चौदह सितारे अबु मोहम्मद हज़रत इमाम हसन असकरी पार्ट- 9

इमाम हसन असकरी (अ.स.) की दोबारा गिरफ़्तारी

यह एक मुसल्लेमा हक़ीक़त है कि ख़ुल्फ़ाए बनी अब्बासिया ख़ूब जानते थे कि सिलसिला ए आले मोहम्मद (स अ व व ) के वह अफ़राद जो रसूल अल्लाह (स अ व व ) की सही जा नशीनी के मिसदाक़ व हक़दार हो सकते हैं वह वही अफ़राद हैं जिनमें से ग्यारहवीं हस्ती इमाम हसन असकरी (अ.स.) की है। इस लिये उनका फ़रज़न्द वह हो सकता है जिसके बारे में रसूल अल्लाह (स अ व व ) की पेशीन गोई सही क़रार पा सके। लेहाज़ा कोशिश यह थी कि उनकी ज़िन्दगी का दुनिया से ख़ात्मा हो जाए। इस तरह की उनका जा नशीन दुनिया में मौजूद ने हो। यही सबब था कि इमाम हसन असकरी (अ.स.) के लिये नज़र बन्दी पर इक़तेफ़ा नहीं की गई। जो इमाम अली नक़ी (अ.स.) के लिये ज़रूरी समझी गई थी बल्कि आपके लिये अपने घर बार से अलग क़ैद तन्हाई को ज़रूरी समझा गया। यह और बात है कि क़ुदरती इन्तेज़ाम के मातहत दरमियान में इन्के़लाबाते सलतनत के वाक़ए आपकी क़ैदे मुसलसल के बीच में क़हरी रिहाई के सामान पैदा कर दिया करते थे , मगर फिर भी जो बादशाह तख़्त पर बैठता वह अपने पेश रौ के नज़रिये के मुताबिक़ आपको दोबारा मुक़य्यद करने पर तैयार हो जाता था। इस तरह आपकी मुख़्तसर ज़िन्दगी जो दौरे इमामत के बाद थी उसका बेशतर हिस्सा क़ैदो बन्द में ही गुज़रा। इस क़ैद की सख़्ती मोतमिद के ज़माने में बहुत बढ़ गई थी। अगरचे वह मिस्ल दीगर सलातीन के आपके मरतबे और हक़्क़ानियत से ख़ूब वाक़िफ़ था लेकिन फिर भी वह बुग़्ज़े लिल्लाही को छोड़ न सका और दस्तूरे साबिक़ के मुताबिक़ उन्होंने ज़िन्दगी की मंज़िले आखि़र तक पहुँचाने के दरपए रहा। यही वहज है कि वह नज़र बन्दियों से मुतमईन न हो सका और उसने 258 हिजरी में इमाम हसन असकरी (अ.स.) को फिर मुक़य्यद कर दिया।(आलामुल वुरा पृष्ठ 214 ) और अबकी मरतबा चूंकि नियत बिल्कुल ख़राब थी इस लिये क़ैद में भी पूरी सख़्ती की गई। हुक्म था कि आपके साथ किसी क़िस्म की कोई रियायत न की जाए। चुनान्चे यही कुछ होता रहा लेकिन उसे इससे तसल्ली न हुई और उसने अपने एक ज़ालिम खि़दमतगार जिसका नाम ‘‘ नख़रीर ’’ था को बुला कर कहा कि उन्हें तू अपनी निगरानी में ले ले और जिस दर्जा सता सके उन्हें परेशान कर। नख़रीर ने हुक्म पाते ही तशद्दुद शुरू कर दिया। इमाम (अ.स.) को दिन की रौशनी और पानी की फ़रावानी तक से महरूम कर दिया। आपको दिन और रात का पता सूरज की रौशनी से न चलता था सिर्फ़ तारीकी ही रहती थी। एक दिन उसकी बीवी ने उससे दरख़्वास्त की के फ़रज़न्दे रसूल (स अ व व ) है उसके साथ तुम्हारा यह बरताव अच्छा नहीं है। उसने कहा यह क्या है अभी तो उन्हें जानवरों से फड़वा डालना बाकी़ है।

हुज्जते ख़ुदा दरिन्दों में

चुनान्दे उसने इजाज़त हासिल कर के इमाम हसन असकरी (अ.स.) को दरिन्दों मे डाल दिया। शेर और दीगर दरिन्दों की नज़र जब आप पर पड़ी तो उन्होंने हुज्जते ख़ुदा को पहचान लिया और उन्हें फाड़ खाने के बजाए उनके क़दमों पर सर रख दिया इमाम हसन असकरी (अ.स.) ने उनके दरमियान मुसल्ला बिछा कर नमाज़ पढ़ना शुरू कर दिया दुश्मनों ने एक बुलन्द मक़ाम से यह हाल देखा और सख़्त शर्मिन्दा हो कर इमाम (अ.स.) की फ़ज़ीलत का एतेराफ़ किया।(आलामुल वुरा पृष्ठ 218, कशफ़ुल ग़म्मा पृष्ठ 127, इरशाद मुफ़ीद पृष्ठ 514 )

इस वाक़िये ने आप की दबी हुई फ़ज़ीलत को उभार दिया लोगों में इस करामत का चरचा हो गया अब तो मुतामिद के लिये इस के सिवा कोई चारा न था कि उन्हें जल्द से जल्द इस दारे फ़ानी से रूख़सत कर दे चुनान्चे उसने एक ऐसे क़ैद ख़ाने में आपको मुक़य्यद कर दिया जिसमें रह कर ज़िन्दा रहने से मौत बेहतर है।

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