चौदह सितारे अबु मोहम्मद हज़रत इमाम हसन असकरी पार्ट- 6

हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) और ख़ुसूसियाते मज़हब

हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) का इरशाद है कि हमारे मज़हब में उन लोगों का शुमार होगा जो उसूल व फ़ुरू और दीगर लवाज़िम के साथ साथ इन दस चीज़ों के क़ायल बल्कि उन पर आमिल हों।

1. शबो रोज़ में 51 रकअत नमाज़ पढ़ना। 2. सजदा गाहे करबला पर सजदा करना। 3. दाहिने हाथ में अंगूठी पहन्ना। 4. अज़ान व अक़ामत के जुमले दो दो मरतबा कहना। 5. अज़ान व अक़ामत में हय्या अला ख़ैरिल अमल कहना। 6. नमाज़ में बिस्मिल्लिाह ज़ोर से पढ़ना। 7. हर दूसरी रकअत में क़ुनूत पढ़ना। 8. आफ़ताब की ज़रदी से पहले नमाज़े अस्र और तारों के डूब जाने से पहले नमाज़े सुबह पढ़ना। 9. सर और दाढ़ी में वसमा का खि़ज़ाब करना। 10. नमाज़े मय्यत में पांच तकबीरे कहना।(दमए साकेबा जिल्द 3 पृष्ठ 172 )


हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) और ईदे नुहुम रबीउल अव्वल

हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) चन्द अज़ीम अस्हाब जिनमें अहमद बिन इस्हाक़ क़ुम्मी भी थे। एक दिन मोहम्मद बिन अबी आला हम्दानी और यहिया बिन मोहम्मद बिन जरीह बग़दादी के दरमियान 9 रबीउल अव्वल के यौमे ईद होने पर गुफ़्तुगू हो रही थी। बात चीत की तकमील के लिये यह दोनों अहमद बिन इस्हाक़ के मकान पर गए। दक़्क़ुल बाब किया , एक ईराक़ी लड़की निकली , आने का सबब पूछा , कहा अहमद से मिलना है। उसने कहा वह आमाल कर रहे हैं। उन्होंने कहा कैसा अमल है ? लड़की ने कहा अहमद बिन इस्हाक़ ने हज़रत इमाम अली नक़ी (अ.स.) से रवायत की है कि 9 रबीउल अव्वल यौमे ईद है और हमारी बड़ी ईद है , और हमारे दोस्तों की ईद है। अल ग़रज़ वह अहमद से मिले। उन्होंने कहा कि मैं अभी ग़ुस्ले ईद से फ़ारिग़ हुआ हूँ और आज ईदे नहुम 9 है। फिर उन्होंने कहा कि मैं आज ही हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) की खि़दमत में हाज़िर हुआ हूँ। उनके यहां अंगीठी सूलग रही थी और तमाम घर के लोग अच्छे कपड़े पहने हुए थे। ख़ुशबू लगाए हुए थे। मैंने अर्ज़ कि इब्ने रसूल अल्लाह (स अ व व ) आज क्या कोई ताज़ा यौमे मसर्रत है ? फ़रमाया हां आज 9 रबीउल अव्वल है। हम अहले बैत और हमारे मानने वालों के लिये यौमे ईद है। फिर इमाम (अ.स.) ने इस दिन के यौमे ईद होने और रसूले ख़ुदा (स अ व व ) और अमीरल मोमेनीन (अ.स.) के तरज़े अमल की निशान देही फ़रमाई।


हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.)के अक़वाल

हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) के पन्दो नसायह हुक्म और मवाएज़ में से कुछ नीचे लिखे जा रहे हैं।

1. दो बेहतरीन आदतें यह हैं कि अल्लाह पर ईमान रखे और लोगों को फ़ायदे पहुँचायें।

2. अच्छों को दोस्त रखने में सवाब है।

3. तवाज़ो और फ़रोतनी यह है कि जब किसी के पास से गुज़रे तो सलाम करें और मजलिस में मामूली जगह बैठें।

4. बिला वजह हंसना जिहालत की दलील है।

5. पड़ोसियों की नेकी को छुपाना और बुराईयों को उछालना हर शख़्स के लिये कमर तोड़ देने वाली मुसीबत और बेचारगी है।

6. यह इबादत नहीं है कि नमाज़ रोज़े अदा करता रहे , बल्कि यह भी अहम इबादत है कि ख़ुदा के बारे में सोच विचार करे।

7. वह शख़्स बदतरीन है जो दो मुहा और दो ज़बान हो , जब दोस्त सामने आये तो अपनी ज़बान से ख़ुश कर दे और जब वह चला जाए तो उसे खा जाने की तदबीर सोचे जब उसे कुछ मिले तो यह हसद करे और जब उस पर कोई मुसीबत आ जाए तो क़रीब न फटके।

8. गु़स्सा हर बुराई की कुन्जी है।

9. हसद करने और कीना रखने वाले को भी सुकूने क़ल्ब नसीब नहीं होता।

10. परहेज़गार वह है जो शब के वक़्त तवकुफ़ व तदब्बुर से काम ले और हर अमर से मोहतात रहे।

11. बेहतरीन इबादत गुज़ार वह है जो फ़राएज़ अदा करता रहे।

12. बेहतरीन सईद और ज़ाहिर वह है जो गुनाह मुतलक़न छोड़ दे।

13. जो दुनियां में बोऐगा वही आख़ेरत में काटेगा।

14. मौत तुम्हारे पीछे लगी हुई है अच्छा बोओगे तो अच्छा काटोगे , बुरा बोओगे तो निदामत होगी।

15. हिरस और लालच से कोई फ़ाएदा नहीं जो मिलना है वही मिलेगा।

16. एक मोमिन दूसरे मोमिन के लिये बरकत है।

17. बेवकूफ़ का दिल उसके मुंह में होता है और अक़ल मन्द का मुंह उसके दिल में होता है।

18. दुनिया की तलाश में कोई फ़रीज़ा न गवा देना। 19. तहारत में शक की वजह से ज़्यादती करना ग़ैर मम्दूह है।

20. कोई कितना ही बड़ा आदमी क्यों न हो जब वह अक़ को छोड़ देगा ज़लील तर हो जायेगा।

21. मामूली आदमी के साथ हक़ हो तो वही बड़ा है।

22. जाहिल की दोस्ती मुसीबत है।

23. ग़मगीन के सामने हंसना बे अदबी और बद अमली है।

24. वह चीज़ मौत से बदतर है जो तुम्हें मौत से बेहतर नज़र आए।

25. वह चीज़ ज़िन्दगी से बेहतर है जिसकी वजह से तुम ज़िन्दगी को बुरा समझो।

26. जाहिल की दोस्ती और इसके साथ गुज़ारा करना मोजिज़े के मानिन्द है।

27. किसी की पड़ी हुई आदत को छुड़ाना ऐजाज़ की हैसीयत रखता है।

28. तवाज़े ऐसी नेमत है जिस पर हसद नहीं किया जा सकता।

29. इस अन्दाज़ से किसी की ताज़ीम न करो जिसे वह बुरा समझे।

30. अपनी भाई की पोशीदा नसीहत करनी इसकी ज़ीनत का सबब होता है।

31. किसी की ऐलानिया नसीहत करना बुराई का पेश ख़ेमा है।

32. हर बला और मुसीबत के पस मन्ज़र में रहमत और नेमत होती है।

33. मैं अपने मानने वालों को नसीहत करता हूँ कि अल्लाह से डरें दीन के बारे में परेहगारी को शआर बना लें ख़ुदा के मुताअल्लिक़ पूरी सई करें और उसके अहकाम की पैरवी में कमी न करें। सच बोलें , अमानतें चाहे मोमिन की हो या काफ़िर की , अदा करें , और अपने सजदों को तूल दें और सवालात के शीरीं जवाब दें। तिलावते कु़रआने मजीद किया करें मौत और ख़ुदा के ज़िक्र से ग़ाफ़िल न हों।

34. जो शख़्स दुनियां से दिल का अन्धा उठेगा , आख़ेरत में भी अन्धा रहेगा। दिल का अन्धा होना हमारी मुवद्दत से ग़ाफ़िल रहना है। क़ुरआन मजीद में है कि क़यामत के दिन ज़ालिम कहेंगे ‘‘रब्बे लमा हश्रतनी आएमी व क़नत बसीरन ’’ मेरे पालने वाले हम तो दुनियां में बीना थे हमें यहां अन्धा क्यों उठाया है ? जवाब मिलेगा , हम ने जो निशानियां भेजी थी तुमने उन्हें नज़र अन्दाज़ किया था। लोगों! अल्लाह की नेमत अल्लाह की निशानियां हम आले मोहम्मद (स अ व व ) हैं। एक रवायत में है कि आपने दो शम्बे के शर व नहूसत से बचने के लिये इरशाद फ़रमाया है कि नमाज़े सुब्ह की रक्ते अव्वल में सुरह ‘‘ हल अता ’’ पढ़ना चाहिए। नीज़ यह फ़रमाया है कि नहार मुंह ख़रबुज़ा नहीं खाना चाहिये क्यो कि इससे फ़ालिज का अन्देशा है।(बेहार अल अनवार जिल्द 14 )

मरवान ने अहले बैत को गाली देकर अहले बैत की तौहीन किया।

🔥 मरवान ने अहले बैत को गाली देकर अहले बैत की तौहीन किया।

✍️ इमाम जलालुद्दीन श्यूती रह० ने ‘तारीखे खुलफा’ में इस बात की वजाहत की है कि मरवान मलून जब हाकिम बना तो खुलेआम ऐलानिया तौर पर हजरत अली अलैहिस्सलाम पर लान-तान यानि सब्बो-सितम करने लगा और मरवान के इस लान-तान को सुनकर इमाम हसन सब्र करते रहे और खामोश रहे।
इमाम हसन अलैहिस्सलाम के सब्र की इंतेहा देखते हुए मरवान ने एक दिन एक शख्स को इमाम हसन अलैहिस्सलाम के पास यह कहलवाकर भेजा कि तू और तेरे बाप यानि अली की मिशाल एक खच्चर सी है, और उससे यानि इमाम हसन अलैहिस्सलाम से उसके मां के बारे में पूछना और कहना कि उसकी मां घोड़ी है.!!
(माजअल्लाह, लानत हो मलून मरवान पर और इसके बाप व औलाद पर)
बड़े अफसोस और हैरत की बात है कि कुछ नासबी उलेमा लोग धीरे-धीरे सारे बनी उमैया को सय्यद का लकब देते हुए हजरत अमीरुल-मोमिनीन कहने लगे, चाहे वह यजीद या मरवान ही क्यों ना हो।
आजकल के कुछ नासबी खारजी उलेमा लोग आने वाले नस्लों के जेहन को यजीदियत की ओर मोड़ने की जी-तोड़ कोशिश करते नजर आ रहे हैं..
इसका सबसे पहला सबूत है कि चौदह सौ साल से आजतक कोई भी कभी भी मस्जिदों में नमाज़ के खुतबों में आले मुहम्मद की मजलूमियत और बनी उमैया के सितम को बयां नहीं करता और तारीख के किसी भी मसले को अगर बयां करता भी है तो अहले बैत के मुजरिमों पर अपनी मुहब्बत जाहिर करते हुए तारीख को तोड़-मरोड़ कर बयां करतें हैं।
क्या ये नासबी खारजी उलेमा लोग जानबूझकर ऐसा करते हैं या सचमुच नहीं जानते या तारीख ही अहले बैत को मुजरिम मानती है कि आज इनके दुश्मनों को इज्जत दिया जा रहा है.??
ऐसा कुछ नहीं है !! खुतबा देने वाले मस्जिद के इमाम से लेकर मदरसे में चंदा करने वाले मोलवी बेचारे करे तो क्या करे..ये वही जानेंगे और कहेंगे जो खुद बनी उमैया के फैक्ट्री से इल्म हासिल करके आए होंगे.., दूसरी चीज कुछ लोग जानबूझकर अपनी मुनाफिकत से मजबूर होकर ऐसा करते हैं कि जैसा कि दौरे खिलाफत में लोग अली से बुग्ज रखने की वजह से पहचान लेते थे कि कौन मुनाफिक है और कौन नहीं.!!
मुनाफिक कल थे, आज भी हैं और कमामत तक रहेगें क्योंकि दीन में इनके वजूद पर कुरान गवाह है।
मरवान के बारे में कुछ और जानने के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करके देखें और पढ़ें https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=111713930712974&id=100056231024503

रसूलअल्लाह saws के तरीके की नमाज़ याद आ गई

*रसूलअल्लाह saws के तरीके की नमाज़ याद आ गई*

जब सहाबा किराम ने हज़रत अली अलैहिस्सलाम के दौरे ख़िलाफ़त में हज़रत अली के पीछे नमाज़ पढ़ी तो सहाबा किराम ने फ़रमाया के आज हज़रत अली ने हमें रसूलअल्लाह saws की तरह उन्हीं के तरीके से नमाज़ पढ़ाई। ये देखिये बुख़ारी शरीफ़ की रिवायत मुलाहिज़ा फरमाइए👇


حَدَّثَنَا أَبُو النُّعْمَانِ ، قَالَ : حَدَّثَنَا حَمَّادٌ ، عَنْ غَيْلَانَ بْنِ جَرِيرٍ ، عَنْ مُطَرِّفِ بْنِ عَبْدِ اللَّهِ ، قَالَ :    صَلَّيْتُ خَلْفَ عَلِيِّ بْنِ أَبِي طَالِبٍ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ أَنَا وَعِمْرَانُ بْنُ حُصَيْنٍ ، فَكَانَ إِذَا سَجَدَ كَبَّرَ وَإِذَا رَفَعَ رَأْسَهُ كَبَّرَ وَإِذَا نَهَضَ مِنَ الرَّكْعَتَيْنِ كَبَّرَ ، فَلَمَّا قَضَى الصَّلَاةَ أَخَذَ بِيَدِي عِمْرَانُ بْنُ حُصَيْنٍ ، فَقَالَ : قَدْ ذَكَّرَنِي هَذَا صَلَاةَ مُحَمَّدٍ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ ، أَوْ قَالَ لَقَدْ صَلَّى بِنَا صَلَاةَ مُحَمَّدٍ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ    .



मैंने और इमरान-बिन-हुसैन ने अली-बिन-अबी-तालिब (रज़ि०) के पीछे नमाज़ पढ़ी। तो वो जब भी सजदा करते तो तकबीर कहते। इसी तरह जब सिर उठाते तो तकबीर कहते। जब दो रकअतों के बाद उठते तो तकबीर कहते। *जब नमाज़ ख़त्म हुई तो इमरान-बिन-हुसैन ने मेरा हाथ पकड़ कर कहा कि अली (रज़ि०) ने आज मुहम्मद (सल्ल०) की नमाज़ याद दिलाई  या ये कहा कि उस शख़्स ने हमको नबी करीम (सल्ल०) की नमाज़ की तरह आज नमाज़ पढ़ाई।*

Sahih Bukhari#786
किताब : अज़ान के मसायल के बयान में (नमाज़ की ख़ुसूसियात)

Status: صحیح

*इस बात से ये साबित हो जाता है कि नबीये पाक मोहम्मद मुस्तुफा स्वल्लल्लाहो अलयहे व आलेही व सल्लम की वफ़ात के बाद से लेकर हज़रत अली अलैहिस्सलाम के दौरे ख़िलाफ़त तक आते आते नमाज़ के तरीके ही बदल गए थे, लोग उस तरह से नमाज़ और दीन के दूसरे आमाल अंजाम नही देते थे जिस तरह से रसूलअल्लाह saws के दौर में अंजाम  देते थे।इस ही लिए तो सहाबा किराम की ज़बान से ये जुमले अदा हुए के आज हमने उस तरह से नमाज़ पढ़ी जिस तरह से रसूलअल्लाह के पीछे पढ़ा करते थे।*


*अल्लाह हम सबको सही तऱीके से दीन पर अमल करने की तौफीक़ अता करे, ताकि हमारे सारे आमाल बेकार न चले जाएं। आमीन*

Leader of all woman

Hadith02). Abu Hurairah (رضی اللہ تعالیٰ عنہ) narrates that the Holy Prophet (ﷺ) said,

“An angel in the skies who had not seen Me requested permission from Allah to see Me (which he was granted); he told Me the good news (or brought Me the news) that Fatimah is the leader of all women in My nation.”

References:
1. Tabarani, al-Mujam-ul-kabir (22:403#1006)
2. Bukhari, at-Tarikh-ul-kabir (1:232#728)
3. Haythami said in Majma-uz-zawaid (9:201)

#Hadith03). Umm’ul Mominin Ayeshah (رضی اللہ تعالیٰ عنہ) narrates that the Holy Prophet (ﷺ) said during the illness in which He passed away,

“Oh Fatimah ! Are you not pleased with the fact that you are the leader of the women of all the worlds, the leader of the women of this ummah (nation) and the leader of the women of all the believers.”

References:
1. Hakim has declared it sahih (sound) in al-Mustadrak
(3:170# 4740) while Dhahabi has supported it.
2. Nasai, as-Sunan-ul-kubra (4:251#7078)
3. Nasai, as-Sunan-ul-kubra (5:146#8517)
4. Ibn Sa‘d, at-Tabaqat-ul-kubra (2:247,248)
5. Ibn Sad, at-Tabaqat-ul-kubra (8:26,27)
6. Ibn Athir, Usad-ul-ghabah fi-marifah as-sahabah (7:218)

#Hadith04). Hudhaifah (رضی اللہ تعالیٰ عنہ) narrates that the Holy Prophet (ﷺ) said,

“There is an angel who before tonight had never come down to earth, asked permission from his Lord to offer salam (salutations) to Me and to deliver the good news to Me that, Fatimah is the leader of all women of
Paradise and Hasan & Husain are the leaders of all the youngsters in Paradise.”

References:
1. Tirmidhi, al-Jami-us-sahih (5:660#3781)
2. Nasai, as-Sunan-ul-kubra (5:80, 95#8298,8365)
3. Nasai, Fadhail-us-sahabah (p.58,72#193,260)
4. Ahmad bin Hambal, al-Musnad (5:391)
5. Ahmad bin Hambal, Fadail-us-sahabah (2:788#1406)
6. Ibn Abi Shaybah, al-Musannaf (6:388#32271)
7. Hakim, al-Mustadrak (3:164#4721,4722)
8. Tabarani, al-Mujam-ul-kabir (22:402#1005)
9. Bayhaqi, al-Itiqad (p.328)
10. Muhibb Tabari, Dhakhair-ul-uqba fi-manaqib dhaw-il-qurba (p.224)