माविया और इनके साथियों ने सिफ़्फ़ीन में अली अलैहिस्सलाम की इताआत ना करके जहन्नुमी हुए

🔥माविया और इनके साथियों ने सिफ़्फ़ीन में अली अलैहिस्सलाम की इताआत ना करके जहन्नुमी हुए…..🔥

✍️ मशहूर आलिम ए दीन इमाम सनआनी ने ‘अत तनवीर सरह जामे उस् सगीर’ में रकम नंबर 9621 के तहत सफा नंबर 43 पर हदीस ए अम्मार की सरह करते हुए लिखते हैं कि-
(تقتله الفئة الباغية) هو معاوية وأصحابه
‘[अम्मार को] बागी गिरोह कत्ल करेगा’ से मुराद – माविया और इनके साथियों [का गिरोह] हैं।

( يدعوهم إلى الجنة) بمبايعة أمير المؤمنين علي بن أبي طالب الله
‘उन्हें जन्नत की तरफ बुलाएंगे’ से मुराद- अमीरुल मोमिनीन अली इब्ने अबी तालिब की बैत करना

(ويدعونه إلى النار) بالخروج عن طاعته وقع ذلك بصفين دعاهم عمار إلى طاعة علي الله ودعوه إلى عدم طاعته، فطاعة علي الله توجب الجنة، وعدم طاعته توجب النار.
‘वो उन्हें जहन्नम की तरफ बुलाएंगे’ से मुराद-  [जब] सिफ़्फ़ीन में [लोगों ने हज़रत अली की] इताआत से खुरुज किया कि अम्मार ने अली की इताआत करने की दावत दी [मगर लोगों ने] इताआत नहीं की।
अली की इताआत जन्नत जाना और अली की नाफरमानी जहन्नुम जाना है।
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इतने साफ लफ्जों में अमीर सनआनी ने ना सिर्फ माविया और माविया के साथियों को बागी गिरोह लिखा है बल्कि जहन्नुम की तरफ बुलाने वालों से मुराद सिफ़्फ़ीन में मौला अली की इताआत ना करने वालों को जहन्नुमी बताया है … इससे वाजेह क्या दलील दूं ??
रही बात जो लोग तावील करते हैं कि माविया मुजतहिद था, इसने सिफ़्फ़ीन में खताए इज्तिहाद की तो अमीन सनआनी ने इसका भी जवाब दो टोक अल्फाज में अपनी दूसरी किताब ‘समरातुन् नजर फी इल्म इल असर’ में सफा 113 और 114 पर लिखा है कि- माविया के बागी होने पर इजमा है और बागी कभी मुज्तहिद नहीं होता।
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