
*इक़रार ए ईमान का क़ुरआनी तरीक़ा*
जब कोई मुसलमान परवरदिगार पर ईमान लाता है तो क्या उसका सिर्फ़ इतना कहना ही काफ़ी है कि हम अल्लाह पर ईमान लाये या इसके साथ मे उसे कुछ और कलमात भी बोलना चाहिए जिससे के उसके मुकम्मल ईमान की दलील साबित हो सके।
तो चलिए हम अल्लाह सुब्हानहु व तआला की मुक़द्दस किताब क़ुरआन ए पाक से इसका रास्ता निकालने की कोशिश करते हैं👉
क़ुरआन में मुतालेआ करने पर हमको सूरा ए आराफ़ की आयत नम्बर 120,121, और 122 में हमें अपने सवाल का जवाब मिल जाता है कि किसी नबी के उम्मती को किस तरह से अपने परवरदिगार के सामने अपने ईमान का इक़रार करना चाहिए-
وَأُلْقِيَ السَّحَرَةُ سَاجِدِينَ
(अल-आराफ़ – 120)
*और जादूगर सब मूसा के सामने सजदे में गिर पड़े*
قَالُوا آمَنَّا بِرَبِّ الْعَالَمِينَ
(अल-आराफ़ – 121)
*और (आजिज़ी से) बोले हम सारे जहाँन के परवरदिगार पर ईमान लाए*
رَبِّ مُوسَىٰ وَهَارُونَ
(अल-आराफ़ – 122)
*जो मूसा व हारून का परवरदिगार है*
इन आयात को पढ़ कर हमें पता चलता है कि जब किसी नबी के उम्मती को अपने ईमान लाने का इक़रार करना है तो उसे अपने ज़माने के नबी अलैहिस्सलाम के साथ साथ उस नबी के वसी और जानशीन का ज़िक्र करना भी ज़रूरी है।जैसे यहाँ पर जब फ़िरऔन के जादूगरों ने अपनी हार मान कर हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के सामने अल्लाह पर अपने ईमान लाने की गवाही दी तो उन्होंने सिर्फ़ इतना नही कहा कि हम अल्लाह पर ईमान ले आये और न ही उन्होंने इतना कहा कि हम मूसा अलैहिस्सलाम के परवरदिगार पर ईमान ले आये बल्कि उन्होंने कहा कि हम मूसा व हारून(जो हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के वसी व जानशीन थे) के परवरदिगार पर ईमान लाये हैं।
*इस हिसाब से उम्मते हज़रत मोहम्मद सवल्लल्लाहो अलयहे व आलेही व सल्लम को भी अपने ईमान के कलमे में क़ुरआनी ऐतबार से उस शख्सियत का भी ज़िक्र करना चाहिए जो इस उम्मत में हुज़ूर पाक अलैहिस्सलाम के लिए वही हैसियत रखता हो जो हज़रत हारून अलैहिस्सलाम हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के लिए रखते थे।*
फिर हदीसों का मुतालेआ करने के बाद मुसलमानों की सबसे मोअतबर किताब सही बुख़ारी शरीफ़ में हमें इसका जवाब मिल गया कि वो शख्सियत कौन है जो हुज़ूर के लिए हज़रत हारून अलैहिस्सलाम के मानिंद हो और फिर जिसका ज़िक्र कलमे में करना क़ुरआनी ऐतबार से ज़रूरी हो👉
Sahih Bukhari Hadees # 3706
حَدَّثَنِي مُحَمَّدُ بْنُ بَشَّارٍ ، حَدَّثَنَا غُنْدَرٌ ، حَدَّثَنَا شُعْبَةُ ، عَنْ سَعْدٍ ، قَالَ : سَمِعْتُ إِبْرَاهِيمَ بْنَ سَعْدٍ ، عَنْ أَبِيهِ ، قَالَ : قَالَ النَّبِيُّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ لِعَلِيٍّ : أَمَا تَرْضَى أَنْ تَكُونَ مِنِّي بِمَنْزِلَةِ هَارُونَ مِنْ مُوسَى .
نبی کریم صلی اللہ علیہ وسلم نے علی رضی اللہ عنہ سے فرمایا کہ کیا تم اس پر خوش نہیں ہو کہ تم میرے لیے ایسے ہو جیسے موسیٰ علیہ السلام کے لیے ہارون علیہ السلام تھے۔
Sahih Hadees
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बुख़ारी शरीफ़ की हदीस नम्बर 3706 में लिखा है कि *नबी करीम अलैहिस्सलाम ने हज़रत अली से फ़रमाया के क्या तुम इस पर ख़ुश नही के तुम मेरे लिए ऐसे हो जैसे मूसा अलैहिस्सलाम के लिए हारून अलैहिस्सलाम थे।*
इस बात से ये साबित होता है कि अगर क़ुरआनी ऐतबार से हम अगर अपने ईमान की गवाही देंगे तो हमे कहना पड़ेगा कि
*हम सारे जहान के परवरदिगार पर ईमान लाये हैं जो हज़रत मोहम्मद स अ व स और हज़रत अली का परवरदिगार है।*
और चूँकि इसको आसानी से अदा किया जा सके इसके लिए हम ये बोल सकते हैं कि –
*लाइलाहा इल्लल्लाह मोहम्मदुर रसूलअल्लाह अलीउन वली अल्लाह


