
हज़रत ख़दीजा रज़ि० से विवाह
जब आप मक्का वापस तशरीफ़ लाए और हज़रत खदीजा रज़ि० ने अपने माल में ऐसी अमानत और बरकत देखी, जो इससे पहले कभी न देखी थी और इधर उनके दास मैसरा ने आपके मीठे चरित्र और उच्च आचरण, ठंडी सोच, सच्चाई और ईमानदाराना तौर-तरीक़े के बारे में उद्गार रखे, तो हज़रत खदीजा रज़ि० को जैसे अपना खोया हुआ हीरा मिल गया-उससे पहले बड़े-बड़े सरदार और रईस उनसे विवाह की इच्छा रखते थे, लेकिन उन्होंने किसी का सन्देश नहीं स्वीकार किया था, अब उन्होंने अपने दिल की बात अपनी सहेली नफ़ीसा बिन्त मुनब्बह से कही और नफ़ीसा ने जाकर नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से बातें कीं । आप तैयार हो गए और अपने चचा से इस मामले में बात की। उन्होंने हज़रत खदीजा रज़ि० के चचा से बात की और विवाह का पैग़ाम दिया। इसके बाद विवाह हो गया। निकाह में बनी हाशिम और मुज़र के सरदार शरीक हुए
यह शाम देश से वापसी के दो महीने बाद की बात है। आपने मह में बीस
1. सुनने अबी दाऊद 2/611, इब्ने माजा हदीस 2287, 2268, मुस्नद अहमद 3/425 2. इब्ने हिशाम 1/187-188

ऊंट दिए। उस वक़्त हज़रत खदीजा की उम्र चालीस वर्ष और एक क़ौल के मुताबिक़ अठाईस साल की थी और वह वंश-धन, सूझ-बूझ की दृष्टि से अपनी क़ौम में सबसे अधिक प्रतिष्ठा प्राप्त महिला थीं। यह पहली महिला थीं, जिनसे अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने विवाह किया और उनकी मृत्यु तक किसी दूसरी महिला से विवाह नहीं किया।
इब्राहीम के अलावा अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की तमाम सन्तानें उन्हीं से थीं। सबसे पहले क़ासिम पैदा हुए और उन्हीं के नाम पर आपको अबुल क़ासिम (क़ासिम के बाप) के उपनाम से जाना जाने लगा, फिर ज़ैनब, रुकैया, उम्मे कुलसूम, फ़ातिमा और अब्दुल्लाह पैदा हुए। अब्दुल्लाह की उपाधि तैयब और ताहिर थी। आपके सब बच्चे बचपन ही में मृत्यु की गोद में चले गए। अलबत्ता बच्चियों में से हर एक ने इस्लाम का ज़माना पाया, मुसलमान हुईं और हिजरत की। लेकिन हज़रत फ़ातिमा के सिवा बाक़ी सब का देहान्त आपकी ज़िंदगी ही में हो गया। हज़रत फ़ातिमा की मृत्यु आपके छः महीने बाद हुई
काबा का निर्माण और हजरे अस्वद का विवाद
हुए आपकी उम्र का पैंतीसवां साल था कि कुरैश ने नए सिरे से खाना काबा का निर्माण शुरू किया। वजह यह थी कि काबा सिर्फ़ क़द से कुछ ऊंची चहार दीवारी की शक्ल में था। हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम के समय ही से उसकी ऊंचाई 9 हाथ थी और उस पर छत न थी। इस स्थिति का फ़ायदा उठाते कुछ चोरों ने उसके भीतर रखा हुआ खज़ाना चुरा लिया-इसके अलावा उसके निर्माण पर एक लम्बा समय बीत चुका था, इमारत टूट-फूट का शिकार हो गई थी और दीवारें फट गईं थीं। इधर उसी साल एक ज़बरदस्त बाढ़ आई थी, जिसके बहाव का रुख खाना काबा की ओर था। इसके नतीजे में खाना काबा किसी भी क्षण ढह सकता था, इसलिए कुरैश मजबूर हो गए कि उसका पद और स्थान बाक़ी रखने के लिए नए सिरे से उसका निर्माण किया जाए।
देखिए मुरव्वजुज़-जब 2/278
इब्ने हिशाम 1/189-190
2. इब्ने हिशाम 1/190-191, सहीह बुखारी, तलफ़ीहुल फ़हूम पृ० 7 फ़हुल बारी 7/105। ऐतिहासिक स्रोतों में कुछ मतभेद हैं, मेरे नज़दीक जो सही है, उसी को लिखा है।
-लेखक
इस मरहले पर कुरैश ने सर्वसम्मति से फ़ैसला किया कि खाना काबा के निर्माण में सिर्फ़ हलाल रक़म ही इस्तेमाल करेंगे। इसमें रंडी का मुआवज़ा, सूद का धन, और किसी का नाहक़ लिया हुआ माल इस्तेमाल नहीं होने देंगे।
( नव-निर्माण के लिए पुरानी इमारत को ढाना ज़रूरी था लेकिन किसी को ढाने की जुर्रत नहीं होती थी। अन्ततः वलीद बिन मुग़ीरा मख्ज़ूमी ने शुरूआत की और कुदाल लेकर यह कहा कि ऐ अल्लाह ! हम खैर ही का इरादा करते हैं, इसके बाद दो कोनों की तरफ़ कुछ ढा दिया। जब लोगों ने देखा कि उस पर कोई आफ़त नहीं टूटी, तो बाक़ी लोगों ने भी ढाना शुरू किया और इब्राहीम अलै० की डाली बुनियाद तक ढा चुके तो निर्माण की शुरूआत की। निर्माण के लिए अलग-अलग हर क़बीले का हिस्सा मुक़र्रर था और हर क़बीले ने अलग-अलग पत्थर के ढेर लगा रखे थे। निर्माण शुरू हुआ। बाकूम नामी एक रूमी मेमार निगरां था। जब इमारत हजरे अस्वद तक उठ गई तो यह झगड़ा उठ खड़ा हुआ कि हजरे अस्वद को उसकी जगह रखने का यश किसे प्राप्त हो। यह झगड़ा चार-पांच दिन तक चलता रहा और धीरे-धीरे इतना आगे बढ़ गया कि लगता था, हरम की धरती रक्तरंजित हो जाएगी, लेकिन अबू उमैया मजूमी ने यह कहकर फ़ैसले की एक शक्ल पैदा कर दी कि मस्जिदे हराम के दरवाज़े से जो व्यक्ति पहले प्रवेश करे उसे अपने झगड़े का मध्यस्थ मान लें। लोगों ने यह प्रस्ताव पास कर दिया। अल्लाह का करना ऐसा हुआ कि उसके बाद सबसे पहले अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम तशरीफ़ लाए। लोगों ने आपको देखा तो चीख पड़े, ‘यह अमीन हैं, हम इनसे राज़ी हैं, यह मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हैं।’
फिर जब आप उनके क़रीब पहुंचे और उन्होंने आपको विवाद का विवरण दिया, तो आपने एक चादर मंगाई, बीच में हजरे अस्वद रखा और विवादित क़बीलों के सरदारों से कहा कि आप सब लोग चादर का किनारा पकड़ कर ऊपर उठाएं। उन्होंने ऐसा ही किया। जब चादर हजरे अस्वद की जगह तक पहुंच गई तो आपने अपने मुबारक हाथों से हजरे अस्वद को उसकी तैशुदा जगह पर रख दिया। यह बड़ा उचित निर्णय था। इस पर सारी क़ौम राज़ी हो गई।
इधर कुरैश के पास हलाल माल की कमी पड़ गई, इसलिए उन्होंने उत्तर की ओर से काबा की लंबाई लगभग छः हाथ कम कर दी। यही टुकड़ा हिज्र और हतीम कहलाता है। इस बार कुरैश ने काबा का दरवाज़ा ज़मीन से काफ़ी ऊंचा कर दिया, ताकि इसमें वही व्यक्ति दाखिल हो सके, जिसे वे इजाज़त दें। जब दीवारें पन्द्रह हाथ ऊंची हो गई तो भीतर छ: स्तंभ खड़े करके ऊपर से छत डाल
दी गई और काबा अपने पूरे होने के बाद लगभग चौकोर हो गया। अब खाना काबा की ऊंचाई पन्द्रह मीटर है। हजरे अस्वद वाली दीवार और उसके सामने की दीवार अर्थात दक्षिणी और उत्तरी दीवारें दस-दस मीटर हैं। हजरे अस्वद मताफ़ की ज़मीन से डेढ़ मीटर की ऊंचाई पर है। दरवाज़े वाली दीवार और उसके सामने की दीवार अर्थात पूरब और पश्चिम की दीवारें 12-12 मीटर हैं। दरवाज़ा ज़मीन से दो मीटर ऊंचा है। दीवार के चारों ओर नीचे हर चार तरफ़ से एक बढ़े हुए कुर्सीनुमा जिले का घेरा है जिसकी औसत ऊंचाई 25 सेंटीमीटर और औसत चौड़ाई 30 सेंटीमीटर है। इसे शाज़रवान कहते हैं। यह भी असल में बैतुल्लाह का हिस्सा है, लेकिन कुरैश ने इसे भी छोड़ दिया था।

