
Moavia Ka Qisas e Hazrat Usman r.a Ka Mutalba: Mufti Fazal Hamdard




आपको अगरचे तसनीफ़ात का मौका़ ही नहीं नसीब हुआ लेकिन फिर भी आप उसकी तरफ़ मुतवज्जेह रहे हैं। आपकी एक तसनीफ़ जिसका जि़क्र अल्लामा चलपी बा हवाला हाफि़ज़ अबु नईम असफ़हानी किया है वह मसनदे इमाम मूसा काजि़म है।(कशफ़ुल ज़नून पृष्ठ 433 व अरजहुल मतालिब पृष्ठ 454 )
आपसे बहुत सी हदीसें मरवी हैं जिनमें की दो यह हैं
1. आं हज़रत (स. अ.) फ़रमाते हैं कि लड़के का अपने वालेदैन के चेहरों पर नज़र करना इबादत है।
2. झूठ और ख़यानत के अलावा मोमिन हर आदत इख़्तेयार कर सकता है।
(नूरूल अबसार पृष्ठ 134 )
अहमद बिन हम्बल का कहना है कि आपका सिलसिलाए रवायत इतना अहम है कि ‘‘ लौ क़दी अल्लल मजनून ला फ़ाक़ेहा ’’ यानी अगर मजनून पर पढ़ कर दम कर दिया जाय तो उसका जुनून जाता रहे।
(मनाक़िब जिल्द 5 पृष्ठ 73 )
पांच रबीउल अव्वल 170 हिजरी को मेहदी का बेटा अबू जाफ़र हारून रशीद अब्बासी ख़लीफ़ाए वक़्त बनाया गया। उसने अपना वज़ीरे आज़म यहीया बिन ख़ालिद बर मक्की को बनाया और इमाम अबू हनीफ़ा के शागिर्द अबू यूसुफ़ को क़ाज़ी क़ज़्ज़ाता का दरजा दिया। बा रवायत ज़ेहनी उसने अगरचे बाज़ अच्छे काम भी किये हैं लेकिन लहो लाब और हुसूले लज़्ज़ाते मम्नुआ में मुन्फ़रीद था।
इब्ने ख़ल्दून का कहना है कि यह अपने दादा मन्सूर दवानक़ी के नक़्शे क़दम पर चलता था फ़कऱ् इतना था कि वह बख़ील था और यह सख़ी। यह पहला ख़लीफ़ा है जिसने राग रागनी और मौसीक़ी को शरीफ़ पेशा क़रार दिया था। उसकी पेशानी पर भी सादात कुशी का नुमायां दाग़ है। इल्मे मौसीक़ी माहिर अबू इस्हाक़ इब्राहीम मौसली उसका दरबारी था। हबीब अल सैर में है कि यह पहला इस्लामी बादशाह है जिसने मैंदान में गेंद बाज़ी की और शतरंज के खेल का शौक़ किया। अहादीस में है कि शतरंज खेलना बहुत बड़ा गुनाह है। जामेए अल अख़बार में है कि जब इमामे हुसैन (अ.स.) का सर दरबारे यज़ीद में पहुँचा था तो वह शतरंज खेल रहा था। तारीख़ अल ख़ुल्फ़ा स्यूती में है कि हारून रशीद अपने बाप की मदख़ूला लौंड़ी पर आशिक़ हो गया। उसने कहा कि मैं तुम्हारे बाप के पास रह चुकी हूँ तुम्हारे लिये हलाल नहीं हूँ। हारून ने क़ाज़ी अबू युसूफ़ से फ़तवा तलब किया। उन्होंने कहा आप इसकी बात क्यों मानते हैं यह झूठ भी तो बोल सकती है। इस फ़तवे के सहारे से उसने उसके साथ बद फ़ेली (बलात्कार) की।
अल्लामा स्यूती यह भी लिखते हैं कि बादशाह हारून रशीद ने एक लौंड़ी ख़रीद कर उसके साथ उसी रात बिला इस्तेबरा जिमआ (सम्भोग) करना चाहा। क़ाज़ी अबू युसूफ़ ने कहा कि इसे किसी लड़के को हिबा कर के इस्तेमाल कर लिजिये।
अल्लामा स्यूती का कहना है कि इस फ़त्वे की उजरत क़ाज़ी अबू युसूफ़ ने एक लाख दिरहम ली थी।
अल्लामा इब्ने ख़ल्क़ान का कहना है कि अबू हनफि़या के शार्गिदों में अबू युसूफ़ की नज़ीर न थी। अगर यह न होते तो इमाम अबू हनीफ़ा का जि़क्र भी न होता।
तारीख़े इस्लाम मिस्टर जा़किर हुसैन मे ब हवाला सहाह अल अख़बार में है कि हारून रशीद का दरजा सादात कुशी में मन्सूर के कम न था। उसने 176 हिजरी में हज़रत नफ़्से ज़किया (अल रहमा) के भाई यहीया को दीवार में जि़न्दा चुनवा दिया था। उसी ने इमाम मूसा काजि़म (अ.स.) को इस अन्देशे से कि कहीं वह वली अल्लाह मेरे खि़लाफ़ अलमे बग़ावत बलन्द न कर दें अपने साथ हिजाज़ से ईराक़ में ला कर क़ैद कर दिया और 183 हिजरी में ज़हर से हलाक कर दिया। अल्लामा मजलिसी तहफ़्फ़ुज़े ज़ाएर में लिखते हैं कि हारून रशीद ने दूसरी सदी हिजरी में इमाम हुसैन (अ.स.) की क़ब्र मुताहर की ज़मीन जुतवाई थी और क़ब्र पर जो बेरी का दरख़्त बतौरे निशान मौजूद था उसे कटवा दिया था। जिलाउल उयून और क़म्क़ाम में बाहवाला अमाली शेख़ तूसी मरक़ूम है कि जब इस वाक़ेए की इत्तला जरीर इब्ने अब्दुल हमीद को हुई तो उन्होंने कहा कि रसूले ख़ुदा (स अ व व ) की हदीस ‘‘ अलाअन अल्लाह क़ातेअ अल सिदरता ’’ बेरी के दरख़्त काटने वाले पर ख़ुदा की लानत , का मतलब अब वाज़े हुआ।
(तस्वीरे करबला पृष्ठ 61 प्रकाशित देहली पृष्ठ 1338 )




