
आपके अलक़ाब
आपके अलक़ाब मेहदी , हुज्जत उल्लाह , ख़लफ़े अलसालेह , साहेबुल असर व साहेबुल अमर वल ज़मान , अल क़ायम , अल बाक़ी और अल मुन्तज़र हैं। मुलाहेज़ा हो तज़किराए ख़वासुलमता पृष्ठ 204 , रौज़ातुल शोहदा पृष्ठ 439 , कशफ़ुल ग़म्मा पृष्ठ 131 सवाएक़े मोहर्रेक़ा पृष्ठ 124 , मतालेबुस सूऊल पृष्ठ 294 , आलामु वुरा पृष्ठ 24 हज़रत दानियाल नबी ने हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) की विलादत से 1420 साल पहले आप का लक़ब मुन्तज़िर क़रार दिया है। मुलाहेज़ा हो किताब व दानियाल बाब 12 आएत 12 । अल्लामा इब्ने हजर मक्की अल मुन्तज़िर की शरह करते हुए लिखते हैं कि उन्हें मुन्तज़िर यानी जिसका इन्तेज़ार किया जाए इस लिये कहते हैं कि वह सरदाब में गा़एब हो गए हैं और यह मालूम नहीं होता कि कहां चले गए। मतलब यह है कि लोग उनका इन्तेज़ार कर रहे हैं। शैख़ अल ऐराक़ैन अल्लामा शैख़ अब्दुल रसा तहरीर फ़रमाते हैं कि आपको मुन्तज़र इस लिये कहते हैं कि आप की ग़ैबत की वजह से आपके मुख़लिस आपका इन्तेज़ार कर रहे हैं। मुलाहेज़ा हो।(अनवारूल हुसैनिया जिल्द 2 पृष्ठ 57 प्रकाशित बम्बई)
आपका हुलिया मुबारक
किताब अक्मालुद्दीन में शेख़ सदूक़ तहरीर फ़रमाते हैं कि सरवरे काएनात (स अ व व ) का इरशाद है कि इमाम मेहदी (अ.स.) शक्ल व शबाहत ख़ल्क़ व ख़लक़ ख़साएल , अक़वाल व अफ़आल में मेरे मुशाबे होंगे। आपके हुलिये के मुताअल्लिक़ उलमा ने लिखा है कि आपका रंग गन्दुम गून , क़द मियाना है। आपकी पेशानी खुली हुई और आपके अबरू घने और बाहम पेवस्ता हैं , आपकी नाक बारीक और बुलन्द है आपकी आंखें बड़ी और आपका चेहरा नेहायत नूरानी है। आपके दाहिने रूख़सार पर एक तिल है कानहू कौकब दुर जो सितारे की मानिन्द चमकता है। आपके दांत चमकदार खुले हुए हैं आपकी ज़ुल्फ़ें कन्धों तक बड़ी रहती हैं। आपका सीना चौड़ा और आपके कन्धे खुले हुए हैं। आपकी पुश्त पर इसी तरह की मुहरे इमामत सब्त है जिस तरह पुश्ते रिसालत माब (स अ व व ) पर मुहरे नबूअत सबत थी।(अलाम अल वरा पृष्ठ 265, व ग़ाएत अल मक़सूद जिल्द 1 पृष्ठ 64, नूरूल अबसार पृष्ठ 152 )
तीन साल की उम्र में हुज्जतुल्लाह होने का दावा
किताब तवारीख़ व सैर से मालूम होता है कि आप की परवरिश का काम जनाबे जिब्राईल (अ.स.) के सिपुर्द था और वही आपकी परवरिश व परदाख्त करते थे। ज़ाहिर है कि जो बच्चा विलादत के वक़्त कलाम कर चुका हो और जिसकी परवरिश जिब्राईल जैसे मुक़र्रब फ़रिश्ते के सिपुर्द हो वह यक़ीनन दुनियां में चन्द दिन गुज़ारने के बाद बहरे सूरत इस सलाहियत का मालिक हो सकता है कि वह अपनी ज़बान से हुज्जतुल्लाह होने का दावा कर सके।
अल्लामा अरबली लिखते हैं अहमद इब्ने इसहाक़ और साद अल अशकरी एक दिन हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) की खि़दमत में हाज़िर हुए और उन्होंने ख़्याल किया कि आज इमाम (अ.स.) से यह दरयाफ़्त करेंगे कि आप के बाद हुज्जतुल्लाह फ़िल अर्ज़ कौन होगा। जब सामना हुआ तो इमाम हसन असकरी (अ.स.) ने फ़रमाया कि ऐ अहमद ! तुम जो दिल में ले कर आये हो मैं उसका जवाब तुम्हे देता हूँ , यह फ़रमा कर आप अपने मक़ाम से उठे और अन्दर जा कर यूं वापस आये कि आप के कंधे पर एक नेहायत ख़ूब सूरत बच्चा था जिसकी उम्र तीन साल की थी। आपने फ़रमाया ऐ अहमद ! मेरे बाद हुज्जते ख़ुदा यह होगा। इसका नाम मोहम्मद और इसकी कुन्नियत अबुल क़ासिम है यह खि़ज़्र की तरह ज़िन्दा रहेगा और ज़ुलक़रनैन की तरह सारी दुनियां पर हुकूमत करेगा। अहमद इब्ने इसहाक़ ने कहा मौला ! कोई ऐसी अलामत बता दीजिए कि जिससे दिल को इत्मीनाने कामिल हो जाए। आपने इमाम मेहदी (अ.स.) की तरफ़ मुतावज्जा हो कर फ़रमाया , बेटा इसको तुम जवाब दो। इमाम मेहदी (अ.स.) ने कमसिनी के बवजूद बज़बाने फ़सीह फ़रमाया अना हुज्जतुल्लाह व अना बक़ीयतुल्लाह मैं ही ख़ुदा की हुज्जत और हुक्मे ख़ुदा से बाक़ी रहने वाला हूँ। एक वह दिन आयेगा जिसमे मैं दुश्मनाने ख़ुदा से बदला लूंगा , यह सुन कर अहमद ख़ुश व मसरूय व मुतमईन हो गए।(कशफ़ुल ग़म्मा पृष्ठ 138 )
पांच साल की उम्र मे ख़ासुल ख़ास असहाब से आपकी मुलाक़ात
याक़ूब बिन मनक़ूस व मोहम्मद बिन उस्मान उमरी व अबी हाशिम जाफ़री और मूसा बिन जाफ़र बिन वहब बग़दादी का बयान है कि हम हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) की खि़दमत में हाज़िर हुए और हम ने अर्ज़ कि मौला ! आपके बाद अमरे इमामत किस के सुपुर्द होगा और कौन हुज्जते ख़ुदा क़रार पाऐगा। आपने फ़रमाया कि मेरा फ़रज़न्द मोहम्मद मेरे बाद हुज्जतुल्लाह फ़िल अर्ज़ होगा। हम ने अर्ज़ कि मौला हमे उनकी ज़ियारत करा दीजीए। आपने फ़रमाया वह पर्दा जो सामने आवेख़्ता है उसे उठाओ। हम ने पर्दा उठाया तो उस से एक नेहायत ख़ूब सूरत बच्चा जिसकी उमर पाँच साल थी बरामद हुआ और वह आ कर इमाम हसन असकरी (अ.स.) की आग़ोश में बैठ गया। यही मेरा फ़रज़न्द मेरे बाद हुज्जतुल्लाह होगा। मोहम्मद बिन उस्मान का कहना है कि हम इस वक़्त चालीस अफ़राद थे और हम सब ने उनकी ज़ियारत की। इमाम हसन असकरी (अ.स.) ने अपने फ़रज़न्द इमाम मेहदी (अ.स.) को हुक्म दिया कि वह अन्दर चले जाएं और हम से फ़रमाया शुमा ऊरा नख़्वही दीद ग़ैर अज़ इमरोज़ कि अब तुम आज के बाद फिर उसे न देख सकोगे। चुनान्चे ऐसा ही हुआ फिर ग़ैबत शुरू हो गई।।(कशफ़ुल ग़म्मा पृष्ठ 139 व शवाहेदुन नबूअत पृष्ठ 213 )
अल्लामा तबरसी किताब आलामुल वुरा के पृष्ठ 243 में तहरीर फ़रमाते हैं कि आइम्मा के नज़दीक मोहम्मद और उसमान उमरी दोनों सुक़ह हैं। फिर इसी सफ़ह पर तहरीर फ़रमाते हैं कि अबू हारून का कहना है कि मैंने बचपन में साहेबुज़्ज़मान को देखा है। ‘‘कानहू अलक़मर लैलता अलबदर इनका चेहरा चौदवीं रात के चांद की तरह चमकता था।
इमाम मेहदी (अ.स.) नबूवत के आईने में
अल्लामा तबरसी बहवाला हज़रात मासूमीन (अ.स.) तहरीर फ़रमाते हैं कि हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) में बहुत से अम्बिया के हालात व कैफ़ियात नज़र आते हैं और जिन वाक़ेयात से मुख़तलिफ़ अम्बिया को दो चार होना पड़ा वह तमाम वाक़ियात आपकी ज़ात सतूदा पेज न.त में दिखाई देते हैं। मिसाल के लिए हज़रत नूह (अ स ) , हज़रत इब्राहीम (अ.स.) हज़रत मूसा (अ.स.) हज़रत ईसा (अ.स.) हज़रत अय्यूब (अ.स.) हज़रत युनूस (अ.स.) हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स अ व व ) को ले लीजिए और उनके हालात पर ग़ौर कीजिए। आपको हज़रत नूह (अ.स.) की तवील ज़िन्दगी नसीब होगी। हज़रत इब्राहीम (अ.स.) की तरह आपकी विलादत छिपाई गई और लोगों से किनारा कश हो कर रूपोश होना पड़ा। हज़रत मूसा (अ.स.) की तरफ हुज्जत के ज़मीन से उठ जाने का ख़ौफ़ ला हक़ हुआ और उन्ही कि विलादत की तरह आपकी विलादत भी पोशीदा रखी गई और उन्हीं के मानने वालों की तरह आपके मानने वालों को आपकी ग़ैबत के बाद सताया गया। हज़रत ईसा (अ.स.) की तरह आपके बारे में लोगों ने इख़्तेलाफ़ किया। हज़रत अय्यूब (अ.स.) की तरह तमाम इम्तेहानात के बाद आपकी फ़र्ज़ व कशाइश नसीब होगी। हज़रत युसुफ़ (अ.स.) की तरह अवाम व ख़वास से आपकी ग़ैबत होगी। हज़रत यूनुस (अ.स.) की तरह ग़ैबत के बाद आपका ज़हूर होगा। यानी जिस तरह वह अपनी क़ौम से ग़ाएब हो कर बुढ़ापे के बावजूद नौजवान थे उसी तरह आपका जब ज़हूर होगा तो आप चालीस साल के जवान होंगे और हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स अ व व ) की तरह आप साहेबुल सैफ़ होंगे।(आलामु वुरा पृष्ठ 264 प्रकाशित बम्बई 1312 हिजरी)
इमाम हसन असकरी (अ.स.) की शहादत
इमाम मेहदी (अ.स.) की उम्र अभी सिर्फ़ पाँच साल की हुई थी कि ख़लीफ़ा मोतमिद बिन मुतावक्किल अब्बासी ने मुद्दतों क़ैद रखने के बाद इमाम हसन असकरी (अ.स.) को ज़हर दे दिया जिसकी वजह से आप बतारीख़ 8 रबीउल अव्वल 260 हिजरी मुताबिक़ 873 ब उम्र 28 साल रेहलत फ़रमा गए। वख़ल मन अलविदा बनहूमोहम्मदन और आपने औलाद में सिर्फ़ इमाम मेहदी (अ.स.) को छोड़ा।(नुरूल अबसार पृष्ठ 53, दमए साकेबा पृष्ठ 191 )
अल्लामा शिब्लन्जी लिखते हैं कि जब आपकी शहादत की ख़बर मशहूर हुई तो सारे शहर सामरा में हलचल मच गई। फ़रयादो फ़ुग़ां की आवाज़ बुलन्द हो गई , सारे शहर में हड़ताल कर दी गई यानी सारी दुकाने बन्द हो गईं लोगों ने अपने करोबार छोड़ दिये। तमाम बनी हाशिम हुक्कामे दौलत , मुन्शी काज़ी अरकान अदालत , अयान हुकूमत और आम ख़लाएक़ हज़रत के जनाज़े के लिये दौड़ पड़े। हालत यह थी कि शहर सामरा क़यामत का मन्ज़र पेश कर रहा था। तजहीज़ और नमाज़ से फ़राग़त के बाद आपको इसी मकान में दफ़्न कर दिया गया जिस में इमाम अली नक़ी (अ.स.) मदफ़ून थे।(नुरूल अबसार पृष्ठ 152 व तारीख़े कामिल सवाएक़े मोहर्रेक़ा व फ़सूल महमा , जिला अल उयून पृष्ठ 296 )
अल्लामा मोहम्मद बाक़िर तहरीर फ़रमाते हैं कि इमाम हसन असकरी (अ.स.) की वफ़ात के बाद नमाज़े जनाज़ा हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) ने पढ़ाई। मुलाहेज़ा हो ,(दमए साकेबा जिल्द 3 पृष्ठ 192 व जिला अल उयून पृष्ठ 297 )
अल्लामा तबरसी लिखते हैं कि नमाज़ के बाद आप को बहुत से लोगों ने देखा और आपके हाथों का बोसा दिया।(आलामुल वुरा पृष्ठ 242 ) अल्लामा इब्ने ताऊस का इरशाद है कि 8 रबीउल अव्वल को इमाम हसन असकरी (अ.स.) की वफ़ात वाक़ेए हुई और 9 रबीउल अव्वल से हज़रत हुज्जत (अ.स.) की इमामत का आग़ाज़ हुआ। हम 9 रबीउल अव्वल को जो ख़ुशी मनाते हैं इसकी एक वजह यह भी है।(किताब इक़बाल) अल्लामा मजलिसी लिखते हैं 9 रबीउल अव्वल को उमर बिन साद ब दस्ते मुख़्तार आले मोहम्मद का क़त्ल हुआ।(ज़ाद अल माद पृष्ठ 585 ) जो उबैदुल्लहा इब्ने ज़्याद का सिपह सालार था , जिसके क़त्ल के बाद आले मोहम्मद (स अ व व ) ने पूरे तौर पर ख़ुशी मनाई।(बेहारूल अनवार मुख़तार आले मोहम्मद) किताब दमए साकेबा के पृष्ठ 192 में है कि हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) ने 259 में अपनी वालेदा को हज के लिये भेज दिया था और फ़रमा दिया था कि 260 हिजरी में मेरी शहादत हो जायेगी। इसी सिन में आपने हज़रत इमाम मेहदी (अ.स.) को जुमला तबरूकात दे दिये थे और इस्में आज़म वग़ैरा तालीम कर दिया था।(दमए साकेबा व जिला अल उयून पृष्ठ 298 ) उन्हीं तबरूकात में हज़रत अली (अ.स.) का जमा किया हुआ वह क़ुरान भी था जो तरतीब नुज़ूल पर सरवरे काएनात की ज़िन्दगी में मुरत्तब किया गया था।(तारीख़ अल ख़ुलफ़ा व अनफ़ान) और जिसे हज़रत अली (अ.स.) ने अपने अहदे खि़लाफ़त में भी इस लिये राएज न किया था कि इस्लाम में दो क़ुरआन रवाज पा जायेंगे और इस्लाम में तफ़रेक़ा पड़ जायेगा।(अज़ाता अल ख़फ़ा पृष्ठ 273 ) मेरे नज़दीक इस सन् में हज़रत नरजिस ख़ातून का इन्तेक़ाल हुआ है और इसी सन् में हज़रत ने ग़ैबत इख़्तेयार फ़रमाई है।

