
Taharat Ahlebait (AS) aur Quran Kareem -Shan Sayyidah FATIMAH علیھا السلا…




मुवर्रेख़ीन का बयान है कि आले मोहम्मद (स.अ.) के इस सिलसिले में हर फ़र्द हज़रते अहदियत की तरफ़ से बलन्द तरीन इल्म के दरजे पर क़रार दिया गया था जिसे दोस्त और दुश्मन सब को मानना पड़ता था। यह और बात है कि किसी को इल्मी फ़यूज़ फैलाने का ज़माने ने कम मौक़ा दिया और किसी को ज़्यादा। चुनान्चे इन हज़रात में से इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) के बाद अगर किसी को सब से ज़्यादा मौक़ा हासिल हुआ तो वह हज़रत इमाम रज़ा (अ.स.) हैं। जब आप इमामत के मन्सब पर नहीं पहुँचे थे उस वक़्त हज़रत इमाम मूसिए काज़िम (अ.स.) अपने तमाम फ़रज़न्दों और ख़ानदान के लोगों को नसीहत फ़रमाते थे कि तुम्हारे भाई अली रज़ा आलिमे आले मोहम्मद है। अपने दीनी मसाएल को इन से दरयाफ़्त कर लिया करो और जो कुछ कहें उसे याद रखो और फिर हज़रत इमाम मूसिए काज़िम (अ.स.) की वफ़ात के बाद जब आप मदीने में थे और रौज़ा ए रसूल (स.अ.) पर तशरीफ़ फ़रमा थे तो उल्माए इस्लाम मुश्किल मसाएल में आपकी तरफ़ रूजू करते थे।
मोहम्मद बिन ईसा यक़तैनी का बयान है कि मैंने इन तहरीरी मसाएल जो हज़रत इमाम रज़ा (अ.स.) से पूछने गये थे और आपने इनका जवाब तहरीर फ़रमाया। इकट्ठा किया तो अठ्ठारा हज़ार की तादाद में थे। साहबे लुमतुल रज़ा तहरीर करते हैं कि हज़राते आइम्मा ए ताहेरीन (अ.स.) के ख़ुसूसियात में यह अमर तमाम तारीख़ी मुशाहिद और नीज़ हदीस व सैर के असानीद से साबित है। बावजूद एक अहले दुनियां को आप हज़रात की तक़लीद और मुताबेअत फ़ील अहकाम का बहुत कम शरफ़ हासिल था मगर बई हमा तमाम ज़माना व हर ख़वेश व बेगाना आप हज़रात को तमाम उलूमे इलाही और इसरारे इलाही का गन्जीना समझता था और मोहद्दे सीन व मुफ़स्सेरीन और तमाम उलमा फ़ज़लन आपके मुक़ाबले का दावा रखते थे। वह भी इल्मी मुबाहस व मजालिस में आँ हज़रत के आगे ज़ानुए अदब तै करते थे और इल्मी मसाएल को हल करने की ज़रूरतों के वक़्त हज़रत अमीरल मोमेनीन (अ.स.) से ले कर इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) तक इस्तफ़ादे किए वह सब किताबों में मौजूद हैं।
जाबिर बिन अब्दुल्लाह अन्सारी और हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़र (अ.स.) की खि़दमत में समअ हदीस के वाक़ेआत तमाम हदीस की किताब में महफ़ूज़ हैं। इसी तरह अबुल तुफ़ैल अमिरी और सईद बिन जैर आख़्री सहाबा की तफ़सीली हालात जो उन बुज़ुर्गों के हाल में पाए जाते हैं वह सैरो तवारीख़ में मज़कूर व मशहूर हैं सहाबा के बाद ताबईन और तबेए ताबईन और उन लोगों की फ़ैज़याबी की भी यही हालत है।
शअबी , ज़हरी इब्ने क़तीबह , सुफ़यान , सौरी इब्ने शीबा , अब्दुर्रहमान , अकरमा , हसन बसरी वग़ैरा वग़ैरा यह सब के सब जो उस वक़्त इस्लामी दुनियां में दीनयात के पेशवा और मुक़द्दस समझे जाते थे इन्हीं बुज़ुर्गों के चश्माए फ़ैज़ के जुरआ नोश और उन्हीं हज़रात के मुतीय व हलक़ा बगोश थे।
जनाबे इमामे रज़ा (अ.स.) को इत्तेफ़ाक़े हसना से अपने इल्मो फ़ज़ल के इज़हार के ज़्यादा मौक़े पेश आये क्यों कि मामून अब्बासी के पास जब तक दारूल हुकूमत मर्व तशरीफ़ फ़रमा रहे बड़े बड़े उलमा व फ़ुज़ला मुख़तलिफ़ उलूम में आपकी इस्तेदाद और फ़ज़ीलत का अन्दाज़ा कराया गया और कुछ इस्लामी उलमा व फ़ुज़ला पर मौकूफ़ नहीं था बल्कि उलमा ए यहूदो नसारा से भी आपका मुक़ाबला कराया गया। मगर इन तमाम मनाज़िरो व मुबाहेसो में इन तमाम लोगों पर आपकी फ़ज़ीलत व फ़ौक़ियत ज़ाहिर हुई। ख़ुद मामून भी ख़ुलफ़ा ए अब्बासीया में सब से ज़्यादा आलम व अफ़क़ह था बा वजूद इसके उलूम तबर्हुरफ़ी का लौहा मानता था चारो नाचार इसका ऐतराफ़ और इक़रार पर इक़रार करता था। चुनान्चे अल्लामा इब्ने हजर मक्की सवाएक़े मोहर्रेक़ा में लिखते हैं कि आप जलालत क़दर इज़्ज़त व शराफ़त में मारूफ़ व मज़कूर हैं। इसी वजह से मामून आपको बमुनज़िला अपनी रूह व जान जानता था। उसने अपनी दुख़्तर का निकाह आँ हज़रत (अ.स.) से किया और मुल्क व विलायत में अपना शरीक गरदाना। मामून बराबर उलमा , अदयान व फ़ुक़हाय शरीअत को जनाबे इमाम रज़ा (अ.स.) के मुक़ाबले में बुलाता और मनाज़रा कराता। मगर आप हमेशा उन लोगों पर ग़ालिब आते थे और ख़ुद इरशाद फ़रमाते थे कि मैं मदीने में रौज़ा ए हज़रत रसूले ख़ुदा (स.अ.) में बैठता , वहां के उलमाए कसीर किसी इल्मी मसाएल में आजिज़ आते तो बिल इत्तेफ़ाक़ मेरी तरफ़ रूजू करते। जवाब हाय शाफ़ी दे कर इनकी तसल्ली व तस्कीन कर देता। अबासलत हरवी इब्ने सालेह कहते हैं कि हज़रत इमाम अली बिन मूसा रज़ा (अ.स.) से ज़्यादा कोई आलम मेरी नज़र से नहीं गुज़रा और मुझ पर मौकू़फ़ नहीं जो कोई आपकी ज़ियारत से मुशर्रफ़ होगा वह मेरी तरह आपकी इल्मियत की शहादत देगा।
बज़ाहिर ऐसा मालूम होता है कि हुरूफ़े तहजी यानी (अलीफ़ , बे , जीम , दाल) वग़ैरा की कोई हैसियत नहीं लेकिन जब उसक हैसियत अरबाबे अस्मत से दरयाफ़्त की जाती है तो मालूम होता है कि यह हुरूफ़ जिन से क़ुरआन मजीद जैसी ऐजाज़ी किताब मुरत्तब की गई है और जिस पर काएनात के इफ़हाम व तफ़हीम का दारो मदार है यह अपने दामन में बेशुमार सेफ़ात रखते हैं और खुदा वन्दे आलम ने उन्हीं हुरूफ़ को अपनी मारफ़त का ज़रिया बनाया है और हर हर्फ़ में ख़ास चीज़ पिन्हा रखती है। हज़रत इमाम रज़ा (अ.स.) से हुरूफ़े तहज्जी दरयाफ़्त किया गया आपने बा हवाला बाबे मदीनतुल उलूम हज़रत अली (अ.स.) इरशाद फ़रमाते हैं कि ‘‘ अलिफ़ ’’ से आला अल्लाह , ख़ुदा की नेअमतें , ‘‘ बे ’’ से बहा उल्लाह , ख़ुदा की खुबीयाँ , बहजतुल्लाह ख़ुदा मोमिन से ख़ुश होना। ‘‘ ते ’’ से तमामुल अमर बक़ाएमे आले मोहम्मद दुनियां का ख़ात्मा इमाम मेहदी (अ.स.) के अहद ममें होगा। ‘‘ से ’’ से सवाब अल मोमेनीन अली अमालेहुम सालेहता मोमेनीन को अच्छे आमाल का भर पूर सवाब मिलेगा। ‘‘ जीम ’’ से जमाल अल्लाह , अल्लाह का जमाल व जलाल अल्लाह , अल्लाह का जलाल , ‘‘ हे ’’ से हिल्मुल्लाह अन अलमज़नबीन। गुनाहगार से अल्लाह का हुक्म। ‘‘ ख़े ’’ से खमोल ज़िक्र अहलुल मासी इन्दुल्लाह ‘‘ ख़ुदा ’’ का गुनाह गारों के गुनाहों से बुलवा देना। ‘‘ दाल ’’ से दीन अल्लाह , अल्लाह का दीन इस्लाम। ‘‘ जीम ’’ ज़ुल्जलाल , अल्लाह का साहबे जमाल होना। ‘‘ रे ’’ से अल्लाह का रऊफ़ुर रहीम होना। ‘‘ जे़ ’’ से ज़लाज़िले अलक़यामता , क़यामत के दिन अज़ीम ज़लज़ले। ‘‘ सीन ’’ से सेना अल्लाह। अल्लाह की अच्छाईयां और बयान। ‘‘ शीन ’’ से शा अल्लाह माशा अल्लाह। जो ख़ुदा चाहे वही होगा। ‘‘ स्वाद ’’ से सादिक़ुल वाद , अल्लाह का वादा सच्चा और लोगों को सच बोलना चाहिए। ‘‘ ज़वाद ’’ से ज़लमिन ख़ालिफ़ मोहम्मद (स.अ.) व आले मोहम्मद (अ.स.)। वह जो शख़्स गुम्राह है जो मोहम्मद (स.अ.) आले मोहम्मद (अ.स.) का मुख़ालिफ़ है। ‘‘ तो ’’ से तूबाअल मोमेनीन , के लिये जन्नत की मुबारक बाद। ‘‘ ज़ो ’’ से ज़न अलमोमेनीन बिल्लाह ख़ैर। मोमिन को ख़ुदा के साथ अच्छा ज़न रखना चाहिये। ‘‘ ऐन ’’ से इल्म यानी ख़ुदा अलमे मुतलक़ है और इल्म इंसान के लिये बेहतरीन ज़ेवर है। ‘‘ ग़ैन ’’ से अलग़नी , ख़ुदा सब से मुसतग़नी है और ग़नी को ग़रीबों पर ख़र्च करना चाहिये। ‘‘ फ़े ’’ से फ़ैज़ मन अफ़वाज़ अन्नार , लोग अगर गुनाह करेंगे तो फ़ौज दर फ़ौज जहन्नुम में जायेंगे। ‘‘ क़ाफ़ ’’ से कु़रआन यह अल्लाह की भेजी हुई किताब है जो हिदायत से पुर है। ‘‘ क़ाफ़ ’’ से अल क़ाफ़ी ख़ुदा बन्दों के लिये काफ़ी ह। ‘‘ लाम ’’ से लग़वो अल काफ़ेरीन फ़ी इफ़तराहुम एल्ल लाहे अलविज़्ब , ख़ुदा पर झूठे इल्ज़ाम देना यह काफ़िरों का काम नेहायत लग़ो है। ‘‘ मीम ’’ से मलकूुल ला हुल यौम ला मालेक ग़ैरहू , एक दिन सिर्फ़ अल्लाह की हुकूमत होगी और कोई भी ज़िन्दा न होगा और न इसके सिवा कोई मालिक होगा , इस दिन ख़ुदा फ़रमायेगा , लेमन उल मुलके अल यौम , आज के दिन किसकी हुकूमत है तो अरवाहे आइम्मा यह जवाब देगें। अल्लाह अल वाहिद अलक़हार , आज सिर्फ़ ख़ुदाए वाहिद क़हार की हुकूमत है। ‘‘ नून ’’ से नवाल अल्लाह अल मोमेनीन व निकाला बिल काफ़ेरीन। मोमेनीन पर ख़ुदा का करम और काफ़िरों पर उसका अज़ाब मोहित होगा। ‘‘ वाव ’’ से वैल लमन असी अल्लाह , वैल और तबाही है इस के लिये जो ख़ुदा की ना फ़रमानी करे। ‘‘ हे ’’ से हान इल लल्लाह मन असह जो ख़ुदा का गुनाह करता है वह उसकी तौहीन करता है। ‘‘ ला ’’ से ला इलाहा इल्लल्लाह , यह वह कलमाए इख़्लास है जो उसे खुलूस व इक़्तेदार और शराएत के साथ ज़बान पर जारी करे वह ज़रूर जन्नत में जाऐगा। ‘‘ ये ’’ से यदुल्लाह अल्लाह का हाथ जो मख़लूक़ात को रोजी़ पहुँचाता है मुराद है।
फिर आपने फ़रमाया कि इन्हीं हुरूफ़ पर मुश्तमिल क़ुरआन मजीद नाज़िल हुआ है और नज़ूल चूंकि ख़ुदा की तरफ़ से था इस लिये दावा कर दिया गया कि जो किताब हम ने हुरूफ़ व अलफ़ाज़ में भेजी है। इसका जवाब जिन व इन्स सब मिल कर भी नहीं दे सकते।( दमए साकेबा जिल्द 3 पृष्ठ 61)