अर-रहीकुल मख़्तूम पार्ट 15

दादा की निगरानी में

बूढ़े अब्दुल मुत्तलिब अपने पोते को लेकर मक्का पहुंचे। उनका हृदय अपने इस यतीम पोते के प्रति प्रेम व स्नेह से ओत-प्रोत था, इसलिए भी ऐसा हुआ कि अब उसे एक नयी चोट लगी थी, जिसने पुराने घाव कुरेद दिए थे। अब्दुल मुत्तलिब अपने पोते के लिए इतने नम्र स्वभाव थे कि अपने बेटों के लिए इतने न रहे होंगे। चुनांचे भाग्य ने आपको तंहाई के जिस जंगल में ला खड़ा किया था, अब्दुल मुत्तलिब इसमें आपको अकेले छोड़ने के लिए तैयार न थे, बल्कि आपको अपनी औलाद से भी बढ़कर चाहते और बड़ों की तरह उनका आदर करते थे।

इब्ने हिशाम का बयान है कि अब्दुल मुत्तलिब के लिए खाना काबा के साए में फ़र्श बिछाया जाता, उनके सारे लड़के फ़र्श के चारों ओर बैठ जाते | अब्दुल मुत्तलिब तशरीफ़ लाते तो फ़र्श पर बैठते। उनके बड़कपन को देखते हुए उनका कोई लड़का फ़र्श पर न बैठता, लेकिन अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम तशरीफ़ लाते तो फ़र्श ही पर बैठ जाते। अभी आप कम उम्र बच्चे थे । आपके चचा लोग आपको पकड़कर उतार देते, लेकिन जब अब्दुल मुत्तलिब उन्हें ऐसा करते देखते, तो फ़रमाते, ‘मेरे इस बेटे को छोड़ दो। खुदा की क़सम ! इसकी शान निराली है, फिर उन्हें अपने साथ अपने फ़र्श पर बिठा लेते थे, अपने हाथ से पीठ सहलाते और उनकी अदाएं देखकर खुश होते ।
आपकी उम्र अभी 8 साल दो महीने दस दिन की हुई थी कि दादा अब्दुल

तलक़ीहुल फ़हूम पृ० 7, इब्ने हिशाम 1/168 इब्ने हिशाम

1. 2. 1/168,

3. इब्ने हिशाम 1/16

मुत्तलिब इस दुनिया से सिधार गए। उनका देहान्त मक्का में से पहले अबू तालिब (आपके चचा) को-जो आपके बाप अब्दुल्लाह के सगे भाई थे, आपके लिए पालने-पोसने और देखभाल करने की वसीयत कर गए थे। 1l

मेहरबान चचा की निगरानी में

अबू तालिब ने अपने भतीजे की देखभाल बड़ी खूबी से की। आपको अपनी औलाद में शामिल कर लिया, बल्कि उनसे भी बढ़कर माना, मान-सम्मान भी दिया। चालीस साल से ज़्यादा मुद्दत तक ताक़त पहुंचाई, अपना समर्थन सदैव दिया और आप ही की बुनियाद पर दोस्ती और दुश्मनी की और अधिक व्याख्या अपनी जगह आ रही है।

वर्षा चाही गई

इब्ने असाकिर ने जलहमा बिन अरफ़ता से रिवायत किया है कि मैं मक्का आया, लोग अकाल से दो चार थे। कुरैश ने कहा, अबू तालिब घाटी अकाल का शिकार है । बाल-बच्चे अकाल के निशाने पर हैं, चलिए, वर्षा की दुआ कीजिए। अबू तालिब एक बच्चा लेकर बरामद हुए। बच्चा बादलों से घिरा हुआ सूरज मालूम होता था, जिससे घना बादल अभी-अभी छटा हो, उसके आस-पास और भी बच्चे थे । अबू तालिब ने उस बच्चे का हाथ पकड़ कर उसकी पीठ काबे की दीवार से टेक दी। बच्चे ने उनकी उंगली पकड़ रखी थी, उस वक़्त आसमान पर बादल का एक टुकड़ा न था, लेकिन (देखते-देखते) इधर-उधर से बादल आने शुरू हो गये और ऐसी धुवांधार वर्षा हुई कि घाटी में पानी बह निकला, पूरा इलाक़ा पानी से भर गया। बाद में अबू तालिब ने इसी घटना की ओर इशारा करते हुए मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की प्रशंसा में कहा था-
‘वह सुन्दर हैं, उनके चेहरे से वर्षा की दुआ की जाती है, यतीमों की पनाहगाह और विधवाओं के संरक्षक हैं। 2

बुहैरा राहिब

कुछ रिवायतों के मुताबिक़—जो शोध की दृष्टि से कुल मिलाकर प्रमाणित और प्रामाणिक हैं-जब आपकी उम्र बारह वर्ष और एक विस्तृत कथन के

1. तलक़ीहुल फ़हूम पृ० 7, इब्ने हिशाम 1/149 2. मुख्तसरुस्सीर, शेख अब्दुल्लाह पृ० 15-16, हैसमी ने मज्मउज्जवाइद में तबरानी से इसी तरह की घटना किताब ‘अलामातुन्नुबूवः 8/222 में नक़ल किया है।

अनुसार बारह वर्ष दो महीने दस दिन की हो गई तो अबू तालिब आपको साथ लेकर व्यापार के लिए शाम देश के सफ़र पर निकले और बसरा पहुंचे। बसरा शाम देश का एक स्थान और हूरान का केन्द्रीय नगर है। उस वक़्त यह अरब प्रायद्वीप के रूमी अधिकृत क्षेत्रों की राजधानी था। इस नगर में जर्जीस नाम का राहिब (ईसाई सन्यासी) रहता था जो बुहैरा की उपाधि से जाना जाता था। जब क़ाफ़िले वालों ने वहां पड़ाव डाला तो यह राहिब अपनी गिरजा से निकलकर क़ाफ़िले के अन्दर आया और उसका सत्कार किया, हालांकि इससे पहले वह कभी नहीं निकलता था। उसने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को आपके गुणों की बुनियाद पर पहचान लिया और आपका हाथ पकड़ कर कहा—

‘यह पूरी दुनिया के सरदार हैं। अल्लाह इन्हें पूरी दुनिया के लिए रहमत बना कर भेजेगा ।’

अबू तालिब ने कहा, ‘आपको यह कैसे मालूम हुआ ?’

उसने कहा, तुम लोग जब घाटी के इस ओर दिखाई दिए तो कोई भी पेड़ या पत्थर ऐसा नहीं था जो सज्दे के लिए झुक न गया हो और ये चीज़ें नबी के अलावा किसी और इंसान को सज्दा नहीं करतीं। फिर मैं इन्हें नुबूवत की मुहर से पहचानता हूं जो कंधे के नीचे किरी (नर्म हड्डी) के पास सेब की तरह है और हम इन्हें अपनी किताबों में भी पाते हैं।

इसके बाद बुहैरा राहिब ने अबू तालिब से कहा कि इन्हें वापस कर दो, शाम देश न ले जाओ, क्योंकि यहूदियों से ख़तरा है। इस पर अबू तालिब ने कुछ दासों के साथ आपको मक्का मुकर्रमा वापस भेज दिया। 2

1. यह बात इब्ने जौज़ी ने तलक़ीहुल फ़हूम पृ० 7 में कही है।

2. देखिए जामेअ तिर्मिज़ी 5/550, 551, हदीस नम्बर 362, तारीखे तबरी 3/278, 279 इब्ने अबी शैबा 11/489 हदीस न० 1782, दलाइलुन्नुबूवः, बैहक़ी, 2/24, 25, अबू नुऐम 1/170, इस रिवायत की सनद मज़बूत है, अलबत्ता इसके आखिर में यह दिया हुआ है कि आपको हज़रत बिलाल के साथ रवाना किया गया, लेकिन यह बहुत बड़ी ग़लती है। बिलाल तो उस वक़्त तक पैदा भी नहीं हुए थे और अगर पैदा हुए थे, तो बहरहाल अबू तालिब या अबू बक्र रजि० के साथ न थे, जादुल मआद 1/17 । इस घटना में और भी विवरण मिलते हैं, जिन्हें इब्ने साद ने वाहियात की सनदों से रिवायत किया है (1/130) और इब्ने इस्हाक़ ने बिना सनद ज़िक्र किया है, जिसे इब्ने हिशाम 1/180-183, तबरी 2/277, बैहक़ी और अबू नुऐम ने ज़िक्र किया है।

फ़िजार की लड़ाई

आपकी उम्र के बीसवें साल उकाज़ के बाज़ार में कुरैश व किनाना—और क़ैस ऐलान के दर्मियान ज़ीक़ादा के महीने में एक लड़ाई हुई जो फ़िजार की लड़ाई के नाम से प्रसिद्ध है। इसकी वजह यह हुई कि बराज़ नामी बनू किनाना के एक आदमी ने क़ैस ऐलान के तीन आदमियों को क़त्ल कर दिया। इसकी ख़बर उकाज़ पहुंची तो दोनों फ़रीक़ भड़क उठे और लड़ पड़े । कुरैश और किनाना का कमांडर हर्ब बिन उमैया था, क्योंकि वह अपनी उम्र और बुज़ुर्गी की वजह से कुरैश व किनाना के नज़दीक बड़ा ऊंचा पद रखता था। पहले पहर किनाना पर क़ैस का पल्ला भारी था, लेकिन दोपहर होते-होते क़ैस पर किनाना का पल्ला भारी हुआ चाहता था कि इतने में समझौते की आवाज़ उठी और यह प्रस्ताव आया कि दोनों फ़रीक़ के मारे गए लोग गिन लिए जाएं। जिधर ज़्यादा हों उनको ज़्यादा की दियत (अर्थ-दंड) दे दी जाए। चुनांचे इसी पर समझौता हो गया। लड़ाई खत्म कर दी गई और जो दुश्मनी पैदा हो गई थी, उसे समाप्त कर दिया गया। इसे फ़िजार की लड़ाई इसलिए कहते हैं कि इसमें हराम महीनेका अनादर किया गया। इस लड़ाई में अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम भी तशरीफ़ ले गये थे और अपने चचाओं को तीर थमाते थे 12

हिलफ़ुल फ़ज़ूल

इस लड़ाई के बाद इसी हुर्मत वाले महीने ज़ीक़ादा में हिलफ़ुल फ़ुज़ूल पेश

1. इन दोनों घटनाओं में फ़िजार की घटनाएं चार बार घटित हुईं। पहली तीन में कुछ झगड़ा-फसाद हुआ, लेकिन लड़ाई के बिना समझौता हो गया। पहले की वजह यह थी कि एक क़ैस का एक किनानी पर क़र्ज़ था और वह टाल-मटोल कर रहा था। दूसरे की वजह यह थी कि उकाज़ के बाज़ार में एक किनानी अपनी बड़ाई जता रहा था और तीसरे की वजह यह थी कि मक्का के कुछ जवान क़ैस की एक सुन्दर स्त्री से छेड़-छाड़ कर रहे थे। चौथे का कारण बराज़ की घटना थी जिसका उल्लेख हमने किताब में किया है। विस्तृत विवरण के लिए देखिए अन्नमक़फ़ी अख़बारे कुरैश, पृ० 160-164, अल-कामिल इब्ने असीर 1/467। इब्ने असीर ने सबको एक ही बताया है। 2. इब्ने हिशाम, 1/184-186, अल-ग़मक़ मिन अखबारे कुरैश, पृ० 164, 185 कामिल इब्ने असीर 1/468, 472, आम तौर पर इतिहासकारों ने कहा है कि यह शव्वाल में पेश आई थी, पर यह सही नहीं, क्योंकि शव्वाल का महीना हराम का महीना नहीं और उकाज़ हरम से बाहर है तो फिर हुर्मत कौन-सी चाक हुई। इसके अलावा उकाज़ का बाज़ार ज़ीक़ादा के शुरू से लगता था।


आई। कुरैश के कुछ क़बीले यानी बनी हाशिम, बनी मुत्तलिब, बनी असद बिन अब्दुल उज़्ज़ा, बनी ज़ोहरा बिन किलाब और बनी तैम बिन मुर्रा ने इसकी व्यवस्था की । ये लोग अब्दुल्लाह बिन जुदआन तैमी के मकान पर जमा हुएक्योंकि वह उम्र और बुजुगों में सबसे बड़ा था— और आपस में समझौता किया कि मक्का में जो भी मज़्लूम नज़र आएगा, चाहे मक्के का रहने वाला हो या कहीं और का, ये सब उसकी सहायता और समर्थन में उठ खड़े होंगे और उसका हक़ दिलाकर रहेंगे। इस सभा में अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम भी तशरीफ़ फ़रमाते थे और बाद में पैग़म्बर बनने के बाद भी फ़रमाया करते थे, मैं अब्दुल्लाह बिन जुदआन के मकान पर एक ऐसे समझौते में शरीक था कि मुझे इसके बदले में लाल ऊंट भी पसन्द नहीं और अगर इस्लाम (के दौर) में इस समझौते के लिए मुझे बुलाया जाता तो मैं पूरा साथ देता ।

इस समझौते की भावना पक्षपात की तह से उठने वाली अज्ञानतापूर्ण तंगनज़री के प्रतिकूल थी। इस समझौते की वजह यह बताई जाती है कि ज़ुबैद का एक आदमी सामान लेकर मक्का आया और आस बिन वाइल ने उससे सामान खरीदा, लेकिन उसका हक़ रोक लिया। उसने मित्र क़बीले अब्दुद्दार, मख़्ज़ूम, जम्ह, सम और अदी से मदद की दरख्वास्त की, लेकिन किसी ने तवज्जोह न दी । इसके बाद उसने अबू कुबैस पर्वत पर चढ़ कर ऊंची आवाज़ से कुछ पद पढ़े, जिनमें अपनी मज़्लूमियत की दास्तान बयान की थी। इस पर जुबैर बिन अब्दुल मुत्तलिब ने दौड़-धूप की और कहा कि यह व्यक्ति बे-यार व मददगार क्यों है ? इनकी कोशिश से उपरोक्त क़बीले जमा हो गये। पहले समझौता किया और फिर आस बिन वाइल से उस ज़ुबैदी का हक़ दिलाया

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