
हज़रत इमाम मूसा काजि़म (अ.स.) के हुक्म से बादल का एक मर्दे मोमिन को चीन से तालेक़ान पहुँचाने का वाकि़आ
हारून रशीद का एक सवाल और उसका जवाब
यह मुसल्लम है कि हज़रात मोहम्मद व आले मोहम्मद , मोजिज़ात करामात और उमूरे ख़रक़ आदात में यकताए काएनात थे , रजअत शमस , शक़्क़ुल क़मर और हज़रत अली (अ.स.) का एक गिरोह समेत चादर पर बैठ कर ग़ारे अस्हाबे कहफ़ तक सफ़र करना उसके शवाहेद हैं।
अल्लामा मोहम्मद इब्ने शहर आशोब तहरीर फ़रमाते हैं कि ‘‘ खा़लिद बिन समा बयान करते हैं कि एक दिन हारून रशीद ने एक शख़्स को तलब किया था अली बिन सालेह तालक़ानी , पूछा तुम ही वह हो जिसको बादल चीन से उठा कर तालक़ान लाए थे ? कहा हाँ। इसने कहा बताओ क्या वाक़ेआ है , यह क्यों कर हुआ ? तालक़ानी ने कहा कि मैं किश्ती में सवार था नागाह जब मेरी कश्ती समुन्दर के इस मक़ाम पर पहुँची जो सब से ज़्यादा गहरा था तो मेरी कश्ती टूट गई। तीन रोज़ मैं तख़्तों पर पड़ा रहा और मौजें मुझे थपेड़े लगाती रहीं , फिर समुन्द्र की मौजों ने मुझे ख़ुश्की में फेंक दिया। वहाँ नहरे और बाग़ात मौजूद थे , मैं एक दरख़्त के साए में सो गया। इसी असना में मैंने एक ख़ौफ़नाक आवाज़ सुनी , डर के मारे बेदार हो गया। फिर दो घोडो को आपस में लड़ते हुए देखा। ऐसे ख़ूब सूरत घोड़े कभी नहीं देखे थे। उन्होंने जब मुझे देखा , समुन्दर में चले गये। मैंने इसी असना में एक अजीब अल खि़ल्क़त परिन्दे को देखा जो आ कर बैठ गया। पहाड़ के ग़ार के क़रीब मैं दरख़्त में छुपे हुए इसके क़रीब गया ताकि इस को अच्छी तरह देख सकूँ। परिन्दे ने जब मुझे देखा तो उड़ गया। मैं उसके पीछे चल पड़ा। ग़ार के क़रीब मैंने तसबीह व तहलील तकबीर और तिलावते क़ुरआने मजीद की आवाज़ सुनी। मैं ग़ार के क़रीब गया। आवाज़ देने वाले ने आवाज़ दी ‘‘ ऐ अली बिन सालेह तालक़ानी ’’ ख़ुदा तुम पर रहम करे। ग़ार में अन्दर आ जाओ। मैं ग़ार के अन्दर चला गया , वहां एक अज़ीम शख़्स को देखा। मैंने सलाम किया , उसने जवाब दिया। फिर फ़रमाया कि ऐ बिन सालेह तालक़ानी तुम मादन उल क़नूज़ हो। भूख , प्यास और ख़ौफ़ के इम्तेहान में पास हुए हो। अल्लाह ताअला ने तुम पर रहम किया है , तुम्हें नजात दी है। तुम्हें पाकीज़ा पानी पिलाया है। मैं उस वक़्त को जानता हूँ जब तुम कश्ती पर सवार हुए और समुन्दर में रहे , तुम्हारी कश्ती टूट गई कितनी दूर तक मौजों के थपेड़े खाती रही। तुम ने अपने आप को समुन्दर में गिराने का इरादा किया , अगर ऐसा करते तो खुद मौत को दावत देते। बड़ी मुसिबत उठाई। मैं उस वक़्त को भी जानता हूँ जब तुम ने नजात पाई और दो ख़ूब सूरत चीज़ें देखीं। तुम ने परिन्दे का पीछा किया। जब उसने तुम्हे देखा तो आसमान की तरफ़ उड़ गया। अल्लाह ताअला तुम पर रहम करें , आओ यहाँ बैठ जाओ। जब मैंने उस शख़्स की बात सुनी तो उस से कहा , मैं तुम्हें अल्लाह ताअला का वास्ता दे कर पूछता हूँ यह बताओ कि मेरे हालात तुम को किसने बताऐ ? फ़रमाया उस ज़ात ने जो ज़ाहिरो बातिन की जानने वाली है। फिर फ़रमाया कि तुम भूखे हो। मैंने अजऱ् की बेशक भूखा हूँ। यह सुन कर आपने अपने लबों को हरकत दी और एक दस्तरख़्वान रूमाल से ढ़का हुआ हाजि़र हो गया। उन्होंने दस्तरख़्वान से रूमाल को उठा लिया। फ़रमाया अल्लाह ताअला ने जो रिज़्क़ दिया है आओ उसे खाओ। मैंने खाना खाया , ऐसा पाकीज़ा खाना कभी न खाया था फिर मुझे पानी पिलाया , मैंने ऐसा लज़ीज़ और मीठा पानी कभी नहीं पिया था। फिर उन्होंने दो रकअत नमाज़ पढ़ी और मुझ से फ़रमाया कि ऐ अली घर जाना चाहते हो , मैंने अजऱ् कि मैं वतन से बहुत दूर हूँ (चीन के इलाक़े में पडा हूँ) मेरी मदद कौन कर सकता है और मैं क्यो कर यहाँ से वतन जा सकता हूँ ? उन्होंने फ़रमाया घबराओ नहीं हम अपने दोस्तों की मदद किया करते हैं। हम तुम्हारी मदद करेंगे। फिर उन्होंने दुआ के लिये हाथ उठाया , नागाह बादल के टुकड़े आने लगे और ग़ार के दरवाज़े को घेर लिये। जब बादल उनके सामने आया तो उसने बाहुक्मे ख़दा सलाम किया ‘‘ ऐ अल्लाह के वली और उसकी हुज्जत आप पर सलाम हो। उन्होंने जवाबे सलाम दिया। फिर बादल के एक टूकड़े से पूछा कहां का इरादा है और किस ज़मीन के लिये तुम भेजे गये हो। उसने ज़मीन का नाम लिये और वह चला गया। फिर अब्र का एक टुकड़ा सामने आया और आ कर सलाम किया। उन्होंने जवाब दिया। पूछा कहां जाने के लिये आया है ? कहा तालक़ान जाने का हुक्म दिया गया है। ऐ ख़ुदा ए वहदहू ला शरीक का इताअत गुज़ार अब्र जिस तरह अल्लाह की दी हुई चीज़ें उड़ा कर लिये जा रहा है इसी तरह इस बन्दाए मोमिन को भी ले जा। जवाब मिला ब सरो चश्म (सर आंखों पर) फिर उन्होंने बादल को हुक्म दिया कि ज़मीन पर बराबर हो जा , वह ज़मीन पर आ गया , फिर मेरे बाज़ू को पकड़ कर उस पर बैठा दिया। बादल अभी उड़ने भी न पाया था कि मैंने उनकी खि़दमत में अजऱ् की , मैं आपको अल्लाम ताअला की क़सम और मोहम्मद (स. अ.) और आइम्मा ए ताहेरीन (अ.स.) का वास्ता दे कर पूछता हूँ कि आप यह फ़रमाइये आप हैं कौन ? आप का इस्मे गेरामी (नाम) क्या है ? इरशाद फ़रमाया ! ऐ अली बिन सालेह तालक़ानी मैं ज़मीन पर अल्लाह की हुज्जत हूँ और मेरा नाम मूसा बिन जाफ़र (मूसा काजि़म) है। फिर मैंने उनके आबाव हजदाद की इमामत का जि़क्र किया और उन्होंने बादल को हुक्म दिया और वह बलन्द हो कर हवा के दोश पर चल पड़ा। ख़ुदा की क़सम न मुझे कोई तकलीफ़ पहुँची और न ख़ौफ़ ला हक़ हुआ। मैं थोडी़ देर में वतन ‘‘ तलक़ान ’’ जा पहुँचा और ठीक उस सड़क पर उतरा जिस पर मेरा मकान था। यह सुन कर हारून रशीद ने जल्लादों को हुक्म दे कर उसे इस लिये क़त्ल करा दिया कि वह कहीं इस वाकि़ये को लोगों में बयान न कर दे और अज़मते आले मोहम्मद और वाज़े न हो जाय।
(मनाक़िब इब्ने शहर आशोब जिल्द 3 पृष्ठ 121 प्रकाशित मुल्तान)
हज़रत इमाम मूसा काजि़म (अ.स.) और फि़दक के हुदूदे अरबा
अल्लामा युसूफ़ बग़दादी सिब्ते इब्ने जोज़ी हनफ़ी तहरीर फ़रमाते हैं कि एक दिन हारून रशीद ने हज़रत इमाम मूसा काजि़म (अ.स.) से कहा कि आप ‘‘ फि़दक ’’ लेना चाहें तो मैं दे दूँ। आपने फ़रमाया कि मैं जब उसके हुदूद बताऊगां तो तू उसे देने पर राज़ी न होगा और मैं उसी वक़्त ले सकता हूँ जब उसके पूरे हुदूद दिये जायें। उसने पूछा कि उसके हुदूद क्या हैं ? फ़रमाया पहली हद अदन है , दूसरी हद समर कन्द है तीसरी हद अफ़रीक़ा है , चौथी हद सैफ़ अल बहर है जो ख़ज़र्र और आरमीनिया के क़रीब है। यह सुन कर हारून रशीद आग बबूला हो गया और कहने लगा फिर हमारे लिये क्या है ? हज़रत ने फ़रमाया कि इसी लिये तो मैंने लेने से इन्कार किया था। इस वाकि़ये के बाद ही से हारून रशीद हज़रत के दरपए क़त्ल हो गया।
(ख़वास अल उम्मता अल्लामा सिब्ते इब्ने जौज़ी पृष्ठ 416 प्रकाशित लाहौर)
















