Hazrat Khwaja Dana Rehmatullah-Alayh

411264_373613306012967_105324428_o

तालीम व तरबियत के लिए दूसरी बशारत

            हज़रत ख़्वाजा हसन अता रहमतुल्लाहि तआला अलैह के विसाल फरमाने के बाद हज़रत ख़्वाजा दाना साहब के वालिदे गिरामी हज़रत हज़रत ख़्वाजा सैयद बादशाह पर्दहपोश ने अपने दुसरे हर-दिल-अज़ीज़ शागिर्द हज़रत ख़्वाजा सैयद मुहम्मद को ख्वाब में ये हुक्म दिया के वो मेरे साहब ज़ादे ख़्वाजा दाना को मज़ीद तालीम व तरबियत दें कि अभी उन में कुछ कमी है, चुनान्चे पीर व मुर्शिद का हुक्म मिलते ही हज़रतख़्वाजा सैयद मुहम्मद हज़रत ख़्वाजा दाना की तलाश में निकल पड़े. तलाश करते करते ख़ुरासान के जंगल में पहोंचे तो क्या देखते हैं कि हज़रत ख़्वाजा दाना हिरनों के टोले में जलवा अफरोज़ हैं. हरनों ने हज़रत ख़्वाजा सैयद मुहम्मद को देखा तो भागने लगे. हज़रत ख़्वाजा दाना भी चल पड़े, ये सिलसिला तीन दिन तक चलता रहा ओर हज़रत ख़्वाजा सैयद मुहम्मद की हज़रत ख़्वाजा दाना साहब से रू-ब-रू मुलाक़ात न हो सकी. आख़िर एक दिन हज़रत ख़्वाजा सैयद मुहम्मद ने इन्तेहाई आजिज़ी ओर इन्केसारी ओर मिन्नत व समाजत के बाद उनका रास्ता रोक कर फरमाया! साहब ज़ादे! में आपके वालिदे गिरामी का मुरीद हूँ, उनहोंने ख्वाब में तशरीफ़ लाकर मुझे आप की तालीम व तरबियत के लिए हुक्म दिया है ओर आप हैं कि मुझ से दूर-दूर भाग रहे हैं. चुनान्चे इतना सुनना था कि हज़रत ख़्वाजा दाना फ़ौरन रुक गए ओर उसी जगह झोंपड़ी में दोनों रहने लगे. हज़रतख़्वाजा सैयद मुहम्मद ने बड़ी मेहनत व जांफिशानी के साथ हज़रत को मुकम्मल छे(६) साल तक शरीअत, तरीक़त, हकीकत, ओर मारिफत, की मुकम्मल तालीम से आरास्ता फरमाने के बाद हज़रतख़्वाजा दाना की इजाज़त से अपने वतन लौट आये.
Image result for Khwaja Dana Surat

पीर व मुर्शिद का विसाल और खिलाफत व इजाज़त

           हज़रत ख़्वाजा हसन अता रहमतुल्लाहि तआला अलैह अपने पीर व मुर्शिद के शेह्ज़ादे हज़रत ख़्वाजा दाना साहब को १२ साल की उम्र तक मुकम्मल तअलीम व तरबियत ओर तरीक-ए ख़्वाजगाने नक्शबंद ओर इल्मे शरीअत व तरीक़त के रुमूज़ से वाकिफ फरमा दिया ओर जब वफात का वक़्त क़रीब आ गया तो जंगल में से एक हाथ लम्बी लकड़ी लाये जो असा का काम अंजाम दे सके.
ओर ख़िरका-ए मुबारकह दोनों हज़रत ख़्वाजा दाना आलैहिर्रेहमा को अता फरमाया ओर ख़िलाफत व इजाज़त मरहमत फरमाने के बअद इन अलफ़ाज़ के साथ नसीहत फरमाई कि:
        अय मेरे फ़रज़न्दे अर्जुमंद! अय मेरे प्यारे अज़ीज़ कामिल बुज़ुर्ग के सच्चे ओर कामिल ख़लीफा में जो नसीहत कर रहा हूँ उसे ग़ौर से सुनना ओर इसको याद रखना.ये दुनिया मक्र व फरेब ओर फितना व फसाद कि जगह है, यह एक मुसाफिर ख़ाना है, यहाँ जो भी आता है उसे एक-न-एक दिन जाना है,न कोई रहा है न रहेगा, ये बड़ी बेवफा है, इसने किसी के साथ वफ़ा नहीं की. अय मेरे दाना बेटे! मौत का मज़ा हर ज़ीरूह को चखना है,मौत से किसी को भी मफर नहीं है,मौत का तल्ख़ पानी हर एक को पीना है, इससे बचकर कोई भी कहीं भी जा नहीं सकता है, इसलिए तुम को चाहिए कि जब मौत का वक़्त आ जाये तो अपने को परेशानी में मुब्तला न करना ओर न ही अपने दिल को हैरान ओर परेशान करना इतना फरमाकर हज़रत ख़्वाजा हसन अता रहमतुल्लाहि तआला अलैह की हालत अचानक खराब हो गयी. आपने फ़ौरन दो रकअत नमाज़ अदा की ओर सजदे की हालत में अपने ख़ालिक़े हक़ीक़ी से जा मिले. इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलयहि राजिऊन .
        हज़रत हज़रत ख़्वाजा दाना रहमतुल्लाहि तआला अलैह के पीर व मुर्शिद का इन्तेक़ाल आपकी ज़िन्दगी का पहला वाक़िआ था. वालिदे गिरामी ओर वालिदा-ए मोहतरमह का साया-ए शफ़क़त तो शीर-ख़्वार्गी के दिनों ही में उठ चूका था. आप अकेले ओर जंगल का माहोल इसलिए सख्त परेशान हो गए कि क्या करें.ओर क्या न करें, रंजीदह खातिर बैठे सोच रहे थे कि अब पीरो मुर्शिद की तजहीज़ व तकफीन ओर नमाज़े जनाज़ा कैसे होगी. कि अचानक क्या देखते हैं कि क़िबले की जानिब से एक नूरानी क़ाफिला चला आ रहा है. आप देख कर बहुत खुश हुए ओर अपने परवरदिगारे आलम का शुक्र अदा कीया ओर समझ गए कि ये नूरानी जमाअत फरिश्तों की है, इस मुक़द्दस जमाअत ने हज़रतख़्वाजा सैयद हसन अता अलैहिर्रेहमा की लाश मुबारका को तालाब के साफ़ व शफ्फाफ पानी से ग़ुस्ल दिया कफ़न पहेनाया ओर नमाज़े जनाज़ा अदा की ओर हज़रत ख़्वाजा हसन अता को दफ्न करने के बअद हज़रत ख़्वाजा दाना को तसल्ली व तशफ्फी देकर ये मुक़द्दस जमाअत नज़रों से ग़ाइब हो गई. एक रिवायत ये है कि फ़रिश्ते हज़रत की लाश को अपने साथ लेकर चले गए.
         मोहतरम क़ारिईन! आप ग़ौर फरमाएं! जिनका पीर इतना कामिल ओर मर्तबे वाला हो कि उसे फ़रिश्ते ग़ुस्ल व कफ़न दें ओर नमाज़े जनाज़ा अदा करें तो ऐसे पीर रोशन ज़मीर बुज़ुर्ग के मुरीद का आलम क्या होगा?
Image may contain: outdoor

शहेंशाहे-सुरत का आस्ताना सुरत शहर के नक्शे में

सुरत शहर के नक्शे में हज़रत ख़्वाजा दाना नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह का आस्ताना-ए मुबारक क़दीम(प्राचीन) सुरत के वस्त(मध्य) में है. यानी सरकार ख़्वाजा दाना नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह इस शहर के शहेंशाह व निगेहबान हैं
Image may contain: night and indoor

परवरिश के लिए बशारत ओर बचपन की पेहली करामत

      हज़रत ख़्वाजा दाना साहब के वालिदे गिरामी हज़रत ख़्वाजा सैयद पर्दापोश बादशाह अलयहिर्रेह्मा ने अपने अज़ीज़ शागिर्द ओर मुरीदे ख़ास हज़रत ख़्वाजा हसन अता को आलमे रूया में बशारत दी के अय मेरे मुरीदे सादिक़! मेरे शीर ख़्वार बच्चे ख़्वाजा सैयद जमालुद्दीन दाना की परवरिश ओर तालीम व तरबियत की तरफ ख़ास ध्यान दें ओर कभी भी उससे ग़ाफिल न हों.इसी क़िस्म की बशारत मशहूर नक्शबंदी बुज़ुर्ग हज़रत ख़्वाजा उबैदुल्लाह एहरार रहमतुल्लाह अलैह ने भी आलमे रूया में आप को दी.हज़रत ख़्वाजा हसन अता ने अपने पीर-व-मुर्शिद की बारगाह में अर्ज़ कीया सरकार! बच्चे की अम्मी-जान कहाँ हैं? हज़रत ख़्वाजा बादशाह पर्दापोश ने जवाबन फरमाया हसन अता! ज़िन्दगी का कोई भरोसा नहीं है मेरी बीवी मेरे पास आना चाहती है जो फानी दुनिया से आलमे बक़ा की तरफ जाना चाहे उसे कोन रोक सकता है? इतना सुनते ही हज़रत ख़्वाजा अता हसन के होश उड़ गए बड़ी ही परेशानी के आलम में आप ने अर्ज़ कीया हुज़ूर शीरख़्वार बच्चा फिर कहाँ है आप जल्दी बताईये ताकि में अभी इसी वक़्त उनके पास हाज़िर होकर उनकी  ख़िदमत  का  शरफ  हासिल करूँ! हज़रत  ख़्वाजा बादशाह ने अपने मुरीदे सादिक़ को पूरा-पूरा पता समझा दिया ओर ताकीद फरमाई के पेहली फुर्सत में जल्द-अज़-जल्द उनके पास हाज़िर हो जाऊं. अपने पीरो मुर्शिद के बताए हुए पते की जानिब रवाना हो गए ओर कईं दिन की लम्बी मसाफ़त तय करने के बाद बताई हुई निशानी के मुताबिक़ एक झोंपड़ी नज़र आई ज़रा करीब पहुँच कर झोंपड़ी के दरवाज़े के पास खड़े होकर अपने पीरो मुर्शिद की बीवी से इजाज़त तलब करने लगे. मोहतरम ख़ातून! में आप के शोहर नामदार का मुरीद हसन अता हूँ मुझे अन्दर आने की इजाज़त अता फरमाएं. अन्दर से कोई जवाब नहीं मिला. आपने फिर कहा ख़ातून! मोहतरम! मेने आपसे कुच्छ अर्ज़ कीया है की आप ने मेरी बात नहीं सुनी? अन्दर से कोई जवाब नहीं मिला तो आप की तशवीश बढ़ गयी ओर जिस बात का डर उनके दिल में पैदा हुआ था वह पूरी होती हुई नज़र आ रही थी लेकिन फिर भी आप ने एक बार ओर इजाज़त तलब फरमाई ओर अर्ज़ कीया! मोहतरम ख़ातून! में अन्दर आना चाहता हूँ अगर आपने फिर कोई जवाब न दिया तो में अन्दर दाखिल हो जाऊँगा.इसबार भी जवाब न मिलने की सूरत में आप अन्दर दाखिल हो गए तो क्या देखा कि पीरो मुर्शिद की बीवी दाइए-अजल को लब्बैक केह चुकी है. इन्ना लिल्लाहि व-इन्ना इलयही राजिऊन! हज़रत ख़्वाजा हसन अता ने फ़ौरन बच्चे को अपनी गोद में लिया ओर जंगल की जानिब रवाना हो गए.थोड़ी देर के बाद चन्द ख्वातीन को अपने साथ लेआये ओर मर्हूमा के ग़ुस्ल वगैरह का इन्तेज़ाम करवा दिया ओर तजहीज़ो तकफीन(कफ़न-दफ़न) को अन्जाम देकर शीरख़्वार बच्चे की परवरिश में लग गए.
       हज़रत ख़्वाजा अता हसन अपने पीरो मुर्शिद के लख्ते जिगर हज़रत ख्वाजा दाना अलयहिर्रेह्मा को लेकर ख्वारिज़म से बाहर मा-वाराउन-नेहर के जंगल में एक तालाब के किनारे मुक़ीम होगए. जंगल में शीरख़्वार बच्चे के लिए दूध का कोई माक़ूल इन्तिज़ाम न था ओर आपने दूध पिलाने के लिया दाया की तलाश में पूरा दिन गुज़ार दिया जब बिलकुल मायूस हो गए तो मजबूरन अल्लाह तबारक व तआला की बारगाहे आलियह में अपनी पेशानी को झुका कर दुआ की कि:
      “अय परवरदिगारे आलम तू मुसब्बबुल असबाब है तो ही राज़िक़ है इस मासूम बच्चे  कि परवरिश ओर निगेह्दाश्त मेरे ज़िम्मा है ओर तू जानता है कि इस बच्चे को दूध कि ज़रुरत है इसलिए अय मेरे मोला इस बच्चे के लिए दूध का इन्तिज़ाम फरमादे में ने दाया तलाश कि लेकिन न मिलसकी अब तेरा ही सहारा है”. दुआ मांगने के बाद हज़रत ख़्वाजा हसन अता अलयहिर्रेह्मा वापस उस मक़ाम पर आये जहां हज़रत ख़्वाजा दाना को छोड़ गए थे.अभी कुच्छ ही फासले पर थे कि क्या देखते हैं कि कोई ख़तरनाक जानवर हज़रत ख़्वाजा दाना को खा रहा है आप जल्दी-जल्दी क़दम बढ़ाते हुए हज़रत के पास पहुंचे तो ये मंज़र देखकर बहुत तअज्जुब  में होगए कि एक लूली हरनी हज़रत ख़्वाजा दाना को दूध पिला रही है.आपने ख़ुदावन्दे खुद्दूस का शुक्र अदा कीया ओर समझ गए कि ये सब ग़ैबी इन्तिज़ाम अल्लाह तआला कि जानिब से कीया गया है.उस हिरनी का ये मामूल था कि रोजाना सुबहो-शाम अपने मुक़र्रारह वक़्त पर आती ओर हज़रत ख़्वाजा दाना को दूध पिला कर चली जाती.ये सिलसिला हज़रत ख़्वाजा दाना साहब कि दूध पीने की उम्र तक जारी रहा. दूध का ज़माना ख़त्म होने के बाद आप का गुज़र-बसर जंगल के फूल-फल ओर पत्तों पर होने लगा. इस तरह से आपकी उम्र बारह साल हो गयी.
      हज़रत ख़्वाजा अबुल-क़ासिम साहब ने मनाकिबुल-अख्यार में अपने वालिदे गिरामी के मुकम्मल हालात तहरीर फरमाए हैं. वह लिखते हैं कि वालिदे गिरामी मुझ से हमेशा फरमाते बेटा अबुल-क़ासिम! मुझे जो मज़ा जंगल के घास-पूस में आता था वो मज़ा इन मुर्ग्गन ग़िज़ाओं में नहीं मिलता है.

बचपन के सदमात

             हज़रत ख़्वाजा दाना साहब अभी चार माह के थे कि वालिदे गिरामी हज़रत ख़्वाजा सैयद बादशाह पर्दापोश अलयहिर्रेह्मा शाह इस्माईल सफवी वालीए इरान शिआ बादशाह से जंग करने में शहीद हो गए.शोहर नामदार की मफारिक़त(जुदाई) ने हज़रत ख़्वाजा दाना की वालिदह मोहतरमा का हाल बुरा कर दिया था. इसी ग़म में आपकी वालिदह  का साया भी सर से उठ गया. आप अय्यामे तिफुलियत(बचपन के दिन) ही में वालिदैन के साये से महरूम हो गए.

ख़्वाजा दाना रेह्मतुल्लाह अलैह की विलादत बा-सआदत

            क़ुत्बुल-आरिफीन  हज़रत ख़्वाजा सैयद जमालुद्दीन दाना नक्शबंदी अलैहिर्रेहमा तुर्किस्तान के एक गाँव जुनूक़ में जो इरान के शहर ख्वारिज़म से चार फर्लांग बारह मील की दूरी पर वाक़े है.हिजरी ८९८ मुताबिक़ ईस्वी १४९२ को पैदा हुए आपके वालिदे गिरामी हज़रत ख़्वाजा सैयद बादशाह पर्दापोश अपने वक़्त के जैयिद सूफी ओर वालिए-कामिल थे.तसव्वुफ़ में अपने वालिदे-गिरामी हज़रत सैयद इस्माईल अलैहिर्रेहमा से जियादा शोहरत पाई ओर रूहानियत में बुलंद मक़ाम हासिल कीया.आप के मुरीदों की तादाद भी अच्छी-ख़ासी थी.दूर दराज़ इलाक़ों से तालिबाने-हक़ ओर तिश्नगाने मआरिफत हज़रत ख़्वाजा बादशाह पर्दापोश के पास आते ओर इल्मो मआरिफत से आसूदः व सेर होकर वापस जाते.फ़रज़न्दे अर्जुमंद हज़रत सैयद जमालुद्दीन दाना की पैदाइश के बाद आप ही ने  बच्चे के कान में अजान व इक़ामत पढ़ी ओर नव-मौलूद बच्चे का नाम  वालिदैन ने सैयद जमालुद्दीन रख दिया. लेकिन कुछ दिनों के बाद ख़्वाजा बादशाह ने अपनी बीवी से फरमाया हम ने बच्चे का नाम जमालुद्दीन रख तो दिया है मगर मुझे मालूम हुआ कि ये बच्चा अक़लमंद दाना-ए-राज़ ओर इल्मो आगही का पैकर होगा इसलिए इसके नाम के साथ लफ्ज़े दाना का इज़ाफा कर रहा हूँ चुनान्चे इसके बाद ही से ये बच्चा जमालुद्दीन दाना के नाम से याद कीया जाने लगा.हज़रत ख़्वाजा दाना अलैहिर्रेहमा  के दादा हज़रत ख़्वाजा सैयद  इस्माईल अलैहिर्रेहमा अपने वक़्त के उल्माए किबार ओर अवलिया-ए-आली तबार में शुमार किये जाते थे ओर जुनूक़ में सैयदों के खानदान की सरपरस्ती आपको हासिल थी आप की वालिदा माजिदा भी एक नेक खातून थीं ओर शेह्ज़ादी-ज़ादी थीं. हज़रत ख़्वाजा दाना अलैहिर्रेहमा का ख़ानदान इतना मुक्त़दिर था कि चुग़ताई बादशाह सुल्तान हुसैन मिर्ज़ा, इब्राहीम हुसैन मिर्ज़ा, शैख़ मिर्ज़ा वगैरह ने अज़-रूए अक़ीदत अपनी बेटियाँ इस ख़ानदान में बियाही थीं.

मुग्लिसरा में स्थित सुरत म्युनिसिपल कॉर्पोरशन की जो मिल्कत है वोह हज़रत ख्वाजा साहब के ज़माने में हाजियों का मुसाफिर खाना था.

हज़रत ख़्वाजा दाना रहमतुल्लाह अलैह की सुरत में तशरीफ़ आवरी

             हज़रत ख़्वाजा दाना रहमतुल्लाह अलैह ब-हुक्मे इलाही सुरत मुग़ल फ़रमाँ-रवा अकबर बादशाह के ज़माने में तशरीफ़ लाये.आप की तशरीफ़ आवरी से पेहले मुग़ल बादशाह अकबर का हुक्म-नामा सुरत के हाकिम अब्दुर्रेह्मान तेहरानी ओर नाज़िमे क़िलादार क़लीज खान के नाम पहुँच चूका था कि हज़रत ख़्वाजा दाना साहब का शायाने शान इस्तिक्बाल कीया जाये, चुनान्चे हाकिम ओर नाज़िमे सुरत अपने अपने रुफ्क़ा ओर उमरा के हमराह बंदरे सुरात पर आप का पुर तपाक इस्तिक्बाल कीया गया.शेहरे सुरत आप को बहुत पसंद आया.उस वक़्त सुरत एक अज़ीम बन्दरगाह था ओर यहीं से लोग हज्जे बैतुल्लाह के लिए जाया करते थे इसलिए इसको बाबुल मक्का के नाम से भी याद कीया जाता है.हाल में जो इमारत मुनिसिपल
कॉरपोरेशन के नाम से जानी जाती है ये हाजियों का मुसाफिर खाना था ओर मक्काई पुल जो नानपुरा के पास है उसका नाम मक्का पुल था.इस पुल से हज्जाजे-किराम जहाज़ में बेठ कर हरमैन-शरीफैन के लिए रवाना होते थे.हज़रत शहंशाहे सुरत ख़्वाजा दाना साहब सुरत ओर इहेलियाने सुरत से बेइन्तिहा मुहब्बत फरमाते थे हज़रत कि मुहब्बत इन अशआर से ज़ाहिर हे जो आज भी दरगाह शरीफ के बुलंद दरवाज़े पर तहरीर हे.आप ने फरमाया!
                     कर्द   तहरीर      मुसव्विरे     क़ुदरत
बाद       आबाद         बंदरे       सुरत
पए इमदाद  कश्ती  हाए ईं      बेहेर
                     वतन  दारेम अन्दर   कुन्ज ईं शहर
बरीं  ख़िदमत  ज़े-हक़ गुश्तैम मामूर
                     चे खुश गुफ्तंद अल्मामूर   माज़ूर
तर्जुमा: “मुसव्विरे क़ुदरत ने तहरीर कीया है के सुरत आबाद है ओर आबाद रहेगा यहाँ की कश्तियों की इमदाद के लिए में ने इस शेहर के गोशे में अपना वतन बनाया है.ख़ुदावन्दे करीम की जानिब से सुरत के रहने वालों की हर किस्म की ख़िदमत करने के लिए मुक़र्रर हुआ हूँ.क्या अच्छा है माज़ूरों ओर बेकसों की ख़िदमत करने के लिए मुक़र्रर हुआ हूँ” यानी ख़ुलासए कलाम ये के अल्लाह तआला के हुक्म से में हर तरह की ख़िदमत के लिए मुक़र्रर कीया गया हूँ कोई दुःख का मारा ग़रीब यतीम! मिस्कीन या बेवह  या कोई हाजतमंद   मेरे पास आएगा उसकी हर हाजत पूरी करूंगा.ये सख़ी दाना शहंशाहे सुरत की ज़ाते गिरामी है कि आज भी आप के मज़ारे पुर अनवार पर  हर क़िस्म के लोग जोक़ दर जोक़ हाज़िर होते हैं ओर अपनी दिली मुरादें हासिल करते हैं.किसी को औलाद मिल रही है तो किसी की ग़रीबी ओर तंगदस्ती दूर हो रही है तो कोई ला-इलाज बीमारी में मुब्तिला बीमार,शिफा पा रहा है तो किसी को इल्मे ज़ाहिरी व बातिनी से नवाज़ा जा रहा है.अल्गर्ज़ आप की बारगाह में जो भी रोता हुआ आता है वो हँसता हुआ जाता है.इन्शाअल्लाह ये फैज़ क़यामत तक जारी व सारी रहेगा.

नसब नामह पिदरी(Nasab Naamah Pidri)

हज़रत सैयद जमालुद्दीन अल-मअरूफ बह ख़्वाजा दाना साहब नक्शबंदी अलयह-रहमतो रिदवान का नसब नामह 
१.हज़रत सैयदिना मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला  अलयहे-वसल्लम
२.हज़रत सैयदिना अली करमल्लाहू वजहुल करीम
३.हज़रत सैयद जाफ़रे सानी रहमतुल्लाह अलैह
४.हज़रत सैयद अली असग़र रहमतुल्लाह अलैह
५.हज़रत सैयद इस्माईल रहमतुल्लाह अलैह
६.हज़रत सैयद अब्दुल्लाह रहमतुल्लाह अलैह
७.हज़रत सैयद सुलेमान रहमतुल्लाह अलैह
८.हज़रत सैयद मुहम्मद रहमतुल्लाह अलैह
९.हज़रत सैयद हसन रहमतुल्लाह अलैह
१०.हज़रत सैयद अहमद मशहूर ब ख्वाजा अता रहमतुल्लाह अलैह
११.हज़रत सैयद अब्दुल्लाह ज़र बख्श रहमतुल्लाह अलैह
१२. हज़रत ख़्वाजा सैयद विलायत रहमतुल्लाह अलैह
१३.हज़रत ख़्वाजा सैयद कुरैश रहमतुल्लाह अलैह
१४.हज़रत ख़्वाजा सैयद इस्माईल रहमतुल्लाह अलैह
१५.हज़रत ख़्वाजा सैयद बादशाह पर्दह-पोश रहमतुल्लाह अलैह
१६. हज़रत ख़्वाजा सैयद जमालुद्दीन दाना नक्शबंदी रिद्वानुल्लाही त आला अलय्हिम अजमईन.
(हवाला:तजकिरतुल इन्साब सफह:१३८)

शजरह-ए-तय्यबह(Shajra-E-Tayyabah)

खानदाने नक्शबंदीयह आलियाह जमालीयह रिद्वानुल्लाही तआलाअलय्हिम अजमईन 

अय  खुदा  अपनी   तू  ज़ाते   किब्रिया के वास्ते
साहिबे  लौलाक  अर्शे    मुत्तुका        के     वास्ते
क़ल्ब   रोशन   कर मेरा ओर सिद्क़ की तोफीक़ दे
यारे ग़ारे   हल-अता     शम्सुद्दुहा     के   वास्ते
दे मुझे   सोज़े जिगर ओर इश्क़े कामिल कर अता
हज़रते   सलमाने   बा-हिल्मो   हया  के वास्ते
बे-खुदो   सर-मस्त   कर  ऐसी पिला इरफां की मै
हज़रते  क़ासिम  फ़क़ीह  साहिब  सबआ के वास्ते
नूरे  बातिन  कर  अता  बेहरे  तरीक़त नक्शबंद
जाफ़रे  सादिक़  इमामुल   अवलिया  के    वास्ते
रख मुझे साबित क़दम ओर ज़ोह्दो तक़वा कर अता
इत्तिक़ाए   बायज़ीदे    बाख़ुदा   के    वास्ते
मिन-अरिफ  की  रम्ज़  से यारब  मुझे आगाह कर
बुल-हसन खर्क़ानी ख़ुत्बुल  गोसियह  के वास्ते
चश्मे   बीना   कर अता ओर दे सफाई  क़ल्ब में
ख़्वाजा-ए  तोसी    अली-ए   बासफा  के   वास्ते
भरदे  रग-रग  में  मेरी  या रब तो नूरे मअरिफत
युसुफ   हमदानी   आरिफे  पारसा   के   वास्ते
मोरिदे   फैज़े  इलाही   वाकिफे   इसरारे   हक़
अब्दुल-ख़ालिक़  ग़ज्दे  वानी  मुक़तदा  के  वास्ते
दिल  से  ज़ुल्मत  दूर  कर ओर खोल दे बाबे हिजाब
हज़रते  आरिफ   मुहम्मद   पारसा   के  वास्ते
दे   मुझे   तोफीक़   या  रब अपने जिक्रो शुग्ल की
हज़रते   महमूद   ज़ाकिर   रहनुमा  के    वास्ते
ख़ल्क़  की ख़िदमत का या रब दे मुझे इज़्ज़ो शरफ
हज़रते   रामेतनी    ख़ुत्बुल-उला  के    वास्ते
जाम   इरफां   का   पिला  ओर खोल दे राज़े ख़फी
ख़्वाजा   बाबा शनास  हक़  आश्ना के वास्ते
हुब्बे  दुनिया  दूर  कर  ओर  अपनी उल्फत दे मुझे
हज़रते   सैयद   कुलाले   बा-सफा    के   वास्ते
रेहरवे    राहे   शरीअत   ओर  तरीक़त  पर मुझे
रखना  शाहे  नक्शबंद   एहले   तुक़ा  के  वास्ते
रख   मुअत्तर  या इलाही  बूए  वेहदत से दिमाग़
हज़रते  अत्तार    बा-सिद्क़ो   सफा   के   वास्ते
उकदह ला-हल  को हल कर अपने लुत्फो आम से
ख़्वाजा-ए    याकूबे चरखी  हक़-नुमा  के     वास्ते
आफ़ताबे   दीने   मिल्लत   माह्ताबे   हैरियत
शाह उबैदुल्लाह     क़ुत्बुल  अवलिया   के वास्ते
माअसियत से दे  अमां ओर खातिमा बिल-ख़ैर कर
हज़रते   ख़्वाजा  हसन  सैयद   अता  के    वास्ते
हाफ़िज़े   हुज्जाज   कअबा   बन्दरे    बाबुल हरम
शाह   जमालुद्दीन   दाना   रहनुमा  के   वास्ते
रास्ता   दिखला   मुझे   सब्रो   रज़ा   का या ख़ुदा
ख़्वाजा    सैयद   अबुल-हसन सिद्क़ो सफा के वास्ते
नज़अ में  मुझ  को  बचाना   या   ख़ुदा शैतान से
ख़्वाजा-ए   सैयद   मुहम्मद   मुक़तदा  के वास्ते
क़ब्र  रोशन  कर  मेरी  यारब  तुफैले ख़्वाजगान
ख़्वाजा-ए  नूरुल-हसन   नूरे   ख़ुदा   के  वास्ते
मम्बए   जूदो   अता   दरयाए   फैज़े    सरमदी
ख़्वाजा-ए   फैज़ुल-हसन   काने   सखा के वास्ते
गव्हरे  दरयाए  वेहदत  मअदने   इसरारे   हक़
ख़्वाजा   हज़रत   सैयदे   नूरुल-उला  के वास्ते
गुलशने  सज्जाद्गाने   मसनदे   ख़्वाजा जमाल
ता-अबद    फूले-फले ख़ैरुलवरा के   वास्त
सुन   ख़ुदा फ़रियाद  अब इस उम्मते महबूब की
अज़-पए   पीराने   शजरह    अवलिया   के  वास्ते
बरकतो   रेहमत  के  या  रब खोल दरवाज़े तमाम
ख़्वाजगाने   नक्शबंद   ओर अम्बिया के वास्ते
दीनो  दुनिया में  इलाही  आबरू  रखना  मेरी
असफिया  व  अज़किया व अत्किया के वास्ते
गव्हरे  मक़सूद  से  भर  दामने वासिफ ख़ुदा
अज़  बराए  पंजतन  आले-अबा  के   वास्ते
537834_373610332679931_1579682322_n

Hadrat Shaykh Sayyid Jamal ad-Din Dana Naqshbandi Ahrari was a renowned Sufi master of Gujarat, India.

He was born in the Middle East, possibly in Turkey. His father Sayyid Badshah Parda-Posh was of Husaini lineage of sayyids, and was martyred fighting with the Safavi Shia regime.

He was a disciple and deputy of Khwaja Muhammad Islam Juybari. His spiritual chain is following:

  1. Shaykh Jamal ad-Din Dana (d.1016 AH), deputy of
  2. Khwaja Muhammad Islam Juybari (d.971 AH)
  3. Makhdum-e-Azam Khwaja Ahmad Kasani
  4. Mawlana Muhammad Qazi
  5. Khwaja Ubaydullah Ahrar (d.895 AH)

Shaykh Jamal ad-Din migrated to Gujarat, India to propagate Islam and the Naqshbandi Sufi Order.

He died on 5 Muharram 1016 AH (1607 A.D). He had two sons:

  1. Khwaja Muhammad Hashim (or Qasim)