। उन्होंने अर्ज़ किया कि किब्ले की तरफ मुंह करके यह दुआ की थी या अल्लाह मुझे अपने अहल की तरफ़ न लौटाना। आपने फ्रमाया कि इसी वजह से ऊंट तरफू नहीं जाता। (उस कुर्रतुल-उयून)

Hazrat Imam Taqi AlaihisSalam part 4


To Inform about Death

When Mamun-ul-Rashid died, Imam said, “I will die after thirty months from today.” And, exactly after thirty months of Mamun-ul-Rashid’s death, Imam also passed away.

To Demand Cloth for Shroud

A person has described, “When I was present in the service of Hazrat Jawad and told him, ‘that particular person has conveyed you greetings. He wishes to get cloth for his shroud.’ When he heard this, he said, ‘He is hassle-free from all this matter.’ When I heard this, I came out but, I could not understand his instructions. Afterwards, I came to know that he had already died before thirteen days.”

Not to follow the Instructions and to invite Destruction

One narrator described, “We decided to go with a group of friends. Before the journey, we went to Hazrat Jawad for his blessings. He said, ‘Do not go out till tomorrow.’ When we came out, my companion said, ‘whatever it is, I am going, because my friend has already left.’ I was surprised to hear it and went my way. There was a horrible flood in the village where they had halted. My friend drowned and died. “

Hazrat Sayyedna Zaid Shaheed Bin Imaam Zainul Aabideen Alahis Salam Aur Afzaliyat e Mola Ali Alahis Salam

*Haleef Al Quran Hazrat Sayyedna Zaid Shaheed Bin Imaam Zainul Aabideen Alahis Salam Aur Afzaliyat e Mola Ali Alahis Salam*

*Aapke Nazdeek Baad e Nabi e Akram ﷺ Hazrat Sayyedna Mola Ali Alahis Salam Sabse Afzal Hain* 👇🏻

Hazrat Imaam Abdul Kareem Shahrastani Rehmatullah Alaih Mutawafi 548 Hijri Apni Kitab Al Milal Wan Nihal Me Likhte Hain :- Inka Ya’ani Hazrat Sayyed Imaam Zaid Bin Ali (Zainul Aabideen) Bin Hussain Bin Ali Ibne Abi Talib Alahimus Salam Ka Mazhab Ye Tha Ke Afzal Ke Hote Huwe Mafzool Ki Imamat Durust Hain, So Unhone Kaha *Hazrat Sayyedna Ali Ibne Abu Talib Alahis Salam Sab Sahaba Se Afzal The* Magar Ye Ke Khilafat Hazrat Sayyedna Abu Baqr Siddique Razi Allahu Tala Anhu Ko Sounpi Gayi Wo Kisi Mas’lehat Ke Tehet Thi Jisko Unhone Madd’Nazar Rakha Aur Kisi Qaida e Deenia Ke Mutabiq Thi Jiski Unhone Pabandi Ki..

📚 *Reference* 📚
Al Milal Wan Nihal, Jild 1, Safa 155, Hazrat Imaam Abdul Kareem Shahrastani Rehmatullah Alaih.

*Yaha Hazrat Sayyedna Imaam Zaid Shaheed Bin Ali Bin Hussain Bin Ali Ibne Abu Talib Alahis Salam Ka Aaqida Waaze Ho Gaya Ke Aap Baad Az Ambiya Alahimus Salam Mola e Kaynat Hazrat Sayyedna Mola Ali Alahis Salam Ko Sab Sahaba Se Afzal Mante The.*