
इमाम अली नक़ी (अ.स.) की नज़र बन्दी
इमाम अली नक़ी (अ.स.) को धोके से बुलाने के बाद पहले तो ख़ान अल सआलेक में फिर इसके बाद एक दूसरे मक़ाम में आपको नज़र बन्द कर दिया और ताहयात इसी में क़ैद रखा। इमाम शिब्लन्जी लिखते हैं कि मुतावक्किल आपके साथ ज़ाहिर दारी ज़रूर करता था , लेकिन आपका सख़्त दुश्मन था। उसने हीला साज़ी और धोका बाज़ी से आपको बुलाया और दरपर्दा सताने और तबाह करने और मुसीबतों में मुबतिला करने की कोशिश करता रहा।
(नूरूल अबसार सफ़ा 150 )
अल्लामा इब्ने हजर मक्की लिखते हैं कि मुतावक्किल ने आपको जबरन बुला कर सामरा मे नज़र बन्द कर दिया और ता जि़न्दगी बाहर न निकलने दिया।
(सवाएक़े मोहर्रेक़ा सफ़ा 124 )
इमाम अली नक़ी (अ.स.) का जज़बा ए हमदर्दी
मदीने से सामरा पहुंचने के बाद भी आपको पास लागों की आमद का तांता बंधा रहा। लोग आपसे फ़ायदे उठाते और दीनी और दुनियावी उमूर में आपसे मदद चाहते रहे और आप हल्ले मुश्किल में उनके काम आते रहे। उलमाए इस्लाम लिखते हैं कि सामरा पहुंचने के बाद जब आपकी नज़र बन्दी मे सख़्ती और शिद्दत न थी , एक दिन आप सामरा के एक क़रये में तशरीफ़ ले गये। आपके जाने के बाद एक साएल आपके मकान पर आया , उसे यह मालूम हुआ कि आप फ़लां गांव में तशरीफ़ ले गए हैं , वह वहां चला गया और जाकर आपसे मिला। आपने पूछा कि तुम कैसे आए हो। तुम्हारा क्या काम है ? उसने अर्ज़ कि मौला ग़रीब आदमी हूं। मुझ पर दस हज़ार दिरहम क़र्ज़ हो गया है और इसकी अदाएगी की कोई सबील नहीं। मौला ख़ुदा के लिये मुझे इस बला से निजात दिलाईये। हज़रत ने फ़रमाया घबराओ नहीं। इन्शाअल्लाह तुम्हारे क़र्ज़ की अदाएगी का बन्दो बस्त हो जाएगा। वह साएल रात को आपके हमराह मुक़ीम रहा , सुबह के वक़्त आपने इस से कहा कि मैं तुम्हे जो कहूं उसकी तामील करना और देखो इस अमर में ज़रा भी मुख़लेफ़त न करना , उसने तामीले इरशाद का वादा किया। आपने उसे एक ख़त लिख कर दिया जिसमें यह मरक़ूम था कि ‘‘ मैं दस हज़ार दिरहम इसके अदा कर दूंगा और फ़रमाया कि कल मैं सामरा पहुंच जाऊंगा जिस वक़्त मैं वहां कें बड़े बड़े लोगो के दरमियान बैठा हूं तो तुम मुझसे रूपयां का तक़ाज़ा करना उसने अर्ज़ कि हुज़ूर यह क्यों कर हो सकता है कि मैं लोगो में आपकी तौहीन करूं। हज़रत ने फ़रमाया कोई हर्ज नहीं मैं तुमसे जो कहूं वह करो। ग़रज़ कि साएल चला गया और जब आप सामरा वापस हुए और लोगो को आपकी वापसी की इत्तेला मिली तो आयाने शहर आपसे मिलने आए। जिस वक़्त आप लोगों से महवे मुलाक़ात थे साएल मज़कूर भी पहुंच गया साएल ने हिदायत के मुताबिक़ आपसे रक़म का तक़ाज़ा किया। आपने बहुत नरमी से उसे टालने की कोशिश की , लेकिन वह न टला और ब दस्तूर रक़म मांगता रहा। बिल आखि़र हज़रत ने उसे तीन दिन में अदाएगी का वादा फ़रमाया और वह चला गया। यह ख़बर जब बादशाहे वक़्त को पहुंची तो उसने मुबलिग़ तीस हज़ार दिरहम आपकी खि़दमत में भेज दिये तीसरे दिन जब साएल आया तो आपने उससे फ़रमाया कि यह तीस हज़ार दिरहम ल ले और अपनी राह लग। उसने अर्ज़ कि मौला मेरा क़र्ज़ तो सिर्फ़ दस हज़ार है आप तीस हज़ार दे रहे हैं। आपने फ़रमाया जो क़र्ज़ की अदाएगी से बचे उसे अपने बच्चों पर सर्फ़ करना। वह बहुत ख़ुश हुआ और यह पढ़ता हुआ कि ख़ुदा ही ख़ूब जानता है कि रिसालत व अमानत का कोई अहल है। अपने घर चला गया।
(नूरूल अबसार सफ़ा 149, सवाएक़े मोहर्रेक़ा सफ़ा 123, शवाहेदुन नबूवत सफ़ा 207 अरजहुल मतालिब सफ़ा 461 )
इमाम अली नक़ी (अ.स.) की हालत सामरा पहुंचने के बाद
मुतावक्किल की नीयत ख़राब थी ही इमाम अली (अ.स.) के सामराह पहुचने के बाद उसने अपनी नीयत का मुज़ाहरा अमल से शुरु किया और आपके साथ न मुनासिब तरीक़ों से दिल का बुख़ार निकालने की तरफ़ मुतावज्जा हुआ लेकिन अल्लाह जिसकी लाठी में आवाज़ नहीं उसने उसे कैफ़रे किरदार तक पहुंचा दिया मगर इसकी जि़न्दगी में भी ऐसे असार और असरात ज़ाहिर किए जिससे वह भी जान ले कि वह जो कुछ कर रहा था ख़ुदावन्द उसे पसन्द नहीं करता।
मुवर्रिख़ अज़ीम लिखते हैं कि मुतावक्किल के ज़माने में बड़ी आफ़तें नाजि़ल हुईं बहुत से इलाक़ों में ज़लज़ले आए , ज़मीने धस गईं , आगें लगीं , आसमान से हौलनांक आवाज़ें सुनाई दीं। बादे समूम से बहुत से जानवर और आदमी हलाक हुए। आसमान से मिस्ल टिड्डी के कसरत से सितारे टूटे , दस दस रसल के पत्थर आसमान से बरसे। रमज़ान 243 हिजरी में हलब से एक परिन्दा कौवे से बड़ा आ कर बैठा और वह शोर मचाया ‘‘या अय्योहन नास इत्तक़ूल्लाह ’’ चालीस दफ़ा यह आवाज़ लगा कर उड़ गया दो दिन ऐसा ही हुआ।
(तारीख़े इस्लाम जिल्द 1 सफ़ा 65 )

