
Seerat Hazrat Ali A.S | Iftar Transmission | Ramzan Teri Shan | Bilal Qutb



*Manaqib e Ummul Momineen Sayyeda Ayesha Siddeeqa*
Ummul Momineen Hazrat Ayesha Siddeeqa Salamullah Alaiha Se Marwi Hain Ke Hazrat Jibrail Alahis Salam Resham Ke Sabz Kapde Me Lipti Hui Unki (Hazrat Ayesha Ki) Tasweer Lekar Huzoor Nabi e Kareem ﷺ Ki Bargah e Aqdas Me Hazir Hue Aur Arz Kiya :- Ya Rasool Allah ﷺ Ye Duniya o Aakhirat Me Aapki Ahliya Hain, Is Hadees Ko Imaam Tirmizi Aur Ibne Hibban Ne Riwayat Kiya Hain Aur Imaam Tirmizi Ne Farmaya Hain Ke Ye Hadees Hasan Hain.
📚 *Reference* 📚
*1.* Tirmizi, As Sunan, Kitab Al Manaqib An Rasool Allah, Jild 5, Safa 704, Hadees No 3880.
*2.* Ibne Hibban, As Sahih, Jild 16, Safa 6, Hadees No 7094.
*3.* Zahabi, Siyar Alam Al Nubala, Jild 2, Safa 140 141.

उनकी एक नई बात यह भी थी कि वे कहते थे कि हुम्स (कुरैश) के लिए एहराम की हालत में पनीर और घी बनाना सही नहीं और न यह सही है कि बाल वाले घर (अर्थात कम्बल के खेमे) में दाखिल हों और न यह सही है कि छाया लेनी हो तो चमड़े के खेमे के सिवा कहीं और छाया लें।
उनकी एक नई बात यह भी थी कि वे कहते थे कि हरम के बाहर के लोग हज या उमरा करने के लिए आएं और हरम के बाहर से खाने की कोई चीज़ लेकर आएं तो इसका उनके लिए खाना सही नहीं 12
एक नई बात यह भी कि उन्होंने हरम के बाहर के निवासियों को हुक्म दे रखा था कि वे हरम में आने के बाद पहला तवाफ़ (परिक्रमा) हुम्स से प्राप्त कपड़ों ही में करें। चुनांचे अगर उनका कपड़ा न प्राप्त होता, तो मर्द नंगे तवाफ़ करते और औरतें अपने सारे कपड़े उतारकर सिर्फ़ एक छोटा-सा खुला हुआ कुरता पहन लेतीं और उसी में तवाफ़ करती और तवाफ़ के दौरान ये पद पढ़ती जाती-
‘आज कुछ या कुल गुप्तांग खुल जाएगा, लेकिन जो खुल जाए, मैं उसे (देखना) हलाल नहीं क़रार देती।’
अल्लाह ने इस बेकार-सी चीज़ की समाप्ति के लिए फ़रमाया-
आदम के बेटो ! हर मस्जिद के पास अपनी ज़ीनत अख्तियार कर लिया
करो ।’
(7:31)
बहरहाल अगर कोई औरत या मर्द श्रेष्ठ और उच्च बनकर, हरम के बाहर से लाए हुए अपने ही कपड़ों में तवाफ़ कर लेता, तो तवाफ़ के बाद इन कपड़ों को फेंक देता, उससे न खुद फ़ायदा उठाता, न कोई और 13
कुरैश की एक नई बात यह भी थी कि वे एहराम की हालत में घर के भीतर दरवाज़े से दाखिल न होते थे, बल्कि घर के पिछवाड़े एक बड़ा-सा सूराख बना लेते और उसी से आते-जाते थे और अपने इस उजड्डूपने को नेकी समझते थे । क़ुरआन ने इससे भी मना फ़रमाया। (देखिए, 2: 189)
यही दीन—अर्थात शिर्क व बुत परस्ती और अंधविश्वास और व्यर्थ के कामों पर आधारित विश्वास व कार्य वाला दीन—सामान्य अरब वासियों का दीन था ।
1. इब्ने हिशाम 1/202 2. वही, वही 3. वही, 1/202, 203, सहीह बुखारी 1/226
इसके अलावा अरब प्रायद्वीप के विभिन्न भागों में यहूदी, ईसाई, मजूसी और साबी धर्मावलम्बियों ने भी पनपने के अवसर प्राप्त कर लिए थे, इसलिए इनका ऐतिहासिक स्वरूप भी संक्षेप में पेश किया जा रहा है।
अरब प्रायद्वीप में यहूदियों के कम से कम दो युग हैं।
पहला युग उस समय से ताल्लुक रखता है जब फलस्तीन में बाबिल और आशूर के राज्यों की जीतों की वजह से यहूदियों को देश-परित्याग करना पड़ा। इस राज्य के दमन चक्र और बख्ते नत्र के हाथों यहूदी बस्तियों की तबाही व वीरानी, उनके हैकल की बर्बादी और उनके बहुसंख्य के देश-निकाला दिए जाने का नतीजा यह हुआ कि यहूदियों का एक गिरोह फ़लस्तीन छोड़ कर हिजाज़ के उत्तरी भागों में जा बसा । 1
दूसरा युग उस समय शुरू होता है जब टाइटस रूमी के नेतृत्व में सन् 70 ई० में रूमियों ने फ़लस्तीन पर क़ब्ज़ा कर लिया। इस अवसर पर रूमियों के हाथों यहूदियों की पकड़ धकड़ और उनके हैकल की बरबादी का नतीजा यह हुआ कि अनेक यहूदी क़बीले हिजाज़ भाग आए और यसरिब, ख़ैबर और तैमा में आबाद होकर यहां अपनी विधिवत आबादियां बसा लीं और क़िले और गढ़ियां बना ली। देश निकाला पाए इन यहूदियों के ज़रिए अरब निवासियों में किसी क़दर यहूदी धर्म का भी रिवाज हुआ और उसे भी इस्लाम प्रकट होने से पहले और उसके आरंभिक युग की राजनीतिक घटनाओं में एक उल्लेखनीय हैसियत हासिल हो गई । इस्लाम के प्रकट होने के वक़्त प्रसिद्ध यहूदी क़बीले ये थे- खैबर, नज़ीर, मुस्तलक़, कुरैज़ा और क़ैनुक़ाअ। सम्हूदी ने वफ़ाउल वफ़ा पृ० 116 में उल्लेख किया है कि यहूदी क़बीलों की तायदाद बीस से ज़्यादा थी 12
यहूदी मत को यमन में भी पलने-बढ़ने का मौक़ा मिला। यहां उसके फैलने की वजह तबान असद अबू कर्ब था। यह व्यक्ति लड़ाई लड़ता हुआ यसरिब पहुंचा, वहां यहूदी मत अपना लिया और बनू कुरैज़ा के दो यहूदी उलेमा को अपने साथ यमन ले आया और उनके ज़रिए यहूदी मत को यमन में विस्तार और फैलाव मिला। अबू कर्ब के बाद उसका बेटा यूसुफ़ ज़ूनवास यमन का हाकिम हुआ तो उसने यहूदी होने के जोश में नजरान के ईसाइयों पर हल्ला बोल दिया और उन्हें मजबूर किया कि यहूदी मत अपना लें। मगर उन्होंने इंकार कर दिया। इस पर जूनवास ने खाई खुदवाई और उसमें आग जलवाकर बूढ़े-बच्चे,
1. कल्ब जज़ीरतुल अरब, पृ० 251 2. वही, वही और वफाउल वफ़ा 1/165
मर्द-औरत सबको बिना किसी भेद-भाव के आग के अलाव में झोंक दिया। कहा जाता है कि इस दुर्घटना के शिकार होने वालों की तायदाद बीस से चालीस हज़ार के बीच थी। यह अक्तूबर 523 ई० की घटना है। कुरआन मजीद ने सूरः बुरूज में इसी दुर्घटना का उल्लेख किया है।’
जहां तक ईसाई मत का ताल्लुक़ है, तो अरब भू-भाग में यह हब्शी और रूमी क़ब्ज़ा करने वाले विजेताओं के साथ आया। हम बता चुके हैं कि यमन पर हब्शियों का क़ब्ज़ा पहली बार 340 ई० में हुआ लेकिन यह क़ब्ज़ा देर तक बाक़ी न रहा। यमनियों ने 370 ई० से 378 ई० के दौरान निकाल भगाया। 2 अलबत्ता इस बीच यमन में मसीही मिशन काम करता रहा। लगभग उसी समय एक ख़ुदा को पहुंचा हुआ करामतों वाला ज़ाहिद (सन्यासी), जिसका नाम फ़ेमियून था, नजरान पहुंचा और वहां के निवासियों में ईसाई धर्म का प्रचार किया। नजरान वालों ने उसकी ओर उसके धर्म की सच्चाई की कुछ ऐसी निशानियां देखीं कि वे ईसाई धर्म की गोद में आ गिरे। 3
फिर ज़ूनिवास की कार्रवाई की प्रतिक्रिया में सन् 525 ई० में हब्शियों ने दोबारा यमन पर क़ब्ज़ा कर लिया और अबरहा ने यमन राज्य की सत्ता अपने हाथ में ले ली, तो उसने भारी उत्साह और उमंग के साथ बड़े पैमाने पर ईसाई धर्म को फैलाने की कोशिश की। इसी उमंग और उत्साह का नतीजा था कि उसने यमन में एक काबा बनाया और कोशिश की कि अरबों को (मक्का और बैतुल्लाह से) रोक कर उसी का हज कराये और मक्का के बैतुल्लाह शरीफ़ को ढा दे, लेकिन उसकी इस जुर्रत पर अल्लाह ने उसे ऐसी सज़ा दी कि अगलों-पिछलों के लिए शिक्षा ग्रहण करने की चीज़ बन गया।
और के दूसरी ओर रूमी क्षेत्रों का पड़ोस होने के कारण आले ग़स्सान, बनू तग़लब, बनू तै वग़ैरह अरब क़बीलों में भी ईसाई धर्म फैल गया था, बल्कि हियरा कुछ अरब बादशाहों ने भी ईसाई धर्म अपना लिया था।
जहां तक मजूसी धर्म का ताल्लुक़ है, तो अधिकतर फ़ारस वालों के पड़ोसी अरबों में इसका विकास हुआ था, जैसे इराक़ अरब, बहरैन (अल-अहसा) हिज्र और अरब खाड़ी के तटीय क्षेत्र। इनके अलावा यमन पर फ़ारसी क़ब्ज़े के दौरान
1. इब्ने हिशाम 1/20, 21, 22, 27, 31, 35, 36, साथ ही देखिए तफ़्सीर की किताबें, तफ़्सीर सूर: बुरूज और अल-यमुन इबरुत्तारीख पृ० 158, 159
2. अल- यमनु इबरुत्तारीख, 158, 159, तारीखुल अरब क़ब्लल इस्लाम पृ० 122, 432 3. इब्ने हिशाम, 1/31, 32, 33, 34
वहां भी एक-दो व्यक्तियों ने मजूसी धर्म अपना लिया।
बाक़ी रहा साबी धर्म, जिसकी विशेषता सितारापरस्ती, नक्षत्रों में श्रद्धा, तारों का प्रभाव और उन्हें सृष्टि का संयोजक मानना थी, तो इराक़ आदि के अवशेषों की खुदाई के दौरान जो शिला लेख मिले हैं, उनसे पता चलता है कि यह हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की कलदानी क़ौम का धर्म था। पुराने ज़माने में शाम व यमन के से निवासी भी इसी धर्म के मानने वाले थे, लेकिन जब यहूदी मत बहुत और फिर ईसाई धर्म का ज़ोर बढ़ा तो इस धर्म की बुनियादें हिल गईं और उसका जलता चिराग़ बुझ कर रह गया, फिर भी मजूस के साथ मिल-मिलाकर या उनके पड़ोस में इराक़ अरब और अरब खाड़ी के तट पर इस धर्म के कुछ न कुछ मानने वाले बाक़ी रहे ।’
धार्मिक स्थिति
जिस समय इस्लाम- सूर्य उदित हुआ है, यही दीन-धर्म थे जो अरब में पाए जाते थे, लेकिन ये सारे धर्म टूट-फूट के शिकार थे। मुश्कि जिनका दावा था कि हम दीने इब्राहीमी पर हैं, इब्राहीमी शरीअत के करने, न करने के आदेश से कोसों दूर थे । इस शरीअत ने जिस नैतिकता की शिक्षा दी थी, उनसे इन मुश्किों का कोई ताल्लुक़ न था। उनमें गुनाहों की भरमार थी और लम्बा समय बीतने के कारण इनमें भी बुत परस्तों की वही आदतें और रस्में पैदा हो चली थीं, जिन्हें धार्मिक अंधविश्वास का पद प्राप्त है। इन आदतों और रस्मों ने उनके सामूहिक, राजनीतिक और धार्मिक जीवन पर बड़े गहरे प्रभाव डाले थे ।
यहूदी धर्म का हाल यह था कि वह मात्र दिखावा और दुनियादारी का नाम था। यहूदी रहनुमा अल्लाह के बजाए स्वयं रब बन बैठे थे, लोगों पर अपनी मर्ज़ी चलाते थे और उनके दिलों में आने वाले विचार और होंठों की हरकत तक का हिसाब करते थे। उनका सारा ध्यान इस बात पर टिका हुआ था कि किसी तरह माल और सत्ता प्राप्त हो, भले ही दीन बर्बाद हो जाए और नास्तिकता और अनीश्वरवाद को बढ़ावा मिलने लगे और उन शिक्षाओं के प्रति अनादर-भाव ही क्यों न जन्म ले ले, जिनकी पावनता बनाए रखने का अल्लाह ने हर व्यक्ति को आदेश दिया है और जिन पर अमल करने पर उभारा है।
ईसाई धर्म एक न समझ में आने योग्य बुत परस्ती का धर्म बन गया था।
1. तारीख अर्जुल कुरआन, 2/193, 208
उसने अल्लाह और इंसान को अनोखे ढंग से मिला-जुला दिया था, फिर जिन अरबों ने इस धर्म को अपनाया था, उन पर इस दीन का कोई वास्तविक प्रभाव न था, क्योंकि उसकी शिक्षाएं उनके जीवन के असल तौर-तरीक़ों से मेल नहीं खाती थीं और वे अपने तरीक़े छोड़ नहीं सकते थे ।
अरब के बाक़ी दीनों के मानने वालों का हाल मुश्किों ही जैसा था, क्योंकि उनके मन एक थे, मान्यताएं एक थीं और रस्म व रिवाज मिलते-जुलते थे ।

सहीहुल नसब सैयद जहन्नम में नहीं जाएगा
(1) इमाम कुरतबी ( 668 हि.) ने सैयदुल मुफस्सरीन हज़रत सैयदना अब्दुल्लाह बिन अब्बास से आयत करीमा जे ड्यु (पं.30) (तर्जुमा: और बेशक क़रीब है कि तुम्हारा रब तुम्हें इतना देगा कि तुम राज़ी हो जाओगे)
की तफ्सीर में नक्ल किया है कि वह फ़रमाते हैं कि हुजूर अनवर सैयद आलम इस बात पर राज़ी हुए कि उनके एहले बैत में से कोई जहन्नम में न जाए। (सवानेह करबला स. 51 )
नबी करीम नूर मुजस्सम ने फ़रमायाः
(2) बेशक (सैयदा) फातिमा ने अपनी पाकदामनी की हिफाज़त इस तरह से की तो अल्लाह तआला ने उन्हें और उनकी औलाद को आग पर हराम फरमाया । ( बरकाते आले रसूल स. 59 )
(3) हाकिम ने फरमाया यह हदीस सहीह है हज़रत इमरान बिन हुसैन फरमाते हैं कि नबी अकरम सैयद आलम ने फ़रमायाः
“मैं ने अपने रब करीम से दुआ की कि मेरे एहले बैत में किसी को आग में दाखिल न फरमाए तो उसने मेरी दुआ कुबूल फरमा ली। ” ( बरकाते आले रसूल स. 59 )
आब ततहीर से जिसमें पौदे जमे
इस रियाज़ निजाबत पे लाखों सलाम
(4) इमाम हाकिम ने हज़रत अनस से रिवायत की उन्होंने कहा कि रसूले अकरम ने फ़रमायाः
मेरे रब ने मेरे एहले बैत के बारे में मुझ से वादा किया है जो इनमें से तौहीद और मेरी तबलीग (सुन्नत) के साथ साबित क़दम रहेगा, अल्लाह तआला उनको अज़ाब न देगा। (अल् नेमतुल उजुमा तर्जुमा: अल्खसाईसुल कुबरा लिलसीवती जि. 2, स. 566 )
(5) हज़रत अब्बास बिन अब्दुल मुत्तलिब से मरवी है कि मैंने बारगाहे रिसालत में अर्ज़ कियाः या रसूलुल्लाह ! कुरैश जब आपस में मिलते हैं तो हसीन मुस्कुराते चेहरों से मिलते हैं और जबहम से मिलते हैं तो ऐसे चेहरों से मिलते हैं जिन्हें हम नहीं जानते ( यानी जज़्बात से आरी चेहरों के साथ) हज़रत अब्बास फरमाते हैं: हुज़ूर नबी अकरम यह सुन कर शदीद जलाल में आ गए और फरमाया: उस जात की कसम ! जिसके कब्जे कुदरत में मेरी जान है किसी भी शख़्स के दिल में उस वक्त तक ईमान दाखिल नहीं हो सकता जब तक अल्लाह तआला और उसके रसूल . और मेरी कराबत की खातिर तुम से मुहब्बत न करे।” उसे इमाम अहमद, नसाई, हाकिम और बज़ार ने रिवायत किया है।

AARON (HAROON)
Aaron (Haroon) was elder brother of Moses. He was the son of Imran. He was appointed by God to help his brother Moses in the arduous task of freeing and molding the unruly children of Israel into a nation. He was responsible for carrying out of the rituals of worship as assigned by Moses. His descendants still carry out these rituals in the temples of Bani Israel. He acted as the vice-regent of Moses and accompanied his brother through the desert journeys till he died atop Mount Toor.
Haroon is known as Aaron in Torah and is referred to in the Qur’an along with Moses.