चौदह सितारे हज़रत इमाम मूसा काजि़म (अ.स) पार्ट- 10

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अली बिन यक़तीन को उलटा वज़ू करने का हुक्म

अल्लामा तबरसी और अल्लामा इब्ने शहर आशोब लिखते हैं अली बिन यक़तीन ने हज़रत इमाम मूसा काजि़म (अ.स.) को एक ख़त लिखा जिसमें तहरीर किया कि हमारे दरमियान इस अमर में बहस हो रही है कि आया मसह काब से असाबा (उंगलियों) तक होना चाहिये या उंगलियों से काब तक , हुज़ूर इसकी वज़ाहत फ़रमायें। हज़रत ने उस ख़त का एक अजीब व ग़रीब जवाब तहरीर फ़रमाया , आपने लिखा कि मेरा ख़त पाते ही तुम इस तरह वज़ू शुरू करो तीन मरतबा कुल्ली करो , तीन मरतबा नाक में पानी डालो , तीन मरतबा मुह धो अपनी दाढ़ी अच्छी तरह भिगो , सारे सर का मसा करो , अन्दर बाहर कानों का मसा करो तीन मरतबा पाँव धो और देखो मेरे इस हुक्म के खि़लाफ़ हरगिज़ हरगिज़ ना करना। अली बिन यक़तीन ने जब इस ख़त को पढ़ा तो वह हैरान रह गये लेकिन यह समझते हुए मौलाई आलमा बेमा क़ाला आपने जो कुछ हुक्म दिया है उसकी गहराई और उसकी वजह का अच्छी तरह आपको इल्म होगा। इस पर अमल करना शुरू कर दिया।

रावी का बयान है कि अली बिन यक़तीन की मुखा़लेफ़त बराबर दरबार में हुआ करती थी और लोग बादशाह से कहा करते थे कि यह शिया हैं और तुम्हारे मुख़ालिफ़ है। एक दिन बादशाह ने अपने ख़ास मुशीरों से कहा कि अली बिन यक़तीन की शिकायत बहुत हो चुकी है अब मैं ख़ुद छुप कर देख़ूँगा और यह मालूम करूँगा कि वज़ू क्यों कर करते हैं और नमाज़ कैसे पढ़ते हैं। चुनान्चे उसने छुप कर आपके हुजरे में नज़र डाली तो देखा कि वह अहले सुन्नत के उसूल और तरीक़े पर वज़ू कर रहे हैं। यह देख कर उनसे मुतमईन हो गया और उसके बाद से किसी के कहने को बावर नहीं किया। इस वाकि़ये के फ़ौरन बाद हज़रत इमाम मूसा काजि़म (अ.स.) का ख़त अली बिन यक़तीन के पास पहुँचा जिसमें मरक़ूम था कि ख़दशा दूर हो गया अब तुम इसी तरह वज़ू करो जिस तरह ख़ुदा ने हुक्म दिया है यानी अब उल्टा वज़ू न करना बल्कि सीधा और सही वज़ू करना और तुम्हारे सवाल का जवाब यह है कि उंगलियों के सर से काबेईन तक पाँव का मसा होना चाहिए।

(आलामुल वरा पृष्ठ 170, मनाक़िब जिल्द 5 पृष्ठ 58 )


वज़ीरे आज़म अली बिन यक़तीन का हज़रत इमाम मूसा काजि़म (अ.स.) की फ़हमाईश

अल्लामा हुसैन बिन अब्दुल वहाब तहरीर फ़रमाते हैं कि मोहम्मद बिन अली सूफ़ी का बयान है कि इब्राहीम जमाल जो हज़रत इमाम मूसा काजि़म (अ.स.) के सहाबी थे , ने एक दिन अबुल हसन अली बिन यक़तीन से मुलाक़ात के लिये वक़्त चाहा उन्होंने वक़्त न दिया। उसी साल वह हज के लिये गये और हज को हज़रत इमाम मूसा काजि़म (अ.स.) भी तशरीफ़ ले गये इब्ने यक़तीन हज़रत से मिलने के लिये गये उन्होंने मिलने से इन्कार कर दिया इब्ने यक़तीन को बड़ा ताअज्जुब हुआ। रास्ते मुलाक़ात हुई तो हज़रत ने फ़रमाया कि तुम ने इब्राहीम से मुलाका़त करने से इन्कार किया था इस लिये मैं भी तुम से नहीं मिला और उस वक़्त तक न मिलूगाँ जब तक तुम उनसे माफ़ी न मांगोगे और उन्हें राज़ी न करोगे। इब्ने यक़तीन ने अजऱ् की मौला मैं मदीने में हूँ और वह कूफ़े में है , मेरी मुलाक़ात है कैसे हो सकती है ? फ़रमाया तुम तन्हा बक़ी में जाओ , एक ऊँट तय्यार मिलेगा इस पर सवार हो कर कूफ़ा के लिये रवाना हो चश्में ज़दन में वहां पहुँच जाओगे। चुनान्चे वह गये और ऊँट पर सवार हो कर कूफ़ा पहुँचे , इब्राहीम के दरवाज़े पर दक़्क़ुलबाब किया। आवाज़ आई कौन है ? कहा मैं इब्ने यक़तीन हूँ। उन्होंने कहा तुम्हारा मेरे दरवाज़े पर क्या काम है ? इब्ने यक़तीन ने जवाब दिया , सख़्त मुसीबत में मुबतिला हूँ , ख़ुदा के लिये मिलने का वक़्त दो। चुनान्चे उन्होंने इजाज़त दी। इब्ने यक़तीन ने क़दमों पर सर रख कर माफ़ी मांगी और सारा वाक़ेया कह सुनाया। इब्राहीम जमाल ने माफ़ी दी। फिर इसी ऊँट पर सवार हो कर चश्में ज़दन में मदीने पहुँचे और हज़रत इमाम मूसा काजि़म (अ.स.) की खि़दमत में हाजि़र हुए। इमाम ने फिर माफ़ कर दिया और मुलाक़ात का वक़्त दे कर गुफ़्तुगू फ़रमाई।

(ऐनुल मोजेज़ात पृष्ठ 122 प्रकाशित मुल्तान)

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