
रहमतों की वर्षा
अल्लाह ने इसी रात पानी बरसा दिया, जो मुश्किों पर मूसलाधार बरसी और उनके आगे बढ़ने में रुकावट बन गई, लेकिन मुसलमानों पर फुवार बनकर बरसी और उन्हें पाक कर दिया, शैतान की गन्दगी दूर कर दी और ज़मीन को हमवार कर दिया। इसकी वजह से रेत में कड़ाई आ गई और क़दम टिकने के लायक़ हो गए। ठहरना खुशगवार हो गया और दिल मज़बूत हो गए।
अहम सैनिक केन्द्रों की ओर इस्लामी सेना का बढ़ना
इसके बाद अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपनी फ़ौज को हरकत दी, ताकि मुश्रिकों से पहले बद्र के सोते पर पहुंच जाएं और उस पर मुश्रिकों को क़ब्ज़ा न करने दें।
चुनांचे इशा के वक़्त आप बद्र के सबसे क़रीबी सोते पर पहुंचे। इस मौक़े पर हज़रत हुबाब बिन मुन्ज़िर ने एक माहिर फ़ौजी की हैसियत से मालूम किया कि ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ! क्या यहां आप अल्लाह के हुक्म से आए हैं कि हमारे लिए हमसे आगे-पीछे हटने की गुंजाइश नहीं या आपने इसे एक सामरिक रणनीति के रूप में अपनाया है ?
आपने फ़रमाया, यह सिर्फ़ सामरिक रणनीति के रूप में है।
उन्होंने कहा, यह मुनासिब जगह नहीं है। आप आगे तशरीफ़ ले चलें और कुरैश के सबसे करीब जो सोता हो, उस पर पड़ाव डालें, फिर हम बाक़ी सोते पाट देंगे और अपने सोते पर हौज़ बनाकर पानी भर लेंगे। इसके बाद हम कुरैश से लड़ाई लड़ेंगे, तो हम पानी पीते रहेंगे और उन्हें पानी न मिलेगा ।
अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया, तुमने बहुत ठीक मश्विरा दिया।
के इसके बाद आप फ़ौज के साथ उठे और कोई आधी रात गए दुश्मन सबसे क़रीबी सोते पर पहुंचकर पड़ाव डाल दिया। फिर सहाबा किराम रज़ि० ने हौज़ बनाया और बाक़ी तमाम सोतों को बन्द कर दिया।
नेतृत्व- केन्द्र
सहाबा किराम रज़ि० सोते पर पड़ाव डाल चुके तो हज़रत साद बिन मुआज़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने यह प्रस्ताव रखा कि क्यों न मुसलमान आपके लिए एक नेतृत्व-केन्द्र बना दें, ताकि खुदा न करे जीत के बजाए हार से दोचार होना पड़ जाए या किसी और हंगामी हालत का सामना करना पड़ जाए, तो उसके लिए हम पहले ही से मुस्तैद रहें। चुनांचे उन्होंने अर्ज़ किया—
‘ऐ अल्लाह के नबी सल्ल० ! क्यों न हम आपके लिए छप्पर बना दें, जिसमें आप तशरीफ़ रखेंगे और हम आपके पास आपकी सवारियां भी मुहैया रखेंगे। इसके बाद अपने दुश्मन से टक्कर लेंगे। अगर अल्लाह ने हमें इज़्ज़त बख्शी दुश्मन पर ग़लबा दिलाया, तो यह वह चीज़ होगी, जो हमें पसन्द है और दूसरी शक्ल हो गई, तो आप सवार होकर हमारी क़ौम के उन लोगों के पास जा रहेंगे, जो पीछे रह गए हैं। और
वास्तव में आपके पीछे ऐ अल्लाह के नबी सल्ल० ! ऐसे लोग रह गए हैं कि हम आपकी मुहब्बत में इनसे बढ़कर नहीं। अगर इन्हें यह अन्दाज़ा होता कि आप लड़ाई से दोचार होंगे तो वे हरगिज़ पीछे न रहते। अल्लाह उनके ज़रिए
आपकी हिफ़ाज़त फ़रमाएगा। वे आपका भला चाहने वाले होंगे और आपके साथ जिहाद करेंगे।
इस पर अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उनकी प्रशंसा की और उनके लिए दुआ की, फिर मुसलमानों ने लड़ाई के मैदान के उत्तर-पूरब में एक ऊंचे टीले पर छप्पर बनाया, जहां से लड़ाई का पूरा मैदान दिखाई पड़ता था. फिर आपके उस नेतृत्व केन्द्र की निगरानी के लिए हज़रत साद बिन मुआज रज़ि० की कमान में अंसारी नवजवानों का एक दस्ता तैयार कर लिया गया।
फ़ौज की तर्तीब और रात का गुज़रना
इसके बाद अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़ौज की ततब फ़रमाई और लड़ाई के मैदान में तशरीफ़ ले गए। वहां अपने हाथ से इशारा फ़रमाते जा रहे थे कि यह कल फ़्लां की क़त्लगाह है, इनशाअल्लाह 12
इसके बाद अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने वहीं एक पेड़ की जड़ के पास रात गुज़ारी और मुसलमानों ने भी सुख-शान्ति के साथ रात गुजारी। उनके दिल विश्वास से भरे हुए थे और उन्होंने राहत व सुकून से अपना हिस्सा हासिल किया। उन्हें यह उम्मीद थी कि सुबह अपनी आंखों से अपने रब की खुशखबरियां देखेंगे ।
‘जब अल्लाह तुम पर अपनी ओर से अम्न और बे-ख़ौफ़ी के तौर पर नींद छाए दे रहा था और तुम पर आसमान से पानी बरसा रहा था, ताकि तुम्हें उसके ज़रिए पाक कर दे और तुमसे शैतान की गन्दगी दूर कर दे और तुम्हारे दिल मज़बूत कर दे और तुम्हारे क़दम जमा दे।’ (8:11)
यह रात जुमा 17 रमज़ान सन् 02 हि० की रात थी और आप इस महीने की 8 या 12 तारीख को मदीने से रवाना हुए थे।
लड़ाई के मैदान में मक्की सेना का आना और उनका आपसी मतभेद
दूसरी ओर कुरैश ने घाटी के मुहाने के बाहर अपने कैम्प में रात गुज़ारी और सुबह अपने दस्तों सहित टीले से उतर कर बद्र की ओर चल पड़े।
1. देखिए जामेअ तिर्मिज़ी, अब-वाबुल जिहाद बाब मा जा अ फिस्सफ़्फ़ि वत्ताबिया 1/201 2. मुस्लिम, मिश्कात 2/543
एक गिरोह अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के हौज़ की ओर बढ़ा।
आपने फ़रमाया, इन्हें छोड़ दो, मगर इनमें से जिसने भी पानी पिया, वह इस लड़ाई में मारा गया, सिर्फ़ हकीम बिन हिज़ाम बाक़ी बचा, जो बाद में मुसलमान हुआ और बहुत अच्छा मुसलमान हुआ।
उसका तरीक़ा था जब बहुत पक्की क़सम खानी होती, तो कहता, ‘क़सम है उस ज़ात की, जिसने मुझे बद्र के दिन से निजात दी।’
बहरहाल जब क़ुरैश सन्तुष्ट हो चुके, तो उन्होंने मदनी ताक़त का अन्दाज़ा लगाने के लिए उमैर बिन वहब जुमही को रवाना किया। उमैर ने घोड़े पर सवार होकर फ़ौज का चक्कर लगाया, फिर वापस जाकर बोला, कुछ कम या कुछ ज़्यादा तीन सौ आदमी हैं, लेकिन तनिक ठहरो, मैं देख लूं उनकी कोई रसदगाह या कुमक तो नहीं ?
इसके बाद वह घाटी में घोड़ा दौड़ाता हुआ दूर तक निकल गया, लेकिन उसे कुछ दिखाई न पड़ा। चुनांचे उसने वापस जाकर कहा-
‘मैंने कुछ पाया तो नहीं, लेकिन ऐ कुरैश के लोगो ! मैंने बलाएं देखी हैं, जो मौत को लादे हुए हैं । यसरिब के ऊंट अपने ऊपर खालिस मौत सवार किए हुए हैं। ये ऐसे लोग हैं, जिनकी सारी हिफ़ाज़त और पनाह की जगह उनकी तलवारें हैं। कोई और चीज़ नहीं। खुदा की क़सम ! मैं समझता हूं कि उनका कोई आदमी तुम्हारे आदमी को क़त्ल किए बग़ैर क़त्ल न होगा। और अगर उन्होंने तुम्हारे खास-खास लोगों को मार लिया, तो इसके बाद जीने का मज़ा ही क्या है, इसलिए तनिक अच्छी तरह सोच-समझ लो ।’
इस मौक़े पर अबू जहल के विरुद्ध एक और विवाद उठ खड़ा हुआ, जो हर क़ीमत पर लड़ने पर तुला हुआ था। कुछ लोग चाह रहे थे कि लड़े बिना मक्का वापस हो जाएं।
चुनांचे हकीम बिन हिज़ाम ने लोगों के दर्मियान दौड़-धूप शुरू कर दी। वह उत्बा बिन रबीआ के पास आया और बोला-
‘अबुल वलीद ! आप कुरैश के बड़े आदमी और ऐसे सरदार हैं, जिनकी बात मानी जाती है, आप क्यों न एक अच्छा काम कर जाएं जिसके कारण आपका उल्लेख भलाई के साथ होता रहे।’
उत्बा ने कहा, ‘हकीम ! वह कौन-सा काम है ?”
उसने कहा, आप लोगों को वापस ले जाएं और अपने मित्र अम्र बिन हज़रमी का मामला, जो सरीया नखला में मारा गया था, अपने ज़िम्मे ले लें।
उत्बा ने कहा, मुझे मंज़ूर है। तुम मेरी ओर से उसकी ज़मानत लो। वह मेरा मित्र है। मैं उसकी दियत का भी ज़िम्मेदार हूं और उसका जो माल बर्बाद उसका भी । हुआ,
इसके बाद उत्बा ने हकीम बिन हिजाम से कहा, तुम हनज़लीया के पूत के पास जाओ, क्योंकि लोगों के मामलों को बिगाड़ने और भड़काने के सिलसिले में मुझे उसके अलावा किसी और से कोई अन्देशा नहीं ।
हनज़लीया के पूत से तात्पर्य अबू जहल है। हनज़लीया उसकी मां थी ।
इसके बाद उत्बा बिन रबीआ ने खड़े होकर भाषण दिया और कहा- ‘कुरैश के लोगो ! तुम लोग मुहम्मद और उनके साथियों से लड़कर कोई कारनामा अंजाम न दोगे ! ख़ुदा की क़सम ! अगर तुमने उन्हें मार लिया, तो सिर्फ़ ऐसे ही चेहरे दिखाई पड़ेंगे, जिन्हें देखना पसन्द न होगा, क्योंकि आदमी ने अपने चचेरे भाई को या खालाज़ाद भाई को या अपने ही कुंबे-क़बीले के किसी आदमी को क़त्ल किया होगा, इसलिए वापस चले चलो और मुहम्मद (सल्ल०) और सारे अरब से किनारा कर लो। अगर अरब ने उन्हें मार लिया तो यह वही चीज़ होगी जिसे तुम चाहते हो और अगर उलटी बात हो गई तो मुहम्मद (सल्ल०) तुम्हें इस हालत में पाएंगे कि तुमने जो व्यवहार उनसे करना चाहा था, उसे किया न था ।
इधर हकीम बिन हिज़ाम अबू जहल के पास पहुंचा तो अबू जहल अपनी कवच ठीक-ठाक कर रहा था। हकीम ने कहा, ऐ अबुल हकम! मुझे उत्बा ने तुम्हारे पास यह और यह पैग़ाम देकर भेजा है।
अबू जहल ने कहा, खुदा की क़सम ! मुहम्मद और उसके साथियों को देखकर उत्बा का सीना सूज आया है। नहीं, हरगिज़ नहीं। खुदा की क़सम ! हम वापस न होंगे, यहां तक कि अल्लाह हमारे और मुहम्मद के दर्मियान फ़ैसला फ़रमा दे । उत्बा ने जो कुछ कहा है, सिर्फ़ इसलिए कहा है कि वह मुहम्मद और उसके साथियों को ऊंट खाने वाला समझता है और खुद उत्बा का बेटा भी उन्हीं के साथ है, इसलिए वह तुम्हें उनसे डराता है।
उत्बा के बेटे अबू हुज़ैफ़ा बहुत पुराने इस्लाम कुबूल करने वाले थे और हिजरत करके मदीना तशरीफ़ ला चुके थे।
उत्बा को जब पता चला कि अबू जहल कहता है ‘खुदा की क़सम ! उत्बा का सीना सूज आया है, तो बोला-
‘इस चूतड़ से पाद निकालने वाले को (या चूतड़ पर खुशबू लगाने वाले को)
बहुत जल्द मालूम हो जाएगा कि किसका सीना सूज आया है ? मेरा या उसका ?’
इधर अबू जहल ने इस डर से कि कहीं यह विवाद बढ़कर छा न जाए, इस बातचीत के बाद झट आमिर बिन हज़रमी को, जो सरीया अब्दुल्लाह बिन जरश के मक्तूल अम्र बिन हज़रमी का भाई था, बुला भेजा और कहा कि यह तुम्हारा मित्र उत्वा चाहता है कि लोगों को वापस ले जाए, हालांकि तुम अपना बदला अपनी आंख से देख चुके हो, इसलिए उठो, अपने मज़्लूम होने की और अपने भाई के क़त्ल की दुहाई दो ।
इस पर आमिर उठा और चूतड़ खोलकर चीखा, ‘वा अम्राह वा अग्राह’, (हाय अम्र, हाय अम्र), इस पर क़ौम गर्म हो गई। उनका मामला संगीन और लड़ने का उनका इरादा पक्का हो गया और उत्बा ने जिस सूझ-बूझ की दावत दी थी, वह बेकार गई। इस तरह होश पर जोश छा गया और यह विवाद भी बेनतीजा रहा।

