चौदह सितारे हज़रत इमाम अबुल हसन हज़रत इमाम अली नक़ी(अ.स) पार्ट- 12

हज़रत इमाम अली नक़ी (अ.स.) और अब्दुर रहमान मिस्री का ज़ेहनी इन्क़ेलाब

अल्लामा अरबली लिखते हैं कि एक दिन मुतावक्किल ने बरसरे दरबार हज़रत इमाम अली नक़ी (अ.स.) को क़त्ल कर देने का फ़ैसला कर के आपको दरबार में तलब किया आप सवारी पर तशरीफ़ लाए।

अब्दुर्ररहमान मिस्री का बयान है कि मैं सामरा गया हुआ था और मुतावक्किल के दरबार का यह हाल सुना कि एक अलवी के क़त्ल का हुक्म दिया गया है तो मैं दरवाज़े पर इस इन्तेज़ार में खड़ा हो गया कि देखूं वह कौन शख़्स है जिसके क़त्ल के इन्तेज़ामात हो रहे हैं इतने में देखा कि हज़रत इमाम अली नक़ी (अ.स.) तशरीफ़ ला रहे हैं। मुझे किसी ने बताया कि इसी अलवी के क़त्ल का बन्दो बस्त हुआ है। मेरी नज़र ज्यां ही उनके चेहरे पर पड़ी , मेरे दिल में उनकी मोहब्बत सराएत कर गई और मैं दुआ करने लगा। ख़ुदाया तू मुतावक्किल के शर से इस शरीफ़ अलवी को बचाना। मैं दिल में दुआ कर ही रहा था कि आप नज़दीक आ पहुंचे और मुझसे बिला जाने पहचाने फ़रमाया कि ऐ अब्दुर्रहमान तुम्हारी दुआ क़ुबूल हो गई है और मैं इन्शा अल्लाह महफ़ूज़ रहूंगा। चुनान्चे दरबार में आप पर कोई हाथ उठा न सका और आप महफ़ूज़ रहे। फिर आपने मुझे दुआ दी और मैं माला माल हो गया और साहेबे औलाद हो गया। अब्दुर्रहमान कहता है कि मैं इसी वक़्त आपकी इमामत का क़ाएल हो कर शिया हो गया।

(कश्फ़ुल ग़म्मा सफ़ा 123 व दमतुस् साकेबा जिल्द 3 सफ़ा 125 )


हज़रत इमाम अली नक़ी (अ.स.) के दौर मे नकली ज़ैनब का आना

उलमा का बयान है कि एक दिन मुतावक्किल के दरबार में एक औरत जवान और ख़ूबसूरत आई और उसने आकर कहा ज़ैनब बिन्ते अली व फ़ात्मा हूं। मुतावक्किल ने कहा कि तू जवान है और ज़ैनब को पैदा हुए और वफ़ात पाए अर्सा गुज़र गया। अगर तुझे ज़ैनब तस्लीम कर लिया जाय तो यह कैसे माना जाए कि ज़ैनब इतनी उमर तक जवान रह सकती हैं। इसने कहा कि मुझे रसूले ख़ुदा (स अ व व ) ने यह दुआ दी थी कि मैं चालीस और पचास साल के बाद जवान हो जाऊंगी इस लिये मैं जवान हूं। मुतावक्किल ने उलमाए दरबार को जमा कर के उनके सामने इस मसले को पेश किया। सब ने कहा यह झूठी हैं। ज़ैनब के इन्तेक़ाल को अर्सा हो गया है। मुतावक्किल ने कहा कोई ऐसी दलील दो कि मैं इसे झुठला सकूं। सब ने अपनी आजिज़ी का हवाला दिया। फ़ता इब्ने ख़ाक़ान वज़ीर मुतावक्किल ने कहा कि इस मसले को इब्ने रज़ा अली नक़ी (अ.स.) के सिवा कोई हल नहीं कर सकता। लेहाज़ा उन्हें बुलाया जाए। मुतावक्किल ने हज़रत को ज़हमते तशरीफ़ आवरी दी। जब आप दरबार में पहुंचे मुतावक्किल ने सूरते मसला पेश की। इमाम ने फ़रमाया झूठी है , मुतावक्किल ने कहा कोई ऐसी दलील दीजिऐ कि मैं इसे झूठी साबित कर सकूं। आपने फ़रमाया मेरे जद्दे नामदार का इरशाद है कि दरिन्दों पर मेरी औलाद का गोश्त हराम है। ऐ बादशाह तू इस औरत को दरिन्दों में डाल दे अगर यह सच्ची होगी और इसका ज़ैनब होना तो दरकिनार अगर यह सय्यदा भी होगी तो जानवर इसे न छेड़ेंगे और अगर सय्यदा से भी बे बहरा और ख़ाली होगी तो दरिन्दे इसे फाड़ खाऐंगे। अभी यह गुफ़्तुगू जारी ही थी कि दरबार में इशारा बाज़ी होने लगी और दुश्मनों ने मिल जुल कर मुतावक्किल से कहा कि इसका इम्तेहान इमाम अली नक़ी (अ.स.) ही के ज़रिये से क्यों न लिया जाए और देखा जाए कि आया दरिन्दे सय्यदों को खाते हैं या नहीं। मतलब यह था कि अगर उन्हें जानवरों ने फाड़ खाया तो मुतावक्किल का मन्शा पूरा हो जाएगा और अगर यह बत गए तो मुतावक्किल की वह उलझन दूर हो जाऐगी जो ज़ैनब काज़ेबा ने डाल रखी है। ग़रज़ कि मुतावक्किल ने इमाम (अ.स.) से कहा ऐ इब्नुल रज़ा क्या अच्छा होता कि आप खुद बरकतुल सबआ में जा कर इसे साबित कर दीजिऐ कि आले रसूल स. का गोश्त दरिन्दों पर हराम है। इमाम (अ.स.) तैय्यार हो गये। मुतावक्किल ने अपने बनाये हुए बरकतुल सबआ ‘‘ शेर ख़ाने ’’ में आपको डलवा कर फाटक बन्द करवा दिया और खुद मकान के बाला ख़ाने पर चला गया ताकि वहां से इमाम के हालात का मुतालेआ करे। अल्लामा हजर मक्की लिखते हैं कि जब दरिन्दां ने दरवाज़ा खुलने की आवाज़ सुनी तो ख़ामोश हो गये। जब आप सहन में पहुंच कर सीढ़ी पर चढ़ने लगे तो दरिन्दे आप की तरफ़ बढ़े जिनमें तीन और बारिवायते दमे साकेबा 6 शेर भी थे, और ठहर गये और आप को छू कर आपके गिर्द फिरने लगे। आप अपनी आस्तीन उन पर मलते थे। फिर दरिन्दे घुटने टेक कर बैठ गये। मुतावक्किल इमाम (अ.स.) के मुताल्लिक़ छत पर से यह बाते देखता रहा और उतर आया। फिर जनाब सहन से बाहर तशरीफ़ ले आये। मुतावक्किल ने आपके पास गरां बहा सिला भेजा। लोगों ने कहा मुतावक्किल तू भी ऐसा कर के दिखला दे। उसने कहा शायद तुम मेरी जान लेना चाहते हो।

अल्लामा मौहम्मद बाक़र लिखते हैं कि ज़ैनबे कज़्ज़ाबा ने जब इन हालात को अपनी आंखों से देखा तो फ़ौरन अपनी किज़्ब बयानी का एतेराफ़ कर लिया। एक रवायत की बिना पर उसे तौबा की हिदायत कर के छोड़ दिया गया। दूसरी रवायत की बिना पर मुतावक्किल ने उसे दरिन्दों में डलवा कर फड़वा डाला।

(सवाएक़े मोहर्रेक़ा , सफ़ा 124, अरजहुल मतालिब सफ़ा 461, दम ए साकेबा जिल्द 3 सफ़ा 145, जला लल उयून , सफ़ा 293, रौज़ातुल सफ़ा , फ़सल अल ख़त्ताब।)

अल्लामा इब्ने हजर का कहना है कि इस कि़स्म का वाकि़या अहदे रशीद अब्बासी में जनाबे यहिया बिन अब्दुल्लाह बिन हसने मुसन्ना इब्ने इमाम हसन (अ.स.) के साथ भी हुआ है।