चौदह सितारे इमामे जाफ़रे सादिक़ (अ.स) पार्ट- 12

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इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) का दरबारे मन्सूर में एक तबीबे हिन्द से तबादला ए ख़यालात

अल्लामा रशीद उद्दीन अबू अब्दुल्लाह मोहम्मद बिन अली इब्ने शहरे आशोब माज़न्द्रानी अल मतूफ़ी 588 हिजरी ने दरबारे मन्सूर का एक अहम वाक़ेया नक़ल फ़रमाया है जिसमें मुफ़स्सल तौर पर यह वाज़े किया गया है कि एक तबीब जिसको अपनी क़ाबलियत पर बड़ा भरोसा और ग़ुरूर था वह इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) के सामने किस तरह सिपर अन्दाख़्ता हो कर आपके कमालात का मोतरिफ़ हो गया। हम मौसूफ़ की अरबी इबारत का तरजुमा अपने फ़ाज़िल मआसर के अल्फ़ाज़ में पेश करते हैं।

एक बार हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) मन्सूर दवानक़ी के दरबार में तशरीफ़ फ़रमा थे। वहां एक तबीबे हिन्दी तिब की बाते बयान कर रहा था और हज़रत ख़ामोश बैठे सुन रहे थे। जब वह कह चुका तो हज़रत से मुख़ातिब हो कर कहने लगा। अगर कुछ पूछना चाहें तो शोक़ से पूछें। आपने फ़रमाया , मैं क्या पूछूँ , मुझे तुझ से ज़्यादा मालूम है। तबीब अगर यह बात है तो मैं भी कुछ सुनूं। इमाम (अ.स.) जब किसी मर्ज़ का ग़लबा हो तो उसका इलाज ज़िद से करना चाहिये यानी हार , गर्म का इलाज बारद सर्द से , तर का ख़ुश्क से , ख़ुश्क का तर से और हर हालत में अपने ख़ुदा पर भरोसा रखे। याद रख मेदा तमाम बिमारियों का घर है और परहेज़ सौ दवाओं की एक दवा है। जिस चीज़ का इंसान आदी हो जाता है उसके मिजाज़ के मुवाफ़िक़ और उसकी सेहत का सबब बन जाती है। तबीब बे शक आपने जो बयान फ़रमाया है असली तिब यही है। इमाम (अ.स.) यह न समझना चाहिये कि मैंने जो बयान किया है यह तिब की किताबें पढ़ कर हासिल किया है बल्कि यह उलूम मुझको ख़ुदा की तरफ़ से मिले हैं। अब बता तू ज़्यादा इल्म रखता है या मैं ? तबीब मैं। इमाम (अ.स.) अच्छा मैं चन्द सवाल करता हूँ उनका जवाब दे।

1. आंसुओं और रूतूबतों की जगह सर में क्यों है ?

2. सर पर बाल क्यों हैं ?

3. पेशानी बालों से खाली क्यों है ?

4. पेशानी पर ख़त और शिकन क्यों हैं ?

5. दोनों पल्कें आंखों के ऊपर क्यों हैं ?

6. नाक दोनों आंखों के दरमियान क्यों है ?

7. आंखें बादामी शक्ल की क्यों हैं ?

8. नाक का सूराख़ नीचे की तरफ़ क्यो है ?

9. मूंह पर दो होंठ क्यों बनाये गये हैं ?

10. सामने के दांत तेज़ और दाढ़ें चौड़ी क्यों है और उन दोनों के बीच में लम्बे दांत क्यों हैं ?

11. दोनों हथेलियां बालों से ख़ाली क्यों हैं ?

12. मर्दो के दाढ़ी क्यों होती है ?

13. नाख़ून और बालों में जान क्यों नहीं ?

14. दिल सनोबरी शक्ल का क्यों है ?

15. फ़ेफड़े के दो टुकड़े क्यों हैं और वह अपनी जगह हरकत क्यों करता हैं ?

16. जिगर की शक्ल मोहद्दब क्यों है ?

17. गुर्दे की शक्ल लोबिये के दाने की तरह क्यों होती है ?

18. घुटने आगे को झुकते हैं पीछे को क्यों नहीं झुकते ?

19. दोनों पावों के तलवे बीच से ख़ाली क्यों होते हैं ?

तबीब मैं इन बातों का जवाब नहीं दे सकता। इमाम (अ.स.) ख़ुदा के फ़ज़्ल से मैं इन सब सवालों का जवाब जानता हूँ। तबीब ने कहा कि बराऐ करम बयान फ़रमाइये।

इमाम (अ.स.) ने फरमायाः

1. सर अगर आंसुओं और रूतूबतों का मरकज़ न होता तो ख़ुश्की की वजह से टुकड़े टुकड़े हो जाता।

2. बाल इस लिये सर पर हैं कि उनकी जड़ों से तेल वग़ैरा दिमाग़ तक पहुँचता रहे और बहुत से दिमाग़ी अबख़रे निकलते रहें , दिमाग़ गर्मी और सर्दी से महफ़ूज़ रहे।

3. पेशानी बालों से इस लिये ख़ाली है कि इस जगह से आंखों में नूर पहुँचता है।

4. पेशानी में लकीरें इस लिये हैं कि सर से जो पसीना गिरे वह आंखों में न जा पाये। जब शिकनों में पसीना जमा हो तो इंसान उसे पोंछ कर फे़क दे जिस तरह ज़मीन पर पानी जारी होता है तो गढ़ों में जमा हो जाता है।

5. पलकें इस लिये आंखों पर क़रार दी गई हैं कि आफ़ताब की रौशनी इतनी उन पर पड़े जितनी ज़रूरत है और ब वक़्ते ज़रूरत बन्द हो कर आंखों की हिफ़ाज़त कर सके और सोने में मद्द दे सकें। तुम ने देखा होगा की जब इंसान ज़्यादा रौशनी में बलन्दी की तरफ़ किसी चीज़ को देखना चाहता है तो हाथ आंखों के ऊपर रख कर साया कर लेता है।

6. नाक को दोनों आंखों के बीच में इस लिये क़रार दिया गया है कि मजमा ए नूर से रौशनी तक़सीम हो कर बराबर दोनों आंखों को पहुँचे।

7. आंखों को बदामी शक्ल का इस लिये बनाया गया है कि बा वक़्ते ज़रूरत सलाई के ज़रिये से दवा , सुरमा वग़ैरा इसमें आसानी से पहुँच जायें। अगर आंख चकोर या गोल होती तो सलाई का उसमें फिरना मुश्किल होता। दवा उसमें ब ख़ूबी न पहुँच सकती और बीमारी दफ़ा न होती।।

8. नाक का सूराख़ नीचे को इस लिये बनाया कि दिमाग़ी रूतूबतें आसानी से निकल सकें अगर ऊपर को होता तो यह बात न होती और दिमाग़ तक किसी भी चीज़ की बू जल्दी से न पहुँच सकती।

9. होंठ इस लिये मुंह पर लगाये गये कि जो रूतूबतें दिमाग़ से मुंह मे आयें वह रूकी रहें और खाना भी इंसान के इख़्तियार में रहे , जब चाहे फेकें और थूक दे।

10. दाढ़ी मर्दों को इस लिये दी कि मर्द और औरत में तमीज़ हो जाय।

11. अगले दांत इस लिये तेज़ हैं कि किसी चीज़ का काटना सहल हो और दाढ़ों को चौड़ा इस लिये बनाया कि ग़िज़ा पीसना और चबाना आसान हो। इन दोनों के दरमियान लम्बे दांत इस लिये बनाये कि दोनों के इस्तेहकाम के बाएस हों जिस तरह मकान की मज़बूती के बाएस सुतून (खम्बे) होते हैं।

12. हथेलियों पर बाल इस लिये नहीं कि किसी चीज़ को छूने से इसकी नरमी , सख़्ती , गर्मी और सर्दी वग़ैरा आसानी से मालूम हो जाय। बालों की सूरत में यह बात हासिल न होती।

13. बाल और नाख़ूनों में जान इस लिये नहीं कि इन चीज़ों का बढ़ना बुरा मालूम होता है और नुक़्सान देह है , अगर इन में जान होती तो काटने में तकलीफ़ होती।

14. दिल सनोबरी शक्ल यानी सर पतला और दुम चौड़ी (निचला हिस्सा) इस लिये है कि आसानी से फे़फ़ड़े में दाखि़ल हो सके और उसकी हवा से ठंडक पाता रहे ताकि उसके बुख़ारात दिमाग़ की तरफ़ चढ़ कर बीमारियां पैदा न करें।

15. फे़फ़ड़े के दो टुकड़े इस लिये हुए कि दिल उनके दरमियान रहे और वह उसको हवा दें।

16. जिगर मोहद्दब इस लिये हुआ कि अच्छी तरह मेदे के ऊपर जगह पकड़े और अपनी गरानी व गर्मी से ग़िज़ा को हज़म करे।

17. गुर्दा लोबिये के दाने की शक्ल का इस लिये हुआ कि मनी यानी नुत्फ़ा इंसानी पुश्त की जानिब से इसमें आता है और उसके फ़ैलने और सुकड़ने की वजह से आहिस्ता आहिस्ता निकलना है जो सबबे लज़्ज़त है।

18. घुटने पीछे की तरफ़ इस लिये नहीं झुकते कि चलने में आसानी हो अगर ऐसा न होता तो आदमी चलते वक़्त गिर गिर पड़ता , आगे चलना आसान न होता।

19. दोनों पैरों के तलवों के बीच में जगह ख़ाली इस लिये है कि दोनों किनारों पर बोझ पड़ने से आसानी से पैर उठ सकें अगर ऐसा न होता और पूरे बदन का बोझ पेरों पर पड़ता तो सारे बदन का बोझ उठाना दुश्वार हो जाता।

यह जवाबात सुन कर हिन्दोस्तानी तबीब (हकीम , वैद्य) हैरान रह गया और कहने लगा कि आपने यह इल्म किससे सीखा है ? फ़रमाया अपने दादा से उन्होंने रसूले ख़ुदा (स अ व व ) से हासिल किया और उन्होंने ख़ुदा से सीखा है। उसने कहा , ‘‘ इन्ना अशहदो अन ला इलाहा इलल्लाह व अन मोहम्मदन रसूल अल्लाह व अब्दहू ’’ मैं गवाही देता हूँ कि ख़ुदा एक है और मोहम्मद (स अ व व ) उसके रसूल और अब्दे ख़ास हैं। ‘‘ व इन्नका आलमो अहले ज़माना ’’ और आप अपने ज़माने में सब से बडे आलिम हैं।(मनाक़िब इब्ने शहरे आशोब जिल्द 5 पृष्ठ 46 प्रकाशित बम्बई व सवानेह चहारदा मासूमीन हिस्सा 2 पृष्ठ 25 )

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