क़ुम की मुख़्तसर तारीख़ और जनाबे फ़ात्मा (स.अ.) मासूमा ए क़ुम के मुख़्तसर हालात

17321278410426773462408715809847क़ुम की मुख़्तसर तारीख़ और जनाबे फ़ात्मा (स.अ.) मासूमा ए क़ुम के मुख़्तसर हालात

क़ुम नाम है ईरान के एक क़दीम और अज़ीम शहर का जिसकी बुनियाद बारवाएते महल ‘‘अलहादी’’ दारूल तबलीग़ इस्लामी क़ुम ईरान 2 हिजरी पड़ी थी जिसका ज़िक्र ‘‘ जिसका नाम शाहनामा फ़िरदौसी ’’ में है। एक रवाएत की बिना पर 83 में क़ायम हुई थी।


क़ुम की वजहे तसमिया

कु़म की वजह तसमिया के मुताअल्लिक़ बहुत से अक़वाल हैं। 1. इस जगह का नाम ‘‘को मैदान’’ था। फिर ‘‘कु़म’’ और बाद में क़ुम हो गया। 2. इस शहर से 20 किमी 0 पर ग़रबी जानिब एक पहाड़ है जिसका नाम ‘‘ क़मु ’’ है। इसी मुनासेबत से यह नाम पड़ा जो बाद मे क़ुम हो गया। 3. इसकी आबादी से क़ब्ल कुछ लोग इस मुक़ाम पर आ ठहरे थे और उन्होंने जंगल को काट कर और इसके गढ़ों के पाट कर अपने खे़मे नसब किये थे और मकानात बनाए थे और इस जगह का नाम ‘‘कोतह’’ रखा था। जिस से ‘‘क़ुम’’ हो गया । फिर बाद में कु़म बन गया। (अल हादी क़ुम ईरानी ज़ीक़ाद 1392 हिजरी पृष्ठ 99) 4. जब कश्तीए नूह (अ.स.) चक्कर लगाती हुई इस सर ज़मीन पर पहुँची थी तो ठहर गई थी लेहाज़ा इसके क़याम की वजह से इस जगह का नाम क़ुम क़रार पाया। 5. इस इलाक़े के बाशिन्दे , का़एमे आले मोहम्मद (अ.स.) के ज़हूर करते ही इनकी खि़दमत में हाज़िर हो जायेंगे और इनके साथ क़ाएम रहेंगे और इनकी मद्द करेंगे । इसी लिये इसका नाम क़ुम रखा गया है।( सफ़ीनतुल बेहार जिल्द 2 पृष्ठ 446)

यह मुक़ाम बहुत से क़रियों में घिरा हुआ था , उन्हीं क़रियों में से एक का नाम ‘‘कमन्दान’’ था। इसी के नाम पर इस इलाक़े का नाम जो अब ‘‘ क़ुम ’’ मशहूर है। कमन्दान रख दिया गया मुरवरे अय्याम और कसरते इस्तेमाल की वजह से ’’ क़ुम ‘‘ हो गया।( मजालिसुल मोमेनीन शहीदे सालिस पृष्ठ 36)


क़ुम और अहले क़ुम के फ़ज़ाएल

तारीख़े क़ुम से मुस्तफ़ाद होता है कि यह वह जगह है जिसने ‘‘ यौमे अलस्त ’’ सब ज़मीनों से पहले विलाएते अमीरल मोमेनीन (अ.स.) को क़ुबूल किया था। इसी लिये ख़ुदा ने जन्नत का एक दरवाज़ा इसकी तरफ़ खोल दिया ह।

अल्लामा शेख़ अब्बास क़ुम्मी तहरीर फ़रमाते हैं 1. कूफ़े को तमाम शहरों पर फ़ज़ीलत है लेकिन क़ुम और अहले कु़म को तमाम दुनियां पर फ़ज़ीलत है और इसके बाशिन्दों को मशरिक़ व मग़रिब और जिन व इन्स पर फ़जी़लत है। 2. ख़ुदा ने यहां के लोगों को दीन और ईमान में हमेशा अज़ीम तौफ़ीक़ दी है। 3. इन अलबला यामद फूअता अन क़ुम वालेही ’’ तमाम बलायें कु़म और अहले क़ुम से दूर रखी गई हैं। यहीं मलाएक दफ़ये बला के लिये हाज़िर रहते हैं। 4. किसी दुश्मन ने कभी क़ुम पर ग़लबा हासिल नहीं किया। 5. कु़म अल्लाह की तरफ़ से इल्म व फ़ज़ल का मरकज़ बनाया गया है। 6. हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) इरशाद फ़रमाते हैं कि जब सारी दुनियां में फ़ितना फैल जाए तो क़ुम में पनाह ले लेना चाहिये। 7. मासूम फ़रमाते हैं कु़म आले मोहम्मद (अ.स.) का मरकज़े सुकून और शियों का मलजा व मावा है। 9. हज़रत इमाम रज़ा (अ.स.) फ़रमाते हैं कि जन्नत के आठ दरवाजो में से एक दरवाज़ा क़ुम में है। क़ुम के बाशिन्दे का़बिले मुबारक बाद है। 10. हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) फ़रमाते हैं कि क़ुम हमारे शियों और दोस्तों का गढ़ है। 11. क़ुम मौज़ा ए क़दमे जिबराईल (अ.स.) है। यहां एक ऐसा चश्मा है कि जो इससे पानी पी ले शिफ़ायाब हो जाए। यही वह चश्मा है जिस से हज़रत ईसा (अ.स.) ने उस मिट्टी को गूंधा था जिससे ब हुक्मे ख़ुदा ताएर बनाया था जिसका ज़िक्र क़ुरआने मजीद में है। 12. सादिक़े आले मोहम्मद (अ.स.) फ़रमाते हैं कि अहले क़ुम का हिसाब व किताब सब क़ब्र ही में होगा और वहीं से वह जन्नत चले जायेंगे। एक रवायत में है कि इनका हिसाब व किताब न होगा और यूंही जन्नत में चले जायेंगे।( कन्ज़ुल अन्साब पृष्ठ 9) 13. मासूम (अ.स.) फ़रमाते हैं कि ‘‘ लौलल क़मेयून लेज़ायद्दीन ’’ अगर अहले क़ुम न होते तो दीन ज़ाया हो जाता । 14. एक हदीस में है कि अहले क़ुम बख़्शे हुए हैं। 15. इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) फ़रमाते हैं कि क़ुम की मिट्टी मुक़द्दस है। ‘‘ व अहलहा मना व नजन मिनहुम ’’ इसके बाशिन्दे हम से हैं और हम उनसे हैं , जो दुश्मन क़ुम की तरफ़ आंख उठा कर देखेगा वासिले जहन्नम होगा। क़ुम हमारा और हमारे शियों का शहर है। ‘‘ मुतहरता मक़दसतह , पाक और पाकीज़ा और मुक़द्दस है। यह हमारे क़ाएम की मद्द करने वाले हैं और हमारे हक़ के पहचानने वाले हैं। 16. यह वह हैं जिन्होंने सब से पहले ख़ुम्स अदा किया और सब से पहले हमारे नाम पर जाएदादें वक़्फ़ की। 17. हज़रत सादिक़े आले मोहम्मद (अ.स.) फ़रमाते हैं कि ‘‘ सयाती ज़मान तकून बलदता क़ुम व अहलहा हुज्जतह अला अल ख़लाएक़ व ज़ालाका फ़ी ज़मान ग़ैबता क़ाएमना अला ज़हूरहा वाला ज़ालक लसाख़्तह अर्ज़ बहालहा अलख़ ’’ अन क़रीब एक ज़माना आने वाला है कि क़ुम और इसके बाशिन्दे काएनात पर ख़ुदा की हुज्जत होंगे और यह ज़माना ग़ैबते इमाम आखि़रूज़्ज़मान (अ.स.) में आएगा और ज़हूर तक मुमतद होगा और अगर ऐसा न होगा तो ज़मीन पानी में डूब जाएगी।( सफ़ीनतुल बेहार जिल्द 2 पृष्ठ 446)

दारूल तबलीग़े इस्लामी क़ुम ईरान

मज़कूरा हदीस में जिस अहद की तरफ़ इशारा है हो सकता है उससे मुराद इसी इदारे का अहद हो जिसका इस्तेफ़ादा क़यामत तक मुम्किन है और अहले क़ुम के हुज्जत होने से मुराद आयत उल्लाह उज़मा , मरजये तक़लीद सरकार शरीअत मदार हज़रत आक़ा सैय्यद मोहम्मद काज़िम मुजतहिदे आज़म ज़ईमे हौज़ा ए इलमिया क़ुम व क़ीम एदारा मज़कूराह का वजूद ज़ी जूद हो कि वही अहदे हाज़िर नाएब इमाम होने की वजह से हुज्जत हैं।


हज़रत मासूमा ए क़ुम के मुताअल्लिक़ हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) की पेशीन गोई

सादिक़े आले मोहम्मद हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) इरशाद फ़रमाते हैं कि अल्लाह की वजह से मक्का ए मोअज़्ज़मा हरम , रसूल अल्लाह (स.अ.) की वजह से मदीना हरम , अमीरल मोमेनीन (अ.स.) की वजह से कूफ़ा (नजफ़) हरम है। ‘‘ वानलना हरमन वहू बलदतन क़ुम वसतदफ़न फ़ीहा अमराता मन अवलादी तसमी फ़ात्मता अलख़ ’’ और हम दीगर अहले बैत की वजह से शहरे क़ुम हरम है और अन क़रीब इस शहर में हमारी औलाद से एक मोहतरमा दफ़्न होंगी जिनका नाम होगा ‘‘ फ़ात्मा बिन्ते इमाम मूसा काज़िम (अ.स.) ’’( सफ़ीनतुल बेहार जिल्द 2 पृष्ठ 226)


क़ुम में हज़रत मासूमा ए क़ुम की आमद

हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) की पेशीन गोई के मुताबिक़ बा रवायते अल्लामा मजलिसी (र. अ.) हज़रत फ़ात्मा बिन्ते इमाम मूसा काज़िम (अ.स.) हमशीरा हज़रत इमाम रज़ा (अ.स.) उस ज़माने में यहां तशरीफ़ लाईं जब कि 200 हिजरी में मामून रशीद ने हज़रत इमाम रज़ा (अ.स.) को जबरन मर्व बुलाया था। अल्लामा शेख़ अब्बास क़ुम्मी लिखते हैं कि जब मामून रशीद ने इमाम रज़ा (अ.स.) को बजब्रो इक़राह वली अहद बनाने के लिये दारूल ख़ुलफ़ा मर्व में बुला लिया था तो इसके एक साल बाद हज़रत फ़ात्मा (अ.स.) भाई की मोहब्बत से बेचैन हो कर ब इरादा ए मर्व मदीना से निकल पड़ी थीं। चुनान्चे मराहले सफ़र तय करते हुए बा मुक़ाम ‘‘ सावा ’’ पहुँची तो अलील हो गईं। जब आपकी रसीदगी सावा और अलालत की ख़बर मूसा बिन खि़ज़रिज़ बिन साद क़ुम्मी को पहुँची तो वह फ़ौरन हाज़िरे खि़दमत हो कर अर्ज़ परदाज़ हुए कि आप क़ुम तशरीफ़ ले चलें। उन्होंने पूछा की क़ुम यहां से कितनी दूर है। मूसा ने कहा कि 10 फ़रसख़ है। वह रवानगी के लिये आमादा हो गईं चुनान्चे मूसा बिन खि़ज़रिज़ उनके नाक़े की मेहार पकड़े हुए कु़म तक लाए। यहां पहुँच कर उन्हीं के मकान में जनाबे फ़ात्मा ने क़याम फ़रमाया। भाई की जुदाई का सदमा शिद्दत पकड़ता गया और अलालत बढ़ती गई यहां तक कि सिर्फ़ 17 यौम के बाद आपने इन्तेक़ाल फ़रमाया। ‘‘ इन्ना लिल्लाहे व इन्ना इलैहे राजेऊन ’’ आपके इन्तेक़ाल के बाद से गु़स्लो कफ़न से फ़राग़त हासिल की गई और ब मुक़ाम ‘‘ बाबलान ’’ (जिस जगह रोज़ा बना हुआ है) दफ़्न करने के लिये ले जाया गया और इस सरदाब में जो पहले से आपके लिये (क़ुदरती तौर पर) बना हुआ था उतारने के लिये बाहमी गुफ़्तुगू शुरू हुई कि कौन उतारे फ़ैसला हुआ कि ‘‘ क़ादिर ’’ नामी इनका ख़ादिम जो मर्दे सालेह है वह क़ब्र में उतारे इतने में देखा गया कि रेगज़ार से दो नक़ाब पोश नमूदार हुए और उन्होंने नमाज़े जनाज़ा पढ़ाई और वही क़ब्र में उतरे फिर तदफ़ीन के फ़ौरन बाद वापस चले गए। यह न मालूम हो सका कि दोनों कौन थे। फिर मूसा बिन खि़ज़रिज़ ने क़ब्र पर बोरिया का छप्पर बना दिया इसके बाद हज़रत ज़ैनब बिन्ते हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी (अ.स.) ने क़ुब्बा बनवाया । (मुन्तल आमाल जिल्द 2 पृष्ठ 242) फिर मुख़्तलिफ़ अदवार शाही में इसकी तामीर व तज़ीन होती रही तफ़सील के लिये मुलाहेजा़ हो ।( माहनामा अल हादी क़ुम ईरान ज़ीक़ाद 1393 हिजरी पृष्ठ 105)


हज़रत मासूमा ए क़ुम की ज़्यारत की अहमियत

हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ (अ.स.) फ़रमाते हैं कि जो मासूमा ए कु़म की ज़्यारत करेगा उसके लिए जन्नत वाजिब होगी। हदीस उयून के अल्फ़ाज़ यह हैं ‘‘ मन जारहा वजबत लहा अलजन्नता ’’( सफ़ीनतुल बिहार जिल्द 2 पृष्ठ 426) अल्लामा शेख़ अब्बास कु़म्मी , अल्लामा क़ाज़ी नूरूल उल्लाह शुस्तरी (शहीदे सालिस) से रवाएत करते हैं कि हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) इरशाद फ़रमाते हैं कि ‘‘ तद खि़ल ब शफ़ाअताहा शैती अ ल जन्नता ’’ मासूमा ए क़ुम की शिफ़ाअत से कसीर शिया जन्नत में जाएगें।( सफ़ीनतुल बेहार जिल्द 2 पृष्ठ 386) हज़रत इमाम रज़ा (अ.स.) फ़रमाते हैं कि ‘‘ मन ज़ारहा फ़लहू अल जन्नता ’’ जो मेरी हमशीरा की क़ब्र की ज़्यारत करेगा उसके लिये जन्नत है। एक रवायत में हैं कि अली बिन इब्राहीम ने अपने बाप से उन्होंने साद से उन्होंने अली बिन मूसिए रज़ा (अ.स.) से रवायत की है वह फ़रमाते हैं कि ऐ साद तुम्हारे नज़दीक़ हमारी एक क़ब्र है। रावी ने अर्ज़ की मासूमा ए क़ुम की , फ़रमाया हां ऐ साद ‘‘ मन ज़ारहा अरफ़ाबहक़हा फ़लहू अल जन्नता ’’ जो इनकी ज़्यारत इनके हक़ को पहचान के करेगा इसके लिये जन्नत है यानी वह जन्नत में जायेगा।(सफ़ीनतुल बेहार जिल्द 2 पृष्ठ 376 प्रकाशित ईरान)


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