चौदह सितारे हज़रत इमाम अबु जाफ़र हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी(अ.स) पार्ट- 11

सिलसिला ए सादा ते रिज़विया

हज़रत इमाम अली रज़ा (अ.स.) के हालात में बहवाले इमाम उल मोहद्देसीन हुज्जतुल इस्लाम हज़रत अल्लामा शेख़ मुफ़ीद (अ. र.) व अल्लामा मोतमिद तबरसी लिखा जा चुका है कि हज़रत इमाम रज़ा (अ.स.) के नरीना फ़रज़न्द , हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) थे। इन हज़रात की तहक़ीक़ पर ऐतिमाद व एतिक़ाद करने के बाद यह यक़ीनी तौर पर कहा जा सकता है कि हज़रत इमाम रज़ा (अ.स.) की नस्ल सिर्फ़ इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) से बढ़ी , बेटे की औलाद का दादा की तरफ़ इन्तेसाब ख़ुसूसन ऐसी हालत में जब कि बाप के अलावा दादा के कोई और औलाद न हो नेहायत मुनासिब है।

इसी लिये अल्लामा हुसैन वाएज़ काशफ़ी , अल्लामा सय्यद नूरूल्लाह शूस्तरी(शहीदे सालिस) अल्लामा मजलिसी तहरीर फ़रमाते हैं कि हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) की औलाद को ‘‘ रिज़वी ’’ कहा जाता है।(रौज़तुल शोहदा पृष्ठ 438, मजालिस अल मोमेनीन व बेहारूल अनवार) अल्लामा मआसिर मौलाना सय्यद अली नक़ी मुजतहीदुल अस्र रक़म तराज़ हैं कि ‘‘ यह एक हक़ीकत है कि जितने सादात ‘‘ रिज़वी ’’ कहलाते हैं वह दरअस्ल तक़वी हैं यानी हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) की औलाद हैं। अगर हज़रत इमाम रज़ा (अ.स.) की औलाद हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) के अलावा किसी और फ़रज़न्द के ज़रिए से भी होती तो इम्तेआज़ के वह अपने को ‘‘ रिज़वी ’’ कहलाती और इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) की औलाद अपने को तक़वी कहती , मगर चुंकि इमाम रज़ा (अ.स.) की नस्ल इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) से चली और हज़रत इमाम रज़ा (अ.स.) की शख़्सी शोहरत सलतनते अब्बासीया के वली अहद होने की वजह से जम्हूरे मुसल्लेमीन में बहुत हो चुकी थी , इस लिये तमाम औलाद को हज़रत इमाम रज़ा (अ.स.) की तरफ़ मन्सूब कर के तारूफ़ किया जाने लगा और रिज़वी के नाम से मशहूर हुए। ’’

हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) की नस्ल दो बेटों से बढ़ी , एक इमाम अली नक़ी (अ.स.) और दूसरे मूसा मबरक़ा अलैह रहमह(किताब रहमतुल लिलअलेमीन जिल्द 2 पृष्ठ 145 ) इमाम अली नक़ी (अ.स.) की औलाद अपने को नक़वी और मूसा मुबरक़े की औलाद मज़कूरा वजह की बिना पर अपने को रिज़वी कहलाती है।

जनाबे मूसा बिन इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) के फ़रज़न्द

मुताबिक़ तहरीर सय्यद हामिद हुसैन करारवी मतूफ़ी 1271 हिजरी महूलए ‘‘ लताएफ़ुश शरफ़ ’’ तीन थे।

अल्लामा हुसैन वाएज़ काशफ़ी लिखते हैं ‘‘ अक़ब मुबरक़ा अज़ सय्यद अहमद अस्त व अक़ब अहमद अज़ मोहम्मद अरज अस्त ’’(रौज़तुल शोहदा पृष्ठ 438 ) सय्यद अहमद के तीन बेटे थे 1. सय्यद सालेह 2. सय्यद जलील 3. सय्यद मोहम्मद अरज मोहम्मद अरज के फ़रज़न्द अबू अब्दुल्लाह सय्यद अहमद ‘‘ नक़ीब अलकुम ’’ थे जिसके मानी रईसे आज़म , निगराने आला , सरबराह और क़ौम के हर दाख़ली और ख़ारजी अमर में तदबीर और साज़गारी पैदा करने वाले के हैं।(मजमउल बहरैन पृष्ठ 157 ) सादाते करारी ज़िला इलाहबाद का सिलसिला ए नसब आप ही की वसातत से इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) और इमाम अली रज़ा (अ.स.) तक पहुँचता है। सादाते करारी के मूरिसे आला सय्यद हसामुद्दीन आल्लाह मुक़ामहू , गर्वनर मथुरा ब अहदे फ़िरोज़ शाह तुग़लक थे। सय्यद रियाज़ुल हसन करारवी मुक़ीम कराची लिखते हैं कि ‘‘ आप ईरान से हिन्दुस्तान आ कर ज़ैद पुर ज़िला बारा बंकी में सुकूनत पज़ीर हुए थे। आपको पहले सूबे का गर्वनर फिर फ़ौज का कमान्डर बना दिया गया था। आप बहुत बड़े बहादुर और सख़ी थे। ’’ आपका सिलसिला नौ वास्तों से नक़ीब अलकु़म तक , फिर चार वास्तों से हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) तक पहुँचता है। आपने 717 हिजरी में जंगल काट कर ‘‘ करारी ’’ को आबाद किया जो तक़रीबन आढ़ाई सौ मवाज़ेआत पर मुश्तमिल है , जिन पर आपकी औलाद क़ाबिज़ और मुतासरिफ़ है।(किताब शजरह सादात करारी मोअल्लेफ़ा सय्यद रियाज़ हुसैन मरहूम पृष्ठ 17 -18 प्रकाशित लखनऊ 1927 ई 0 )

सैय्यद हसामुद्दीन के कु़म से हिन्दुस्तान तशरीफ़ लाने के मुताअल्लिक़ कहा जा सकता है कि चंगेज़ ख़ाँ ने जब ईरान फ़तेह करने के लिये लश्कर भेजा और उस लश्कर ने क़यामत ख़ेज़ तबाही मचाई थी , इसी मौक़े पर दीगर हज़रात की तरह आप भी हिन्दुस्तान तशरीफ़ लाए। (तारीख़ रौज़तुल पृष्ठ जिल्द 5 पृष्ठ 25 ता पृष्ठ 39 प्रकाशित लखनऊ में है कि चंगेज़ खाँ का लश्कर 615 हिजरी में फ़तेह ईरान के लिये निकला। इसकी हालत यह थी कि सैले हवादिस की तरह जिस तरफ़ गुज़रता था तबाहो बरबाद कर छोड़ता था , किसी ने किसी का हवाला देते हुए कहा है कि ‘‘ आमदन् दव कन्दन्द व सोख़तन्द व कुश्तन्द व बुरदन्द ’’ कि लश्कर वाले आए , उखाड़ा वछाड़ जलाया फूका , क़त्ल किया और सब लूट कर ले गए। पृष्ठ 2 चंगेज़ ख़ाँ के दस्त बुरद से ईरान का कोई शहर नुमाया क़रिया नहीं बचा। उसने क़त्लो ग़ारत का सिलसिला 621 हिजरी तक जारी रखा। यूँ तो हर जगह तबाही हुई और सब ही क़त्ल हुए लेकिन वह मुक़ामात जिनकी तबाही से हमारे दिलों को रूही सदमा पहुँचा , वह बलख़ , ख़ुरासान , सब्ज़ावार , नेशापूर और क़ुम जैसे शहर में , बलख़ में पचास हज़ार सादात थे जो क़त्ल हुए। ख़ुरासान में करीब सद हज़ार मोमिन मोवहिद शहीद साखतनद ’’ तक़रीबन एक लाख मोमिन क़त्ल हुए। पृष्ठ 36, सब्ज़ावार में सत्तर हज़ार क़त्ल किये गए। पृष्ठ 36, नेशापूर में तो मक़तूलीन की इतनी कसरत थी कि बारह दिन तक लाशों का शुमार होता रहा। हेरात में भी शदीद अन्धेर गर्दी थी , बेशुमार सादात क़त्ल किये गए। इन हंगामों में नेहायत बरबरियत का सबूत दिया गया , आग लगाई गई। अस्मतदरी की गई , पानी बन्द किया गया और बे दरेग़ क़त्ल व खूंरेज़ी से सर ज़मीने ईरान लालाज़ार बनाई गई। बाज़ मुक़ामात के तज़किरे में मज़कूर है कि ज़ालिम यह कहते थे कि राफ़्ज़ी लोग हैं इनका क़त्ल करना ‘‘ एैन सवाब व मुस्तलज़िम सवाब अस्त ’’ नेहायत सही अमल है और बे हद सवाब का मोजिब है। पृष्ठ 30, बहर हाल हालात से मुतासिर हो कर सादात ईरान से जान बचा कर निकल खड़े हुए और एतराफ़े आलम जहाँ जिसको सूझा वहां जा ठहरा पृष्ठ 39 साहबे उम्दतूल तालिब की तहरीर के मुताबिक़ हज़रत मूसा मबरक़ा की औलाद भी हिन्दुस्तान आई। बदरे मशअशा पृष्ठ 31 जहाँ तक मैं समझता हूँ सैय्यद हुसामुद्दीन का तशरीफ़ लाना भी इसी अहद से मुतअल्लिक़ है।

Leave a comment