इमाम हसन (अ.स) के हाथ पर लोगों की बैअत।।

इमाम हसन (अ.स) के हाथ पर लोगों की बैअत।।

जिस वक़्त वह वहशतनाक वाक़िया पेश आया जिसमें हज़रत अली (अ.स) के मुबारक सर पर तलवार लगी और इमाम हसन (अ.स) को हुक्म दिया कि बेटा तुम नमाज़ पढ़ाओ और अपनी ज़िन्दगी के आख़री वक़्त में आपको अपना जानशीन क़रार दिया। ऐ मेरे बेटे,मेरे बाद तुम मेरे जानशीन और मेरे ख़ून का इन्तेक़ाम लेने वाले हो। इस हुक्म से इमाम हुसैन (अ.स) और दूसरे तमाम बेटों, ख़ानदान के सारे बुज़ुर्गों को आगाह किया और किताब और तलवार इमाम हसन के हवाले की और उसके बाद फ़रमाया: ऐ मेरे बेटे अल्लाह के नबी(सल्लल्लाहो अलैह व आलिहि वसल्लम ) ने मुझे हुक्म दिया है कि मैं तुम्हे अपना जानशीन बनाऊँ और अपनी किताब और तलवार तुम्हारे हवाले कर दूँ। जिस तरह अल्लाह के रसूल(सल्लल्लाहो अलैह व आलिहि वसल्लम ) ने मुझे अपना जानशीन बनाया। और अपनी तलवार और किताब मेरे हवाले की। और साथ ही मुझे इस बात का भी हुक़्म भी दिया गया है कि मैं तुम से कह दूँ कि तुम भी अपनी ज़िन्दगी के आख़री वक़्त में इन तमाम चीज़ों को अपने भाई हुसैन के हवाले कर देना।

इमाम हसन (अ.स) मुसलमानों के दरमियान आए और अपने वालिद के मिम्बर पर खड़े हुए ताकि हज़रत अली (अ.स) पर होने वाले हादसे की लोगों को ख़बर दें। अल्लाह और उसके रसूल(सल्लल्लाहो अलैह व आलिहि वसल्लम) की हम्द व सना के बाद फ़रमाया: मौला अली (अ.स) आज रात हमारे दरमीयान से चले गए जिनसे गुज़रे हुए लोग आगे न बढ़ सके और आगे भी कोई उनके बुलंद मर्तबे और मक़ाम तक नही पहुच सकेगा।

हज़रत अली (अ.स) ने दीने इस्लाम की राह में जिस हिम्मत व शुजाअत व बहादुरी व कोशिश का मुज़ाहिरा किया और जंगों में जो उन्हे कामयाबी नसीब हुई थी , आपने उसका भी तज़किरा किया। और इस बात की तरफ़ भी इशारा किया कि आख़री वक़्त सिर्फ़ सात सौ दिरहम आपके पास था वह भी बैतुल माल से मिलने वाला आपका हिस्सा था कि जिससे वह अपने घर वालों की ज़रुरतों को पूरा करना चाहते थे।

उसी वक़्त जब मस्जिद लोगों से भरी हुई थी , अदुल्लाह इब्ने अब्बास ने खड़े होकर लोगों से हज़रत इमाम हसन की बैअत के लिये अपील की और लोगों ने शौक़ व ख़ुशी से इमाम हसन की बैअत की। यह हज़रत अली (अ.स) की शहादत(यानी 21 रमज़ान 40 हिजरी) का दिन था। कूफ़ा व मदाएन , इराक़ व हिजाज़ और यमन के तमाम लोगों ने ख़ुशी ख़ुशी इमाम हसन (अ.स) की बैअत की सिवाए मुआविया के ,जो दूसरी राह इख़्तियार करना चाहता था। वही रास्ता जो उसने हज़रत अली (अ.स) के ज़माने में इख़्तियार किया था।

जब लोग बैअत कर चुके तो आपने एक ख़ुतबा दिया और लोगों को अहले बैत (अ.स) जो दो क़ीमती चीज़ों (क़ुरआन व अहतेबैत) में से एक थे , की इताअत का हुक्म दिया और उनको शैतान और शैतान सिफ़त लोगों से बचने का हुक्म दिया

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