स्वतंत्रता सेनानी हक़ीम अजमल खान साहेब

स्वतंत्रता सेनानी हक़ीम अजमल खान साहेब बीते दिनों बरसी थी वो 29 दिसंबर 1927 को इस दुनिया से रुख़सत हुए थे। हक़ीम अज़मल खान यूनानी तिब्बिया कॉलेज़ दिल्ली के संस्थापक और जामिया मिल्लिया इस्लामिया के पहले वाइस चांसलर और फाउंडिंग मेंबर थे।

अजमल खान ख़ानदानी हक़ीम थे इनके पुरखे मुग़ल बादशाह बाबर के साथ हिंदुस्तान आये थे। इनका पूरा परिवार युनानी चिकित्सा का विद्वान था। इनके दादा परदादा मुग़ल दरबार मे शाही हक़ीम थे। उस दौर में इनके दादा शरीफ खान ने यूनानी चिकित्सा को बढ़ावा देने के लिए पूरे उपमहाद्वीप में शरीफ मंज़िल अस्पताल एंड कॉलेज की स्थापना की थी।

1892 में हक़ीम अजमल खान रामपुर के नवाब के पर्सनल चिकित्सक बन गए। अपने बाप दादाओ की तरह ये भी हैरतअंगेज इलाज के लिए मशहूर हो गए। इनके बारे में कहा जाता है कि ये मरीज़ का चेहरा देखकर बीमारी बता देते थे। अपने घर और दवाखाने पर इलाज का कोई पैसा नही लेते थे जबकि किसी राइस या नवाब के बुलावे पर जाने के लिए 1000 रू प्रतिदिन के हिसाब से चार्ज करते थे।

अंग्रेजों ने एलोपैथी को बढावा देने के लिए सरकारी संस्थाओं मे आयुर्वेद और यूनानी चिकित्सा के वैद्य और हक़ीम की मान्यता ख़त्म कर दी थी जिसके लिए हक़ीम अजमल खान ने अंग्रेजी हुकूमत का खुल कर विरोध किया था।

1906 में हक़ीम अजमल खान स्वतंत्रता आन्दोल में शामिल हो गए और शिमला में अंग्रेज जर्नल वायसराय से मिलने वाले क्रांतिकारियों के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया था। उसके बाद लगातार गाँधी जी के साथ आंदोलन में भाग लेने लगे। उनके फ़ॉलोअर्स ने उन्हें मसीह-उल-मुल्क (हीलर ऑफ द नेशन) की उपाधि से सम्मानित किया था।

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