
Yazid kafir tha ?? Part3




नए समाज का गठन
पहला मरहला
हम बयान कर चुके हैं कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम मदीने में बनू नज्जार के यहां जुमा के दिन 12 रबीउल अव्वल सन् 01 हि० मुताबिक़ 27 सितंबर सन् 622 ई० को हज़रत अबू अय्यूब अंसारी के मकान के सामने उतरे थे और उसी वक़्त फ़रमाया था कि इनशाअल्लाह (अगर अल्लाह ने चाहा तो यहीं मंज़िल होगी। फिर आप हज़रत अबू अय्यूब अंसारी के घर मुंतक़िल हो गए थे।
मस्जिदे नबवी का निर्माण
इसके बाद नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का पहला क़दम यह था कि आपने मस्जिद नबवी की तामीर शुरू की और इसके लिए वही जगह चुनी, जहां आपकी ऊंटनी बैठी थी। उस ज़मीन के मालिक दो यतीम बच्चे थे। आपने उनसे यह ज़मीन क़ीमत देकर खरीदी और मस्जिद बनाने में खुद भी शरीक हो गए। आप ईंट और पत्थर ढोते थे और साथ ही फ़रमाते जाते थे—
अल्लाहुम-म ला ऐ-श इल्ला ऐशल आखिरः
फफ़िर लिल अंसारि वल मुहाजिर:
(ऐ अल्लाह ! ज़िंदगी तो बस आखिरत की ज़िंदगी है, पस अंसार और मुहाजिरों को बख्श दे ।)
यह भी फ़रमाते-
हाज़ल हिमालु ला हिमा-ल खैब-र
हाज़ा अबर्रु रब्बिना व अतहरु
(यह बोझ ख़ैबर का बोझ नहीं है। यह हमारे पालनहार की क़सम ज़्यादा नेक और पाकीज़ा है ।)
आपके इस तरीक़े से सहाबा किराम रजि० के जोश व खरोश और सरगर्मी में बड़ी बढ़ोत्तरी हो जाती थी, चुनांचे सहाबा किराम कहते थे-
लइन क्र-अदना वन्नबीयु यामलु
ल-जा-क मिन्नल अमलुल मुजल्ललु (अगर हम बैठे रहें और नबी सल्ल० काम करें, तो हमारा यह काम गुमराही का काम होगा।)
उस ज़मीन में मुश्किों की कुछ क़ब्रें थीं। कुछ वीराना भी था। खजूर और ग़रक़द के कुछ पेड़ भी थे। अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मुश्किों की क़बें उखड़वा दीं, वीराना बराबर करा दिया और खजूरों और पेडों को काट कर क़िबले की ओर लगा दिया। (उस वक़्त क़िब्ला बैतुल मदिस था) दरवाज़े के बाज़ू के दोनों पाए पत्थर के बनाए गए, दीवारें कच्ची ईंट और गारे से बनाई गईं । छत पर खजूर की शाखाएं और पत्ते डलवा दिए गए और खजूर के तनों के खम्भे बना दिए गए। ज़मीन पर रेत और छोटी-छोटी कंकरियां (छर्रियां) बिछा दी गई। तीन दरवाज़े लगाए गए। क़िब्ले की दीवार से पिछली दीवार तक एक सौ हाथ लम्बाई थी, चौड़ाई भी उतनी या उससे कुछ कम थी। बुनियाद लगभग तीन हाथ गहरी थी।
आपने मस्जिद के बाज़ू में कुछ मकान भी बनाए, जिनकी दीवारें कच्ची ईंट की थी, और छत खजूर की कड़ियां देकर खजूर की शाखा और पत्तों से बनाई गई थी । यही आपकी बीवियों के हुजरे (कोठरी) थे। इन हुजरों की तामीर पूरी हो जाने के बाद आप हज़रत अबू अय्यूब अंसारी रज़ि० के मकान से यहीं आ गए।’
मस्जिद सिर्फ़ नमाज़ अदा करने के लिए न थी, बल्कि यह एक युनिवर्सिटी थी, जिसमें मुसलमान इस्लामी शिक्षाओं और हिदायतों का सबक़ हासिल करते थे और एक महफ़िल थी, जिसमें मुद्दतों अज्ञानतापूर्ण संघर्षों और खिंचावों, नफ़रतों और आपसी लड़ाइयों से दो चार रहने वाले क़बीले के लोग अब मेल-मुहब्बत से मिल-जुलकर रह रहे थे, साथ ही यह एक सेंटर था, जहां से इस छोटी-सी स्टेट की सारी व्यवस्था चलाई जाती थी और विभिन्न प्रकार की मुहिमें भेजी जाती थीं। इसके अलावा इसकी हैसियत एक पार्लियामेंट की भी थी जिसमें मज्लिसे शूरा और प्रशासन की सभाएं हुआ करती थीं ।
इन सबके साथ-साथ यह मस्जिद ही उन ग़रीब मुहाजिरों की एक अच्छी भली तायदाद का ठिकाना थी, जिनका वहां पर न कोई मकान था, न माल, न बीवी-बच्चे ।
फिर हिजरत के शुरू के दिनों ही में अज्ञान भी शुरू हुई। यह एक लाहूती नग्मा (अलौकिक गीत) था जो हर दिन पांच बार फ़िज़ा में गूंजता था और जिससे पूरी दुनिया कांप उठती थी। इसमें हर दिन पांच बार एलान किया जाता था कि अल्लाह के अलावा कोई इबादत के लायक़ नहीं और मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अल्लाह के रसूल हैं, इस तरह अल्लाह की किबियाई (सर्वोच्च सत्ता)
1. सहीह बुखारी 1/71, 555, 560, ज़ादुल मआद, 2/96
को छोड़कर और मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के लाए हुए दीन को छोड़कर इस सृष्टि के भीतर हर किबियाई का निषेध होता था और इस दुनिया के अन्दर हर दीन का इंकार होता था। इस अज्ञान को सपने के अन्दर देखने का शरफ़ एक बुज़ुर्ग सहाबी हज़रत अब्दुल्लाह बिन जैद बिन अब्द रब्बिही को हासिल हुआ, जिसे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने बाक़ी रखा। और उन्हीं से मिलता हज़रत उमर बिन खत्ताब रज़ियल्लाहु अन्हु ने सपना देखा था। पूरी घटना सुन्नत व सीरत की तमाम किताबों में मिलती है।
मुसलमानों को भाई-भाई बनाया गया
जिस तरह अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मस्जिदे नबवी की तामीर का एहतिमाम फ़रमा कर आपसी जोड़ और मेल-मुहब्बत के एक सेंटर को वजूद बख्शा, उसी तरह आपने इंसानी तारीख का एक और अति उज्ज्वल कारनामा अंजाम दिया, जिसे मुहाजिरों और अंसार के बीच मुवाखात (भाई-भाई बनाना) और भाईचारे का नाम दिया जाता है। इब्ने क़य्यिम लिखते हैं-
फिर अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हज़रत अनस बिन मालिक रजि० के मकान में मुहाजिरों और अंसार के बीच भाईचारा कराया था । कुल नव्वे आदमी थे, आधे मुहाजिर और आधे अंसार । भाईचारे की बुनियाद थी कि ये एक दूसरे के ग़म में शरीक होंगे और मौत के बाद नसबी रिश्तेदारों के बजाए यही एक दूसरे के वारिस होंगे। विरासत का यह हुक्म बद्र की लड़ाई तक चला, फिर यह आयत आई कि
‘नसबी रिश्तेदार एक दूसरे के ज़्यादा हक़दार हैं।’
(6: 331)
तो अंसार और मुहाजिरों में आपसी विरासत का हुक्म ख़त्म कर दिया गया, लेकिन भाईचारे का क़ौल व क़रार बाक़ी रहा।
कहा जाता है कि आपने एक और भाईचारा कराया था, जो खुद आपस में मुहाजिरों के बीच था, लेकिन पहली बात ही साबित है। यों ही मुहाजिर अपने आपसी इस्लामी भाईचारा, वतनी भाईचारा और रिश्ते और नातेदारी के भाईचारे की बुनियाद पर आपस में अब किसी भाईचारे के मुहताज न थे, जबकि मुहाजिर और अंसार का मामला इससे अलग था।2
1. तिर्मिज़ी, अस्सलातु बद-उल अज़ान, हदीस न० 189 (1/358, 359) अबू दाऊद, मुस्नद अहमद वग़ैरह ।
2. जादुल मआद
इस भाईचारे का मक़सूद यह था कि अज्ञानतापूर्ण पक्षपात खत्म हो, स्वाभिमान जो कुछ हो, इस्लाम के लिए हो। नस्ल, रंग और वतन के भेदभाव समाप्त हो जाएं। दोस्ती और दुश्मनी की बुनियाद इंसानियत और तक़्वा के अलावा कुछ और न हो ।
इस भाईचारे के साथ त्याग-भाव, सेवा-भाव, और प्रेम-भाव मिले-जुले पाए जा रहे थे और इसीलिए उसने इस नए समाज को बड़े अनोखे और बे-मिसाल कारनामों से भर दिया था।
चुनांचे सहीह बुखारी में रिवायत आती है कि मुहाजिर जब मदीना तशरीफ़ लाए, तो अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हज़रत अब्दुर्रहमान बिन औफ़ रज़ियल्लाहु अन्हु और साद बिन रबीअ रज़ियल्लाहु अन्हु के बीच भाईचारा करा दिया। इसके बाद हज़रत साद रज़ि० ने हज़रत अब्दुर्रहमान रज़ि० से कहा-
‘अंसार में मैं सबसे ज़्यादा मालदार हूं। आप मेरा माल दो हिस्सों में बांटकर (आधा ले ले) और मेरी दो बीवियां हैं। आप देख लें, जो ज़्यादा पसन्द हो, मुझे बता दें। मैं उसे तलाक़ दे दूं और इद्दत गुज़रने के बाद आप उससे शादी कर लें।’
हज़रत अब्दुर्रहमान ने कहा, ‘अल्लाह आपके बीवी-बच्चों और माल में बरकत दे, आप लोगों का बाज़ार कहां है ?’
लोगों ने उन्हें बनू कैनुकाअ का बाज़ार बतला दिया। वह वापस आए तो उनके पास कुछ फ़ायदे का पनीर और घी था। इसके बाद वह रोज़ाना जाते रहे । फिर एक दिन आए, तो उन पर पीलेपन का असर था।
नबी सल्ल० ने मालूम किया, यह क्या है ?
उन्होंने कहा, मैंने शादी की है। I
आपने फ़रमाया, औरत को मह कितना दिया है ?
बोले, एक नवात (गुठली) सोना। कहा जाता है कि उसकी क़ीमत उन दिनों पांच दिरहम थी और कहा जाता है कि चौथाई दीनार ।
इसी तरह हज़रत अबू हुरैरह रज़ि० से एक रिवायत आई है कि अंसार ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से अर्ज़ किया, ‘आप हमारे बीच और हमारे भाइयों के बीच हमारे खजूर के बाग़ बांट दें।’
आपने फ़रमाया, नहीं।
अंसार ने कहा, तब आप लोग यानी मुहाजिर हमारा काम कर दिया करें और
1. सहीह बुखारी, बाब ‘ईखाउन्नबी बैनलमुहाजिरीन वल अंसार’ 1/553
हम फल में आप लोगों को शरीक रखेंगे।
उन्होंने कहा, ठीक इससे अन्दाज़ा किया जा सकता है कि अंसार ने किस तरह बढ़-चढ़कर अपने मुहाजिर भाइयों का सत्कार किया था और कितनी मुहब्बत, निष्ठा और त्याग से काम लिया था और मुहाजिर उनकी इन कृपाओं का कितना आदर करते थे । चुनांचे उन्होंने इसका कोई ग़लत फ़ायदा नहीं उठाया, बल्कि उनसे सिर्फ़ उतना ही हासिल किया जिससे वे अपनी टूटी हुई अर्थव्यवस्था की कमर सीधी कर सकते थे ।
है, हमने बात सुनी और मानी।
और सच तो यह है कि यह भाईचारा अपूर्व सूझ-बूझ, विवेकपूर्ण राजनीति और मुसलमानों की ढेर सारी समस्याओं का एक बेहतरीन हल था।
इस्लामी सहयोग का क़रार
उल्लिखित भाईचारे की तरह अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने एक और वायदा क़रार कराया, जिसके ज़रिए सारे अज्ञानतापूर्ण झगड़ों, क़बीलेवार संघर्षों की बुनियाद ढा दी और अज्ञानतापूर्ण युग के रस्म व रिवाज के लिए कोई गुंजाइश न छोड़ी। नीचे इस क़ौल व क़रार को उसकी धाराओं सहित थोड़े में पेश किया जा रहा है।
यह लेख है मुहम्मद नबी सल्ल० की ओर से कुरैशी, यसरिबी और उनके आधीन होकर उनके साथ जुड़े रहने और जिहाद करने वाले मोमिनों और मुसलमानों के बीच कि
ये सब अपने मासिवा इंसानों से अलग एक उम्मत (समुदाय) हैं 1
2. मुहाजिर कुरैश अपनी पिछली हालत के मुताबिक़ आपस में दियत अदा करेंगे और ईमान वालों के दर्मियान भले तरीक़े से और इंसाफ़ की बुनियादों पर अपने क़ैदी का फ़िदया अदा करेंगे और उनका हर गिरोह भले तरीक़े पर और ईमान वालों के दर्मियान इंसाफ़ के साथ अपने क़ैदी का फ़िदया अदा करेगा।
3. ईमान वाले अपने बीच किसी बेकस को फ़िदया या दियत के मामले में भले तरीक़े के मुताबिक़ लेन-देन से महरूम न रखेंगे ।
1. सहीह बुखारी, बाब इज़ा क़ा-ल इक्फ़िनी मऊनतल नख्ल 1/312, फ़हुल बारी 4/337, हदीस न० 2049, साथ ही 2293, 3781, 3937, 5078, 5148, 5153, 5155, 5167, 6068, 6386, भाईचारे की घटना के लिए देखिए सहीह मुस्लिम हदीस न० 2529, सुनन अबी दाऊद हदीस न० 2529, अल-अदबुल मुफ़रद, हदीस न० 6083, मुस्नद अबी याला 4/366 वग़ैरह
4. सारे सच्चे ईमान वाले उस व्यक्ति के खिलाफ़ होंगे जो उन पर ज़्यादती करेगा, या ईमान वालों के दर्मियान जुल्म और गुनाह और ज्यादती और फ़साद के रास्ते को खोज रहा होगा।
5. इन सबके हाथ उस व्यक्ति के खिलाफ़ होंगे, चाहे वह उनमें से किसी का लड़का ही क्यों न हो।
6. कोई ईमान वाला किसी ईमान वाले को काफ़िर के बदले क़त्ल न करेगा 7. किसी ईमान वाले के खिलाफ किसी काफ़िर की मदद न करेगा। |
8. अल्लाह का ज़िम्मा (वचन) एक होगा और एक मामूली आदमी का दिया हुआ जिम्मा भी सारे मुसलमानों पर लागू होगा।
9. जो यहूदी हमारी पैरवी करने लगें, उनकी मदद की जाएगी और वे दूसरे मुसलमानों जैसे होंगे। न उन पर जुल्म किया जाएगा और न उनके खिलाफ़ सहयोग किया जाएगा।
10. मुसलमानों का समझौता एक होगा। कोई मुसलमान किसी मुसलमान को छोड़कर अल्लाह के रास्ते में हो रहे युद्ध के सिलसिले में सुलह नहीं करेगा, बल्कि सबके सब बराबरी और न्याय के आधार पर कोई क़ौल व क़रार करेंगे।
11. मुसलमान उस खून में एक दूसरे के बराबर होंगे, जिसे कोई अल्लाह के रास्ते में बहाएगा।
12. कोई मुश्कि कुरैश की किसी जान या माल को पनाह नहीं दे सकता और न किसी मोमिन के आगे उसकी हिफ़ाज़त के लिए रुकावट बन सकता है।
13. जो आदमी किसी ईमान वाले को क़त्ल करेगा और सबूत मौजूद होगा, उससे क्रसास (बदला) लिया जाएगा, सिवाए इस शक्ल के कि मक़्तूल का वली राज़ी हो जाए।
14. यह कि सारे ईमान वाले उसके खिलाफ़ होंगे। इनके लिए इसके सिवा कुछ हलाल न होगा कि उसके खिलाफ़ उठ खड़े हों।
15. किसी ईमान वाले के लिए हलाल न होगा कि किसी हंगामा बरपा करने वाले (या बिअती) की मदद करे और उसे पनाह दे और जो उसकी मदद करेगा या उसे पनाह देगा, उस पर क़ियामत के दिन अल्लाह की लानत और उसका ग़ज़ब होगा और उसका फ़र्ज़ और नफ़्ल कुछ भी क़ुबूल न किया जाएगा।
16. तुम्हारे बीच जो भी मतभेद पैदा होगा, उसे अल्लाह और मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की ओर पलटाया जाएगा।’
1. इब्ने हिशाम 1/502-503