
उन का नाम मिकदाद था और वालिद का नाम अम्र यमन के रहने वाले थे दस बारह वर्ष के हुए घर से भाग लिया एक काफिले के साथ मक्का पहुंच गए
दस बारह साल का बच्चा मक्का में न कोई ठिकाना और न कोई जानने वाला परेशान थे मक्का के एक साहब जिन का नाम अस्वद था वह उन्हें अपने घर ले गए हालात सुना और अपना बेटा बना लिया उन्हें अपना नाम दे दिया इस तरह वह मिकदाद बिन अम्र से मिकदाद बिन अस्वद बन गए
कुछ और बड़े हुए अल्लाह के रसूल सल्ललाहू अलैहे वसल्लम से मुलाकात हुई और इस्लाम कबूल कर लिया उस समय तक गिनती के कुछ लोग ही मुसलमान हुए थे और जो थोड़े-बहुत मुसलमान हुए भी थे उन्होंने अपने इस्लाम को छिपा रखा था सिर्फ हजरत अबू बकर और हज़रत बिलाल ने अपने इस्लाम को जाहिर किया था मिकदाद तीसरे ऐसे मुसलमान थे जिन्होंने ऐलान किया था कि मैं ने इस्लाम कबूल कर लिया है
शुरू के मुसलमानों की तरह इन्हे भी सताया गया अल्लाह के रसूल सल्ललाहू अलैहे वसल्लम के हुक्म पर हब्शा हिजरत कर गए लेकिन कुछ समय बाद हब्शा से मक्का वापस हो गए
मक्का से मदीना के लिए हिजरत उन्होंने अल्लाह के रसूल सल्ललाहू अलैहे वसल्लम की हिजरत के बाद किया
लंबा कद बेहतरीन घुड़सवार और काबलियत अच्छी जल्द ही रसूल-अल्लाह के महबूब बन गए
गजवा बदर का महत्व हम सब जानते हैं इस्लाम की सब से पहली जंग थी इस गजवा में इस्लामी सेना का नेतृत्व खुद अल्लाह के रसूल सल्ललाहू अलैहे वसल्लम कर रहे थे सेंट्रल कमांड उन के पास थी मामला था कि सेना के राइट व लेफ्ट विंग कमांड किसे दिया जाए आप की नजरे इंतखाब हजरत मिकदाद की तरफ उठी और उन्हें सेना के एक हिस्से का नेतृत्व और दूसरे हिस्से का नेतृत्व हजरत जुबैर को सौंप दिया
एक नौजवान जो घर से भाग कर आया था समाजी हैसियत न के बराबर थी लेकिन काबिलियत थी अल्लाह के रसूल ने उन की काबलियत का सम्मान किया और नेतृत्व सौंप दिया
अल्लाह के रसूल सल्ललाहू अलैहे वसल्लम काबिलियत देखते थे आप ने युवा शक्ति का प्रयोग भरपूर किया था खानदान कबीला समाजी हैसियत की परवाह नहीं करते थे
सिर्फ़ यही नहीं जब मक्का में थे हज़रत मिकदाद ने कुरैश कबीला की एक लड़की के लिए शादी का पैगाम भेजा लड़की के घर वालों ने इंकार कर दिया क्योंकि कुरैश के मुकाबले में उनकी समाजी हैसियत कुछ भी न थी अल्लाह के रसूल सल्ललाहू अलैहे वसल्लम ने उदास देखा वजह पूछी और जब पता चला कि इनके समाजी हैसियत की वजह से रिश्ते से इंकार कर दिया गया है आप ने अपने चचा जुबैर बिन अब्दुल मुत्तलिब की बेटी जबाआ से उन की शादी कर दी
हजरत मिकदाद हजरत अली के खास दोस्तों में से थे बहादुर थे अल्लाह के रसूल सल्ललाहू अलैहे वसल्लम हजरत अबू बकर सिद्दीक हजरत उमर फारूक हजरत उस्मान गनी के जमाने में होने वाली जंगों में शरीक रहे और अपनी बहादुरी के जलवे बिखरते रहे
सन 33 हिजरी में हज़रत मिकदाद का इंतकाल हुआ और खुद खलीफा हज़रत उस्मान गनी ने उन की नमाजे जनाज़ा पढ़ाई अल्लाह उन से राजी हो

