चौदह सितारे हज़रत इमाम मूसा काजि़म (अ.स) पार्ट- 3

17322047060618166610269903296351

आपके बचपन के बाज़ वाक़ेआत

यह मुसल्लेमात से है कि नबी और इमाम तमाम सलाहियतों से भर पूर मोतवल्लिद होते हैं। जब हज़रत इमाम मूसा काजि़म (अ.स.) की उमर तीन साल की थी एक शख़्स जिसका नाम सफ़वान जम्माल था हज़रत इमाम जाफ़र सादिक (अ.स.) की खि़दमत में हाजि़र हो कर मुस्तफ़सिर हुआ कि मौला , आपके बाद इमामत के फ़राएज़ कौन अदा करेगा आपने इरशाद फ़रमाया ऐ सफ़वान ! तुम इसी जगह बैठो और देखते जाओ जो ऐसा बच्चा मेरे घर से निकले जिसकी हर बात मारफ़ते ख़ुदा से पुर हो और आम बच्चों की तरह लहो लआब न करता हो , समझ लेना कि ऐनाने इमामत इसी के लिये सज़ावार है। इतने में इमाम मूसा काजि़म (अ.स.) बकरी का एक बच्चा लिये हुए बरामद हुए और बाहर आ कर इससे कहने लगेः अपने ख़ुदा का सजदा कर। यह देख कर इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) ने उसे सीने से लगा लिया।(तज़किरतुल मासूमीन पृष्ठ 192 )

सफ़वान कहता है यह देख कर मैं ने इमाम मूसा (अ.स.) से कहा साहब जा़दे ! इस बच्चे को कहिए की मर जाए। आप ने इरशाद फ़रमाया कि वाए हो तुम पर , क्या मौत व हयात मेरे ही इख़्तेयार में है।(बेहारूल अनवार जिल्द 11 पृष्ठ 266 )

अल्लामा मजलिसी लिखते हैं कि इमाम अबू हनीफ़ा एक दिन इमाम जाफ़र सादिक़ (अ.स.) से मसाएले दीनीया दरियाफ़्त करने के लिये हसबे दस्तूर हाजि़र हुए। इत्तेफ़ाक़न आप आराम फ़रमा रहे थे। मौसूफ़ इस इन्तेज़ार में बैठ गये कि आप बेदार हों तो अर्ज मुद्दआ करूं। इतने में इमाम मूसा काजि़म (अ.स.) जिनकी उम्र उस वक़्त पाँच साल की थी बरामद हुए। इमाम अबू हनीफ़ा ने उन्हें सलाम कर के कहा , ऐ साहब ज़ादे बताओ कि इन्सान फ़ाएल मुख़्तार है या इनके फ़ेल का ख़ुदा फ़ाएल है ? यह सुन कर आप ज़मीन पर दो ज़ानू बैठ गये और फ़रमाने लगे , सुनो ! बन्दों के अफ़आल तीन हालतों से ख़ाली नहीं , या इनके अफ़आल का फ़ाएल सिर्फ़ ख़ुदा है या सिर्फ़ बन्दा है या दोनों की शिरकत से अफ़आल वाक़े होते हैं अगर पहली सूरत है तो ख़ुदा को बन्दे पर अज़ाब का हक़ नहीं , अगर तीसरी सूरत है तो भी यह इन्साफ़ के खि़लाफ़ है कि बन्दे को सज़ा दे और अपने को बचा ले क्यो कि इरतेक़ाब दोनों की शिरकत से हुआ है। अब ला मोहाला दूसरी सूरत होगी वह यह की बन्दा ख़ुदा फ़ाएल हो और इरतिक़ाबे क़बीह पर ख़ुदा उसे सज़ा दे।

(बिहारूल अनवार जिल्द 11 पृष्ठ 185 )

इमाम अबू हनीफ़ा कहते हैं कि मैं ने उस साहब ज़ादे को इस तरह नमाज़ पढ़ते हुए देख कर कि उनके सामने से लोग बराबर गुज़र रहे थे इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) से अर्ज़ किया कि आप के साहब ज़ादे मूसा काजि़म नमाज़ पढ़ रहे थे और लोग उनके सामने से गुज़र रहे थे। हज़रत ने इमाम मूसा काजि़म (अ.स.) को आवाज़ दी , वह हाजि़र हुए , आपने फ़रमाया बेटा ! अबू हनीफ़ा क्या कहते हैं उनका कहना है कि तुम नमाज़ पढ़ रहे थे और लोग तुम्हारे सामने से गुज़र रहे थे। इमामे मूसा काजि़म (अ.स.) ने अर्ज कि बाबा जान लोगों के गुज़रने से नमाज़ पर क्या असर पड़ता है वह हमारे और ख़ुदा के दरमियान हाएल तो नहीं हुए थे क्यों कि वह तो रगे जान से भी ज़्यादा क़रीब है। यह सुन कर आपने उन्हें गले से लगा लिया और फ़रमाया कि इस बच्चे को असरारे शरीअत अता हो चुके हैं।

(मनाक़िब जिल्द 5 पृष्ठ 69 )

एक दिन अब्दुल्लाह इब्ने मुस्लिम और अबू हनीफ़ा दोनो वारिदे मदीना हुए। अब्दुल्लाह ने कहा चलो इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) से मुलाक़ात करें और उनसे कुछ इस्तेफ़ादा करें। यह दोनों हज़रत के दरे दौलत पर हाजि़र हुए। यहाँ पहुँच कर देखा कि हज़रत के मानने वालों की भीड़ लगी हुई है। इतने में इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) के बजाए इमाम मूसा काजि़म (अ.स.) बरामद हुए। लोगो ने सरो क़द ताज़ीम की , अगरचे आप उस वक़्त बहुत ही कम सिन थे लेकिन आपने उलूम के दरिया बहाना शुरू किये। अब्दुल्लाह वग़ैरा ने जो आपसे कुछ दूरी पर थे आपके क़रीब जाते हुए आपकी इज़्ज़त व मंजि़लत का आपस में तज़किरा किया। आखि़र में इमाम अबू हनीफ़ा ने कहा कि चलो मैं उन्हें उनके शियों के सामने रूसवा और ज़लील करता हूँ। मैं उनसे ऐसा सवाल करूगां कि यह जवाब न दे सकेंगे। अब्दुल्लाह ने कहा , यह तुम्हारा ख़्याले ख़ाम है वह फ़रज़न्दे रसूल स. हैं। अल ग़रज़ दोनों हाजि़रे खि़दमत हुए इमाम अबू हनीफ़ा ने इमाम मूसा काजि़म (अ.स.) से पूछा साहब ज़ादे यह तो बताओ कि अगर तुम्हारे शहर में कोई मुसाफि़र आ जाए और उसे क़ज़ाए हाजत करनी हो तो क्या करे और उसके लिये कौन सी जगह मुनासिब होगी ? हज़रत ने बरजस्ता फ़रमाया ! मुसाफि़र को चाहिये कि मकानों की दीवारों के पीछे छुपे , हमसायों की निगाहों से बचे , नहरों के किनारों से परहेज़ करे जिन मुक़ामात पर दरख़्तों के फल गिरते हों उस जगह से परहेज़ करे। मकानों के सहन से अलहदा , शाहराहो और रास्तों से अलग मस्जिदों को छोड़ कर , ना कि़बले की जानिब मुह करे ना पीठ फिर अपने कपड़ों को बचा कर जहाँ चाहे रफ़ये हाजत करे। यह सुन कर इमाम अबू हनीफ़ा हैरान रह गये और अब्दुल्लाह कहने लगे कि मैं न कहता था कि यह फ़रज़न्दे रसूल स. हैं इन्हें बचपन ही में हर कि़स्म का इल्म हुआ करता है।

(बिहार , मनाक़िब व एहतिजाज)

अल्लामा मजलिसी तहरीर फ़रमाते हैं कि एक दिन हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) मकान में तशरीफ़ फ़रमा थे इतने में आपके नूरे नज़र इमाम मूसा काजि़म (अ.स.) कहीं बाहर से वापस आए। इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) ने फ़रमाया , बेटे ज़रा इस मिसरे पर मिसरा लगाओ। ‘‘तन्नहाक अन अलक़बीह वल अमस्तोदा ’’ आपने फ़ौरन मिसरा लगाया। ‘‘ वमन औलियतन हसना फ़ज़दहा ’’ बुरी बातों से दूर रहो और उनका इरादा भी न करो। जिसके साथ भलाई करो भर पूर करो। फिर फ़रमाया इस पर मिसरा लगाओ। ‘‘ सतलक़ी मिन अदूका कुल कैद ’’ आपने मिसरा लगाया ‘‘ अज़ाका वल अदो फला तकदा ’’ तरजुमा 1. तुमहारा दुश्मन हर कि़स्म का मकरो फ़रेब करेगा , 2. जब दुश्मन मकरो फ़रेब करे तब भी उसे बुराई के क़रीब नहीं जाना चाहिये।

(बिहारूल अनवार जिल्द 11 पृष्ठ 36 )

Leave a comment