चौदह सितारे हज़रत इमाम अबु जाफ़र हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी(अ.स) पार्ट- 10

इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) की नज़र बन्दी क़ैद और शहादत

मदीना ए रसूल (स अ व व ) से फ़रज़न्दे रसूल को तलब करने की ग़रज़ चुंकि नेक नीयती पर मुबनी न थी इस लिये अज़ीम शरफ़ के ब वजूद बाप हुकूमते वक़्त की किसी रियायत के क़ाबिल नहीं मतसव्वुर हुए। मोतसिम ने बग़दाद बुलवा कर आपको क़ैद कर दिया।

अल्लामा अरबली लिखते हैं कि चूंकि मोतसिम ब खि़लाफ़त बानश्त आँ हज़रत रा अज़ मदीना ए तय्यबा ब दारूल खिलाफ़ा बग़दाद आवरदा जलस फ़रमूदा(कशफ़ुल ग़म्मा पृष्ठ 112 ) एक साल तक आपने क़ैद की सख़्तियां सिर्फ़ इस जुर्म में बर्दाश्त कीं कि आप कमालाते इमामत के हामिल क्यों हैं और आपको ख़ुदा ने यह शरफ़ क्यों अता फ़रमाया है। बाज़ उलमा का कहना है कि आप पर इस क़दर सख़्तियां थीं और इतनी कड़ी निगरानी और नज़र बन्दी थी कि आप अक्सर अपनी ज़िन्दगी से बेज़ार हो जाते थे। बहरहाल वह वक़्त आ गया कि आप सिर्फ़ पच्चीस साल तीन माह 12 यौम की उम्र में क़ैद ख़ाने के अन्दर आखि़र ज़िक़ाद (ब तारीख़ 29 ज़िक़ादा सन् 220 हिजरी यौमे सह शम्बा) मोतसिम के ज़हर से शहीद हो गए।(कशफ़ुल ग़म्मा पृष्ठ 121, सवाएक़े मोहर्रेक़ा पृष्ठ 123, रौज़तुल पृष्ठ जिल्द 3 पृष्ठ 16, आलामु वुरा पृष्ठ 205, इरशाद 480, अनवारे नोमानिया पृष्ठ 127, अनवारूल हुसैनिया पृष्ठ 54 ) आपकी शहादत के मुताअल्लिक़ मुल्ला मुबीन कहते हैं कि मोतसिम अब्बासी ने आपको ज़हर से शहीद किया।(वसीलतुन नजात पृष्ठ 297 ) अल्लामा इब्ने हजर मक्की लिखते हैं कि आपको इमाम रज़ा (अ.स.) की तरह ज़हर से शहीद किया गया।(सवाएक़े मोहर्रेक़ा पृष्ठ 123 )

अल्लामा हुसैन काशफ़ी लिखते हैं कि ‘‘ गोयन्द ब ज़हर शहीद शुद ’’ कहते हैं कि ज़हर से शहीद हुए हैं।(रौज़तुल शोहदा पृष्ठ 438 ) मुल्ला जामी की किताब में है ‘‘ क़ीला मता मसमूमन ’’ कहा जाता है कि आपकी वफ़ात ज़हर से हुई।(शवाहेदुन नबूवत पृष्ठ 204 )

अल्लामा नेमत उल्ला जज़ायरी लिखते हैं ‘‘ माता मसमूमन क़द समेउल मोतसिम ’’ आप ज़हर से शहीद हुए हैं और यक़ीनन मोतसिम ने आपको ज़हर दिया है।(अनवारे नोमानिया पृष्ठ 195 ) यही कुछ अल्लामा तबरी ने भी तहरीर फ़रमाया है।(आलामुल वरा पृष्ठ 205 ) और अल्लामा अब्दुल रज़ा ने भी यही लिखा है।(अनवारूल हुसैनिया पृष्ठ 54 )

नवाब सिद्दीक़ हसन लिखते हैं कि मोहतसिम अब्बासी ने आपको ज़हर से मार दिया।(अल फ़राहुल आमी) अल्लामा शिब्लन्जी लिखते हैं कि ‘‘अना मता मसमूमन ’’ आप ज़हर से शहीद हुए है। ‘‘ यक़ाल इन उम्मुल फ़ज़ल बिनतुल मामून सख़्तहू बे मूराबीहा ’’ कहा जाता है कि आपको आपकी बीवी उम्मुल फ़ज़ल ने अपने बाप मामून के मुताबिक़ मोतसिम की मदद से ज़हर दे कर शहीद किया।(नूरूल अबसार पृष्ठ 147, अरजहुल मतालिब पृष्ठ 460 )

मतलब यह हुआ कि मामून रशीद ने इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) के वालिदे माजिद इमाम रज़ा (अ.स.) को उसकी बेटी ने इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) को बक़ौले शिब्लन्जी शहीद कर के अपने वतीरे मुस्तमारता और उसूले ख़ानदानी को फ़रोग़ बख़्शा है।

अल्लामा मौसूफ़ लिखते हैं कि ‘‘ दख़्लत इम्रातहा उम्मुल फ़ज़ल अला क़सर अल मोतसिम ’’ कि इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) को शहीद कर के उनकी बीवी उम्मुल फ़ज़ल मोतसिम के पास चली गईं। बाज़ मआसेरीन लिखते हैं कि इमाम (अ.स.) ने शहादत के वक़्त उम्मुल फ़ज़ल के बदतरीन मुस्तक़बिल का ज़िक्र फ़रमाया था जिसके नतीजे में उसके नासूर हो गया था और वह आखि़र में दीवानी हो कर मरी।

मुख्तसर यह कि शहादत के बाद हज़रत इमाम अली नक़ी (अ.स.) ने आपकी तजहीज़ व तकफ़ीन में शिरकत की और नमाज़े जनाज़ा पढ़ाई और इसके बाद आप मुक़ाबिर क़ुरैश में अपने जद्दे नामदार हज़रत इमाम मूसिए काज़िम (अ.स.) के पहलू में दफ़्न किए गए। चुंकि आपके दादा का लक़ब काज़िम और आपका लक़ब जवाद भी था इस लिये उस शहर को आपकी शिरकत से ‘‘ काज़मैन ’’ और वहां के इस्टेशन को आपके दादा की शिरकत की रिआयत से ‘‘ जवादीन ’’ कहा जाता है।

इस मक़बरा ए क़ुरैश में जिसे काज़मैन के नाम से याद किया जाता है 356 हिजरी मुताबिक़ 998 ई 0 में मोअज़ उद्दौला और 452 हिजरी मुताबिक़ 1044 ई 0 जलालुद दौला शाहाने आल बोयह के जनाज़े ऐतिक़ाद मन्दी से दफ़्न किए गए। काज़मैन में जो शानदार रौज़ा बना हुआ है इस पर बहुत से तामीरी दौर गुज़रे लेकिन इसकी तामीरी तकमील शाह इस्माईल सफ़वी ने 966 हिजरी मुताबिक़ 1520 ई 0 में कराई। 1255 हिजरी मुताबिक़ 1856 में मोहम्मद शाह क़ाचार ने उसे जवाहेरात से मुरस्सा किया।

आपकी अज़वाज और औलाद

उलमा ने लिखा है कि हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) के चन्द बीवीयां थीं जिनमें उम्मुल फ़ज़ल बिन्ते मामून रशीद अब्बासी और समाना ख़ातून यासरी नुमायां हैसीयत रखती थीं। जनाबा समाना ख़ातून जो कि हज़रत अम्मार यसीर की नस्ल से थी के अलावा किसी से कोई औलाद नहीं हुई। आपकी औलाद के बारे में उलमा का इत्तेफ़ाक़ है कि दो नरीना और दो ग़ैर नरीना थीं जिसके असमा यह हैं 1. हज़रत इमाम अली नक़ी (अ.स.) 2. जनाबे मूसा मुबर्रेक़ा (अ.स.) 3. जनाबे फ़ात्मा 4. जनाबे अमामह।(इरशाद मुफ़ीद पृष्ठ 493, सवाएक़े मोहर्रेक़ा पृष्ठ 123, रौज़तुल शोहदा पृष्ठ 438, नूरूल अबसार पृष्ठ 147, अनवारे नोमानिया पृष्ठ 127 कशफ़ुल ग़म्मा पृष्ठ 116, आलामुल वरा पृष्ठ 205 वगै़रह।)

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