चौदह सितारे इमाम मेहदी- 4

हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) की ग़ैबत और उसकी ज़रूरत

बादशाहे वक़्त ख़लीफ़ा मोतमिद बिन मुतावक्किल अब्बासी जो अपने आबाव अजदाद की तरह ज़ुल्म का ख़ूगर और आले मोहम्मद (अ.स.) का जानी दुश्मन था उसके कानों में मेहदी (अ.स.) की विलादत की भनक पड़ चुकी थी। उसने हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) की शहादत के बाद तकफ़ीन व तदफ़ीन से पहले बक़ौल अल्लामा मजलिसी हज़रत के घर पर पुलिस का छापा डलवाया और चाहा कि इमाम मेहदी (अ.स.) को गिरफ़्तार करा ले लेकिन चुकि वह बहुक्मे ख़ुदा 23 रमज़ानुल मुबारक 259 हिजरी को सरदाब में जा कर ग़ायब हो चुके थे। जैसा कि शवाहेदुन नबूवत , नुरूल अबसार , दमए साकेबा , रौज़तुस शोहदा , मनाक़िब अल आइम्मा , अनवारूल हुसैनिया वग़ैरा से मुुस्तफ़ाद मुस्तबज़ होता है इसी लिये वह उसे दस्तयाब न हो सके। उसने उसके रद्दे अमल में हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) की तमाम बीबीयों को गिरफ़्तार करा लिया और हुक्म दिया कि इस अमर की तहक़ीक़ की जाये कि आया कोई उनमें से हामेला तो नहीं है , अगर कोई हामेला हो तो उसका हमल ज़ाया कर दिया जाए। क्यों कि वह हज़रते सरवरे कायनात (स अ व व ) की पेशीन गोई से ख़ाएफ़ था कि आख़री ज़माने में मेरा एक फ़रज़न्द जिसका नाम मेहदी होगा। कायनात आलम के इन्क़ेलाब का ज़ामिन होगा और उसे यह मालूम था कि वह फ़रज़न्द इमाम हसन असकरी (अ.स.) की औलाद से ही होगा , लेहाज़ा उसने आपकी तलाश और आपके क़त्ल की पूरी कोशिश की। तारीख़े इस्लाम जिल्द 1 पृष्ठ 31 में है कि 260 हिजरी में इमाम हसन असकरी (अ.स.) की शहादत के बाद जब मोतमिद ख़लीफ़ए अब्बासी ने आपके क़त्ल करने के लिये आदमी भेजे तो आप(सरदाब) 1 सरमन राय में ग़ायब हो गये। बाज़ अकाबिर उलेमाए अहले सुन्नत भी इस अमर में शियों के हम ज़बान हैं। चुनान्चे मुल्ला जामी ने शवाहेदुन नबूवत में इमाम अब्दुल वहाब शेरानी ने लवाक़ेउल अनवार व अल यूवाक़ेयत वल जवाहर में और शेख़ अहमद मुहिउद्दीन इब्ने अरबी ने फ़तूहाते मक्कीया में और ख़्वाजा पारसा ने फ़सलुल खि़ताब मोहद्दिस देहलवी ने रिसाला आइम्माए ताहेरीन में और जमालुद्दीन मोहद्दिस ने रौज़तुल अहबाब में , अबू अब्दुल्लाह शामी साहब किफ़ातुल तालिब ने किताब अल तिबयान फ़ी अख़बार साहेबुज़्ज़मान में और सिब्ते इब्ने जौज़ी ने तज़किराए ख़्वास अल मता , और इब्ने सबाग़ नुरूद्दीन अली मालकी ने फ़सूल अल महमा में और कमालुद्दीन इब्ने तलहा शाफ़ेई ने मतालेबुस सूऊल में और शाह वली उल्लाह फ़ज़ल अल मुबीन में और शेख़ सुलेमान हनफ़ी ने नियाबुल मोवद्दता में और बाज़ दीगर उलेमा ने भी ऐसा ही लिखा है और जो लोग इन हज़रत के तवील उम्र में ताअज्जुब कर के इन्कार करते हैं उनको यह जवाब देते हैं कि ख़ुदा की क़ुदरत से कुछ बईद नहीं है जिसने आदम (अ.स.) को बग़ैर माँ बाप के और ईसा (अ.स.) बग़ैर बाप के पैदा किया , तमाम अहले इस्लाम ने हज़रत खि़ज़्र (अ.स.) को अब तक ज़िन्दा माना हुआ है। इदरीस (अ.स.) बेहिशत में और हज़रत ईसा (अ.स.) आसमान पर अब तक ज़िन्दा माने जाते हैं और अगर ख़ुदाए ताअला ने आले मोहम्मद (स अ व व ) में से एक शख़्स को तुले उम्र इनायत किया तो ताअज्जुब क्या है ? हालां कि अहले इस्लाम को दज्जाल के मौजूद होने के क़रीबे क़यामत ज़हूर करने से इन्कार नहीं है। किताब शवाहेदुन नबूवत पृष्ठ 68 में है कि ख़ानदाने नबूवत के ग्यारवे इमाम हसन असकरी (अ.स.) 260 हिजरी में ज़हर से शहीद कर दिये गये थे उनकी वफ़ात पर इनके साहब ज़ादे मोहम्मद लक़ब व मेहदी शियों के आख़री इमाम हुए।

मौलवी अमीर लिखते हैं कि ख़ानदाने रिसालत के इन इमामों के हालात निहायत दर्द नाक हैं। ज़ालिम मुतावक्किल ने हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) के वालिदे माजिद इमाम अली नकी़ (अ.स.) को मदीने से सामरा पकड़ बुलाया था और वहां उनकी वफ़ात तक उनको नज़र बन्द रखा था फिर ज़हर से हलाक कर दिया था इसी तरह मुतावक्किल के जां नशीनों ने बदगुमानी और हसद के मारे हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) को क़ैद रखा था। उनके कमसिन साहब ज़ादे मोहम्मद अल मेहदी (अ.स.) जिनकी उम्र अपने वालिद की वफ़ात के वक़्त पांच साल की थी ख़ौफ़ के मारे अपने घर के क़रीब ही एक ग़ार में छुप गये और ग़ायब हो गये। इब्ने बतूता ने अपने सफ़र नामे में लिखा है कि जिस ग़ार में इमाम मेहदी (अ.स.) की ग़ैबर बताई जाती है उसे मैंने अपनी आंखों से देखा है।(नूरूल अबसार जिल्द 1 पृष्ठ 152 ) अल्लामा हजरे मक्की का इरशाद है कि इमाम मेहदी (अ.स.) सरदाब में ग़ायब हुये थे। फ़ल्म यारफ़ ईं ज़हब फिर मालूम नहीं कहां तशरीफ़ ले गये।(सवाएक़े मोहर्रेक़ा पृष्ठ 124 )

हाशिया : 1. यह सरदाब मक़ाम सरमन राय में वाक़े है जिसे असल में सामेरा कहते हैं। सामरा की आबादी बहुत ही क़दीमी है और दुनियां के क़दीम तरीन शहरों में से एक शहर है। इसे साम बिन नूह ने आबाद किया था और इसी को दारूल सलतनत भी बनाया था। इसकी आबादी सात फ़रसख़ लम्बी थी। इसने इसे निहायत ख़ूब सूरत शहर बना दिया था इस लिये इसका नाम सरमन राय रख दिया था यानी वह शहर जिसे जो भी देखे ख़ुश हो जाए , असकरी इसी का एक मोहल्ला है जिसमें इमाम अली नक़ी (अ.स.) नज़र बन्द थे बाद में उन्होंने दलील बिन याक़ूब नसरानी से एक मकान ख़रीद लिया था जिसमें अब भी आपका मज़ार मुक़द्दस वाक़े है।

सामरा में हमेशा ग़ैर शिया आबादी रही इसी लिये अब तक वहां शिया आबाद नहीं हैं वहां के जुमला ख़ुद्दाम भी ग़ैर शिया हैं।

हज़रत हुज्जत (अ.स.) के ग़ाएब होने का सरदाब वहीं एक मस्जिद के किनारे वाक़े है जो हज़रत इमाम अली नक़ी (अ.स.) और हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) के मज़ारे अक़दस के क़रीब है।


ग़ैबते इमाम मेहदी (अ.स.) पर उलेमाए अहले सुन्नत का इजमा

जम्हूरे उलेमाए इस्लामा इमाम मेहदी (अ.स.) के वुजूद को तसलीम करते हैं। इसमें शिया सुन्नी का सवाल नहीं हर फ़िरक़े के उलेमा यह मानते हैं कि आप पैदा हो चुके हैं और मौजूद हैं। हम उलेमाए अहले सुन्नत के अस्मा मय उनकी किताबों और मुख़्तसर अक़वाल के दर्ज करते हैं।

1. अल्लामा मोहम्मद बिन तल्हा शाफ़ेई किताब मतालेबुस सूऊल में फ़रमाते हैं कि इमाम मेहदी (अ.स.) सामरा में पैदा हुए जो बग़दाद से 20 फ़रसख़ के फ़ासले पर है।

2. अल्लामा अली बिन मोहम्मद बिन सबाग़ मालकी की किताब फ़ुसूल अल महमा में है कि इमाम हसन असकरी (अ.स.) गयाहरवें इमाम ने अपने बेटे इमाम मेहदी (अ.स.) की विलादत बादशाहे वक़्त से ख़ौफ़ से पोशीदा रखी।

3. अल्लामा शेख़ अब्दुल्लाह बिन अहमद ख़साब की किताब तवारीख़ मवालीद में है कि इमाम मेहदी (अ.स.) का नाम मोहम्मद और कुन्नियत अबुल क़ासिम है। आप आख़री ज़माने में ज़हूर व ख़ुरूज करेंगे।

4. अल्लामा मुहिउद्दीन इब्ने अरबी हम्बली की किताब फ़तूहात में है कि जब दुनियां ज़ुल्मो जौर से भर जायेगी तो इमाम मेहदी (अ.स.) ज़हूर करेंगे।

5. अल्लामा शेख़ अब्दुल वहाब शेरानी की किताब अल यूवाक़ियात वल जवाहर में है कि इमाम मेहदी (अ.स.) 15 शाबान 255 हिजरी में पैदा हुए हैं। अब इस वक़्त यानी 958 हिजरी में उनकी उम्र सात सौ छः 706 साल) की है। हयी मज़मून अल्लामा बदख़शानी की किताब मिफ़ताह अल नजाता में भी है।

6. अल्लामा अब्दुल रहमान जामी हनफ़ी की किताब शवाहेदुन नबूवत में है कि इमाम मेहदी (अ.स.) सामरा में पैदा हुए हैं और उनकी विलादत पोशीदा रखी गई है। वह इमाम हसन असकरी (अ.स.) की मौजूदगी में ग़ाएब हो गए हैं। इसी किताब में विलादत का पूरा वाक़ेया हकीमा ख़ातून की ज़बानी लिखा है।

7. अल्लामा शेख़ अब्दुल हक़ मोहद्दिस देहलवी की किताब मनाक़ेबुल आइम्मा में है कि इमाम मेहदी (अ.स.) 15 शाबान 255 हिजरी में पैदा हुए हैं। इमाम हसन असकरी (अ.स.) ने उनके कान में अज़ान व इक़ामत कही है और थोड़े अर्से के बाद आपने फ़रमाया कि वह उस मालिक के सुपुर्द हो गये हैं जिनके पास हज़रते मूसा (अ.स.) बचपने में थे।

8. अल्लामा जमाल उद्दीन मोहद्दिस की किताब रौज़ातुल अहबाब में है कि हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) 15 शाबान 255 हिजरी में पैदा हुए और ज़मानाए मोतमिद अब्बासी में बमक़ाम सरमन राय अज़ नज़र बराया ग़ायब शुद , लोगों की नज़र से सरदाब में ग़ायब हो गये।

9. अल्लामा अब्दुल रहमान सूफ़ी की किताब मराएतुल इसरार में है कि आप बतने नरजिस से 15 शाबान 255 हिजरी में पैदा हुए।

10. अल्लामा शहाबुद्दीन दौलताबादी साहेबे तफ़सीर बहरे मवाज की किताब हिदाएतुल सआदा में है कि खि़लाफ़ते रसूल (स अ व व ) हज़रत अली (अ.स.) के वास्ते से इमाम मेहदी (अ.स.) तक पहुँची आप ही आख़री इमाम हैं।

11. अल्लामा नसर बिन अली जहमनी की किताब मवालिदे आइम्मा में है कि इमाम मेहदी (अ.स.) नरजिस ख़ातून के बतन से पैदा हुए हैं।

12. अल्लामा मुल्ला अली क़ारी की किताब मरक़ात शरह मिशक़ात में है कि इमाम मेहदी (अ.स.) बारहवें इमाम हैं। शियो का यह कहना ग़लत है कि अहले सुन्न्त अहते बैत (अ.स.) के दुश्मन हैं।

13. अल्लामा जवाद साबती की किताब बराहीन साबतीया मे है कि इमाम मेहदी (अ.स.) औलादे फ़ात्मा (स अ व व ) में से हैं। वह बक़ौले 255 हिजरी में पैदा हो कर एक अर्से के बाद ग़ायब हो गये हैं।

14. अल्लामा शेख़ हसन ईराक़ी जिनकी तारीफ़ किताब अल वाक़ेया में है कि उन्होंने इमाम मेहदी (अ.स.) से मुलाक़ात की है।

15. अल्लामा अली ख़वास जिनके मुताअल्लिक़ शेरानी ने अल यूवाक़ियत में लिखा है कि उन्होंने इमाम मेहदी (अ.स.) से मुलाक़ात की है।

16. अल्लामा शेख़ सईद उद्दीन का कहना है कि इमाम मेहदी (अ.स.) पैदा हो कर ग़ायब हो गए हैं। दौरे आखि़र ज़माना आशकार गरदद और वह आखि़र ज़माने में ज़ाहिर होंगे। जैसा कि किताब मस्जिदे अक़सा में है।

17. अल्लामा अली अकबर इब्ने सआद अल्लाह की किताब मकाशिफ़ात में है कि आप पैदा हो कर कुतुब हो गये हैं।

18. अल्लामा अहमद बिला ज़री अहादीस में लिखते हैं कि आप पैदा हो कर महज़ूब हो गये हैं।

19. अल्लामा शाह वली अल्लाह मोहद्दिस देहलवी के रिसाले नवादर में है , मोहम्मद बिन हसन (अ.स.)(अल मेहदी) के बारे में शियों का कहना दुरूस्त हैं।

20. अल्लामा शम्सुद्दीन जज़री ने बहवाला मुसलसेलात बिलाज़री ने एतेराफ़ किया है।

21. अल्लामा अलाउद्दौला अहमद समनानी साहब तारीख़े ख़मीस दर अहवाली अल नफ़स नफ़ीस अपनी किताब में लिखते है कि इमाम मेहदी (अ.स.) ग़ैबत के बाद एबदाल फिर कु़तुब हो गये।

23. अल्लामा नूर अल्लाह बहवाला किताब बयानुल एहसान लिखते हैं कि इमाम मेहदी (अ.स.) तकमीले सिफ़ात के लिये ग़ायब हुये हैं।

24. अल्लामा ज़हबी अपनी तारीख़े इस्लाम में लिखते हैं कि इमाम मेहदी (अ.स.) 256 हिजरी में पैदा हो कर मादूम हो गये हैं।

25. अल्लामा इब्ने हजर मक्की की किताब सवाएक़े मोहर्रेक़ा में है कि इमाम मेहदी अल मुन्तज़र (अ.स.) पैदा हो कर सरदाब में ग़ायब हो गए हैं।

26. अल्लामा अस्र की किताब दफ़यातुल अयान की जिल्द 2 पृष्ठ 451 में है कि इमाम मेहदी (अ.स.) की उम्र इमाम हसन असकरी (अ.स.) की वफ़ात के वक़्त 5 साल की थी। वह सरदाब में ग़ाएब हो कर फिर वापस नहीं हुए।

27. अल्लामा सिब्ते इब्ने जौज़ी की किताब तज़किराए ख़वास अल आम्मा के पृष्ठ 204 में है कि आपका लक़ब अल क़ायम , अल मुन्तज़िर , अल बाक़ी है।

28. अल्लामा अबीद उल्लाह अमरतसरी की किताब अर हज्जुल मतालिब के पृष्ठ 377 में बहवाला किताबुल बयान फ़ी अख़बार साहेबुज़्ज़ान मरक़ूम है कि आप उसी तरह ज़िन्दा व बाक़ी हैं जिस तरह हज़रत ईसा (अ स ) , खि़ज़्र (अ स ) , इलयास (अ.स.) वग़ैरा ज़िन्दा और बाक़ी हैं।

29. अल्लामा शेख़ सुलैमान तमन दोज़ी ने किताब नियाबुल मोवद्दता पृष्ठ 393 में।

30. अल्लामा इब्ने ख़शाब ने किताब मवालिद अलले बैत में।

31. अल्लामा शिब्लन्जी ने नूरूल अबसार के पृष्ठ 152 प्रकाशित मिस्र 1222 हिजरी में बहवाला किताबुल बयान लिखा है कि इमाम मेहदी (अ.स.) ग़ायब होने के बाद अब तक ज़िन्दा और बाक़ी हैं और उनके वजूद के बाक़ी और ज़िन्दा होने में कोई शुबहा नहीं। वह इसी तरह ज़िन्दा और बाक़ी हैं जिस तरह हज़रते ईसा (अ स ) , हज़रते खि़ज़्र (अ.स.) और हज़रत इलयास (अ.स.) वग़ैरा ज़िन्दा और बाक़ी हैं। उन अल्लाह वालों के अलावा दज्जाल , इबलीस भी ज़िन्दा हैं। जैसा कि क़ुरआने मजीद , सही मुस्लिम , तारीख़े तबरी वग़ैरा से साबित है लेहाज़ा ला इमतना फ़ी बक़ाया उनके बाक़ी और ज़िन्दा होने में कोई शक व शुबहे की गुन्जाईश नहीं है।

32. अल्लामा चलपी किताब कशफ़ुल जुनून के पृष्ठ 208 में लिखते हैं कि किताब अल बयान फ़ी अख़बार साहेबुज़्ज़मान अबू अब्दुल्लाह मोहम्मद बिन यूसुफ़ कंजी शाफ़ेई की तसनीफ़ हैं। अल्लामा फ़ाज़िल रोज़ बहान की अबताल अल बातिल में है कि इमाम मेहदी (अ.स.) क़ायम व मुन्तज़िर हैं। वह आफ़ताब की मानिन्द ज़ाहिर हो कर दुनिया की तारीकी , कुफ़्र ज़ाएल कर देंगे।

33. अल्लामा अली मुत्तक़ी की किताब कंज़ुल आमाल की जिल्द 7 के पृष्ठ 114 में है कि आप ग़ायब हैं ज़ुहूर कर के 9 साल हुकूमत करेंगे।

34. अल्लामा जलाल उद्दीन सियूती की किताब दुर्रे मन्शूर जिल्द 3 पृष्ठ 23 में है कि इमाम मेहदी (अ.स.) के ज़हूर के बाद हज़रते ईसा (अ.स.) नाज़िल होंगे वग़ैरा वग़ैरा।


इमाम मेहदी (अ.स.) की ग़ैबत और आपका वुजूद व ज़ुहूर क़ुरआने मजीद की रौशनी में

हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) की ग़ैबत और आपके मौजूद होने और आपके तूले उम्र नीज़ आपके ज़ुहूर व शहूद और ज़हूर के बाद सारे दीन को एक कर देने के मुताअल्लिक़ 94 आयतें क़ुरआन मजीद में मौजूद हैं जिनमें से अकसर दोनों फ़रीक़ ने तसलीम किया है। इसी तरह बेशुमार ख़ुसूसी अहादीस भी हैं। तफ़सील के लिये मुलाहेज़ा हों। ग़ाएतुल मक़सूद व ग़ाएतुल मराम , अल्लामा हाशिम बहरानी व नियाबतुल मोवद्दता। मैं इस मक़ाम पर सिर्फ़ दो तीन आयतें लिखता हूँ आपकी ग़ैबत के मुताअल्लिक़। अलीफ़ लाम्मीम। ज़ालेकल किताबो ला रैबा फ़ीहे हुदल्लीम मुत्तक़ीन। अल लज़ीना यौमेनूना बिल ग़ैब है।

हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स अ व व ) फ़रमाते हैं कि ईमान बिल ग़ैब से इमाम मेहदी (अ.स.) की ग़ैबत मुराद है। नेक बख़्त हैं वह लोग जो उनकी ग़ैबत पर सब्र करें और मुबारकबाद के क़ाबिल हैं , वह समझदार लोग जो ग़ैबत मे भी उनकी मोहब्बत पर क़ायम रहेंगे।(नेयाबुल मोवद्दता पृष्ठ 370 प्रकाशित बम्बई) आपके मौजूद और बाक़ी होने के मुताअल्लिक़ जाअलहा कलमता बाक़ियता फ़ी अक़बा है। इब्राहीम (अ.स.) की नस्ल में कलमा बक़िया को क़रार दिया है जो बाक़ी और ज़िन्दा रहेगा। इस कलमाए बाक़िया से इमाम मेहदी (अ.स.) का बाक़ी रहना मुराद है और वही आले मोहम्मद (स अ व व ) में बाक़ी हैं।(तफ़सीरे हुसैनी अल्लामा हुसैन वाएज़ काशफ़ी पृष्ठ 226 ) नम्बर 3 , आपके ज़हूर और ग़लबे के मुताअल्लिकत्र यनज़हरहू अलद्दीने कुल्लाह जब इमाम मेहदी (अ.स.) ब हुक्मे ख़ुदा ज़हूर फ़रमाएंगे तो तमाम दीनों पर ग़लबा हासिल कर लेंगे यानी दुनिया में सिवा एक दीने इस्लाम के कोई और दीन न होगा।(नूरूल अबसार पृष्ठ 153 प्रकाशित मिस्र)


इमाम मेहदी (अ.स.) का ज़िक्र कुतुबे आसमानी में

हज़रत दाऊद (अ.स.) की ज़बूर की आयत 4 मरमूज़ 97 में है कि आख़री ज़माने में जो इन्साफ़ का मुजस्सेमा इन्सान आयेगा , उसके सर पर अब्र साया फ़िगन होगा। किताब सफ़याए पैग़म्बर के फ़सल 3 आयत 9 में है आख़री ज़माने में तमाम दुनिया मोवहिद हो जायेगी। किताब ज़बूर मरमूज़ 120 में है , जो आख़ेरूज़्ज़मान आयेगा उस पर आफ़ताब असर अन्दाज़ न होगा। सहीफ़ए शैया पैग़म्बर के फ़सल 11 मे है कि जब नूरे ख़ुदा ज़हूर करेगा तो अदलो इन्साफ़ का डन्का बजेगा , शेर और बकरी एक जगह रहेगे , चीता और बाज़गाला एक साथ चरेंगे। शेर और गौसाला एक साथ रहेंगे , गोसाला और मुर्ग़ एक साथ होंगे। शेर और गाय में दोस्ती होगी। तिफ़ले शीर ख़्वार सांप के बिल में हाथ डालेगा और वह काटेगा नहीं। फिर इसी सफ़हे के फ़सल 27 में है कि यह नूरे ख़ुदा जब ज़ाहिर होगा तो तलवार के ज़रिये तमाम दुश्मनों से बदला लेगा। सहीफ़ए तनजास हरफ़े अलिफ़ में है कि ज़हूर के बाद सारी दुनिया के बुत मिटा दिये जायेंगे ज़ालिम और मुनाफ़िक़ ख़त्म कर दिये जायेंगे। यह ज़हूर करने वाला कनीज़े ख़ुदा (नरजिस) का बेटा होगा।

तौरैत के सफ़रे अम्बिया में है कि मेहदी (अ.स.) ज़हूर करेंगे। हज़रज ईसा (अ.स.) आसमान से उतरेंगे। दज्जाल को क़त्ल करेंगे। इन्जील में है कि मेहदी (अ.स.) और ईसा (अ.स.) दज्जाल और शैतान को क़त्ल करेंगे। इसी तरह मुकम्मल वाक़िया जिसमें शहादते इमाम हुसैन (अ.स.) और ज़हूरे मेहदी (अ.स.) का इशारा हैं इन्जील किताब दानियाल बाब 12 फ़सल 9 आयत 24 रोयाए 2 में मौजूद है।(किताब अल वसाएल पृष्ठ 129 प्रकाशित बम्बई 1339 हिजरी)


इमाम मेहदी (अ.स.) की ग़ैबत की वजह

मज़कूरा बाला तहरीरों से उलेमाए इस्लाम का एतेराफ़ साबित हो चुका यानी वाज़े हो गया कि इमाम मेहदी (अ.स.) के मुताअल्लिक़ जो अक़ाएद शियो के हैं वही मुन्सिफ़ मिज़ाज और ग़ैर मुताअस्सिब अहले तसन्नुन के उलेमा के भी हैं और मक़सदे असल की ताईद क़ुरआन की आयतों ने भी कर दी। अब रही ग़ैबते इमाम मेहदी (अ.स.) की ज़रूरत उसके मुताअल्लिक़ अर्ज़ है कि , 1. ख़ल्लाक़े आलम ने हिदायते ख़ल्क़ के लिये एक लाख चौबीस हज़ार पैग़म्बर और कसीर तादाद में उनके औसिया भेजे। पैग़म्बरों में से एक लाख तेहीस हज़ार नौ सौ निन्नियानवे 1,23,999 ) अम्बिया के बाद चूंकि हुज़ूर रसूले करीम (स अ व व ) तशरीफ़ लाये थे लेहाज़ा उनके जुमला सिफ़ात व कमालात व मोजेज़ात हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स अ व व ) में जमा कर दिये गये थे और आपको ख़ुदा ने तमाम अम्बिया के सिफ़ात का जलवा बरदार बना दिया बल्कि ख़ुद अपनी ज़ात का मज़हर क़रार दिया था और चूंकि आपको भी इस दुनियाए फ़ानी से ज़ाहिरी तौर पर जाना था इस लिये आपने अपनी ज़िन्दगी ही मे हज़रत अली (अ.स.) को हर क़िस्म के कमालात से भर पूर कर दिया था। हज़रत अली (अ.स.) अपने ज़ाती कमालात के अलावा नबवी कमालात से भी मुम्ताज़ हो गये थे। सरवरे कायनात के बाद कायनाते आलम में सिर्फ़ अली (अ.स.) की हस्ती थी जो कमालाते अम्बिया की हामिल थी। आपके बाद यह कमालात अवसाफ़ में मुन्तिक़िल होते हुए इमाम मेहदी (अ.स.) तक पहुँचे। बादशाहे वक़्त इमाम मेहदी (अ.स.) को क़त्ल करना चाहता था। अगर वह क़त्ल हो जाते तो दुनियां से अम्बिया व औसिया का नाम व निशान मिट जाता और सब की यादगार बयक ज़र्ब शमशीर ख़त्म हो जाती और चुंकि उन्हें अम्बिया के ज़रिये से ख़ुदा वन्दे आलम मुताअरिफ़ हुआ था लेहाज़ा उसका भी ज़िक्र ख़त्म हो जाता। इस लिये ज़रूरी था कि ऐसी हस्ती को महफ़ूज़ रखा जाए जो जुमला अम्बिया और अवसिया की यादगार और तमाम के कमालात की मज़हर हो। 2. ख़ुदा वन्दे आलम ने क़ुरआन मजीद में इरशाद फ़रमाया वाजालाहा कमातह बाक़ीयता फ़ी अक़बे इब्राहीम (अ.स.) की नस्ल मे कलमा बाक़ीहा क़रार दे दिया है। नस्ले इब्राहीम (अ.स.) दो फ़रज़न्दों से चली है एक इस्हाक़ (अ.स.) और दूसरे इस्माईल (अ.स.)। इस्हाक़ (अ.स.) की नस्ल से ख़ुदा वन्दे आलम जनाबे ईसा (अ.स.) को ज़िन्दा व बाक़ी क़रार दे कर आसमान पर महफ़ूज़ कर चुका था अब यह मुक़तज़ाए इन्साफ़ ज़रूरी थी कि नस्ले इस्माईल (अ.स.) से भी किसी एक को बाक़ी रखे और वह भी ज़मीन पर क्यो कर आसमान पर एक बाक़ी मौजूद था लेहाज़ा इमाम मेहदी (अ.स.) को जो नस्ले इस्माईल (अ.स.) से हैं ज़मीन पर ज़िन्दा और बाक़ी रखा और उन्हें भी इसी तरह दुश्मन के शर से महफ़ूज़ कर दिया जिस तरह हज़रत ईसा (अ.स.) को महफ़ूज़ किया था। 3. यह मुसल्लेमाते इस्लामी से है कि ज़मीन हुज्जते ख़ुदा और इमामे ज़माना से ख़ाली नहीं रह सकती।(उसूले काफ़ी 103 प्रकाशित नवल किशोर) चुंकि हुज्जते ख़ुदा उस वक़्त इमाम मेहदी (अ.स.) के सिवा कोई न था , उन्हें दुश्मन क़त्ल कर देने पर तुले हुए थे इस लिये उन्हे महफ़ूज़ व मस्तूर कर दिया गया। हदीस में है कि हुज्जते ख़ुदा की वजह से बारीश होती है और उन्हीं के ज़रिये से रोज़ी तक़सीम की जाती है।(बेहार) 4. यह मुसल्लम है कि हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) जुमला अम्बिया के मज़हर थे इस लिये ज़रूरत थी कि उन्हीं की तरह उनकी ग़ैबत भी होती यानी जिस तरह बादशाहे वक़्त के मज़ालिम की वजह से हज़रत नूह (अ स ) , हज़रत इब्राहीम (अ स ) , हज़रत मूसा (अ स ) , हज़रत ईसा (अ.स.) और हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स अ व व ) अपने अहदे हयात में मुनासिब मुद्दत तक ग़ाएब रह चुके थे इसी तरह यह भी ग़ाएब रहते। 5. क़यामत का आना मुसल्लम है और इस वाक़िये क़यामत में इमाम मेहदी (अ.स.) का ज़िक्र बताता है कि आपकी ग़ैबत मस्लहते ख़ुदा वन्दे आलम की बिना पर हुई है। 6. सुरए इन्ना अन ज़ल्नाहो से मालूम होता है कि नुज़ूले मलाएक शबे क़दर में होता रहता है यह ज़ाहिर है कि नुज़ूले मलाएक अम्बिया व औसिया पर ही हुआ करता है। इमाम मेहदी (अ.स.) को इस लिये मौजूद और बाक़ी रखा गया है ताकि नुज़ूले मलाएक की मरकज़ी ग़रज़ पूरी हो सके और शबे क़द्र में उन्हीं पर नुज़ूले मलाएक हो सके। हदीस में है कि शबे क़द्र में साल भर की रोज़ी वगै़रह इमाम मेहदी (अ.स.) तक पहुँचा दी जाती है और वही उसे तक़सीम करते हैं। 7. हकीम का फ़ेल हिकमत से ख़ाली नहीं होता यह दूसरी बात है कि आम लोग इस हिकमत व मसेलहत से वाक़िफ़ न हों। ग़ैबते इमाम मेहदी (अ.स.) उसी तरह मसलेहत व हिकमते ख़ुदा वन्दी की बिना पर अमल में आई है। जिस तरह तवाफ़े काबा , रमी जमरात वग़ैरह हैं जिसकी असल मसलेहत ख़ुदा वन्दे आलम को ही मालूम है।। 8. इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) का फ़रमान है कि इमाम मेहदी (अ.स.) को इस लिये ग़ायब किया जायेगा ताकि ख़ुदा वन्दे आलम अपनी सारी मख़लूक़ात का इम्तेहान कर के यह जांचे कि नेक बन्दे कौन हैं और बातिल परस्त कौन लोग है। (इकमालुद्दीन) 9. चूंकि आपको अपनी जान का ख़ौफ़ था और यह तय शुदा है कि मन ख़ाफ अली नफ़सही एहसताज अली इला सत्तार कि जिसे अपने नफ़्स और अपनी जान का ख़ौफ़ हो वह पोशीदा होने को लाज़मी जानता है।(अल मुतुर्जा़) 10. आपकी ग़ैबत इस लिये वाक़े हुई है कि ख़ुदा वन्दे आलम एक वक़्ते मोइय्यन में आले मोहम्मद (स अ व व ) पर जो मज़ालिम किये गए हैं इनका बदला इमाम मेहदी (अ.स.) के ज़रिये से लेगा यानी आप अहदे अव्वल से लेकर बनी उमय्या और बनी अब्बास के मज़ालिमों से मुकम्मिल बदला लेंगे।(कमालुद्दीन)

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