हदीस ::ह़क़ से दूर हर शख़्स जहन्नम में

ह़दीस शरीफ़:- अल्लाह के रसूल ﷺ ने फ़रमाया’ ह़क़ से दूर हर शख़्स जहन्नम में गिरने वाला है। (📕 कंज़ुल उम्माल, हदीस 1025)

एक सरफ़रोश मुजाहिद

एक सरफ़रोश मुजाहिद

मुजाहिदीने इस्लाम हज़रत ख़ालिद और अबू उबैदा बिन जर्राह रज़ियल्लाहु तआला अन्हुमा की क्यादत में जीत पर जीत हासिल होती रही हैं। साम्राजी ताक़तों की कमर टूट चुकी थी। वह लोग अपने मक्र व फ्रेब से मुसलमानों का मुकाबला कर रहे थे। इन्हीं फुतूहात के सिलसिले में रोमियों का एक गिरोह कुछ मुसलमान औरतों को गिरफ्तार करके ले गया। इन गिरफ्तार होने वाली औरतों में जर्रार बिन अज़वर की बहन खौला बिन्त अजवर भी थीं। जब आपके भाई को मालूम हुआ कि रोमी मुसलमान औरतों को गिरफ्तार करके ले गये हैं तो आप हज़रत खालिद की खिदमत में हाज़िर हुए। हज़रत खालिद ने फरमाया घबराने की कोई बात नहीं, शिकार को हाथ से न जाने दो। फिर आपने अबू उबैदा बिन जर्राह को दो हज़ार के लशकर के साथ दुशमन के मुकाबले पर रवाना किया। खुद हज़रत ज़र्रार और चंद मुजाहिदीन के हमराह कैदी औरतों की रिहाई के लिए रवाना हुए अभी कुछ ही फासला तय करने पाये थे कि मकाम इस्तरयाक के क्रीब ग़र्द गुबार का तूफान उठता नज़र आया। हज़रत ख़ालिद ने फ्रमाया कि ख़ुदा खैर करे । हुबैरह जो आपके अमीर थे अर्ज़ करने लगे कि रोमियों का बचा खुचा लशकर मालूम होता है। आपने हुक्म दिया कि तमाम मुजाहिदीन आने वाली मुसीबत के लिये तैयार रहें।

इधर उन औरतों का हाल सुनिये जिन्हें पितरस ने कैद कर लिया था। पितरस जो बूलिस का भाई था । (बूलिस जो मुसलमानों की कैद में था) मुसलमान औरतों और लूट खसोट के माल को लेकर इस्तरयाक के क्रीब डेरा डाल कर जब उसने इत्मीनान का सांस लिया तो उसने हुक्म दिया कि औरतें हाजिर की जायें। जब औरतें हाज़िर की गयीं तो उसने हर औरत को देखा लेकिन उसकी नज़र खौला पर जा रुकी और उसने एलान कर दिया कि खौला का वाहिद मालिक मैं हूं। इसमें कोई इख़्तिलाफ़ न करे। इसी तरह हर शख़्स ने एक एक औरत को मुन्तख़ब कर लिया ।

मुसलमानों की मांओं, बहनों, बेटियों को यह हरकत नागवार हुई। गुस्से में वह कांप रही थी लेकिन मजबूरी थी। सब औरतों को खेमे में फिर वापस पहुंचा दिया गया। हज़रत ख़ौला ने सब औरतों को इकट्ठा किया और एक पुरज़ोर तकरीर की कि ऐ कौमे हिमयर की इज्ज़त और ऐ कौमे अमालिका की नेक औरतो! क्या तुम चाहती हो कि रोम के वहशी दरिन्दे तुमको अपनी हवस का निशाना बना लें? क्या तुम्हें यह पसंद है कि अपनी बकिया उम्र गैरों की ख़िदमत गुज़ारी में सर्फ करके फातिहीने अरब पर कलंक का टीका लगा दो? कहां गयी तुम्हारी वह हिम्मत व शुजाअत, जिसका चर्चा हर तरफ था। मेरे नज़दीक अहले रोम के हाथों हमेशा जिल्लत उठाने से यह कहीं
है कि हम सबकी सब खुदा की राह में अपनी हक़ीर जानों को कुरबान दें और अपनी कौम को हमेशा की बदनामी से महफूज़ कर लें।

इस पर अफीरह ने तमाम औरतों की तर्जमानी करते हुए कहा हमारी है कि हमारे खून का आख़िरी कतरा तक खुदा की राह में बहे लेकिन बिला तदबीर के कुछ करना अपने आपको हलाकत में डालना है।

खौला ने कहा कि बेशक हम निहत्थे हैं लेकिन अल्लाह की मदद हमारे शामिले हाल है। खेमे की चौबें उखेड़ कर एक दम उन ना-मदर्दों पर इला कर दो। अल्लाह या तो हमारी मदद फ्रमाकर हमको फतह अता कनायेगा या हम इज्जत की मौत से अल्लाह की राह में शहीद हो जायेंगे।

यह सुनकर तमाम औरतों ने खेमे की चौबें उखेड़ कर यक बारगी हमला कर दिया। वह कहती जाती थीं कि देखो सब मिलकर रहना। जो भेड़ झुंड से अलग होती है वह मारी जाती है। हज़रत खौला ने एक रोमी के सर पर इस ज़ोर से चोब मारी कि वह बेहोश होकर गिरा और कुछ देर बाद वासिले जहन्नम हो गया। जब रोमियों ने यह आलम देखा तो वह बदहवास हो गये। पेतरस ने हुक्म दिया कि इन सब औरतों को घेरा डालकर पकड़ लो और देखो खौला के साथ अच्छा बर्ताव करना ।

इतिहासकारों ने लिखा है कि जब भी कोई सवार आगे बढ़ता यह औरतें मुखी शेरनी की तरह उन पर टूट पड़ती और उसकी तिक्का बोटी कर देंती । बैला फ़रमाती थीं ऐ रोमियो ! आज तुम्हारे भेजे हमारी चौबियों से कुचले जायेंगे। आज तुम्हारी बीवियां रांड और तुम्हारे बच्चे यतीम हो जायेंगे। तुम्हारी स्त्र आज के दिन ख़त्म हो चुकी है। यह सुनते ही पितरस आग बबूला हो गया और उसने अपने लशकर को पुकारा कि ख़राबी हो तुम्हारी तुमसे चंद औरतें नहीं पकड़ी जातीं? यह सुनते ही बहुत से सिपाहियों ने बड़ी सख़्ती से हमला किया जिसका उन्होंने डटकर मुकाबला किया।

ख़ौला फ्रमाती थीं कि ऐ मुजाहिदीने इस्लाम की मांओ, बेटियो! अल्लाह ने तुमको इस काबिल समझा है कि वह तुम्हारा इम्तिहान ले तो अब तुम इम्तिहान में घबराना मत।

यह सख़्त हमला हो ही रहा था कि हज़रत ख़ालिद अपने हमराहियों के साथ उन कैदी औरतों की जुस्तजू में इस्तरयाक के करीब आ पहुंचे और | गर्द व गुबार तलवारों की चमक और झंकार देखकर फरमाया: कि हमें बहुत जल्द वहां पहुंचना चाहिये। चुनांचे उन लोगों ने अपने घोड़े सरपट दौड़ाये। यह वाक़िया देखकर सभी हैरान रह गये।

जब पितरस ने देखा कि मुजाहिदीने इस्लाम उसका पीछा करते हुए यहां आ पहुंचे तो उसने भागकर जान बचाना चाही। मुसलमानों पर एहसान रखना चाहा। बोला कि मुसलमानो! लो जाओ मैं तुमको तुम्हारी मांये, बहने बेटियां वापस करता हूं। हज़रत ज़र्रार ने पीछा किया और एक मामूली ताक़त के बाद जा लिया। एक भरपूर हमला किया जिसकी वह ताब न ला सका और जहन्नम सिधार गया। तमाम लशकर गिरफ्तार कर लिया गया। मुअर्रेख़ीन लिखते हैं कि इस जंग में औरतों ने बहुत से जख्मी किये और कम-व-बेश तीस काफिरों को मौत के घाट उतारा।

Saiyedna Imam Hazrat Ali Raza AlahisSalam part 5

To Answer on the basis of the Holy Quran

Hazrat Imam Ali Raza normally used to answers the questions from the Holy Quran. His understanding of the Holy Quran and his foresight were very deep. Once Mamun came to visit him when Hazrat Imam Ali Raza who had put on a very precious dress. He asked with surprise, “O’ Ibn-eRasulallah, is this dress proper for you?” He said, “Hazrat Yusuf and Suleimant were the prophets of Allah and used to put on the shirt of a cloth woven with golden threads. They were sitting on the throne of power and ruling the community. In this dress, they maintained the peace and brotherhood among the Muslims. Hence, the mission of a real Imam’s life should be to provide justice, speak truth, issue orders according to justice and whenever gives promise, keeps it in the real sense of the term. This is the basic truth. And, Allah has not forbidden good food and dress.” After that, he recited this verse of Surah e Aaraaf-32,

“You tell us, who have rejected Allah’s that gift which he has permitted and bestowed upon his people?”

The second episode narrates that once Mamun was sick. He took an oath that on recovery; he would charity a lot of money. When he was recovered, he consulted the experts about the quantity of amount to be donated. They all advised according to their understanding. But Mamun was not satisfied with the answers. Finally, he asked Hazrat Imam Ali Raza. He was advised to distribute 83 Dinnars. Mamun asked, “How did you decide on this amount?” He said, “Allah states, No doubt, He has helped you at many places. (Surah-e-Tauba, verse 25) Total number of Ghazwa and the number of fights were 83and this count is termed as a lot of amounts.” Mamun was fully satisfied with this answer and then, behaved accordingly. (Masa’alik-ul-Sa’alikin)

Acceptance of Islam by Hazrat Ma’aruf Karkhi’s

Through the Imam’s efforts, Hazrat Ma’aruf Karkhi accepted Islam, it had a deep impact over other people, and thousands of people followed him. Due to Hazrat Imam Ali Raza’s efforts only, Hazrat Ma’aruf Karkhi was enthroned as an eminent Imam of Qaderiya and Rizvia traditions of Sufism.