चौदह सितारे हज़रत इमाम अबुल हसन हज़रत इमाम अली नक़ी(अ.स) पार्ट- 9

हज़रत इमाम अली नक़ी (अ.स.) और फ़ुक़हाए मुस्लेमीन

यह तो मानी हुई बात है कि आले मौहम्मद स. ही वह है जिनके घर में क़ुरान मजीद नाजि़ल हुआ। इन से बेहतर न क़ुरान समझने वाला है और न उसकी तफ़्सीर जानने वाला है। उलमा का बयान है कि जब मोतावक्किल को ज़हर दिया गया तो उसने यह नज़र मानी कि अगर मैं अच्छा हो गया तो राहे ख़ुदा में माले कसीर दूगां। फिर सेहत पाने के बाद उसने अपने उल्माए इस्लाम को जमा किया और इनसे वाकि़या बयान कर के माले कसीर की तफ़्सीर मालूम करना चाही। इसके जवाब में हर एक ने अलाहेदा अलाहेदा बयान दिया एक फ़क़ीहे ने कहा माले क़सीर से एक हज़ार दिरहम दूसरे फ़क़ीह ने दस हज़ार दिरहम , तीसरे ने कहा एक लाख दिरहम मुराद लेना चाहिए। मोतावक्किल ने जब हर फ़क़ीह से अलाहेदा जवाब सुना तो तशवीश में पड़ गया और ग़ौर करने लगा कि अब क्या करना चाहिए। मुतावक्किल अभी सोच ही रहा था कि एक दरबान सामने आया जिसका नाम हसन था और अर्ज़ करने लगा कि हुज़ूर अगर मुझे हुक्म हो तो मैं इसका सही जवाब ला दूं। मुतावक्किल ने कहा बेहतर है जवाब लाओ अगर तुम सही जवाब लाए तो दस हज़ार दिरहम तुमको इनाम दूगां और अगर तसल्ली बख़्श जवाब न ला सके तो सौ कोड़े मारूगां। इसने कहा मुझे मन्ज़ूर हैं। इसके बाद दरबान हज़रत इमाम अली नक़ी (अ.स.) की खि़दमत में गया। इमाम (अ.स.) जो नज़र बन्द जि़न्दगी बसर कर रहे थे दरबान को देख कर बोले अच्छा अच्छा माले कसीर की तफ़्सीर पूछने आया है जा और मुतावक्किल से कह दे माले कसीर अस्सी दिरहम मुराद हैं दरबान ने मुतावक्किल से यही कह दिया। मुतावक्किल ने कहा जा कर दलील मालूम कर। वह वापस आया हज़रत ने फ़रमाया कि क़ुरान मजीद में आं हज़रत स. के लिए आया है कि लक़द नसरकुमुलिल्लाह फ़ी मवातिन कसीरतह ऐ रसूल अल्लाह स. ! ने तुम्हारी मद मवातिन कसीरह यानी बहुत से मुक़ामात पर की है जब हमने इन मुक़ामात का शुमार किया जिनमें ख़ुदा ने आपकी मद्द फ़रमाई है तो वह हिसाब से अस्सी होते हैं। मालूम हुआ की लफ़्ज़े कसीर का इतलाक़ अस्सी पर होता है। यह सुन कर मुतावक्किल ख़ुश हो गया और उसने अस्सी दिरहम सदक़ा निकाल कर दस हज़ार दिरहम दरबान को इनाम दिया।

(मनाकि़ब इब्ने शहरे आशोब जिल्द 5 सफ़ा 116 )

इसी कि़स्म का एक वाकि़या है कि मुतावक्किल के दरबार में एक नसरानी पेश किया गया जो मुसलमान औरत से जि़ना करता हुआ पकड़ा गया। जब वह दरबार में आया तो कहने लगा मुझ पर हद जारी न किया जाए। मैं इस वक़्त मुसलमान होता हूँ। यह सुन कर काज़ी यहिया बिन अक़सम ने कहा कि इसे छोड़ देना चाहिए क्योंकि यह मुसलमान हो गया है। एक फ़क़ीह ने कहा कि नहीं हद जारी होना चाहिए ग़रज़ कि फोक़हाए मुसलेमीन में इख़्तेलाफ़ हो गया। मुतावक्किल ने जब यह देखा कि मसला हल होता नज़र नहीं आता तो हुक्म दिया कि इमाम अली नक़ी (अ.स.) को ख़त लिख कर इनसे जवाब मगाया जाए। चुनान्चे मसला लिखा गया। हज़रत इमाम अली नक़ी (अ.स.) ने इसके जवाब में तहरीर फ़रमाया यज़रब हत्त यमूता कि उसे इतने मारना चाहिए कि मर जाए। जब यह जवाब मुतावक्किल के दरबार में पहुंचाया तो यहिया इब्ने अकसम क़ाज़ी शहर और फ़क़ीह सलतनत नीज़ दीगर फ़ुक़हा ने कहा इसका कोई सबूत क़ुरान मजीद में नहीं है बराए मेहरबानी इसकी वज़ाहत फ़रमायें। आपने ख़त मुलाहेज़ा फ़रमा कर एक आयत तहरीर फ़रमाई जिसका तरजुमा यह है। जब काफि़रों ने हमारी सख़्ती देखी तो कहा कि हम अल्लाह पर ईमान लाते हैं और अपने कुफ़्र से तौबा करते हैं यह उनका कहना उनके लिए मुफि़द न हुआ और न ईमान लाना काम आया आयत पढ़ने के बाद मुतावक्किल ने तमाम फ़ुक़हा के अक़वाल मुस्तरद कर दिए और नसरानी के लिए हुक्म दे दिया कि इस क़दर मारा जाए कि मर जाए।

(दमतुस साकेबा जिल्द 3 सफ़ा 120 )

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