Is the Nafs Connected to Shaytaan?

■ Is the Nafs Connected to Shaytaan?

You’ve probably heard this line in gatherings of the wise: ❝The Nafs is linked to Shaytaan.❞

But what does that even mean? Is your nafs (ego/self) evil? Is it the same as the devil? Or is there something deeper hiding beneath this one-liner that’s worth unraveling—slowly, like a secret whispered in the night?

Let’s start with a soft truth:

The nafs isn’t always your enemy… but it’s not your best friend either. It’s more like a wild animal inside you—untamed, reactive, and easily deceived. Shaytaan? Well, he’s the sly one who knows exactly how to whisper into that wild creature’s ear.

Imagine this:

You have a horse (nafs).
You are the rider (your soul ruh).

But someone is walking alongside, whispering into your horse’s ear, pulling it off the path. That’s Shaytaan.

So, is your nafs Shaytaan?

No. But it’s often his closest accomplice. His favorite listener. His most gullible friend.

In the Qur’an, Allah ﷻ describes 3 types of nafs:

1. Nafs al-Ammarah bis-Soo’ – the self that commands evil

2. Nafs al-Lawwamah – the self that blames and regrets

3. Nafs al-Mutma’innah – the self at peace, content with Allah ﷻ

That first one? Ammarah bis-soo’? That’s the one most tangled with Shaytaan. That’s the one that hears the whispers and runs toward them like a moth toward fire.

The Prophet Yusuf (عليه السلام) said it beautifully in the Qur’an:

وَمَآ أُبَرِّئُ نَفۡسِيٓۚ إِنَّ ٱلنَّفۡسَ لَأَمَّارَةُۢ بِٱلسُّوٓءِ إِلَّا مَا رَحِمَ رَبِّيٓۚ إِنَّ رَبِّي غَفُورࣱ رَّحِيمࣱ

❝Indeed, the soul is a persistent commander of evil, except those upon whom my Lord has mercy.❞

(Surah Yusuf, 12:53)

So yes, when people say “the nafs is connected to Shaytaan,” what they’re really saying is:

The nafs is the soil, and Shaytaan plants his seeds in it.

Let’s make it even more real…

Shaytaan whispers:

“Just one sin. Just this once.”

The nafs replies:

“Yes… why not? I deserve this pleasure.”

Shaytaan says:

“Don’t forgive them. Make them pay.”

The nafs flares up:

“Yes, how dare they! I won’t let it go.”

See how easily they dance together? Shaytaan leads. The nafs follows. Unless… unless your soul (the rider) is awake, alert, and anchored in Allah ﷻ.

But my dear readers, don’t despair. The nafs can be transformed. That wild horse can become obedient. The same nafs that once dragged you into darkness can become the nafs mutma’innah—the soul that Allah ﷻ will call back gently on the Day of Judgment:

Al-Fajr 89:27-28
يَآأَيَّتُهَا ٱلنَّفۡسُ ٱلۡمُطۡمَئِنَّةُ
ٱرۡجِعِيٓ إِلَىٰ رَبِّكِ رَاضِيَةࣰ مَّرۡضِيَّةࣰ

❝O tranquil soul, return to your Lord, pleased and pleasing.❞

That’s the goal. That’s the journey.

To move from being a puppet of Shaytaan to a servant of the Most Merciful.

If you feel that inner tug… that craving, that anger, that ego-flare… pause. Smile gently. And say:

❝Oh nafs, I know you hear him. But I choose to hear my Lord instead.❞

And with that intention, my dear readers, you break the link. And you begin the beautiful, sacred journey… from self to soul.

اَللّٰهُمَّ صَلِّ عَلَىٰ مُحَمَّدٍ وَّعَلَىٰ اٰلِ مُحَمَّدٍ

क़ुरआन में अल्लाह का क्या नज़रिया है मोहसिने इस्लाम हज़रत अबूतालिब अलैहिस्सलाम के बारे में*

*क़ुरआन में अल्लाह का क्या नज़रिया है मोहसिने इस्लाम हज़रत अबूतालिब अलैहिस्सलाम के बारे में*❓


अहलेबैत अलैहिस्सलाम से बुग़ज़ रखने वाले कुछ नाम निहाद मुसलमान अक्सर ये बात बोलते हैं कि हज़रत इमरान इब्ने अब्दुल मुत्तलिब अलैहिस्सलाम (हज़रत अबुतालिब अलैहिस्सलाम) मुसलमान नही बल्कि गैर मुस्लिम थे।आज हम इस ही बात को अल्लाह तआला के कलाम मतलब क़ुरआन पाक की आयतों से साबित करते हैं कि हज़रत अबुतालिब अलैहिस्सलाम सिर्फ़ मुसलमान ही नही बल्कि मोमिन के भी आगे के दर्जे मतलब मुत्तक़ी व परहेज़गार भी थे।बस यहाँ मेरी आप से सिर्फ़ एक ही गुज़ारिश है कि इस पूरी पोस्ट को पढ़ते वक़्त अपने दिमाग़ को खुला रखते हुए अपनी अक़्ल का इस्तेमाल करना है और साथ ही साथ अपने बुग़ज़ का चश्मा भी थोड़ी देर के लिए उतार के साइड में रख देना है।😊

चलिए बात शुरू करते हैं,ये बात उस वक़्त की है जब अब्रहा नाम के दुश्मने ख़ुदा ने मक्का पर हमला करने और खाना ए ख़ुदा, बैतुल्लाह मतलब काबा🕋 को तोड़ने की नीयत से अपनी हाथियों की फ़ौज लेकर निकला।

उस वक़्त मक्का में क़ुरैश के सरदार और बैतुल्लाह🕋 (काबा) के मुतवल्ली मतलब काबे के रख रखाव के ज़िम्मेदार रसूलअल्लाह saws के दादा हज़रत अब्दुल मुत्तलिब अलैहिस्सलाम थे।अब्रहा ने हज़रत अब्दुल मुत्तलिब के ऊँटों को अपने क़ब्ज़े में ले लिया तो हज़रत अब्दुल मुत्तलिब अलैहिस्सलाम अपने ऊँटों को छुड़ाने के लिए अब्रहा के पास गए तो उसने हैरत से पूछा कि मुझे तो लगता था कि तुम मेरे पास काबे को बचाने के लिए आओगे क्योंकि तुम उसके ज़िम्मेदार हो ,लेकिन यहाँ तो तुम सिर्फ़ अपने इन मामूली ऊँटों🐪 को बचाने आये हो ?

उसके इस सवाल पर हज़रत अब्दुल मुत्तलिब अलैहिस्सलाम ने सिर्फ़ एक जवाब दिया कि में इन ऊँटों का रब (मालिक) हूँ इसलिए में इनको बचाने आया हूँ, और काबे का जो रब है वो काबे को बचाएगा। (लोग तो हज़रत अबुतालिब अलैहिस्सलाम के ईमान के पीछे पड़े हैं,पर यहाँ तो उनके वालिद हज़रत अब्दुल मुत्तलिब अलैहिस्सलाम ने अपने इस जवाब से ये साबित कर दिया कि वो खुद ईमान वाले और अल्लाह पर यकीन रखने वाले थे,जब ही तो उन्होंने ये कहा कि जो काबे का मालिक है वो ही उसे बचाएगा।)

फिर वो पूरा वाक़या सबको मालूम है कि किस तरह से अबाबील नाम की छोटी छोटी चिड़ियाओं के ज़रिए अल्लाह ने बड़े बड़े हाथियों के लश्कर को भूसे की तरह मसल दिया था।और खानए काबा को टूटने से बचा लिया था।यहाँ पर कुछ लोग ये सवाल कर सकते हैं कि जब रसूलअल्लाह saws ही नही थे तो फिर उनके दादा को अल्लाह के बारे में कैसे मालूम था ? वो इसलिए मालूम था क्योंकि हज़रत अब्दुल मुत्तलिब अलैहिस्सलाम दीने इब्राहिम के पैरोकार थे।जिसके बारे में अल्लाह ने खुद क़ुरआन में फ़रमाया –

قُلْ صَدَقَ اللَّهُ ۗ فَاتَّبِعُوا مِلَّةَ إِبْرَاهِيمَ حَنِيفًا وَمَا كَانَ مِنَ الْمُشْرِكِينَ

[ अल-ए-इमरान – ९५ ]
*(ऐ रसूल) कह दो कि ख़ुदा ने सच फ़रमाया तो अब तुम मिल्लते इबराहीम (इस्लाम) की पैरवी करो जो बातिल से कतरा के चलते थे और मुशरेकीन से न थे*


तो क़ुरआन से ये बात साबित हो गई के जो दीने इब्राहिम अलैहिस्सलाम पर चलता है वो काफ़िर या मुशरिक नही होता,बल्कि अल्लाह को मानने वाला मोमिन ही होता है।अब आगे देखिए…

जब हज़रत अब्दुल मुत्तलिब अलैहिस्सलाम की वफ़ात का वक़्त करीब आया तो उन्होंने बैतुल्लाह मतलब काबे के निगरानी का मुतवल्ली हज़रत अबूतालिब अलैहिस्सलाम को बनाया और साथ ही साथ अपने तमाम बेटों को बुलाया और रसूलअल्लाह saws को भी बुलाया और चूँकि रसूलअल्लाह उस वक़्त बहुत छोटे थे तो हज़रत अब्दुलमुत्तलिब अलैहिस्सलाम ने अपने पोते मतलब रसूलअल्लाह से पूछा कि आप अब मेरे बाद इन सब में से किसकी किफ़ालत में किसकी पनाह में रहना चाहते हैं,तो हुज़ूर ने अपने तमाम चचाओं में से सिर्फ़ हज़रत अबूतालिब अलैहिस्सलाम को ख़ुद के लिए चुना।जबकि अल्लाह का क़ुरआन में कलाम देखिए –

لَّا يَتَّخِذِ الْمُؤْمِنُونَ الْكَافِرِينَ أَوْلِيَاءَ مِن دُونِ الْمُؤْمِنِينَ ۖ وَمَن يَفْعَلْ ذَٰلِكَ فَلَيْسَ مِنَ اللَّهِ فِي شَيْءٍ

(अल-ए-इमरान – 28)
*मोमिनीन मोमिनीन को छोड़ के काफ़िरों को अपना सरपरस्त न बनाऐं और जो ऐसा करेगा तो उससे ख़ुदा से कुछ सरोकार नहीं*

सूरा ए मुबारक आले इमरान की आयत 28 में अल्लाह ख़ुद ये फ़रमा रहा है कि जो ख़ुद मोमिन हो मतलब ईमानवाला हो वो किसी गैर मोमिन या काफ़िर को अपना सरपरस्त न बनाओ, जबकि ऊपर के वाकिए में तो खुद अल्लाह के रसूल saws हज़रत अबूतालिब अलैहिस्सलाम को अपना सरपरस्त बना रहे हैं और वो इसलिए ही हज़रत अबूतालिब अस को चुन रहे हैं क्योंकि अल्लाह का फ़रमान है कि किसी काफ़िर को अपना सरपरस्त न बनाना और वहाँ उस वक़्त उनके चचाओं में हज़रत अबुतालिब अलैहिस्सलाम के अलावा कोई मोमिन नही था इसलिए रसूलअल्लाह ने अपनी सरपरस्ती के लिए एक मोमिन हज़रत अबुतालिब अस को चुना,(आख़िर ये कैसे हो सकता है कि रसूलअल्लाह saws ख़ुद ही अल्लाह के हुक्म की मुख़ालिफत कर दें माज़ अल्लाह ?)

या तो उम्मत ज़्यादा जानती है या रसूलअल्लाह saws ज़्यादा जानते हैं अबुतालिब अलैहिस्सलाम के बारे में,पता नही किसको ज़्यादा हक़ीक़त मालूम है उनकी ! ख़ैर …

अब आगे बात करते हैं, में आप की ख़िदमत में एक ऐसी चीज़ पेश करना चाहता हूँ कि उसके बाद तो ये सारा किस्सा ही ख़त्म हो जाएगा कि हज़रत अबुतालिब अलैहिस्सलाम मोमिन थे या नही !

अब फिर में अल्लाह तआला की ही किताब यानी क़ुरआन मजीद जिसमें किसी भी तरह की कमी नही है जिसमे अव्वल से आख़िर तक हर बात का इल्म मौजूद है उसमें से एक आयत पेश करता हूँ, देखिये-

وَمَا لَهُمْ أَلَّا يُعَذِّبَهُمُ اللَّهُ وَهُمْ يَصُدُّونَ عَنِ الْمَسْجِدِ الْحَرَامِ وَمَا كَانُوا أَوْلِيَاءَهُ ۚ إِنْ أَوْلِيَاؤُهُ إِلَّا الْمُتَّقُونَ وَلَـٰكِنَّ أَكْثَرَهُمْ لَا يَعْلَمُونَ

(अल-अनफाल – 34)
और जब ये लोग लोगों को मस्जिदुल हराम (ख़ान ए काबा की इबादत) से रोकते है तो फिर उनके लिए कौन सी बात बाक़ी है कि उन पर अज़ाब न नाज़िल करे और ये लोग तो ख़ानाए काबा के मुतवल्ली भी नहीं (फिर क्यों रोकते है) *इसके मुतवल्ली तो सिर्फ परहेज़गार लोग हैं* मगर इन काफ़िरों में से बहुतेरे नहीं जानते


सूरा ए अनफाल की आयत नम्बर 34 में अल्लाह तआला फ़रमा रहा है कि जब मक्के के काफ़िर दूसरे मोमिन लोगों को बैतुल्लाह मतलब काबे में इबादत से रोकते हैं तो अब कोनसी बात है कि इन पर अज़ाब नाज़िल न करे, और सबसे बड़ी बात तो ये की *ये जो लोग काबे में इबादत से रोक रहे हैं ये तो काबे के मुतवल्ली (care taker) मतलब वहाँ के ज़िम्मेदार भी नही हैं फिर क्यों रोकते हैं, बल्कि इस काबे के मुतवल्ली तो सिर्फ़ परहेज़गार लोग हैं* मगर इस बात को ये काफ़िर लोग नही जानते।


यहाँ पर एक बात तो अच्छे से समझ में आ गई के काबे के मुतवल्ली जो थे वो सिर्फ़ मुसलमान ही नही बल्कि मोमिन ही नही बल्कि इस से भी एक दर्जा ऊपर यानी मुत्तक़ी (परहेज़गार) के दर्जे पर फ़ाइज़ होते हैं।और दुनिया इस बात को अच्छे से जानती है कि हज़रत अब्दुल मुत्तलिब अस के बाद ख़ान ए काबा के मुतवल्ली हज़रत अबुतालिब अलैहिस्सलाम ही थे उन्ही के पास ख़ान ए काबा की तमाम चाबियाँ मौजूद थीं,तब ही तो हज़रत अली अलैहिस्सलाम की काबे में विलादत के वक़्त लोग हैरत में थे कि जब काबे की चाबियाँ हज़रत अबुतालिब अलैहिस्सलाम के पास मौजूद थीं तो फिर ये मौला अली की वालिदा के काबे में जाने के वक़्त दीवार क्यों फट गई ??

ख़ैर वो अलग बात है,अब यहाँ क़ुरआन से ही एक और आयत पेश करदूँ,देखिये –

أَلَمْ يَجِدْكَ يَتِيمًا فَآوَىٰ

(अद-धुहा – 6)
*क्या उसने (अल्लाह ने) तुम्हें यतीम पाकर (अबू तालिब की) पनाह न दी (ज़रूर दी)*


सूरा ए मुबारक धुहा की आयत नम्बर 6 में अल्लाह तआला रसूलअल्लाह saws को मुख़ातिब कर के फ़रमा रहा है कि जब आप यतीम थे तो क्या मेने आपको पनाह नही दी ?? और सबको मालूम है कि रसूलअल्लाह saws को हज़रत अबुतालिब अलैहिस्सलाम के अलावा किसी ने पनाह नही दी बल्कि रसूलअल्लाह के सबसे बड़े मददगार और जाँनिसार हज़रत अबुतालिब ही थे जो रसूलअल्लाह के बिस्तर पर उनकी जगह अपने बेटों को सुला देते थे कि अगर कुफ़्फ़ार उन पर हमला करें तो रसूलअल्लाह की जान बच जाए भले ही खुद के बेटों की जान चली जाए (अल्लाह हो अकबर)

अब यहाँ पर सबसे बड़ा सवाल के क्या मआज़ अल्लाह किसी काफ़िर के अमल को अल्लाह अपना खुदका अमल बता सकता है ? सब यही कहेंगे हरगिज़ नही,क्यों नही ? इसलिए के अगर काफ़िर के अमल को अपना अमल बता दिया तो वो फिर बुरा नही बल्कि अच्छा और सवाब का अमल समझा जाएगा,और करने वाला गुनाहगार नही बल्कि नेक और मोमिन ही समझा जाएगा।


*उम्मीद है कि क़ुरआन से इतने दलाइल देने के बाद अब हर साहिबे अक़्ल को ये बात अच्छे से समझ मे आ गई होगी कि अल्लाह तआला की नज़र में हज़रत अबूतालिब अलैहिस्सलाम सिर्फ़ मुसलमान ही नही बल्कि मोमिन व परहेज़गार भी हैं।जिन्होंने सिर्फ़ ज़बान से चिल्ला चिल्ला के नही बल्कि अपने हर अमल से ख़ुदको मोमिन व परहेज़गार मुसलमान साबित किया।*

आख़िर में कुछ लाइन मोहसिने इस्लाम हज़रत अबुतालिब अलैहिस्सलाम की शान में मुलाहिज़ा फरमाइए –


🙏🙏🙏❤🙏🙏🙏
*मै हूँ अबू तालिब मेरी पहचान यही है.!*
*कहते हो नबुवत जिसे, गोद मे पली है.!*
*पैदा हुआ घर मे मेरे पयम्बर ए आखिर.!*
*बेटे की विलादत मेरे काबे मे हुई है.!*
*घर मे है नबुवत मेरे घर मे है इमामत.!*
*जो मलिका ए ज़न्नत है बहू मुझको मिली है.!*
*क्या है मेरा ईमान जाओ पूछो ख़ुदा से.!*
*बचपन मे रिसालत मेरे सीने पे रही है.!*
*फतवा तो लगाते हो मगर ये याद रखना.!*
*गैब से औलाद मेरी सब देख रही है….!*

🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
*मोहसिन ए इस्लाम हक़ अबू तालिब अलैहिस्सलाम*
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

Qurani Elan-e-Wilayat-e-Sayyiduna Maula Ali Alaihis Salam

*Qurani Elan-e-Wilayat-e-Sayyiduna Maula Ali Alaihis Salam*

Qurani Ayat:
اِنَّمَا وَلِیُّكُمُ اللّٰهُ وَرَسُوْلُهٗ وَالَّذِیْنَ اٰمَنُوا الَّذِیْنَ یُقِیْمُوْنَ الصَّلٰوةَ وَیُؤْتُوْنَ الزَّكٰوةَ وَهُمْ رٰكِعُوْنَ

Tarjuma:
Beshak tumhara wali to Allah, us ka Rasool (Sallallahu Alaihi Wa Aalihi Wasallam) hai, aur (saath) woh imaan wale hain jo namaz qayam karte hain aur zakat ada karte hain, aur woh (Allah ke huzoor aajzi se) jhukne wale hain.

(Surah Al-Ma’idah, Ayat 55)

*Shaan-e-Nuzool* :
Mufassireen ke mutabiq, yeh ayat us waqt naazil hui jab Sayyiduna Maula Ali Alaihis Salam nafl namaz mein rukoo ki haalat mein thay. Ek mohtaaj sa’il masjid mein aaya aur sawal karne laga. Sayyiduna Maula Ali Alaihis Salam ne ibaadat mein mashghool rehte hue apni angoothi utaar kar us ko de di. Allah Ta’ala ne Sayyiduna Maula Ali Alaihis Salam ke is amal ko sarahte hue yeh ayat naazil farmayi aur unhein momineen ka wali qarar diya.

Yeh waaqia kai tafaseer mein mazkoor hai aur kaseer riwayaat ke zariye sabit hai ke yeh ayat Hazrat Sayyiduna Maula Ali Alaihis Salam ki shaan mein naazil hui.

*Chand Muntakhib Tafaseer:*

1. Tafseer Mazhari
2. Ad-Durr Al-Manur
3. Tafseer Al-Qurtubi
4. Tafseer Al-Baghawi
5. Tafseer Ibn Abi Hatim
6. Tafseer Ibn Atiyah
7. At-Tafseer Al-Kabeer (Imam Razi)
8. Tafseer Al-Kashshaaf (Zamakhshari)
9. Fath-ur-Rahman fi Tafseer Al-Qur’an
10. Zad Al-Maseer (Ibn Jawzi)
11. Tafseer An-Nasafi
12. Tafseer Ibn Arabi

क्या रसूल अल्लाह saws ने अल्लाह के हुक्म से ग़दीर ए ख़ुम में मौला अली अलैहिस्सलाम को अपना जानशीन और खलीफ़ा बनाया था ??*

*क्या रसूल अल्लाह saws ने अल्लाह के हुक्म से ग़दीर ए ख़ुम में मौला अली अलैहिस्सलाम को अपना जानशीन और खलीफ़ा बनाया था ??*


मेरे दीनी भाइयों अस्सलामो अलैकुम,हमनें अक्सर देखा है कि शिया हज़रात 18 ज़िलहज्ज को हर साल ईद ए ग़दीर के नाम से खुशी मनाते हैं और जब उनसे सवाल किया जाता है कि आप लोग ये ईद(खुशी) क्यों मनाते हैं तो उल्टा वो हमसे ये सवाल करने लगते हैं कि आप लोग(अहलेसुन्नत) ये खुशी क्यों नही मानते??

आज हम इस ही मौज़ू पर बात करते हैं कि ये मैटर क्या है और इसकी सच्चाई कितनी है?

शिया हज़रात का कहना है कि इस दिन मतलब 18 ज़िलहज्ज सन 10 हिजरी को जब रसूलअल्लाह हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा स्वल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम अपने आख़री हज को अदा कर के मक्का से वापस मदीना तशरीफ़ ला रहे थे और उनके साथ उनके कम ओ बेश सवा लाख सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुमा अजमाइन मौजूद थे तो मदीने से कुछ किलोमीटर पहले ग़दीर ए ख़ुम नामी जगह पर हुज़ूर पाक पर हज़रत जिब्राईल अलैहिस्सलाम अल्लाह सुब्हानहु व तआला की “वही” लेकर तशरीफ़ लाये जो कि सूरा ए मायदा की आयत नम्बर 67 है–

۞ يَا أَيُّهَا الرَّسُولُ بَلِّغْ مَا أُنزِلَ إِلَيْكَ مِن رَّبِّكَ ۖ وَإِن لَّمْ تَفْعَلْ فَمَا بَلَّغْتَ رِسَالَتَهُ ۚ وَاللَّهُ يَعْصِمُكَ مِنَ النَّاسِ ۗ إِنَّ اللَّهَ لَا يَهْدِي الْقَوْمَ الْكَافِرِينَ

(अल-माइदा – 67)
*ऐ रसूल जो हुक्म तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से तुम पर नाज़िल किया गया है पहुंचा दो और अगर तुमने ऐसा न किया तो (समझ लो कि) तुमने उसका कोई पैग़ाम ही नहीं पहुंचाया और (तुम डरो नहीं) ख़ुदा तुमको लोगों के शर से महफ़ूज़ रखेगा ख़ुदा हरगिज़ काफ़िरों की क़ौम को मंज़िले मक़सूद तक नहीं पहुंचाता*


👆इस आयत में अल्लाह तआला फ़रमा रहा है कि ए रसूल जो हुक्म तुम्हारे परवरदिगार की जानिब से तुम पर नाज़िल किया गया है वो उम्मत तक पहुँचा दीजिए और अगर(अल्लाह ने पूरे क़ुरआन में कहीं भी हुज़ूर पाक पर इतना ज़ौर नही दिया) आप ने ये हुक्म नही पहुँचाया तो मतलब आप ने अपनी पूरी ज़िंदगी मे जो भी तकलीफ़ उठायी हैं अल्लाह के दीन के ख़ातिर वो सब बेकार चली जाएंगी(अल्लाह हो अकबर)।

मतलब इस बार जो हुक्म ने बशकले वही नाज़िल किया है वो बहुत ही अहम व आला और ज़रूरी काम है जिससे पूरी कारे रिसालत पर बात आ गई !आख़िर ऐसा कोनसा काम व हुक्म था?

फिर जब ये आयत नाज़िल हो गई तो अल्लाह के रसूल ने तमाम सहाबा किराम को हुक्म दिया कि सब यहीँ रुक जाएँ एक ज़रूरी ऐलान करना है, फिर हुज़ूर ने फ़रमाया के जो लोग आगे निकल गए हैं उन्हें वापस बुलाया जाए और जो अभी यहाँ तक पहुँचे नही है उनका इंतेज़ार किया जाए।

*(आख़िर ऐसा क्या ज़रूरी और गैर मामूली पैग़ाम था जिसके लिए अल्लाह ने भरी धूप में जबकि मदीना कुछ ही दूर रह गया था उसके बावजूद भी लोगों को ज़हमत में मुब्तिला होना पड़ा ?)*

उसके बाद जब सब असहाबे किराम जिनकी तादाद लगभग सवा लाख थी एक जगह जमा हो गए तो फिर हुज़ूर ने फ़रमाया के मेरे लिए एक मिम्बर तय्यार किया जाए अब उस मैदान में मिम्बर कहाँ से आता इसलिए तमाम ऊँटो के कजावा जिसपर बैठा जाता है उनको एक जगह इकट्ठा किया और उनके ढेर पर हुज़ूर पाक जाकर खड़े हो गए और ख़ुत्बा देना शुरू किया,और अपने पास हज़रत अली को खड़ा कर लिया।ख़ुतबे में अल्लाह तआला की हम्द व सना करने के बाद हुज़ूर ने फ़रमाया के “ए लोगों में भी आदमी हुँ क़रीब है कि मेरे रब्ब का भेजा हुआ मौत का फरिश्ता पैग़ाम ए अजल लाए और में क़ुबूल कर लूँ, में तुम में दो बड़ी चीज़ें छोड़े जाता हूँ पहली तो अल्लाह की किताब है और दूसरी मेरे अहलेबैत, में तुम्हे अपने अहलेबैत के बारे मैं अल्लाह याद दिलाता हूँ, तीन बार यही फ़रमाया।
उसके बाद हुज़ूर ने तमाम असहाबे किराम रज़ियल्लाहु अन्हू से सवाल किया कि क्या में आप सब पर और तमाम मोमिनों पर उनकी नफ्सों और जानों से ज़्यादा हक़ नही रखता? सबने मिलकर फ़रमाया बिल्कुल आप हम सब की जानों और नफ्सों पर हमसे ज़्यादा हक़ रखते हैं।फिर हुज़ूर ने फ़रमाया के “अल्लाह तुम्हारा मौला (सरपरस्त,आक़ा) है में अल्लाह का रसूल तुम्हारा मौला (सरपरस्त,आक़ा) हूँ और जिस जिस का भी में मौला हुँ उस उस के ये अली भी मौला (सरपरस्त, आक़ा) हैं।” (ये कहते वक़्त हुज़ूर ने हज़रत अली का हाथ अपने हाथ से बुलन्द फ़रमा दिया)।और तमाम असहाबे किराम को हुक्म दिया कि वो सब हज़रत अली की विलायत की मुबारकबाद पेश करें।तो सबसे पहले हज़रत उमर ने हज़रत अली को इन अल्फ़ाज़ में मुबारकबाद पेश की के बखिन बखिन(मुबारक हो) ए इब्ने अबुतालिब आज से आप मेरे और तमाम मोमेनीन के मौला हो गए।फिर एक एक कर के तमाम सहाबा ने मौला अली को मुबारकबाद पेश की और ये सिलसिला तीन दिन तक चलता रहा।

*क्या इस वाक़ये की सनद अहलेसुन्नत की कुतुब बिलखुसुस सहा सित्ता में भी मिलती है या ये सिर्फ शियाओं की किताबों में ही पाया जाता है ?*
*आईये देखते हैं !*➡️


Musnad Ahmed Hadees # 12306

۔ (۱۲۳۰۶)۔ عَنْ عَبْدِ الرَّحْمٰنِ بْنِ أَبِی لَیْلٰی قَالَ: شَہِدْتُ عَلِیًّا رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہُ فِی الرَّحَبَۃِیَنْشُدُ النَّاسَ، أَنْشُدُ اللّٰہَ مَنْ سَمِعَ رَسُولَ اللّٰہِ صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَسَلَّمَ یَقُولُیَوْمَ غَدِیرِ خُمٍّ: ((مَنْ کُنْتُ مَوْلَاہُ فَعَلِیٌّ مَوْلَاہُ۔)) لَمَا قَامَ فَشَہِدَ قَالَ عَبْدُ الرَّحْمٰنِ: فَقَامَ اثْنَا عَشَرَ بَدْرِیًّا، کَأَنِّی أَنْظُرُ إِلٰی أَحَدِہِمْ فَقَالُوْا: نَشْہَدُ أَنَّا سَمِعْنَا رَسُولَ اللّٰہِ صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَسَلَّمَ یَقُولُیَوْمَ غَدِیرِ خُمٍّ: ((أَلَسْتُ أَوْلٰی بِالْمُؤْمِنِینَ مِنْ أَنْفُسِہِمْ، وَأَزْوَاجِی أُمَّہَاتُہُمْ؟)) فَقُلْنَا: بَلٰی،یَا رَسُولَ اللّٰہِ!، قَالَ: ((فَمَنْ کُنْتُ مَوْلَاہُ فَعَلِیٌّ مَوْلَاہُ، اللَّہُمَّ وَالِ مَنْ وَالَاہُ، وَعَادِ مَنْ عَادَاہُ۔)) (مسند احمد: ۹۶۱)


अहलेसुन्नत की मशहूर किताब मुसनद अहमद शरीफ में 12306 नम्बर हदीस में मिलता है कि अब्दुर्रहमान से मरवी है, वो कहते हैं मैं रहबा मे सैय्यदना अली रज़ियल्लाहु अन्हू की ख़िदमत में हाज़िर था,सैय्यदना अली लोगों को अल्लाह का वास्ता देकर कह रहे थे “मैं उस आदमी को अल्लाह का वास्ता देकर कहता हूँ जिसने ग़दीर ए वाले दिन रसूलअल्लाह स आ व स को ये फ़रमाते हुए सुना में *जिसका मौला हूँ अली भी उसके मौला हैं* वो उठ कर गवाही दे,ये सुन कर बारह बदरी सहाबा खड़े हुए वो मंज़र मेरी आँखों के सामने है, गोया मैं उनमें से हर एक को देख रहा हूँ, उनसब ने कहा हम गवाही देते हैं कि हमने ग़दीर ए ख़ुम के दिन रसूलअल्लाह को ये फ़रमाते हुए सुना:क्या में मोमिनों पर उनकी जानों से ज़्यादा हक़ नहीं रखता?और क्या मेरी अज़वाज उनकी माएँ नही हैं?हमने कहा ए अल्लाह के रसूल ! बिलकुल बात ऐसी ही है फिर आप अलैहिस्सलाम ने ये फ़रमाया:में जिसका मौला हूँ अली भी उसके मौला हैं, ए अल्लाह तू उस आदमी को दोस्त रख जो अली को दोस्त रखता हो है और जो अली से दुश्मनी रखे ए अल्लाह तू भी उस शख्स से दुश्मनी रख।


*यहाँ पर ये बात बता देना भी ज़रूरी है कि क्या मौला अली की विलायत क़ुरआन से भी साबित है?आईये देखते हैं👉*

إِنَّمَا وَلِيُّكُمُ اللَّهُ وَرَسُولُهُ وَالَّذِينَ آمَنُوا الَّذِينَ يُقِيمُونَ الصَّلَاةَ وَيُؤْتُونَ الزَّكَاةَ وَهُمْ رَاكِعُونَ

[ अल-माइदा  – ५५ ]
*(ऐ ईमानदारों) तुम्हारे मालिक सरपरस्त तो बस यही हैं ख़ुदा और उसका रसूल और वह मोमिनीन जो पाबन्दी से नमाज़ अदा करते हैं और हालत रूकूउ में ज़कात देते हैं*

👆सूरा मायदा की आयत नम्बर 55 में आया है कि अल्लाह तआला फ़रमाता है कि ए ईमानदारों तुम्हारा मालिक व सरपरस्त तो बस यही हैं ख़ुदा और उसके रसूल और वह मोमेनीन जो पाबन्दी से नमाज़ अदा करते हैं और *हालते रुकू में ज़कात देते हैं ।* मतलब नमाज़ की हालत में रुकू के वक़्त ज़कात अदा करें।अहलेसुन्नत के मशहूर आलिम अल्लामा जलालुद्दीन सयूती अपनी  किताब तफ़्सीर ए दर्रे मंसूर में फ़रमाते हैं कि इस आयत का शाने नुज़ूल ये है कि एक वक़्त जब मस्जिद में सब लोग नमाज़ पढ़ रहे थे उस ही वक़्त एक साइल(माँगने वाला)वहाँ आया और अल्लाह के नाम पर माँगा, जब किसी ने उस पर तवज्जो नही दी तो वो जाने लगा,लेकिन फिर उसकी नज़र हज़रत अली पर पड़ी जो वहीं नमाज़ अदा कर रहे थे और हालते रुकू में थे जिन्होंने उँगली से इशारा किया कि मेरी ये अँगूठी लेजा।और माँगने वाले ने उनके हाथ की उँगली से वो अँगूठी उतार ली।तो अल्लाह तआला को हज़रत अली की ये अदा इतनी पसँद आयी के उसने ये सरपरस्ती वाली आयात हज़रत अली की शान में उतार दी।
*क़ुरआन पाक की इस आयात से ये भी साबित हो गया कि ईमानदारों का मालिक व सरपरस्त अल्लाह और उसके रसूल के अलावा हज़रत अली भी हैं।*

अब कुतुब ए अहलेसुन्नत से मुख़्तसर से वक़्फे में कुछ और रिवायात व अहादीस देख लेते हैं ग़दीर ए ख़ुम के हवाले से👉

Musnad Ahmed Hadees # 12303

۔ (۱۲۳۰۳)۔ عَنْ مَیْمُونٍ أَبِی عَبْدِ اللّٰہِ قَالَ: قَالَ زَیْدُ بْنُ أَرْقَمَ وَأَنَا أَسْمَعُ: نَزَلْنَا مَعَ رَسُولِ اللّٰہِ ‌صلی ‌اللہ ‌علیہ ‌وآلہ ‌وسلم  بِوَادٍ یُقَالُ لَہُ وَادِی خُمٍّ، فَأَمَرَ بِالصَّلَاۃِ فَصَلَّاہَا بِہَجِیرٍ، قَالَ: فَخَطَبَنَا وَظُلِّلَ لِرَسُولِ اللّٰہِ ‌صلی ‌اللہ ‌علیہ ‌وآلہ ‌وسلم  بِثَوْبٍ عَلٰی شَجَرَۃِ سَمُرَۃٍ مِنَ الشَّمْسِ، فَقَالَ: ((أَلَسْتُمْ تَعْلَمُونَ أَوَلَسْتُمْ تَشْہَدُونَ أَنِّی أَوْلٰی بِکُلِّ مُؤْمِنٍ مِنْ نَفْسِہِ۔)) قَالُوا: بَلٰی، قَالَ: ((فَمَنْ کُنْتُ مَوْلَاہُ فَإِنَّ عَلِیًّا مَوْلَاہُ، اَللّٰہُمَّ عَادِ مَنْ عَادَاہُ وَوَالِ مَنْ وَالَاہُ۔))(مسند احمد: ۱۹۵۴۰)

मुसनद अहमद हदीस नम्बर 12303-सैयदना ज़ैद बिन अरक़म रज़ियल्लाहु अन्हू से मरवी है वो कहते हैं:हम नबीए करीम स अ व स के साथ एक वादी में उतरे,उसको वादिये ख़ुम कहते थे, पस आप अलैहिस्सलाम ने नमाज़ का हुक्म दिया और सख़्त गर्मी में ज़ोहर की नमाज़ पढ़ाई,फिर आप अलैहिस्सलाम ने ख़ुत्बा दिया और धूप से बचाने के लिए कीकर के दरख़्त पर कपड़ा डाल कर आप अलैहिस्सलाम पर साया किया गया फिर आप स अ व स ने फ़रमाया: क्या तुम जानते नही हो या क्या तुम ये गवाही नही देते के में हर मोमिन के उसके नफ़्स से भी ज़्यादा क़रीब हुँ??सहाबा ने कहा जी क्यों नही,फिर आप अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया: “में जिसका मौला हूँ अली भी उसका मौला है।”

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   ۔ Al-Silsila-tus-Sahi Hadees # 3589
قَالَ صلی اللہ علیہ وسلم : مَنْ كُنْتُ مَوْلَاهُ فَعَلِيٌّ مَوْلَاهُ، اللهُمَّ وَالِ مَنْ وَّالَاهُ وَعَادِ مَنْ عَادَاهُ . ورد من حدیث …..

अहलेसुन्नत की एक और मशहूर किताब अल सिलसिलतुस साहिहा की रिवायात नम्बर 3589 में आया है कि “आप स्वल्लल्लाहो अलैह व आलेही व सल्लम ने फ़रमाया: जिसका में मौला हूँ अली भी उसका मौला है…….”


👉➡️  Jam e Tirmazi Hadees # 3713

حَدَّثَنَا مُحَمَّدُ بْنُ بَشَّارٍ، حَدَّثَنَا مُحَمَّدُ بْنُ جَعْفَرٍ، حَدَّثَنَا شُعْبَةُ، عَنْ سَلَمَةَ بْنِ كُهَيْلٍ، قَال:‏‏‏‏ سَمِعْتُ أَبَا الطُّفَيْلِ يُحَدِّثُ، ‏‏‏‏‏‏عَنْ أَبِي سَرِيحَةَ أَوْ زَيْدِ بْنِ أَرْقَمَ،‏‏‏‏ عَنِ النَّبِيِّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قَالَ:‏‏‏‏    مَنْ كُنْتُ مَوْلَاهُ فَعَلِيٌّ مَوْلَاهُ   . قَالَ أَبُو عِيسَى:‏‏‏‏ هَذَا حَسَنٌ صَحِيحٌ غَرِيبٌ، ‏‏‏‏‏‏وَقَدْ رَوَى شُعْبَةُ هَذَا الْحَدِيثَ، ‏‏‏‏‏‏عَنْ مَيْمُونٍ أَبِي عَبْدِ اللَّهِ، عَنْ زَيْدِ بْنِ أَرْقَمَ، عَنِ النَّبِيِّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ نَحْوَهُ وَأَبُو سَرِيحَةَ هُوَ حُذَيْفَةُ بْنُ أَسِيدٍ الْغِفَارِيُّ صَاحِبُ النَّبِيِّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ.

अहलेसुन्नत की एक और मशहूर किताब जामे तिर्मिज़ी में हदीस नम्बर 3713 में भी आया है कि नबी करीम अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया “मन कुंतो मौला हु फ़ अलिउन मौला हु”….

👉➡️ Sunnan e Ibn e Maja Hadees # 116

حَدَّثَنَا عَلِيُّ بْنُ مُحَمَّدٍ، ‏‏‏‏‏‏حَدَّثَنَا أَبُو الْحُسَيْنِ، ‏‏‏‏‏‏أَخْبَرَنِي حَمَّادُ بْنُ سَلَمَةَ، ‏‏‏‏‏‏عَنْ عَلِيِّ بْنِ زَيْدِ بْنِ جُدْعَانَ، ‏‏‏‏‏‏عَنْ عَدِيِّ بْنِ ثَابِتٍ، ‏‏‏‏‏‏عَنِ الْبَرَاءِ بْنِ عَازِبٍ، ‏‏‏‏‏‏قَالَ:‏‏‏‏ أَقْبَلْنَا مَعَ رَسُولِ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ فِي حَجَّتِهِ الَّتِي حَجَّ، ‏‏‏‏‏‏فَنَزَلَ فِي بَعْضِ الطَّرِيقِ فَأَمَرَ الصَّلَاةَ جَامِعَةً، ‏‏‏‏‏‏فَأَخَذَ بِيَدِ عَلِيٍّ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ، ‏‏‏‏‏‏فَقَالَ:‏‏‏‏   أَلَسْتُ أَوْلَى بِالْمُؤْمِنِينَ مِنْ أَنْفُسِهِمْ؟   قَالُوا:‏‏‏‏ بَلَى، ‏‏‏‏‏‏قَالَ:‏‏‏‏   أَلَسْتُ أَوْلَى بِكُلِّ مُؤْمِنٍ مِنْ نَفْسِهِ؟   قَالُوا:‏‏‏‏ بَلَى، ‏‏‏‏‏‏قَالَ:‏‏‏‏   فَهَذَا وَلِيُّ مَنْ أَنَا مَوْلَاهُ، ‏‏‏‏‏‏اللَّهُمَّ وَالِ مَنْ وَالَاهُ، ‏‏‏‏‏‏اللَّهُمَّ عَادِ مَنْ عَادَاهُ  .

अहलेसुन्नत की बहुत ही मारूफ़ किताब सुनने इब्ने माजा की हदीस नम्बर 116 में भी आया है की हुज़ूर अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया: मनकुंतो मौला हु फहाज़ा अलिउन मौला हु (जिस जिस का भी में मौला व आक़ा व सरदार हुँ उन सब का भी ये अली आक़ा व सरदार है।)


*खुलासा*👉➡️

*इन सब बातों से जो हमें कुरआन वा हदीस से मिलीं हैं इन से ये साबित हो जाता है कि ग़दीर ए ख़ुम में मौला अली अलैहिस्सलाम को हुज़ूर पाक saws ने अल्लाह के हुक्म से अपना जानशीन और खलीफ़ा बनाया था अब जो इस बात को न माने वो अल्लाह और रसूल अल्लाह saws के हुक्म का मुनकिर माना जाएगा और सब मुसलमान इस बात को अच्छे से जानते हैं के अल्लाह और रसूल का मुनकिर कम से कम मुसलमान तो नहीं कहलाता ।*🙏

*वक़्त की कमी और पोस्ट ज़्यादा लम्बी न हो जाये इसको मद्देनज़र रखते हुए यहीँ इस बात को तमाम करते हैं कि ग़दीर ए ख़ुम के रोज़ की ख़ुशी मनाना और हज़रत अली की विलायत की एक दूसरे को मुबारकबाद पेश करना सुन्नत भी है और सहाबा किराम से साबित भी है और इसे किसी एक फ़िरके से मनसूब करना भी जायज़ नही बल्कि ये तो तमाम आलमे इस्लाम के लिए ईद व मसर्रत व खुशी का दिन है।*


*🖋️अबु मोहम्मद*👳‍♂️