अर-रहीकुल मख़्तूम  पार्ट  58 बद्र की जंग पार्ट 3

मज्लिसे शूरा की सभा

स्थिति की इस अचानक और खतरनाक तब्दीली को देखते हुए अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने एक उच्चस्तरीय सैनिक मज्लिसे शूरा (सलाहकार समिति) की मीटिंग की, जिसमें उस वक़्त की परिस्थितियों का उल्लेख किया और कमांडरों और आम फ़ौजियों से विचार-विमर्श किया।

इस अवसर पर एक गिरोह खूनी टकराव का नाम सुनकर कांप उठा और उसका दिल कांपने और धड़कने लगा। उसी गिरोह के बारे में अल्लाह का इर्शाद है—

‘जैसा कि तुझे तेरे रब ने घर से हक़ के साथ निकाला और ईमान वालों का एक गिरोह अप्रिय समझ रहा था। वह तुझसे हक़ के बारे में इसके स्पष्ट हो चुकने के बाद झगड़ रहे थे, मानो वे आंखों देखते मौत की ओर हांके जा रहे हैं ।’ (अल-अंफाल 5-6 )

लेकिन जहां तक सेना के कमांडरों का ताल्लुक़ है, तो हज़रत अबूबक्र रज़ियल्लाहु अन्हु उठे और बहुत अच्छी बात कही। फिर हज़रत उमर बिन खत्ताब रज़ियल्लाहु अन्हु उठे और बोले-

‘ऐ अल्लाह के रसूल सल्ल० ! अल्लाह ने आपको जो राह दिखाई है, उस पर चलते रहिए, हम आपके साथ हैं। ख़ुदा की क़सम ! हम आपसे यह बात नहीं कहेंगे, जो बनी इसराईल ने मूसा अलैहिस्सलाम से कही थी- ‘तुम और तुम्हारा रब जाओ और लड़ो, हम यहीं बैठे हैं।’ (अल-माइदा, 24)

बल्कि हम यह कहेंगे कि आप और आपके पालनहार चलें और लड़ें और हम भी आपके साथ लड़ेंगे। उस ज्ञात की क़सम ! जिसने आपको हक़ के साथ भेजा है, अगर आप हमको बरकेग़माद तक ल चलें, तो हम रास्ते वालों से लड़ते-भिड़ते आपके साथ वहां भी चलेंगे। (अल-माइदा, 24 )

अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उनके हक़ में भले कलिमे इर्शाद फ़रमाए और दुआ दी ।

ये तीनों कमांडर मुहाजिरों में से थे, जिनकी तायदाद फ़ौज में कम थी । अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की इच्छा थी कि अंसार की राय मालूम करें, क्योंकि वही फ़ौज में अधिक थे और लड़ाई का असल बोझ उन्हीं के कंधों पर पड़ने वाला था, जबकि अक़बा की बैअत के हिसाब से उन पर ज़रूरी न था कि मदीने से बाहर निकलकर लड़ें।

इसलिए आपने तीनों कमांडरों की बातें सुनने के बाद फिर फ़रमाया, लोगो ! मुझे मश्विरा दो ।

इशारा अंसार की ओर था और यह बात अंसार के कमांडर और झंडा बरदार हज़रत साद बिन मुआज रजि० ने भांप ली। चुनांचे उन्होंने अर्ज़ किया कि ख़ुदा की क़सम ! ऐसा मालूम होता है कि ऐ अल्लाह के रसूल सल्ल० ! आपका इशारा हमारी ओर है।
आपने फ़रमाया, हां।

उन्होंने कहा, हम तो आप पर ईमान लाए हैं। आपकी तस्दीक़ की है और यह गवाही दी है कि आप जो कुछ ले आए हैं, सब हक़ है और इस पर हमने अपने आज्ञापालन का वचन दिया है। इसलिए ऐ अल्लाह के रसूल सल्ल० ! आपका जो इरादा है, उसके लिए क़दम बढ़ाइए। उस ज़ात की क़सम, जिसने आपको हक़ के साथ भेजा है, अगर आप हमें साथ लेकर उस समुद्र में कूदना चाहें, तो हम उसमें भी आपके साथ कूद पड़ेंगे, हमारा एक आदमी भी पीछे न रहेगा। हमें क़तई तौर पर कोई हिचकिचाहट नहीं कि कल आप हमारे साथ दुश्मन से टकरा जाएं। हम लड़ाई में जमने वाले और लड़ने में वीर योद्धा है और मुम्किन है अल्लाह आपको हमारा वह जौहर दिखा दे, जिससे आपकी आंखें ठंडी हो जाएं। पस आप हमें साथ लेकर चलें । अल्लाह बरकत दे ।

एक रिवायत में यों है कि हज़रत साद बिन मुआज़ रज़ि० ने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से अर्ज़ किया—

‘शायद आपको डर है कि अंसार अपना यह फ़र्ज़ समझते हैं कि आपकी मदद सिर्फ़ अपने क्षेत्र में करें, इसलिए मैं अंसार की ओर से बोल रहा हूं और उनकी ओर से जवाब दे रहा हूं। अर्ज़ है कि आप जहां चाहें, तशरीफ़ ले चलें, जिससे चाहें ताल्लुक़ जोड़ें और जिससे चाहें, ताल्लुक़ काट लें। हमारे माल में से जो चाहें ले लें और जो चाहें दे दें और जो आप लेंगे, वह हमारे नज़दीक इससे ज़्यादा पसन्दीदा होगा जिसे आप छोड़ देंगे और इस मामले में आपका जो भी फ़ैसला होगा, हमारा फ़ैसला बहरहाल उसके आधीन होगा। खुदा की क़सम,

अगर आप क़दम बढ़ाते हुए बरकेग़माद तक जाएं, तो हम भी आपके साथ-साथ चलेंगे और अगर आप हमें लेकर इस समुद्र में कूदना चाहें, तो हम उसमें भी कूद जाएंगे।’

हज़रत साद रज़ि० की यह बात सुनकर अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर खुशी की लहर दौड़ गई। आपका चेहरा खिल उठा। आपने फ़रमाया, चलो और खुशी-खुशी चलो। अल्लाह ने मुझसे दो गिरोहों में से एक का वायदा फ़रमाया है। अल्लाह की क़सम ! इस वक़्त मानो मैं क़ौम की क़त्लगाहें देख रहा हूं ।

इस्लामी फ़ौज का बाक़ी सफ़र

इसके बाद अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ज़फ़रान से आगे बढ़े और कुछ पहाड़ी मोड़ से गुज़र कर जिन्हें असाफ़िर कहा जाता है, दीत नामी एक आबादी में उतरे और हन्नान नामी पहाड़ जैसी चट्टान को दाहिने हाथ छोड़ दिया और इसके बाद बद्र के क़रीब पड़ाव के लिए उतर पड़े।

जासूसी का क़दम

यहां पहुंच कर अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने ग़ार के साथी हज़रत अबूबक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु को साथ लिया और खुद ख़बर लाने के लिए निकल पड़े।

अभी दूर ही से मक्की सेना के कैम्प का जायज़ा ले रहे थे कि एक बूढ़ा अरब मिल गया। अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उससे कुरैश और मुहम्मद और उनके साथियों का हाल मालूम किया। दोनों फ़ौजों के बारे में पूछने का मक्सद यह था कि आपके व्यक्तित्व पर परदा पड़ा रहे ।

लेकिन बूढ़े ने कहा, जब तक तुम लोग यह नहीं बताओगे कि तुम्हारा ताल्लुक़ किस क़ौम से है, मैं भी कुछ नहीं बताऊंगा ।

अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया, जब तुम हमें बता दोगे, तो हम भी तुम्हें बता देंगे।

उसने कहा, अच्छा, तो यह उसके बदले में है ?

आपने ने फ़रमाया, हां ।

उसने कहा, मुझे मालूम हुआ है कि मुहम्मद और उनके साथी फ़्लां दिन निकले हैं। अगर मुझे बताने वाले ने सही बताया है, तो आज वे लोग फ्लां जगह

होंगे और ठीक उस जगह की निशानदेही की, जहां इस समय मदीने की फ़ौज थी। और मुझे यह भी मालूम हुआ है, कुरैश फ़्लां दिन निकले हैं। अगर मुझे ख़बर देने वाले ने सही ख़बर दी है, तो वह आज फ़्लां जगह होंगे और ठीक उस जगह का नाम लिया, जहां इस वक़्त मक्के की सेना थी।

जब बूढ़ा अपनी बात कह चुका, तो बोला-

‘अच्छा, अब बताओ कि तुम दोनों में से किससे हो ?’

अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया-हम लोग एक पानी से हैं और यह कहकर वापस पलट पड़े।

बूढ़ा बकता रहा, क्या पानी से हैं? क्या इराक़ के पानी से हैं?

मक्का की सेना के बारे में अहम जानकारियां मिलीं

उसी दिन शाम को आपने दुश्मन के हालात का पता लगाने के लिए नए सिरे से एक जासूसी दस्ता रवाना फ़रमाया। इस कार्रवाई के लिए मुहाजिरों के तीन नेता अली बिन अबी तालिब, जुबैर बिन अव्वाम और साद बिन अबी वक़्क़ास रज़ियल्लाहु अन्हुम सहाबा किराम की एक जमाअत के साथ रवाना हुए।

ये लोग सीधे बद्र के सोते पर पहुंचे। वहां दो दास मक्की सेना के लिए पानी भर रहे थे। उन्हें गिरफ़्तार कर लिया और अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की खिदमत में हाज़िर किया ।

उस वक़्त आप नमाज़ पढ़ रहे थे। सहाबा ने इन दोनों से हालात मालूम किए। उन्होंने कहा, हम कुरैश के सक्के (पानी पिलाने वाले) हैं। उन्होंने हमें पानी भरने के लिए भेजा है।

क़ौम को यह जवाब पसन्द न आया। उन्हें उम्मीद थी कि ये दोनों अबू सुफ़ियान के आदमी होंगे, क्योंकि दिलों में अब भी बची-खुची आरज़ू रह गई थी कि काफिले पर ग़लबा हासिल हो ।

चुनांचे सहाबा किराम ने इन दोनों की ज़रा ज़ोरदार पिटाई कर दी और उन्होंने मजबूर होकर कह दिया कि हां, हम अबू सुफ़ियान के आदमी हैं। इसके बाद मारने वालों ने हाथ रोक लिया।

अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम नमाज़ से फ़ारिग़ हुए, तो गुस्से में फ़रमाया, जब इन दोनों ने सही बात बताई तो आप लोगों ने पिटाई क्यों कर दी और जब झूठ कहा तो छोड़ क्यों दिया। ख़ुदा की क़सम, इन दोनों ने सही कहा था कि ये कुरैश के आदमी हैं।

इसके बाद आपने इन दोनों गुलामों से फ़रमाया, अच्छा, अब मुझे क़ुरैश के बारे में बताओ।

उन्होंने कहा, यह टीला जो घाटी के आखिरी मुहाने पर दिखाई दे रहा है, कुरैश उसी के पीछे हैं।

आपने पूछा, लोग कितने हैं?

हैं उन्होंने कहा, बहुत हैं ।

आपने पूछा, तायदाद कितनी है ?

उन्होंने कहा, हमें नहीं मालूम।

आपने फ़रमाया, हर दिन कितने ऊंट ज़िब्ह करते हैं ?

उन्होंने कहा, एक दिन नौ और एक दिन दस ।

आपने फ़रमाया, तब तो लोगों की तायदाद नौ सौ और एक हज़ार के बीच में है ।

पूछा, इनके अन्दर कुरैश के बड़े लोगों में से कौन-कौन हैं ? उन्होंने कहा, रबीआ के दोनों लड़के, उत्बा और शैबा और अबुल बख्तरी बिन हिशाम, हकीम बिन हिज़ाम, नौफ़ल बिन खुवैलद, हारिस बिन आमिर, तुऐमा बिन अदी, नज्ज्र बिन हारिस, ज़मआ बिन अस्वद, अबू जहल बिन हिशाम, उमैया बिन खल्फ़ और आगे कुछ लोगों के नाम गिनवाए ।

फिर आपने

अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने सहाबा की ओर मुतवज्जह होकर फ़रमाया, मक्का ने अपने जिगर के टुकड़ों को तुम्हारे पास लाकर डाल दिया है।

रहमतों की वर्षा

अल्लाह ने इसी रात पानी बरसा दिया, जो मुश्किों पर मूसलाधार बरसी और उनके आगे बढ़ने में रुकावट बन गई, लेकिन मुसलमानों पर फुवार बनकर बरसी और उन्हें पाक कर दिया, शैतान की गन्दगी दूर कर दी और ज़मीन को हमवार कर दिया। इसकी वजह से रेत में कड़ाई आ गई और क़दम टिकने के लायक़ हो गए। ठहरना खुशगवार हो गया और दिल मज़बूत हो गए।

अहम सैनिक केन्द्रों की ओर इस्लामी सेना का बढ़ना

इसके बाद अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपनी फ़ौज को हरकत दी, ताकि मुश्रिकों से पहले बद्र के सोते पर पहुंच जाएं और उस पर
-रहीकुल मख़्तूम

इसके बाद आपने इन दोनों गुलामों से फ़रमाया, अच्छा, अब मुझे क़ुरैश के बारे में बताओ।

उन्होंने कहा, यह टीला जो घाटी के आखिरी मुहाने पर दिखाई दे रहा है, कुरैश उसी के पीछे हैं।

आपने पूछा, लोग कितने हैं?

हैं उन्होंने कहा, बहुत हैं ।

आपने पूछा, तायदाद कितनी है ?

उन्होंने कहा, हमें नहीं मालूम।

आपने फ़रमाया, हर दिन कितने ऊंट ज़िब्ह करते हैं ?

उन्होंने कहा, एक दिन नौ और एक दिन दस ।

आपने फ़रमाया, तब तो लोगों की तायदाद नौ सौ और एक हज़ार के बीच में है ।

पूछा, इनके अन्दर कुरैश के बड़े लोगों में से कौन-कौन हैं ? उन्होंने कहा, रबीआ के दोनों लड़के, उत्बा और शैबा और अबुल बख्तरी बिन हिशाम, हकीम बिन हिज़ाम, नौफ़ल बिन खुवैलद, हारिस बिन आमिर, तुऐमा बिन अदी, नज्ज्र बिन हारिस, ज़मआ बिन अस्वद, अबू जहल बिन हिशाम, उमैया बिन खल्फ़ और आगे कुछ लोगों के नाम गिनवाए ।

फिर आपने

अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने सहाबा की ओर मुतवज्जह होकर फ़रमाया, मक्का ने अपने जिगर के टुकड़ों को तुम्हारे पास लाकर डाल दिया है।

रहमतों की वर्षा

अल्लाह ने इसी रात पानी बरसा दिया, जो मुश्किों पर मूसलाधार बरसी और उनके आगे बढ़ने में रुकावट बन गई, लेकिन मुसलमानों पर फुवार बनकर बरसी और उन्हें पाक कर दिया, शैतान की गन्दगी दूर कर दी और ज़मीन को हमवार कर दिया। इसकी वजह से रेत में कड़ाई आ गई और क़दम टिकने के लायक़ हो गए। ठहरना खुशगवार हो गया और दिल मज़बूत हो गए।

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