क़ब्रे हुसैन (अ.स.) के साथ मुतावक्किल की दोबारा बेअदबी 247हिजरी
हज़रत इमाम अली नक़ी (अ.स.) को क़ैद करने के बाद फि़र मुतावक्किल क़ब्रे इमाम हुसैन (अ.स.) के इन्हेदाम की तरफ़ मुतावज्जा हुआ और चाहा कि नेस्त व नाबूद कर दे। मुवर्रिख़ ने लिखा है कि जब इसे यह मालूम हुआ कि करबला में क़ब्रे हुसैनी की ज़्यारत के लिये एतराफ़े आलम से अक़ीदतमंदों की आमद का तांता बंधा हुआ है और बेशुमार हज़रात ज़्यारत को आते हैं तो मुतावक्किल की आतिशे हसद भड़क उठी और इसने इस सिलसिले को बन्द करने का तैहय्या कर लिया और यह भी न सोचा कि यह वही क़ब्र है जिस पर हस्बे तहक़ीक़ पीराने पीर शेख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी सत्तर हज़ार फ़रिश्ते आसमान से उतर कर ख़ानाए काबा का तवाफ़ करने के बाद जाते हैं वहां रोते हैं और इसकी ज़्यारत करते और मुजावरत के फ़राएज़ रोज़ाना अदा करते हैं।
(ग़नीयतुल तालबैन सफ़ा 374, मजमाउल बहरैन सफ़ा 502 )
आमाली शेख़ तूसी और जिलाउल उयून में है कि मुतावक्किल ने अपनी फ़ौज के दस्ते को ज़्यारत के रोकने और नहरे अलक़मा को काट के क़ब्र पर से गुज़ारने को भेजा और हुक्म दिया जो शख़्स ज़्यारत के लिये आए उसे क़त्ल कर दिया जाए और बाज़ उलमा के बयान के मुताबिक़ यह भी हुक्म दिया गया कि पहले हाथ काटे जायें फिर अगर बाज़ न आऐ तो क़त्ल कर दिये जाऐं यह एक ऐसा हुक्म था जिसने मोतक़ेदीन को बेचैन कर दिया। हज़रत ज़ैद मजनून को दोस्त दाराने आले मौहम्मद स. में से थे , यह ख़बर सुन कर ज़्यारत के लिये मिस्र से चल कर कुफ़े पहुंचे वहां पहुंच कर हज़रत बहलोल दाना से मिले जो उस वक़्त ब मसलेहत अपने को दिवाना बनाए हुए थे। दोनां में तबादलाए ख़्यालात हुआ और दोनों ज़ियारते क़ब्रे मुनव्वर के लिये करबला रवाना हो गये। उन्होंने आपस में तय किया था कि हाथ काटे जाये तो कटवायेंगे क़त्ल होने की ज़रूरत महसूस हो तो क़त्ल हो जायेंगे लेकिन ज़ियारत ज़रूर करेंगे। जब यह दोंनो करबला पहुंचे तो उन्होंने देखा कि क़ब्र की तरफ़ नहर का पानी क़ब्र पर गुज़रने की बे अदबी नहीं करता। पानी क़ब्र तक पहुंच कर फट जाता है और क़तरा कर एतराफ़ व जानिबे क़ब्र का बोसा लेता हुआ गुज़रता है। यह हाल देख कर इनका जज़्बाए मोहब्बत और उभर गया , यह अभी इसी मुक़ाम पर ही थे कि वह शख़्स इनकी तरफ़ मुतावज्जा हुआ जो इन्हेदामें क़ब्र पर मुताअय्यन था। उसने पूछा कि तुम क्यों आये हो ? उन लोगों ने कहा ज़ियारत के लिये। उसने जवाब दिया जो ज़्यारत को आए , मैं उसे क़त्ल करने के लिये मुक़र्रर किया गया हूं। इन हज़रात ने कहा हम क़त्ल होने की तमन्ना में ही आए हैं। यह सुन कर वह इनके पैरों पर गिर पड़ा और अपने अमल से ताऐब हो कर मुतावक्किल के पास वापस गया। मुतावक्किल ने उसे क़त्ल करा कर सूली पर चढ़ा दिया। फिर पैरों में रस्सी बंधवा कर बाज़ार में खिंचवाया। ज़ैद को जब यह वाकि़या मालूम हुआ , फ़ौरन सामरा पहुंचे और उसकी लाश दफ़न की और उस पर क़ुरान मजीद पढ़ा।
अभी हज़रत ज़ैद सामरा में ही थे कि एक दिन बड़े धूम धाम से एक जनाज़ा उठाया गया स्याह अलम साथ था अरकाने दौलत और अमाएदीन सलतनत हमराह थे। चारों तरफ़ से रोने की आवाज़ें आ रही थीं। ज़ैद ने समझा कि शायद मुतावक्किल का इन्तेक़ाल हो गया है। यह मालूम करने के बाद हज़रत ज़ैद ने एक आहे सर्द खींची और कहा अल्लाह अल्लाह फ़रज़न्दे रसूल स. इमाम हुसैन (अ.स.) करबला में तीन रोज़ के भुके प्यासे शहीद कर दिये गये। इन पर कोई रोने वाला नहीं था बल्कि उनकी क़ब्र के निशानात मिटाने के भी लोग दरपए हैं और एक मन्हूस कनीज़ का यह एहतिराम है इसके बाद इसी कि़स्म के मज़ामीन पर मुश्तमिल चन्द अश्आर लिख कर हज़रत ज़ैद मजनून ने मुतावक्किल के पास भिजवा दिया , उसने उन्हें मुक़य्यद कर दिया। मुतावक्किल ने ख़्वाब में देखा कि एक मर्दे मोमिन आए हैं और कहते हैं कि ज़ैद को इसी वक़्त रेहा कर दे। वरना मैं तुझे अभी अभी हलाक कर दूंगा। चुनान्चे उसने उसी वक़्त रेहा कर दिया।
मुतावक्किल का क़त्ल
मुतावक्किल के ज़ुल्म व तआद्दी ने लोगों को जि़न्दगी से बेज़ार कर दिया था। अब इसकी यह हालत हो चूकी थी कि बरसरे आम आले मौहम्मद स. को गालियां देने लगा था। एक दिन उसने अपने बेटे मुस्तनसर के सामने हज़रत फ़ात्मा ज़हरा स. के लिए नासाज़ अलफ़ाज़ इस्तेमाल किए। मुन्तसार से दरयाफ़्त किया कि जो शख़्स ऐसे अल्फ़ाज़ बिन्ते रसूल स. के लिऐ इस्तेमाल करे उसके लिए क्या हुक्म है। उलमा ने कहा वह वाजेबुल क़त्ल है। तारीख़ अबुल फि़दा में है कि मुनतासिर ने रात के वक़्त बहालते ख़लवत बहुत से आदमियों की मदद से मुतावक्किल को क़त्ल कर दिया। हादी अल तवारीख़ , तारीख़े इस्लाम , जिल्द 1 सफ़ा 66 दमतुस् साकेबा सफ़ा 147 में है कि यह वाकि़या चार शव्वाल 247 हिजरी का है बाज़ मासरीन लिखते हैं मुतावक्किल ने अपने अहदे सलतनत में कई लाख शिया क़त्ल कराए हैं।
इमाम अली नक़ी (अ.स.) को पैदल चलने का हुक्म
अल्लामा मजलिसी तहरीर फ़रमाते हैं कि क़त्ले मुतावक्किल से तीन चार दिन क़ब्ल इसी ज़ालिम मुतावक्किल ने हुक्म दिया कि मेरी सवारी के साथ तमाम लोग पैदल तफ़रीह के लिये चलें। हुक्म में इमाम (अ.स.) ख़ास तौर पर मामूर थे। चुनान्चे आप भी कई मिल पैदल चल कर वापस तशरीफ़ लाए और आपको इस दर्जे तअब तकलीफ़ हुआ कि आप सख़्त अलील हो गये।
(जिला अल उयून सफ़ा 292 )
हज़रत इमाम अली नक़ी (अ.स.) की शहादत
मुतावक्किल के बाद आप का बेटा मुसतनसिर फिर मुसतईन फिर 252 हिजरी में माज़ बिल्लाह ख़लीफ़ा हुआ मोतिज़ इब्ने मुतावक्किल ने भी अपने बाप की सुन्नत को नहीं छोड़ा और हज़रत के साथ सख़्ती ही करता रहा। यहां तक कि उसी ने आपको ज़हर दे दिया। समा अल मोताज़ , अनवारूल हुसैनिया जिल्द 2 सफ़ा 55 और आप व तारीख़ 2 रजब 254 हिजरी बरोज़ दो शम्बा इन्तेक़ाल फ़रमा गए।
(दमतुस् साकेबा जिल्द 3 सफ़ा 149 )
अल्लामा इब्ने जौज़ी तज़किराए खास अल मता में लिखते हैं कि आप मोताज़ के ज़माने खि़लाफ़त में शहीद किए गये हैं आपकी शहादत ज़हर से हुई है अल्लामा शिबलन्जी लिखते हैं कि आपको ज़हर से शहीद किया गया। नूरूल अबसार सफ़ा 150, अल्लामा इब्ने हजर लिखते हैं कि आप ज़हर से शहीद हुए हैं सवाएक़े मोहर्रेक़ा सफ़ा 124, दमतुस् साकेबा सफ़ा 185 में है कि आपके इन्तेक़ाल से क़ब्ल इमाम हसन अस्करी (अ.स.) को मवारिस अम्बिया वग़ैरा सुपुर्द फ़रमाते थे। वफ़ात के बाद इमाम हसन अस्करी (अ.स.) ने गरेबान चाक किया तो लोग मोतरिज़ हुए। आपने फ़रमाया कि यह सुन्नते अम्बिया है। हज़रत मूसा ने वफ़ाते हज़रत हारून पर अपना गरेबान फाड़ा था।
(दमतुस् साकेबा सफ़ा 185, जिला अल उयून सफ़ा 294 )
आप पर इमाम हसन अस्करी (अ.स.) ने नमाज़ पढ़ी और आप सामरा ही में दफ़्न किए गये इन्ना लिल्लाहे व इन्ना इलैहे राजेउन अल्लामा मजलिसी तहरीर फ़रमाते हैं कि आपकी वफ़ात इन्तेहाई कसमा पुर्सी की हालत में हुई इन्तेक़ाल के वक़्त आपके पास कोई भी न था।
(जिला अल उयून सफ़ा 292 )
आपकी अज़वाज व औलाद
आपकी कई बीवीयां थीं उनकी कई औलादें पैदा हुईं जिनके असमा यह हैं।
इमाम हसन अस्करी (अ.स.) 2. हुसैन बिन अली 3. मौहम्मद बिन अली 4. जाफ़र बिन अली 5. दुख़्तर मासूमा आयशा बिन्ते अली।
(इरशाद मुफ़ीद सफ़ा 602 व सवाएक़े मोहर्रेक़ा सफ़ा 129 प्रकाशित मिस्र)


