चौदह सितारे अबु मोहम्मद हज़रत इमाम हसन असकरी पार्ट- 1

हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद (स अ व व ) के ग्यारहवें जां नशीन और सिलसिला ए इस्मत के 13 वीं कड़ी हैं। आपके वालिदे माजिद हज़रत इमाम अली नकी़ (अ.स.) थे और आपकी वालेदा माजेदा हदीसा ख़ातून थीं। मोहतरमा के मुताअल्लिक़ अल्लामा मजलिसी लिखते हैं कि आप अफ़ीफ़ा , करीमा , निहायत संजीदा और वरा व तक़वा से भर पूर थीं।(जिलाउल उयून पृष्ठ 295 )

हज़रत इमाम हसन असकरी (अ.स.) अपने आबाओ अजदाद की तरह इमाम मन्सूस मासूम आलिमे ज़माना और अफ़ज़ले काएनात थे।(इरशाद मुफ़ीद पृष्ठ 502 ) आपको हसना सिफ़ाते इल्म व सख़ावत वग़ैरा अपने वालिद से विरसे मे मिले थे।(अरजहुल मतालिब पृष्ठ 461 )

अल्लामा मोहम्मद बिन तल्हा शाफ़ई का बयान है कि आपको ख़ुदा वन्दे आलम ने जिन फ़ज़ाएल व मनाक़िब और कमालात और बुलन्दी से सरफ़राज़ किया है इनमें मुकम्मिल दवाम मौजूद हैं। न वह नज़र अन्दाज़ किये जा सकते हैं और न इनमें कुहनगी आ सकती है और आपका एक अहम शरफ़ यह भी है कि इमाम मेहदी (अ.स.) आप ही के इकलौते फ़रज़न्द हैं जिन्हें परवर दिगारे आलम ने तवील उम्र अता की है।(मतालिब उल सुऊल पृष्ठ 292 )


इमाम हसन असकरी (अ.स.) की विलादत और बचपन के बाज हालात

उलमाए फ़रीक़ैन की अक्सरीयत का इत्तेफ़ाक़ है कि आप बातारीख़ 10 रबीउस्सानी 232 हिजरी यौमे जुमा ब वक़्ते सुबह बतने जनाबे हदीसा ख़ातून से ब मुक़ाम मदीना मुनव्वरा मुतवल्लिद हुए हैं। मुलाहेज़ा हो शवाहेदुन नबूअत पृष्ठ 210 सवाएक़े मोहर्रेक़ पृष्ठ 124 नूरूल अबसार 110. जिलाउल उयून पृष्ठ 295, इरशाद मुफ़ीद पृष्ठ 502 दम ए साकेबा जिल्द 3 पृष्ठ 163। आपकी विलादत के बाद हज़रत इमाम अली नक़ी (अ.स.) ने हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स अ व व ) के रखे हुए नाम ‘‘ हसन बिन अली ’’ से मौसूम किया।(निहाबुल मोवद्दता)


आपकी कुन्नियत और आपके अल्क़ाब

आपकी कुन्नियत ‘‘ अबू मोहम्मद ’’ थी और आपके अल्क़ाब बेशुमार थे। जिनमें अस्करी , हादी , ज़की , खलिस , सिराज और इब्ने रज़ा ज़्यादा मशहूर हैं।(नूरूल अबसार पृष्ठ 150, शवाहेदुन नबूअत पृष्ठ 210, दमए साकेबा जिल्द 3 पृष्ठ 122 व मुनाक़िब इब्ने शहर आशोब जिल्द पृष्ठ 125 ) आपका लक़ब इसकरी इस लिये ज़्यादा मशहूर हुआ कि आप जिस महल्ले में ब मुक़ाम ‘‘ सरमन राय ’’ रहते थे उसे असकर कहा जाता था और ब ज़ाहिर इसकी वजह यह थी जब ख़लीफ़ा मोतसिम बिल्ला ने इस मुक़ाम पर लश्कर जमा किया था और ख़ुद भी क़याम पज़ीर था उसे ‘‘ असकर ’’ कहने लगे थे , और ख़लीफ़ा मुतावक्किल ने इमाम अली नक़ी (अ.स.) को मदीने से बुलवा कर यहीं मुक़ीम रहने पर मजबूर किया था। नीज़ यह भी था कि एक मरतबा ख़लीफ़ा ए वक़्त ने इमामे ज़माना को इसी मुक़ाम पर नव्वे हज़ार लशकर का मुआएना कराया था और आपने अपनी दो उंगलियां के दरमियान से अपने ख़ुदाई लशकर का मुताला करा दिया था। उन्हीं वजह की बिना पर इस मुका़म का नाम ‘‘ असकर ’’ हो गया था जहाँ इमाम अली नक़ी (अ.स.) और इमाम हसन असकरी (अ.स.) मुद्दतो मुक़ीम रह कर असकरी मशहूर हो गए।(बेहारूल अनवार जिल्द 12 पृष्ठ 154, दफ़यात अयान जिल्द 1 पृष्ठ 145, मजमूउल बहरैन पृष्ठ 322 दमए साकेबा जिल्द 3 पृष्ठ 163, तज़किरतुल मासूमीन पृष्ठ 222 )

Ek Habshi Ghulam

Ek Habshi Ghulam Jo Ameer-ul-Momineen, Haider-e-Karrar, Mushkil Kusha, Ali-ul-Murtaza Sher-e-Khuda (Karam Allah Wajhahu) Se Be-Had Mohabbat Karta Tha, Shamat-e-Amaal Ke Baais Ek Martaba Chori Kar Baitha.

Logon Ne Use Pakar Kar Darbar-e-Khilafat Mein Paish Kiya, Jahan Usne Apne Jurm Ka Aitraf Kar Liya. Hazrat Ali-ul-Murtaza (Karam Allah Wajhahu) Ne Hukm-e-Shari Nafiz Karte Hue Uska Haath Kaat Diya.

Jab Woh Apne Ghar Ki Taraf Rawana Hua To Raaste Mein Hazrat Salman Farsi (Radi Allahu Anhu) Aur Ibn-ul-Kawwa (Rahmatullah Alayh) Se Mulaqat Ho Gayi.

Ibn-ul-Kawwa Ne Pucha:
“Tumhara Haath Kis Ne Kaata?”

Ghulam Ne Ehtram-o-Aqeedat Se Jawab Diya:
“Ameer-ul-Momineen, Yasub-ul-Muslimeen, Zauj-e-Batool (Karam Allah Wajhahu) Ne.”

Ibn-ul-Kawwa Ne Hairat Se Kaha:
“Unho Ne Tumhara Haath Kaat Diya, Phir Bhi Tum Is Qadar Izzat-o-Takreem Se Unka Naam Le Rahe Ho?”

Ghulam Ne Imaan Afroz Jawab Diya:
“Main Unki Tareef Kyun Na Karun! Unho Ne Haq Par Mera Haath Kaata Aur Mujhe Azaab-e-Jahannum Se Bacha Liya.”

Ye Sun Kar Hazrat Salman Farsi (Radi Allahu Anhu) Ne Hazrat Ali (Karam Allah Wajhahu) Se Iska Tazkara Kiya. Aap (Karam Allah Wajhahu) Ne Foran Ghulam Ko Bulaya, Uska Kata Hua Haath Uski Kalayi Par Rakha, Phir Romal Se Dhanp Diya Aur Kuch Wird Parhna Shuru Kiya.

Itne Mein Ghaibi Awaaz Aayi:
“Kapra Hatao!”

Jab Logon Ne Kapra Hataya To Ghulam Ka Haath Mukammal Tor Par Jur Chuka Tha, Kahi Kaatne Ka Nishan Tak Nahi Tha!
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Allahu Akbar Subhan Allah 💕
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Reference: 📚📚
– Tafseer Kabeer Imam Razi Jild 7, Safha 434
– Jami’ Karamaat-ul-Awliya Imam Yusuf bin Ismail Nabhani, Safha 278
– Jamal-us-Awliya Molana Ashraf Ali Thanvi, Safha 95
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اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وآلِ مُحَمَّدٍ وعَجِّلْ فَرَجَهُمْ