
ख़लीफ़ा मेंहदी अब्बासी और हज़रत इमाम मूसा काजि़म (अ स . )
मन्सूर दवानक़ी के बाद 157 हिजरी में मेंहदी अब्बासी ख़लीफ़ा ए वक़्त क़रार पाया। उसने अपनी जि़न्दगी में कुछ अच्छे काम भी किए हैं। उसने बहुत से मुलहिदों को ख़ाक में मिला दिया है। मानी जो फ़लसफ़ी था(मज़दक मुतवफ्फा चौथी सदी के शुरुआत से मख़लूत गुमराह कुन अक़ीदे की नशो नुमा करता था) को इसने क़त्ल करा दिया था। इसके अलावा वह आले मोहम्मद के साथ भी इसकी रविश मोतदिल थी लेकिन यह ऐतिदाल बहुत दिनों बाक़ी नहीं रहा और यह अपने आबाओ अजदाद के जादे पर बहुत थोड़े ही अर्से चल निकला और इस अम्र की कोशिश करने लगा कि आले मोहम्मद स. का कोई मोअज़जि़ज़ फ़र्द रहने न पाये बल्कि कोई ऐसा शख़्स भी महफ़ूज़ न रहे जो आले मोहम्मद स. को दोस्त रखता हो। तवारीख़ में है कि उसने याक़ूब इब्ने दाऊद को जो ज़ैदी मज़हब के थे अपना वज़ीरे आज़म बना कर रेफ़ाहे आम के तमाम काम इनसे लिए और यह मालूम होने के बाद कि यह दोस्तदारे आले मोहम्मद हैं उन्हे क़ैद कर दिया।
साहेबे हबीब उस सैर लिखते हैं कि याकू़ब हमेशा से दोस्त दाराने अहले बैत में से था। यहिया इब्ने जै़द और इब्राहीम बरादरे नफ़्से ज़किया के रफ़ीक़ों में से था। शहादते इब्राहीम के बाद मन्सूर ने उसे क़ैद कर लिया था। मेंहदी ने लाएक़ देख कर उसे वज़ीर बना लिया था।(तारीख़े इस्लाम जिल्द 1 पृष्ठ 56 ) जब लोगों ने मेंहदी को बावर करा दिया कि यह आले मोहम्मद स. का ख़ास दिलदादा है तो उस ने उनसे कहा कि मैं तुम्हें एक बाग़ एक लौड़ीं और एक लाख दिरहम देता हूँ तुम क़ैद ख़ाने में जा कर फ़ुला अलवी को क़त्ल कर दो। उन्होंने सब कुछ लेने के बाद इस अलवी को इसके दो रफ़ीको समैत कै़द ख़ाने से रेहा कर दिया और उसे काफ़ी माल दे कर इससे कहा कि यहाँ से चले जाओ। चुनान्चे वह किसी तरफ़ चले गये। चन्द दिनों के बाद इस कनीज़ ने जो उन्हें मिली थी मेंहदी से बता दिया कि उन्होंने अलवी को क़त्ल करने के बजाए रेहा कर दिया और यही नहीं बल्कि तेरे दिये हुए माल से उसे नवाज़ा भी है। मेंहदी ने आपकी तलाशी ली और वाक़ेयात का पता भी लगाया वाक़ेया चूंकि सही था इस वजह से वह बेरहम हो गया और उसने उन्हें क़ैद का हुक्म दे दिया। याकू़ब क़ैद कर दिये गये और मुद्दतुल उमर क़ैद में रहे।
अल्लामा शाफ़ेई लिखते हैं कि याक़ूब को मेंहदी के हुक्म से उस कुऐं में क़ैद किया गया जिसमें रौशनी न जा सकती थी। जिसके नतीजे में वह बिल्कुल अन्धे हो गये। याक़ूब उसी क़ैद ख़ाने में पड़े रहे यहाँ तक कि हारून रशीद का ज़माना आया और उसने उन्हें रेहा कर के मक्का मोअज़्ज़मा भेज दिया जहाँ यह 187 हिजरी में इन्तेक़ाल फ़रमा गये। इन्ना लिल्लाहे व इन्ना इलैहे राजेऊन।
(मरातुल जेनान जिल्द 1 पृष्ठ 419 प्रकाशित हैदराबाद दक्कन)
इमाम मूसा काजि़म (अ.स.) की बग़दाद में क़त्ल के लिये तलबी
जैसा कि मैंने ऊपर तहरीर किया है मेंहदी चन्द दिनों से ज़्यादा आले मोहम्मद स. का तरफ़ दार नहीं रहा। आखि़र वह वक़्त आ गया कि उसने इमाम (अ.स.) को मदीने से बग़दाद तलब कर लिया। इस तलबी का मक़सद यह था कि वहां बुला कर उन्हें क़त्ल करा दे। बहर सूरत इसी मक़सद के पेशे नज़र हुक्म पहुँचा कि आप बग़दाद हाजि़र हों। इमाम (अ.स.) हसबुल हुक्म वहां से रवाना हो गये।
अल्लामा शिबलंजी और अल्लामा जामी लिखते हैं कि आप मंजि़ले ज़बाला पर पहुँचे तो आप से अबूख़ालिद ने मुलाक़ात की। अबू ख़ालिद कहते हैं कि मैंने हज़रत मूसा काजि़म (अ.स.) को देखा कि आप उन लोगों की हिरासत में तशरीफ़ ला रहे हैं जो बग़दाद से आपको लाने के लिये भेजे गये थे। मैं हज़रत के क़रीब गया और मैंने सलाम किया , मुझे देख कर इमाम (अ.स.) ख़ुश हो गये और मुझसे फ़रमाने लगे कि फ़लां फ़लां चीज़ें ख़रीद कर अपने पास रख लेना जब मैं वापस आऊंगा तो ले लूगां। मैंने अजऱ् कि बहुत बेहतर। थोड़ी देर के बाद आपने फ़रमाया , अबू ख़ालिद रंजिदा क्यों हो ? मैंने अजऱ् कि , मौला आप दुशमनों के मुँह में जा रहे हैं , डरता हूँ कि जाने वह क्या करें। आपने फ़रमाया , घबराओ नहीं मैं इन्शा अल्लाह वापस आऊगां और अबू ख़ालिद सुनो तुम फ़लां तारीख़ ब वक़्त शाम मेरा इन्तेज़ार करना , यह फ़रमा कर आप रवाना हो गये और बग़दाद जा पहुँचे।
अल्लामा इब्ने तल्हा शाफ़ेई व अल्लामा जामी लिखते हैं कि बग़दाद पहुँचते ही आप क़ैद कर दिये गये। अल्लामा मजलिसी लिखते हैं कि थोड़े दिन क़ैद रखने के बाद मेंहदी ने आपको क़त्ल करा देना चाहा और इसी लिये इसने हमीद इब्ने क़हतबा को आधी रात के वक़्त बुला भेजा और उस से कहा कि मेरे और तुम्हारे बाप और भाई के दरमियान कितने अच्छे ताअल्लुक़ात थे और सुनों इस वक़्त मुझे तुम से एक ज़रूरी काम लेना है क्या तुम उसे कर सकोगे , इसने कहा कि हाँ ज़रूर करूगां और ऐ बादशाह अगर तामील इरशाद में मेरा माल , मेरी जान , मेरी औलाद हत्ता कि मेरा ईमान भी काम आजाए तो परवाह नहीं। ख़लीफ़ा मेंहदी ने कहा कि ख़ुदा तुम्हारा भला करे , मुझे तुमसे इसी की तवक़्क़ो थी। देखो काम यह है कि तुम इमाम मूसा काजि़म को सुबह होने से पहले क़त्ल कर दो। उसने कहा बेहतर है। बात तय हो गई , हमीद चला गया। मेंहदी सोने चले गया। अभी थोड़ी ही देर सोया था कि अमीरल मोमेनीन (अ.स.) ख़्वाब में तशरीफ़ लाये और उससे कहने लगे कि क्या तुम्हें हुकूमत इसी लिये दी गई है कि तुम अहले क़राबत को तबाह कर दो , होश में आओ और अपने इरादाऐ नजिस से बाज़ आओ। यह देख कर मेंहदी बेदार हो गया और उसने फ़ौरन हमीद को कहला भेजा कि मैंने जो हुक्म दिया है उस पर आज अमल न करना। इसी ख़्वाब की वजह से मेंहदी ने उन्हें रेहा कर के मदीने भेज दिया।
अल्लामा जामी (अलैहिर् रहमा) लिखते हैं कि इमाम (अ.स.) वापस आ रहे थे और अबू ख़ालिद ज़बावली का हाल यह था कि जिस दिन से इमाम (अ.स.) ज़बाला से रवाना हुए थे यह बड़ी मुश्किलों से दिन रात काट रहे थे। जब वह दिन आया जिस दिन इमाम (अ.स.) ने पहुँचने का वायदा फ़रमाया था यह घर से निकल कर बग़दाद के रास्ते पर खड़े हो गये। सूरज डूबते ही उनका दिल डूबने लगा और उन्हें यह शुब्हा पैदा होने लगा कि शायद इमाम (अ.स.) पर कोई मुसिबत आ गई है। नागाह देखा कि ईराक़ की तरफ़ से ग़ुबार नमूदार हुआ और उस के आगे इमाम (अ.स.) ख़च्चर पर सवार चले आ रहे हैं। यह देख कर अबू ख़ालिद मसरूर हो गये और इस्तेक़बाद के लिये दौड़ पड़े। इमाम (अ.स.) ने फ़रमाया ऐ अबू खालिद अपने कहने के मुताबिक़ वापस आ गया हूँ लेकिन एक मौक़ा ऐसा भी आने वाला है कि बग़दाद जा कर वापस न आ सकूगां।
(नूरूल अबसार पृष्ठ 130, दमेए साकेबा जिल्द 3 पृष्ठ 13, बा हवालाए मनाकि़ब व बेहार जिल्द 9 पृष्ठ 64, शवाहेदुन नबूवत पृष्ठ 193, मतालेबुल सुऊल पृष्ठ 278 ) फिर वहां से रवाना हो कर आप मदीना ए मुनव्वरा पहुँचे और बा दस्तूर फ़राएज़े इमामत की अदाएगी में मसरूफ़ हो गये।
इमाम मूसा ए काजि़म (अ.स.) हादी अब्बासी की क़ैद में
तवारीख़ में है कि मेहदी के बाद उसका बेटा हादी अब्बासी 22 मोहर्रम 169 हिजरी मुताबिक़ 785 ई0 में तख़्ते खि़लाफ़त पर बैठा। मिस्टर ज़ाकिर हुसैन लिखते हैं कि हादी बड़ा खुद सर , खुद राय , जि़द्दी , ख़ूंख़ार और बे रहम था। शराब पीता और लहो आब में मसरूफ़ रहता था।
हादी को आले मोहम्मद (स. अ.) से वही बुग़्ज़ व एनाद था जो उसके आबाव अजदाद को था , उसी की सलतन्त में और उसी के अहद में हुकूमत में मदीने के गर्वनर ने इमाम हसन (अ.स.) की औलाद में से बाज़ अफ़राद का बादा ख़वारी का झूठा इल्ज़ाम लगवा कर पिटवाया और उनके गले में रस्सियां बंधवा कर मदीने के कूचे व बाज़ार में तशहीर कराया और कई सौ बनी हसन को क़त्ल कराया और उनकी नुमायां फ़र्द जनाबे हुसैन बिन अली बिन हसन मुसल्लस बिन हसने मुसन्ना का सर कटवा कर बग़दाद भिजवा दिया और पूरी ताक़त से सादात पर ज़ुल्म करता रहा।
(तारीख़े इस्लाम जिल्द 1 पृष्ठ 7 )
हादी ने हज़रत इमाम मूसा काजि़म (अ.स.) के साथ वही कुछ किया जो इमाम के आबाव अजदाद के साथ करते आय थे।
अल्लामा इब्ने हजर मक्की लिखते हैं कि ख़लीफ़ा हादी बिन मेहदी ने हज़रत इमाम मूसा काजि़म (अ.स.) को कै़द कर दिया। बाप क़ैद की मुसिबतों को बरदाश्त कर ही रहे थे कि एक शब हज़रत अली (अ.स.) ने उसके सामने एक आयत पढ़ी जिसका तरजुमा यह है कि क्या इसी लिये तुम हाकिम बने हो कि फ़साद बरपा करो और क़तए रहम करो। इस ख़्वाब से वह बेदार हुआ और उसने फ़ौरन आपकी रेहाई का हुक्म दिया।(सवाएक़े मोहर्रेक़ा पृष्ठ 122 व अरजहुल मतालिब पृष्ठ 453 )

